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शनिवार, 10 मई 2014

महंगी होती शादियाँ, कच्चे होते रिश्ते...

भारत एक उत्सवप्रिय देश है. लोग दिल खोलकर उत्सवों में पैसा खर्च करते हैं. इन भव्य शदियों की भव्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. ये उस देश की सचाई है, जहाँ आज भी लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं और कइयों को सिर्फ एक वक्त भोजन करके गुजारा करना पड़ता है, देश का आम आदमी आज भी आधारभूत सुविधाओं के लिए संघर्षरत है.
अब देश के युवाओं के लिए यह बात विचारणीय है कि शादियों पर इस तरह की फिजूलखर्ची कितनी जायज है? कुछ लोगों का मत है कि शादी जीवन में एक बार होती है तो कंजूसी क्यों की जाए! धूमधाम से शादी के फेर में ही लड़की के माता-पिता जिन्दगीभर कष्ट उठाते हैं.
सोचिए, गर शादियाँ सादगीपूर्वक होने लगें तो लोग बेटियों को भी बोझ नहीं समझेंगे. जन्म से ही उन्हें बेटी की शादी में होने वाले खर्च की चिंता नहीं सताएगी. इससे कन्या भ्रूण हत्याओं में भी कमी आएगी. युवाओं को चाहिए कि वे अपनी शादियों के भव्य तमाशे में पैसा बहाने की अपेक्षा समझदारी से पैसा खर्च करें. इसके लिए अपने माता-पिता से भी इस बात पर विचार करें. शादी में बेवजह दिखावे पर पैसा बर्बाद करने से तो बेहतर है कि किसी जरूरतमंद की मदद कर दी जाए.
शादी-ब्याह के मामले में लोग सोचते हैं कि अगर साधारण रूप से शादी कर दी तो समाज के लोग बातें बनाएँगे या इससे उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी. प्रतिष्ठा की चिंता किए बगैर आप अच्छे कार्य की पहल तो कीजिए, फिर समाज वाले भी आपका अनुकरण करने लगेंगे.
शादियों में होने वाले खर्च आसमान छू रहे है! वही शादियों के बाद रिश्तो की स्थिरता में उतनी ही गिरावट आई है !मेहमान नवाजी का पूर्व में भी विशेष ख्याल रखा जाता था! किन्तु खर्च एक सीमा तक ही किये जाते थे! परन्तु वर्त्तमान में शादियों में खर्च बढ़ा है, उतने ही रिश्तो की स्थिरता समाप्त सी हो गयी है इन दिनों शादियों में खर्च करने की होड़ सी लगी है!सगाई के कार्यक्रम से ही खर्चे प्रारम्भ हो जाते है! महंगे निमत्रण पत्र, निमंत्रण पत्र के साथ गिफ्ट, काकटेल पार्टी, बेचलर पार्टी और शादी पार्टी में रु.पानी की तरह बहाए जाने लगे है! हालीवुड, बालीवुड एक्ट्रेश,महंगे होटलों के आयोजन, महंगे डांस ग्रुप ने शादियों के खर्च को बेलगाम कर दिया है!आदर सत्कार तो उन दिनों भी होता था जब इस तरह के दिखावे नहीं थे! अतिथि के मुख्य द्वार पर आगमन से लेकर भोजन कराने तक अतिथियों का पूरा ख्याल रखा जाता था! ऐसे में यदि शादी के पश्चात रिश्तो में दरार भी आती थी तो पूरा समाज एक साथ खड़े होकर टूटते  रिश्तो को बचाने का प्रयाश करता था!महंगी शादियों में टूटते रिश्तो को बचाने वाला कोई नहीं होता !
जरा सोचिये इतनी महँगी शादियों से क्या मिलता है, क्षणिक ख़ुशी के लिए लाखो करोडो  खर्च करना क्या उचित  है! क्या इन महँगी शादियों पर कोई लगाम  नहीं लगाई जा सकती !शाही शादियों के स्थान पर क्या हम पारिवारिक व आदर सत्कार वाली शादियों का चलन  प्रारम्भ नहीं कर सकते !

रिश्तों की कीमत ज्यादा होनी चाहिए, शादियों की नहीं.... आइए अब चलते हैं आज के फटफटिया बुलेटिन पर.....

अजदक की अलमारी से:- जौने डगर तुम दरस आए सजन,
सच्ची, हम सीरियस बिलकुल नहीं हैं... सिर्फ मज़ाक भर कर रहे हैं....
जिंदगी भर तुम माने नहीं और हम तुम्हे मनाते ही रहे...
पौलिथीन और झुर्रियाँ...
दुनिया एक छलावा है
और जीवन एक किताब...
अपमान से सम्मान का तेज़ बढ़ता है....
मॉल, मोबाइल संस्कृति और मध्यम वर्ग...
एक बात और आत्मखोज...
बेचारा बचपन, उम्र की साँझ और कहाँ है बुढ़ापा ज्यादा....
अब इजाजत दीजिये, फिर मिलते हैं...

10 टिप्‍पणियां:

  1. बैठते हैं फटफटिया पर देखें क्या क्या लाये हैं ।
    सुंदर बुलेटिन :)

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  2. एक सामयिक मुद्दे पर बड़ी ही सूझ-बूझ वाली पोस्ट... एक सोच का आमंत्रण देती!! शाबास!!

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  3. रिश्तों की कीमत अधिक होनी चाहिए , ना कि शादी की .
    एक सार्थक विचार की कुंजी पकडाई है आपने !

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  4. बुलेटिन में शामिल किये जाने का विशेष आभार !

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  5. बात तो सही है, लेकिन जिसके पास पैसा है, उसे स्वाहा करना है - बेटी को देना है' बेटीवालों की मंशा है कहीं माँग है। रोकना आसान नहीं
    लिंक्स बेहतरीन

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  6. दिखावे की संस्कृति पूरे समाज को खोखला और रिश्तों को कमजोर करती जा रही है। सार्थक सोच के साथ बढ़िया बुलेटिन। … शुभकामनाएं

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  7. सार्थक बुलेटिन शेखर बाबू ... जय हो |

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