Pages

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

कुछ नई कुछ पुरानी तासीर





 यादों की खरोंचें 
विकृत चीखें 
लाख भूलना चाहो 
हथौड़े की तरह यादों का दरवाज़ा पीटती हैं 
फिर भी न खोलो 
तो कोई बहुत अपना खोलने की कोशिश करता है 
तब तक 
जब तक पूरी दिनचर्या न बिगड़ जाए !

कोई शुभचिंतक ऐसा नहीं होता 
हो ही नहीं सकता 
उसकी पुरज़ोर कोशिश ही यही होती है 
कि सारे ज़ख्म हरे हो जाएँ 
आँखें सूज जाये 
नींदें हराम हो जाये  … 

ऐसे लोगों से  एक दूरी ज़रूरी है 



3 टिप्‍पणियां:

  1. जख्मों को हरा रखने का यही तरीका सलीका का लगता है लोगों को.

    जवाब देंहटाएं
  2. दूरी जख्म खाने वाला बनाये तो कितनी बनाये
    कुरेदने वालों का काम ही जख्म सूंधना होता है ।

    सुंदर बुलेटिन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया बुलेटिन दीदी ... आपका आभार |

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!