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गुरुवार, 31 जुलाई 2014

कलम के सिपाही को नमन - ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार मित्रो,
गुरुवार की बुलेटिन के साथ हम फिर उपस्थित हैं। हिन्दी साहित्य के लिए आज का दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आप सभी को ज्ञात होगा कि आज हिन्दी एवं उर्दू के लेखक प्रेमचंद का जन्मदिन है। प्रेमचंद का नाम हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में गिना जाता है। इनका जन्म ३१ जुलाई १८८० को हुआ था। इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था पर लोग इन्हें नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जानते हैं। उपन्यास के क्षेत्र में इनके योगदान को देख बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। इन्हों ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक परंपरा को विकसित किया और एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित कर साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी विकास की कल्पना करना संभव नहीं दिखता। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक भी थे। 
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हिन्दी साहित्य की, हिन्दी भाषा की परम्परा को हमारे ब्लॉग-लेखक निरंतर उन्नत, समृद्ध कर रहे हैं। आइये आप भी ऐसी कुछ ब्लॉग-पोस्ट का आनन्द लीजिये, जो प्रेमचंद के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ वैचारिकी का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं। आप उठाइए आनन्द और हमें दीजिये इजाजत... अगली बुलेटिन तक के लिए।
आपका हर दिन शुभ हो...  

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31 जुलाई जन्मदिन पर / परदे से न जुड़ सका कहानियों का सच




 

बातें-कुछ दिल की, कुछ जग की






चित्र गूगल छवियों से साभार 

बुधवार, 30 जुलाई 2014

बेटियाँ बोझ नहीं हैं - ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार मित्रो,
बुधवार की बुलेटिन के साथ आपके समक्ष पुनः उपस्थित हैं. ३० जुलाई भारतीय एवं वैश्विक इतिहास में कई घटनाओं की गवाह बनी है, इनमें से कुछ घटनाएँ ख़ुशी का एहसास कराती हैं तो कई घटनाओं से क्षोभ का भाव पैदा होता है. भारतीय सन्दर्भ में आज का दिन कई घटनाओं का साक्षी बना और इनमें से एक घटना जो गौरवान्वित करती है, वो है देश की बैडमिंटन की खिलाड़ी साइना नेहवाल से सम्बंधित है. वर्ष २०१० में आज ही साइना नेहवाल को देश का सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ दिए जाने की घोषणा की गई थी. बैडमिंटन में देश का नाम रोशन करने वाली साइना नेहवाल लन्दन ओलम्पिक में महिला एकल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था. ऐसा करने वाली वे पहली भारतीय महिला हैं. इसके अलावा वे वह विश्व कनिष्ठ बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय हैं. अभी हाल ही में उन्होंने आस्ट्रेलियन ओपन खिताब जीतकर बैडमिंटन प्रेमियों को बहुत बड़ी ख़ुशी प्रदान की. साइना को पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. ऐसी बेटियों की सफलता उन लोगों के मुँह पर तमाचा है जो बेटियों को बोझ समझकर उन्हें जन्म लेने से रोकते हैं. हम सभी उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं.
इस गौरवशाली क्षण के साथ आप सभी आज की बुलेटिन का आनंद लीजिये और अगली बुलेटिन तक के लिए हमें दीजिये इजाजत.
शुभरात्रि.. आपका हर पल आनंददायक और खुशियों से भरा हो.

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चित्र गूगल छवियों से साभार 

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

ईद मुबारक और ब्लॉग बुलेटिन

सभी चिट्ठाकार मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।।


समस्त देशवासियों को ईद मुबारक। ये ईद सभी देशवासियों के लिए ढेरों खुशियाँ लाएँ, बस इतना है। सादर।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  …………। 















आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। सादर।।

सोमवार, 28 जुलाई 2014

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।।


आज विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस है। यह दिवस प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है। वर्तमान समय में पृथ्वी से कई प्रजातियों के जीव - जन्तु तथा वनस्पति तेज़ी से विलुप्त हो रहे हैं। उनके संरक्षण का संकल्प लेना ही  विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का प्रमुख उद्देश्य है। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के बारे में अधिक जानकारी पढ़ने के लिए यहाँ चटका लगाएँ।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर .................। 














आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे। सादर।।

रविवार, 27 जुलाई 2014

कहाँ खो गया सुकून... - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,

रविवार की इस बुलेटिन में आपका स्वागत है. काम की भागदौड़ के बीच कभी रविवार आता था सुकून लेकर, अपनों के बीच मस्ती करने को लेकर, सारा दिन बच्चों की तरह से खेलने-कूदने को लेकर किन्तु अब रविवार भी ऐसा नहीं रह गया. इंसानों की तरह से इसने भी अपने आपको बदल लिया है. रोज की तरह ये आ जाता है चंद अच्छी खबरों के बीच थोक के भाव से बुरी खबरों को लेकर. दंगे हत्याएं, महिला-हिंसा, शोषण, अराजकता आदि की दिल को व्यथित करने वाली खबरों को लेकर. बच्चों सी उछल-कूद भी अब इस दिन नहीं होती; घड़ी-घड़ी चाय की माँग अब नहीं उठती; दिन-दिन भर धूप में बाहर धमाचौकड़ी करती मण्डली अब नहीं दिखती. न शैतान बचपन समझ आता है न अल्लहड़ किशोरावस्था नजर आती है; न उत्साही युवा दिखते हैं और न ही मार्गदर्शक वृद्ध दिखते हैं. 
ऐसा लगता है जैसे समय ने सब कुछ लील लिया हो. हर तरफ एक तरह की अफरातफरी सी मची दिखती है. हर तरफ एक अविश्वास सा दिखता है. सबके मन में अनेक सवाल हैं साथ ही सभी निरुत्तर भी हैं. कुछ भी हो जवाब हमें ही तलाशने होंगे, अपना खोया सुकून हमें ही वापस लाना होगा, जीवन में व्याप्त होती जा रही नैराश्यता को हमें ही दूर करना होगा. अब ये सब कैसे होगा.. कब होगा... विचार करिए. अकेले न रहिये, साथ चलिए, शायद कोई सुखद हल प्राप्त हो जाए. 
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इसी आशा विश्वास के साथ कि जल्द ही उमंग भरने वाली जीवनशैली वापस आएगी, जल्द ही सुकून देने वाला रविवार आएगा.  
अगली बुलेटिन तक के लिए विदा....
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आज के बने-बनाये खांचों में फिट नहीं बैठती है ये ‘फ़ास्ट फॉरवर्ड पीढी’ 

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‘एक वो भी जमाना था.....’ मानने वालों की संख्या अभी भी कम नहीं है.
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रिश्तों को जोड़ने का काम भी इंसान करता है, तोड़ने का काम भी पर आज के तकनीकी युग में ‘ध्वनी तरंगें अब रिश्ते जोड़ती और घटाती हैं’
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इसी कारण से अच्छा है कि ‘गाँठ जीवन से जितनी जल्दी निकले उतना अच्छा’ वो चाहे रिश्तों में हो, मन में हो या फिर देह में.
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समाज में हम सबके बीच पाए जाते हैं बहुत से ‘नकली चेहरे’ इनको समझने-जानने की जरूरत है.
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इंसान के लिए ‘संघर्ष का कथानक : जीवन का उद्देश्य’ उसकी परीक्षा की कसौटी बनता है. 
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इन सबके बीच ‘अजीब उलझन में फंसा मन.....’ खुशियों की कामना करता है, सुकून की चाहना रखता है.
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इसी जीवन-संघर्ष में उत्साह छा जाता है जबकि ‘कल आई थी बूँदे...’ चंद खुशियों की.
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अंत में सचेत करती जानकारी ये कि ‘एकदम खालिस कैफ़ीन भी बिकती है इंटरनेट पर’ सचेत आप भी रहें, औरों को भी करें. 
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चित्र गूगल छवियों से साभार 

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

कुछ याद उन्हें भी कर लें - विजय दिवस - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
विजय दिवस के इस गौरवशाली क्षण पर शहीदों को नमन करते हुए आप सभी का स्वागत है।
आज से 15 वर्ष पहले भारतीय सेना ने आज के ही दिन नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ यह पूरा युद्ध ही था, जिसमें पांच सौ से ज़्यादा भारतीय जवान शहीद हुए थे। इन वीर और जाबांज जवानों को पूरा देश ‘विजय दिवस’ के नाम से मनाकर याद करता है और श्रद्धापूर्वक नमन करता है। देश की इस जीत में कारगिल के स्थानीय नागरिकों ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। 

कारगिल युद्ध  भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल ज़िले से शुरू हुआ था। इस युद्ध का महत्त्वपूर्ण कारण पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का बड़ी संख्या में 'लाइन ऑफ कंट्रोल' (LOC) यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर घुस आना रहा था। इन लोगों का उद्देश्य कई महत्त्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर करने के साथ-साथ हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना था। दो महीने से भी अधिक समय तक चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना वायुसेना ने 'लाइन ऑफ कंट्रोल' पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। 

इस युद्ध में भारत के 500 से भी ज़्यादा वीर योद्धा शहीद हुए और 1300 से ज्यादा घायल हो गए। इनमें से अधिकांश जवान ऐसे युवा थे जिन्होंने अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देखे थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य तथा बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर भारतीय सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। इन रणबाँकुरों ने अपने परिजनों से वापस लौटकर आने के वादे को निभाया मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे मगर लकड़ी के ताबूत में, उस तिरंगे को लपेट कर, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने खाई थी। जिस राष्ट्र ध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुकता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था। 


आइये हम भी इन जांबाज़ रणबांकुरों के लिए सम्मान प्रकट करें। विजय के इस पर्व को पूरी श्रद्धा, ईमानदारी से मनाते हुए उन्हें याद करें जो लौट के घर न आये।
जय हिन्द....!!!
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