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शनिवार, 13 सितंबर 2014

फिर भी …




घर क्यूँ छोड़ दिया ?

कहानी सच्ची होगी, कैसे मानोगे ?

फिर भी  … 

बस - इतना जानो कि यही सबके हित में था 
आदतें उसकी नहीं बदलती 
आदतें मेरी नहीं बदलती 
और समझौते के वर्ष 
कम नहीं थे 
बच्चों की आदतें न बिगड़ जाएँ 
बेहतर था दो किनारों में घर को बाँट देना 
लहरों की तरह बच्चों के विकास के लिए 
.... 
अब देखो सौंदर्य भी है 
सीप भी, मोती भी 

यदि उनकी प्रकृति से खिलवाड़ किया 
तो सुनामी भी 



कम ही सही, यात्रा जारी रहे 

5 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर व सार्थक बुलेटिन ……आभार दी

Rohitas Ghorela ने कहा…

लाजवाब और बेहतरीन बुलेटिन... :)

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया लिंक्स-सह-बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

बेहतर था दो किनारों में घर को बाँट देना
लहरों की तरह बच्चों के विकास के लिए ...सच कहा !
सुंदर लिंक्स..उम्दा प्रस्तुति !

कविता रावत ने कहा…

हिन्दी दिवस की असीम शुभकामना!

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