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शनिवार, 6 जून 2015

आतंक, आतंकी और ८४ का दर्द

आदरणीय मित्रगण प्रणाम,

कौन देश प्रेमी है और कौन देश द्रोही इसका फैंसला यदि देश की जनता करे तो ज्यादा ठीक होगा। मैं आज आप सबसे यही प्रश्न करना चाहता हूँ कि एक ऐसा इंसान जो देश का विभाजन करना चाहता हो, अलग राज्य की मांग करता हो, अपने पास असला बारूद रखता हो, और उसका साथ देने वाले हथियारों से लैस होकर गुरु के द्वार में छिपते हो तो ऐसे शख्स को आप क्या कहेंगे? इसका फैंसला हिंदुस्तान की जनता करे तो ज्यादा बेहतर होगा। वैसे मेरे अपने निजी विचार से मेरी नज़र में ना तो वो संत कहलाने लायक है, ना इंसान और ना ही कोई अमर शहीद। वो शैतान और आतंकी ही हो सकता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। दोस्तों वो पुरानी यादें एक बार फिर हमारी स्मृतियों में ताज़ा हो आँखों के सामने चलचित्र बनकर बहने लगी हैं। बिलकुल जनाब मैं बात कर रहा हूँ ऑपरेशन ब्लू स्टार की जो १९८४ में चलाया गया था। इसमें क्या हुआ, क्यों हुआ, किसके कहने पर हुआ और इसके नतीजे क्या थे वो सब जानते हैं। जिसका खामियाज़ा आज भी कितने ही मासूमों को भुगतना पड़ रहा है और ना जाने कितनो के दिलों में नफ़रत के लावा का ज़हर पनप रहा है। आज भी जब लोग उस हादसे को याद करते हैं, बात करते हैं तो आँखों का पानी नहीं थमता। इतना क़त्लेआम, इतना शोषण और इतना आतंक जिसमें कुछ और हुआ हो या ना हुआ हो इंसानियत ज़रूर शर्मसार हुई थी। धर्म के नाम पर अपने ही भाई बहनों को बरगलाकर परवरदिगार के घर पर कालिख़ पोती गई थी। सब लोग जानते हैं यह सब उस समय किस कारणवश हुआ था। इसके पीछे क्या राज़ था और क्या राजनीति खेली गई थी। मैं पूछता हूँ आप सब से - अपने दिल पर हाथ रखकर सच कहें क्या खालिस्तान की माग़ एक जायज़ मांग थी ? क्या मांग करने वाला भी तो एक मोहरा भर नहीं था? जो भी उस समय हुआ था क्या वो एक दिशाहीन, ज़बर्दस्ती मत परिवर्तित और बरगलाए हुए समुदाय की नासमझी की वजह से नहीं हुआ था? ठीक वही सब आज के परिवेश में एक दफ़ा फिर से दोहराया जा रहा है, कश्मीर में जो हंगामा बरपा है वो सब एक राजनैतिक साज़िश का नतीजा ही दिखाई पड़ रहा है। जो भूल हमारे भाई बंधू भूतकाल में कर चुके थे आज फिर से उन्हें उसका हवाला देकर उकसाया जा रहा है, उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर राजनैतिक मुद्दा बनाया जा रहा है। उन्हें स्मरण रहे कि उस समय जो हुआ वो किन लोगों की वजह से हुआ था और आज भी वही देशद्रोही गद्दार लोग घर में आग लगा कर दूर से अपने हाथ सेंक रहे हैं और आम लोग बेवकूफ़ी करने पर उतारू हैं। आज के युवा यदि थोड़ा विवेक से काम लें तो स्तिथि संभाली जा सकती है। जो मुर्दे कफ़न ओढ़ चुके हैं उन्हें फिर से जिंदा करने से क्या हासिल होगा। ऐसा करना सिर्फ अशांति का सबब बनेगा। अंतिम निर्णय आपको ही लेना होगा क्योंकि भारत आपका अपना देश है और यहाँ शांति क़ायम रखना हर नागरिक का कर्त्तव्य है। मैं तो बस इतना ही सन्देश देना चाहता हूँ - जोश में होश नहीं खोना चाहिए - बुद्धि और विवेक से काम लो और आपस में लड़वाने वालों से बचो और गड़े मुर्दे उखाड़ना बंद करो क्योंकि घाव को जितना कुरेदोगे उतना ही दर्द होगा और मवाद भी रिसेगा।

आज की कड़ियाँ

शक्ल कुत्ते सी लगे और पूंछ हिलना चाहिए ! - सतीश सक्सेना

माँ / तलाश  - विजय

वे कुछ सिल रहे हैं, उनका जीवन उधड़ रहा है - चन्द्रिका

ये मैं तो नहीं हूँ - सोनल रस्तोगी

तुम तो समा रहे हो कण कण ज़रे ज़रे में

अंगूर की बारी - अनीता

मैं औरत हूँ - अशोक बाबु माहौर

अवलंब - अनुपमा पाठक

फिल्‍म समीक्षा : दिल धड़कने दो - अजय ब्रह्मात्मज

एक घटिया सोच वाले आदमी की सलाह - किशोर चौधरी

जब तक कोई नहीं था - रश्मि शर्मा

आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा

नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम

11 टिप्‍पणियां:

  1. जो मुर्दे कफ़न ओढ़ चुके हैं उन्हें फिर से जिंदा करने से क्या हासिल होगा। ऐसा करना सिर्फ अशांति का सबब बनेगा..बि‍ल्‍कुल सच कहा आपने

    बहुत अच्‍छी कड़ि‍यां पि‍रोई हैं..मेरी रचना को स्‍थान देने के लि‍ए धन्‍यवाद।

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  2. अच्छी प्रस्तुति।

    http://chlachitra.blogspot.com
    http://cricketluverr.blogspot.com

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  3. जो भी देश को अस्थिर करने के कोशिश करता है ... वो देश भक्त तो हो ही नहीं सकता |

    समसामयिक बुलेटिन ... तुषार भाई |

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