आदरणीय कलाम साहब,
क्यों लग रहा है कि कुछ रीतापन सा है आसपास, क्यों ऐसा महसूस हो रहा है जैसे
कुछ खाली-खाली सा हो गया है आसपास? आपसे तो कोई रिश्ता भी नहीं था हमारा, आप कहीं
दूर के रिश्तेदार, सम्बन्धी भी नहीं लगते थे हमारे फिर क्यों आपके जाने की खबर ने
आँखें नम कर दी हमारी? क्यों आपका जाना व्यथित सा कर रहा है? बस आपको कभी-कभार
टीवी पर देख लेते थे, कभी-कभार आपके बारे में कोई खबर पढ़ लेते थे. फिर ऐसा क्यों
महसूस हो रहा है कि कोई अपना आत्मीय बिछड़ गया है? इसी अनाम सम्बन्ध के कारण आपका
जाना दुःख उत्पन्न कर रहा है. इसी अनाम रिश्ते को दृढ़ता देने का काम करते हुए अनेक
बच्चों ने आपको चाचा कहना शुरू किया तो अब लगा कि वाकई ऐसा कोई चला गया जिसने
वास्तविक रूप में चाचा सम्बोधन को सार्थकता प्रदान की. व्यक्ति-व्यक्ति से न मिलने
के बाद भी आपने देश के एक-एक व्यक्ति के साथ रिश्ता स्थापित किया. शिक्षा, ज्ञान
की उच्चता को प्राप्त करने के बाद भी आपने निरक्षरों से संवाद स्थापित किया. स्वप्न
देखने और स्वप्न पूरा करने के मध्य की बारीक रेखा को स्पष्ट कर एक दृष्टिकोण
विकसित किया. पद, सत्ता की सर्वोच्चता प्राप्त करने के बाद भी जीवनशैली की,
कार्यशैली की सहजता को आत्मसात करने की प्रेरणा दी.
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सक्रियता के वाहक बनकर आपने अंतिम-अंतिम साँस तक सभी को सक्रिय रहने का
सार्थक सन्देश दिया. इसके साथ-साथ एक मानवतावादी सन्देश भी लोगों के बीच
स्वतः-स्फूर्त ढंग से प्रसारित हुआ. अब देखना समझना ये है कि कितने मानवतावादी इसे
समझकर आत्मसात करते हैं और कितने महज ढोंग करते हुए इसे विस्मृत कर देते हैं. कतिपय
लोगों ने आपको धर्मनिरपेक्षता, साम्प्रदायिकता जैसे खांचों में बाँधना चाहा था
किन्तु आपकी मानवतावादी सोच ने, इंसानियत भरे दृष्टिकोण ने सबको हाशिये पर लगा
दिया. अब जबकि आप हमारे बीच नहीं हो तब मानवता को जानने-समझने वाले, इंसानियत की
कद्र करने वाले की आँख में आँसू हैं. उसे याद भी नहीं कि आप हिन्दू थे या मुसलमान;
वो नहीं जानना चाह रहा कि आप किस राजनैतिक दल से थे; वो नहीं जानना चाहता कि आपकी
जाति क्या थी; उसे नहीं पता कि आपको श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए कौन सी
आराधना करनी है, कौन सी इबादत करनी है; अपने आपको कट्टर कहलाने वाले भी अपनी
कट्टरता को त्याग आपके सामने नतमस्तक हैं.
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आखिर ये सब क्या है? आखिर आप कौन थे? आखिर आपका हमसे रिश्ता क्या था? इन
रोते देशवासियों से आपका क्या सम्बन्ध था? आखिर आप किस धर्म, किस जाति के थे? क्या
आप जैसे लोगों को ही इन्सान कहते हैं? क्या आप जैसे लोगों की सोच को ही इंसानियत
कहते हैं? क्या आप जैसे लोगों के विचारों को आधुनिकता कहते हैं? बहुत सारे सवाल
हैं, कलाम साहब.... अब कब आओगे जवाब देने? आप चाहे जितनी दूर चले जाओ, पर आपको इन
सारे सवालों के जवाब देने तो आना ही पड़ेगा. जाते-जाते जो सन्देश दिया है उसका पालन
करवाने भी आपको को आना होगा. यदि ऐसा न हुआ तो इंसानियत यूँ ही धर्म-मजहब के बीच
मरती रहेगी. मानवता धर्मनिरपेक्षता-साम्प्रदायिकता के बीच पिसती रहेगी. आधुनिकता
सरेराह नग्नावस्था में विचरण करती रहेगी. तकनीक किसी अलमारी की शोभा बनी
प्रयोगशाला में भटकती रहेगी. जीवनशैली किसी अमीर की, सताधारी की, बाहुबली की रखैल
बनी सिसकती रहेगी.
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कलाम साहब को
बारम्बार इस कामना के साथ नमन करते हुए आज की पोस्ट सामने रख रहे हैं कि वे
प्रत्येक सक्रिय देशवासी में जीवित रहेंगे, सपनों को साकार करने वाले व्यक्ति के
चरित्र में जीवित रहेंगे......
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सलाम कलाम [एक विनम्र श्रद्धांजलि]
और आज
की पोस्ट का अंत उस व्याख्यान के साथ जो पूरा नहीं हो सका......
फिजाँ में है तो बस आज एक कलाम है
जवाब देंहटाएंहर दिल अजीज को सलाम है सलाम है ।
डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धाँजलि ।
जवाब देंहटाएंदिल में गीता और जुबां पे कुरान दिखा देना!
जवाब देंहटाएंकभी मिले तो कलाम साहब जैसा मुसलमान दिखा देना!!
करोड़ों सलाम के साथ अलविदा कलाम सर ....जय हिन्द
बहुत सुंदर। कलाम साहब को ब्लॉग जगत की तरफ से आपने सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।
जवाब देंहटाएंकलाम साहब के साथ भारत के एक स्वर्णिम युग का अंत हो गया..........विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रधांजलि !
जवाब देंहटाएंकलाम साहब हमारे दिलो में है जिन्होंने भारत को विश्व में प्रतिष्ठा दिलाई, जिनके लिए अमेरिका ने भी अपना झंडा झुका दिया!
आभार.......