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शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

२ महान विभूतियों के नाम है ३१ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज ३१ जुलाई है ... आज का दिन समर्पित है भारत देश की २ महान विभूतियों के नाम ... एक हैं अमर शहीद उधम सिंह और दूसरे हैं मुंशी प्रेमचंद |

अमर शहीद उधम सिंह (२६/१२/१८९९ - ३१/०७/१९४०)
लोगों में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि माइकल ओडवायर को मारा था जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था।
ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। ऊधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे।
26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। ऊधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओडवायर को जहां ऊधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर बुरी मौत मारा गया।
मुंशी प्रेमचंद (३१/०७/१८८० - ०८/१०/१९३६)
वाराणसी शहर से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर लमही गांव में अंग्रेजों के राज में 1880 में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद न सिर्फ हिंदी साहित्य के सबसे महान कहानीकार माने जाते हैं, बल्कि देश की आजादी की लड़ाई में भी उन्होंने अपने लेखन से नई जान फूंक दी थी। प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था।
वाराणसी शहर से दूर 129 वर्ष पहले कायस्थ, दलित, मुस्लिम और ब्राह्माणों की मिली जुली आबादी वाले इस गांव में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद ने सबसे पहले जब अपने ही एक बुजुर्ग रिश्तेदार के बारे में कुछ लिखा और उस लेखन का उन्होंने गहरा प्रभाव देखा तो तभी उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह लेखक बनेंगे। प्रेमचंद की कलम में कितनी ताकत है, इसका पता इसी बात से चलता है कि उन्होंने होरी को हीरो बना दिया। होरी ग्रामीण परिवेश का एक हारा हुआ चरित्र है, लेकिन प्रेमचंद की नजरों ने उसके भीतर विलक्षण मानवीय गुणों को खोज लिया।  प्रेमचंद का मानवीय दृष्टिकोण अद्भुत था। वह समाज से विभिन्न चरित्र उठाते थे। मनुष्य ही नहीं पशु तक उनके पात्र होते थे। उन्होंने हीरा मोती में दो बैलों की जोड़ी, आत्माराम में तोते को पात्र बनाया। गोदान की कथाभूमि में गाय तो है ही। अमिताभ ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य में खोखले यथार्थवाद को प्रश्रय नहीं दिया। प्रेमचंद के खुद के शब्दों में वह आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद के प्रबल समर्थक हैं। उनके साहित्य में मानवीय समाज की तमाम समस्याएं हैं तो उनके समाधान भी हैं।

आज ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम इन दोनों महान विभूतियों को शत शत नमन करते हैं |

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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भूमंडलीकरण के दौर में भी प्रेमचन्द के साहित्यिक और सामाजिक विमर्श, उतने ही प्रासंगिक

वो लाल स्कार्फ

रचना त्रिपाठी at टूटी-फूटी 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!! 

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

कलाम-ए-हिन्द और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।


आज आपके सामने प्रस्तुत है मिसाइल मैन ऑफ इंडिया और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी एक कविता :-


मेरी माँ!!

समंदर की लहरें,
सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री,
रामेश्वरम् द्वीप की वह
छोटी-पूरी दुनिया।
सबमें तू निहित,
सब तुझमें समाहित।

तेरी बाहों में पला मैं,
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा सा मैं
जीवन बना था चुनौती, जिंदगी
अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुँचते किरणों से पहले।

तेरी उंगलियों ने
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्वास की शक्ति-निर्भय हो जीने की, जीतने की।
जिया मैं
मेरी मां!

- डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम


डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी को पूरा हिन्दी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते है।     



अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर  ......


बच्चे पूछते हैं कलाम से…

प्रेरणा पुंज बने रहेंगे डॉ. कलाम

भारत के विख्यात उद्योगपति जेआरडी टाटा की १११ वीं जयंती

बढ़ोतरी के दावे और लुप्त होते बाघ

हे टीवी मीडिया के असहाय मित्रों। अब नरक मत करो।

तकनीक द्रष्टा / Tech Prevue - मेरा 7 साल का ब्लॉगिंग अनुभव

हुर्रे! याहू!! यूरेका!!! - विंडोज़ 10 - मुझे मेरा डेस्कटॉप व स्टार्ट मेनू वापस मिल गया!!!!

यूरोपियन यूनियन का वेब साईट कुकीज कानून समाधान

कैसा होगा टेक्नोट्रॉनिक दौर का युद्ध?

समाज की गंदगी का कटु चित्रण करने वाला कार्टूनिस्ट

भारतीय ....


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए शुभरात्रि। जय हिन्द ... जय भारत।।

बुधवार, 29 जुलाई 2015

सक्रियता के जीवन्त परिचायक कलाम साहब - ब्लॉग बुलेटिन


आदरणीय कलाम साहब,
क्यों लग रहा है कि कुछ रीतापन सा है आसपास, क्यों ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कुछ खाली-खाली सा हो गया है आसपास? आपसे तो कोई रिश्ता भी नहीं था हमारा, आप कहीं दूर के रिश्तेदार, सम्बन्धी भी नहीं लगते थे हमारे फिर क्यों आपके जाने की खबर ने आँखें नम कर दी हमारी? क्यों आपका जाना व्यथित सा कर रहा है? बस आपको कभी-कभार टीवी पर देख लेते थे, कभी-कभार आपके बारे में कोई खबर पढ़ लेते थे. फिर ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि कोई अपना आत्मीय बिछड़ गया है? इसी अनाम सम्बन्ध के कारण आपका जाना दुःख उत्पन्न कर रहा है. इसी अनाम रिश्ते को दृढ़ता देने का काम करते हुए अनेक बच्चों ने आपको चाचा कहना शुरू किया तो अब लगा कि वाकई ऐसा कोई चला गया जिसने वास्तविक रूप में चाचा सम्बोधन को सार्थकता प्रदान की. व्यक्ति-व्यक्ति से न मिलने के बाद भी आपने देश के एक-एक व्यक्ति के साथ रिश्ता स्थापित किया. शिक्षा, ज्ञान की उच्चता को प्राप्त करने के बाद भी आपने निरक्षरों से संवाद स्थापित किया. स्वप्न देखने और स्वप्न पूरा करने के मध्य की बारीक रेखा को स्पष्ट कर एक दृष्टिकोण विकसित किया. पद, सत्ता की सर्वोच्चता प्राप्त करने के बाद भी जीवनशैली की, कार्यशैली की सहजता को आत्मसात करने की प्रेरणा दी.
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सक्रियता के वाहक बनकर आपने अंतिम-अंतिम साँस तक सभी को सक्रिय रहने का सार्थक सन्देश दिया. इसके साथ-साथ एक मानवतावादी सन्देश भी लोगों के बीच स्वतः-स्फूर्त ढंग से प्रसारित हुआ. अब देखना समझना ये है कि कितने मानवतावादी इसे समझकर आत्मसात करते हैं और कितने महज ढोंग करते हुए इसे विस्मृत कर देते हैं. कतिपय लोगों ने आपको धर्मनिरपेक्षता, साम्प्रदायिकता जैसे खांचों में बाँधना चाहा था किन्तु आपकी मानवतावादी सोच ने, इंसानियत भरे दृष्टिकोण ने सबको हाशिये पर लगा दिया. अब जबकि आप हमारे बीच नहीं हो तब मानवता को जानने-समझने वाले, इंसानियत की कद्र करने वाले की आँख में आँसू हैं. उसे याद भी नहीं कि आप हिन्दू थे या मुसलमान; वो नहीं जानना चाह रहा कि आप किस राजनैतिक दल से थे; वो नहीं जानना चाहता कि आपकी जाति क्या थी; उसे नहीं पता कि आपको श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए कौन सी आराधना करनी है, कौन सी इबादत करनी है; अपने आपको कट्टर कहलाने वाले भी अपनी कट्टरता को त्याग आपके सामने नतमस्तक हैं.
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आखिर ये सब क्या है? आखिर आप कौन थे? आखिर आपका हमसे रिश्ता क्या था? इन रोते देशवासियों से आपका क्या सम्बन्ध था? आखिर आप किस धर्म, किस जाति के थे? क्या आप जैसे लोगों को ही इन्सान कहते हैं? क्या आप जैसे लोगों की सोच को ही इंसानियत कहते हैं? क्या आप जैसे लोगों के विचारों को आधुनिकता कहते हैं? बहुत सारे सवाल हैं, कलाम साहब.... अब कब आओगे जवाब देने? आप चाहे जितनी दूर चले जाओ, पर आपको इन सारे सवालों के जवाब देने तो आना ही पड़ेगा. जाते-जाते जो सन्देश दिया है उसका पालन करवाने भी आपको को आना होगा. यदि ऐसा न हुआ तो इंसानियत यूँ ही धर्म-मजहब के बीच मरती रहेगी. मानवता धर्मनिरपेक्षता-साम्प्रदायिकता के बीच पिसती रहेगी. आधुनिकता सरेराह नग्नावस्था में विचरण करती रहेगी. तकनीक किसी अलमारी की शोभा बनी प्रयोगशाला में भटकती रहेगी. जीवनशैली किसी अमीर की, सताधारी की, बाहुबली की रखैल बनी सिसकती रहेगी.
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कलाम साहब को बारम्बार इस कामना के साथ नमन करते हुए आज की पोस्ट सामने रख रहे हैं कि वे प्रत्येक सक्रिय देशवासी में जीवित रहेंगे, सपनों को साकार करने वाले व्यक्ति के चरित्र में जीवित रहेंगे......

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सलाम कलाम [एक विनम्र श्रद्धांजलि]












और आज की पोस्ट का अंत उस व्याख्यान के साथ जो पूरा नहीं हो सका......



मंगलवार, 28 जुलाई 2015

सम्मानित एक मिनट का मौन





















डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।
डॉ. अब्दुल कलाम न केवल एक महान विचारक, विद्वान, विज्ञानविद और उच्च कोटी के मनुष्य थे, बल्कि एक प्रेरक व्यक्तित्व भी थे। उन्होंने अपने जीवन की उपलब्धियों से भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने की सदा कोशिश की और अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी वह शिलांग के प्रबंधन संस्थान में यही काम कर रहे थे। सही मायनों में इस महर्षि ने अपना जीवन भारत माता को समर्पित कर दिया था।
दिल का दौरा पड़ने से  कल सोमवार की शाम इस अमूल्य निधि का निधन हो गया। निधन से पहले 83 साल के डॉ. कलाम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, शिलॉन्ग में लेक्चर दे रहे थे। उसी दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे बेहोश हो गए। उन्हें शिलॉन्ग के बेथनी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन शाम 7.45 बजे अस्पताल ने उनके निधन की घोषणा की।  कलाम के निधन पर 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई है।
जन्म,मृत्यु तो एक चक्र है, पर एक हीरा, जिन्होंने खुद को तराशा, पूरे देश के लिए उदाहरण रहेंगे, चंद वाक्यों से आइये जानें 
कौन थे कलाम
- 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर में जन्मे डॉ. कलाम लम्बे समय तक डीआरडीओ से जुड़े रहे।
- देश के पहले स्वदेशी उपग्रह पीएसएलवी-3 के विकास में अहम योगदान दिया था।
- पृथ्वी और अग्नि जैसी मिसाइलें बनाने में बड़ा रोल।
- 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण को लीड किया।
- 1997 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे गए।
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वैज्ञानिक सलाहकार रहे।
- सोशल मीडिया पर सक्रिय थे।
- खाली समय में संगीत सुनने का शौक था।
- बचपन में पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए अखबार तक बेचा।
- ताउम्र अविवाहित रहे।

एक मिनट का मौन श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करने से पहले रखें  … 

परम शोक! कलाम साहब का निधन...

जब कोई संसार से विदा हो और पूरे देश के हर नागरिक को लगे कि उसने कुछ खो दिया है तो समझो वह व्यक्ति उस देश का 'रत्न' था।


गरीब साधनहीन घर का मुसलसल ईमान वाला वह मुसलमान ही तो था,जिसने ग़ुरबत को,हर झंझावात को, पछाड़ सिद्ध किया कि सही राह पकड़ एक सच्चा राष्ट्रवादी भारतीय कैसा होता है,क्या क्या कर सकता है..
सर,,आपका स्मरण हमें नतमस्तक कर देता है,,अमर रहेंगे आप इतिहास में,एक एक भारतीय के दिलों में...APJ !!!
और ऐसा सुखद दुर्लभ अंत??..ऐसे संतों को ही तो मिलता है..अंतिम क्षण तक एक्टिव जीवंत..
शत नमन आपको!!!
और आज एक और नमन वीर शहीद एस पी दलजीत सिंह को भी।आप जैसे भारत माँ सच्चे सपूतों के होते हम निश्चिन्त हैं,गर्वान्वित हैं।

कोई ऐसा महान व्यक्ति देश ने खोया जिसके जाने पर हर नागरिक की आँखे नम है । ऐसे लोग युग पुरुष कहलाते है
 और सीमा भूल बच्चों के बीच उनके समीप पहुँच गया था । उन्होंने बच्चों से बड़े सपने बड़े लक्ष्य रखने का प्रण कराया । सबको अपने साथ अपनी बात दोहराने को कहा था । बच्चों को उन्होंने आयु में अंतर स्पष्ट करते हुए बताया था कि अगर कोई बच्चा दूसरे से 10 वर्ष बड़ा है तो उसका अर्थ हुआ कि वह बड़ा बच्चा दूसरे से सूर्य की परिक्रमा करने में 10 चक्कर आगे है । बहुत सरलता से उन्होंने तमाम सवालों को सुलझाया था । न बच्चों को उन्हें छोड़ने का मन कर रहा था न कलाम साब वहां से जाना चाह रहे थे । बाद में मेरे स्टाफ ने मुझे बताया कि सर आप भी एक दम स्कूली बच्चों की तरह उनसे सब कुछ सीख जाने को लालायित लग रहे थे और सच ही तो था भी । बहुत दिनों तक मैं उनकी साइट पर जा कर 'समय' से सम्बंधित सवाल जवाब करता रहा था । मुझे दो बार लखनऊ में उनके कार्यक्रम की विभागीय जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिला था । उनकी सारी पुस्तकें कई कई बार पढ़ डाली थीं । सच उनका जूनून तो मेरे सिर भी चढ़ गया था । सादर नमन ऐसे शख्स को ।

क्या रिश्ता था हमारा उनसे?...वे एक राष्ट्रपति हम एक नागरिक ...राष्ट्रपति तो और भी हुए...गये भी..पर आज जितना दुःख कभी नहीं हुआ...दिल रो रहा है आज...
शायद इसलिए क्योंकि वे बच्चों के ज़रिये हमसे हमारे दिलों से जुड़े थे...बच्चों से सरल इंसान ...हमारे अपने ए पी जे....

आपसे सीखा एक मामूली इंसान भी सपने देख सकता है। सलाम कलाम साहब....

ओह! दुखद.. मिसाइल मैन का यूँ जाना एक गहरी टीस दे रहा है..इतने सरल, इतने सादा पर अपनी वैचारिकी और वैज्ञानिकता में अद्भुत.. सच! एक अपूरणीय क्षति ..
फिर वही पंक्तियाँ याद आ रही है -
कहीं उत्सव है कहीं शोक,
क्यूँ मन नहीं पाता कुछ रोक.
समय चक्र की सुईयों में,
उलझा रहता मानव अबोध.

आओ झुक कर सलाम करे उन्हें
जिनके हिस्से ये मुकाम आता है
खुशनसीब होता हे वो लहू जो
इस देश के काम आता है
वंदे मातरम कलाम साहब,
आप हमारे दिलों में सदा प्रदीप्त रहेंगे!

"चलो, हम अपना आज कुर्बान करें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी का कल बेहतर हो"........ ऐसे विचारों को अपने कर्मो में उतारने वाले, सादगी की प्रतिमूर्ति,भारत को सुरक्षा की दृष्टि से सक्षम बनाने वाले, बड़ों के लिए सम्माननीय, बच्चों के लिए पूजनीय, विलक्षण मेधा के धनी, विज्ञान के क्षेत्र के साथ साथ संगीत में भी रूचि रखने वाले, जीवन के अंतिम समय तक कर्मक्षेत्र में रत, लगभग हर मिसाइल पर हस्ताक्षर करने वाले "मिसाइल मैन" के नाम से विख्यात "कलाम साहब" को शत शत नमन।
कलाम सर जैसी शख्सियत इस धरती पर कभी-कभी ही आती हैं।और जब आ जाती है तो चिरन्तन काल के लिए। उनका सिर्फ देहावसान हुआ है, वह हमारे बीच हमेशा रहेंगे। देश की इस अनमोल धरोहर ने विज्ञान के क्षेत्र में जो धरोहर देश को दी है, वह भी अनमोल है।उनका जाना देश के लिए अपूर्णनीय क्षति है।

बुरा भला: नहीं रहे डॉ॰ ए पी जे अब्दुल कलाम

उलूक टाइम्स: नमन श्रद्धाँजलि विनम्र हे ... 

 


शांति छायी है चारो ओर
कोई छोड़ गया देश को
जो सबकी प्रेरणा थे

नमन उन्हें !

देव शयनी एकादशी .... और हमारे देव सो गए .... frown emoticon
अश्रुपूरित श्रद्धांजली .....
सूरज के जैसे चलते रहकर और जलते रहकर ही सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं हम उन्हें.... प्रण करो कि अपने कार्यघंटों का एक पल भी जाया न करोगे ..... कार्य के प्रति लगन हो तो मिसाइल मेन जैसी ...
वे प्रेरणास्त्रोत हैं और रहेंगे ....
आज की प्रार्थना
है प्रार्थना गुरूदेव से ,यह स्वर्गसम संसार हो
अति उच्चतम जीवन बने,परमार्थमय व्यवहार हो
ना हम रहें अपने लिए, हमको सभी से गर्ज है
गुरुदेव यह आशीष दें, जो सोचने का फ़र्ज है
हम हों पुजारी तत्व ,के गुरूदेव के, आदेश के
सच प्रेम के,नितनेम के,सत्धर्म के,सत्कर्म के
हो चीड़ झूठी राह की,अन्याय की,अभिमान की
सेवा करन को दास की,परवाह नहीं हो जान की
छोटे न हों हम बुद्धि से, हों विश्वमय से ईशमय
हों राममय ,और कॄष्ण्मय,जगदेवमय, जगदीशमय
हर इन्द्रीयों पर ताब कर ह्म धीर हों ,गंभीर हों
उज्ज्वल रहें सर से सदा, निजधर्मरथ खम्भीर हों
अति शुद्ध हों आचार से, तन-मन हमारा सर्वदा
अध्यात्म की शक्ति हमें पल में नहीं कर दे जुदा
इस अमर आत्मा का हमें हर श्वांस भर में दम रहे
गर मौत भी आ गई सुख-दु:ख हममें सम रहें .....
-अज्ञात

आँखें सभी की नम हैं और कंठ भी बेआवाज़
इक अपना हमारे बीच से यूँ उठकर चला गया।
ये देशवासी आपको कभी नहीं भूल पाएंगे कलाम साहब ! शत शत नमन आपको !

एक बार कलाम साहब को साक्षात् प्रणाम करने का अवसर मिला था..राष्ट्रपति भवन के समारोह में , पन्द्रह अगस्त था या छब्बीस जनवरी ठीक से याद नहीं पर वह क्षण आज भी दिल और दिमाग पर अंकित है ..एक विनीत श्रद्धांजलि इस युग के महामानव को..

यूँ जाना तो सबको ही होता है लेकिन जिस तरह चलते-फिरते, हँसते-मुस्कुराते, काम करते हुए आप गए न कलाम साब यूँ लगता है अपनी तमाम अच्छाइयों की तरह अच्छी मृत्यु भी आपकी कमाई ही थी. तमाम उपलब्धियों और गरिमामय पद के लिए नहीं आपकी विनम्रता, मनुष्यता को बचाये रखने की कोशिश, बच्चों के सर पर हाथ फेरने, युवाओं से लपक के हाथ मिलाने, एक सुन्दर धरती का ख्वाब हक़ीक़त में उतार लाने की तमाम कोशिशों के लिए आपको याद कर रहें हैं हम सब. मिसाइल मैन ही नहीं बेमिसाल मैन भी थे आप. श्रद्धांजलि कलाम साब.… 

सोमवार, 27 जुलाई 2015

गुरदासपुर आतंकी हमला और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।।



गुरदासपुर, पंजाब में आतंक ने 20 साल बाद दस्तक दी है। पाकिस्तान से आए 3 आतंकियों ने सोमवार सुबह गुरदासपुर जिले के दीनानगर में हमला कर दिया। पहले एक बस पर फायरिंग की। फिर दीनानगर पुलिस थाने के अंदर घुस गए। पुलिस और कमांडोज़ के साथ उनकी करीब 11 घंटे तक मुठभेड़ हुई। आतंकियों के पास एके-47 थी। लेकिन पुरानी एसएलआर राइफलें होने के बावजूद पंजाब पुलिस के जवानों ने उनका मुकाबला किया।



आखिर में हमारे बहादुर कमांडोज़ ने तीन आतंकियों को मार गिराया। लेकिन पंजाब पुलिस के एक एसपी बलजीत सिंह, होमगार्ड के 2 जवान और 2 पुलिसवाले शहीद हो गए। तीन आम लोगों की भी मौत हुई है। आतंकियों को छोड़कर कुल 11 मौतें हुईं। हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने का शक है। बता दें कि 20 साल पहले अगस्त 1995 में आतंकी हमले में पंजाब के सीएम बेअंत सिंह की मौत हुई थी। गुरदासपुर में हुए हमले के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह मंगलवार को संसद में बयान देंगे

( साभारदैनिक भास्कर डॉट कॉम


हिन्दी ब्लॉग जगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम गुरदासपुर के आंतकी हमले में शहीद हुए जवानों और आम नागरिकों को नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है। जय हिन्द  .... जय भारत।।  


अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर  .... 














आज कि बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए शुभरात्रि। जय हिन्द  … जय भारत।।