प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी रास बिहारी बोस आजाद हिंद फौज का आधार स्तम्भ थे जिन्होंने जापान में रहकर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।
25 मई 1886 को बंगाल के बर्द्धवान में जन्मे रास बिहारी बोस ने
भारत में रहकर जहां बहुत सी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया, वहीं
उन्होंने जापान से ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की शुरूआत
की।
1908 में अलीपुर बम कांड के बाद रास
बिहारी बोस देहरादून आ गए और वन अनुसंधान संस्थान में हैड क्लर्क के रूप
में काम करने लगे। वह वहां गुप्त रूप से स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी
सुलगाने का काम करने लगे और बहुत से नौजवानों को आजादी के आंदोलन में शामिल
कर लिया।
रास बिहारी बोस ने 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक पर अंग्रेजों को खुली
चुनौती दी और कहा कि जितना जल्द वे भारत छोड़ेगे, उतना ही उनके लिए अच्छा
रहेगा। भारत के इस महान क्रांतिकारी ने वायसराय लार्ड हॉर्डिंग को सबक
सिखाने की ठानी। रास बिहारी, अवध बिहारी, भाई बाल मुकुंद, मास्टर अमीर
चंद्र और वसंत कुमार विश्वास ने 23 दिसंबर 1912 को चांदनी चौक पर हार्डिंग
पर बम फेंका जो दिल्ली में एक बड़े जुलूस के साथ अपनी सवारी निकाल रहा था।
क्रांतिकारी हार्डिंग की हेकड़ी निकलना चाहते थे जो भारतीयों पर कहर
बरपाने के लिए तरह-तरह के हुक्म जारी करता था। हार्डिंग की किस्मत अच्छी
थी, जिससे वह इस हमले में बच निकला लेकिन वह घायल हो गया। इस घटना के बाद
गोरी हुकूमत ने आजादी के दीवानों पर दमन चक्र तेज कर दिया और चांदनी चौक की
घटना में शामिल क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए व्यापक अभियान छेड़ा। ऐसे
भी कई लोग गिरफ्तार कर लिए गए, जिनका इस घटना से कोई लेना देना नहीं था।
इस बम कांड में शामिल सभी क्रांतिकारी पकड़ लिए गए, लेकिन रास बिहारी
बोस हाथ नहीं आए और वह भेष बदलकर जापान जा पहुंचे। मास्टर अमीर चंद्र, भाई
बाल मुकुंद और अवध बिहारी को 8 मई 1915 को फांसी पर लटका दिया गया। वसंत
कुमार विश्वास को अगले दिन 9 मई को फांसी दी गई।
उधर, जापान में रहकर रास बिहारी ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में रह रहे भारतीयों को एकजुट करने का काम किया और उनके सहयोग से 'इंडियन इंडिपेंडेंस लीग' की स्थापना की। सैन्य अधिकारी मोहन सिंह के सहयोग से उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के भारतीय युद्धबंदियों को लेकर इंडियन नेशनल आर्मी [आजाद हिंद फौज] की स्थापना की। बाद में इसकी कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी गई।
जापान की राजधानी तोक्यो में 21 जनवरी 1945 को रास बिहारी का निधन हुआ। इस के कुछ अरसा पहले ही जापान सरकार ने उन्हें 'आर्डर आफ द राइजिंग सन' सम्मान से नवाजा था |
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
शिवम भाई, त्यागी उवाच का शुक्रिया कुबूल फरमाएँ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , शिवम भाई व बुलेटिन को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
रासबिहारी बोस को शत शत नमन। लिंकस पर जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिनक्स, विशेष रूप से ५६ इंच का सीना, एक देह और भारतीय हॉकी और मुश्किल पहाड़. बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया शिवम भाई । हमारी ब्लॉग पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका शुक्रिया और आभार
जवाब देंहटाएंइतिहास के अमर सेनानियों के प्रति ये श्रद्धा और उनको स्मरण करते हुए जानकारी सब तक पहुँचाना बहुत बड़ी देश सेवा है। इसके लिए तुम्हें बहुत बहुत आभार ! मेरी पोस्ट को शामिल किया हो सकता है कि कुछ लोग इस जानकारी से वंचित हों और लाभान्वित हो सकें। इसके लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंरासबिहारी बोस को नमन । सुंदर बुलेटिन ।
जवाब देंहटाएं'एक देह' पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
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