नैनं छिदन्ति शस्त्राणि … आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकता
नैनं दहति पावकः … आत्मा को अग्नि नहीं जला सकती
न चैनं क्लेयन्तयापो … आत्मा को पानी नहीं गला सकता
न शोषयति मारुतः।। … आत्मा को हवा नहीं सुखा सकती … पर शरीर ? जिससे हम जुड़े होते हैं, जिसकी ऊँगली पकड़ ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, उनका नहीं दिखाई देना, खुद को समझाना कि 'वे हैं' … यह असहनीय होता है पर जिम्मेदारियों की भाषा के आगे हम गीता सार का मरहम लगाते हैं अपनी सोच, अपनी दिनचर्या को और उठ जाते हैं !!!
नहीं उठे तो वह ऊँगली हम नहीं हो सकेंगे जिनकी मजबूती ने हमें बनाया
नहीं उठे तो हम आगत को कोई चिन्ह नहीं दे सकेंगे .... विवशता कहो या प्यार या कर्तव्य, उठना है और चलना है …
है न शिवम भाई ? अपने कार्तिक के लिए खुद को तैयार करना होगा, जानती हूँ आपकी सोच कि
"मेरे दिल के किसी कोने मे ... एक मासूम सा बच्चा ... बड़ों की देख कर दुनिया ... बड़ा होने से डरता है |" पर बड़ा होना पड़ता है अपने मासूम के लिए
और सबसे बड़ी बात - हम सब हैं न।
पापा जी को याद करते हुए हमसब अपना काम करें, कुछ ऐसे -
अंततः, यूँ ही सोचा - कह लूँ,
गीता हमें जीवन के शत्रुओ से लड़ना सीखाती है, और ईश्वर से एक गहरा नाता जोड़ने में भी मदद करती है। गीता त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश देती है। गीता में कर्म को बहुत महत्व दिया गया है। मोक्ष उसी मनुष्य को प्राप्त होता है जो अपने सारे सांसारिक कामों को करता हुआ ईश्वर की आराधना करता है।
बहुत खाली खाली
जवाब देंहटाएंसा लग रहा था
चुप्पी का टूटना
भी जरूरी था
संसार को चलना
ही होता है
गीता में भी तो
कहा गया है
हमें ही बस
कुछ देर के लिये
ही तो रुकना था ।
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जवाब देंहटाएंचलना ही पड़ता है। सँसार चक्र ही ऐसा है। ईश्वर शिवम् जी को शक्ति दें।
जवाब देंहटाएंचलते रहना ही मनुष्य जीवन का क्रमबद्ध चक्र है। हम सब इस चक्र से अलग नहीं हो सकते है। शिवम् भईया और उनके परिवार को वो स्वयं शक्ति ईश्वर शक्ति तथा बाबा जी की आत्मा को शान्ति प्रदान करे। सादर।।
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