कॉलेज में ख़ाली
समय में हम सारे दोस्त ग्राउण्ड में गोल बनाकर बैठ जाते थे और गाने, चुटकुले,
फ़िल्मी डायलॉग जैसे खेल एंजॉय करते थे. मेरे ज़िम्मे आता था उन सारे खेलों की
ऐंकरिंग करना. ऐसे में जब भी कोई गाना गाने वाला आता तो मैं कुछ इस अंदाज़ में
उद्घोषणा किया करता था – “हाँ तो बहनों और भाइयों, अब आपके सामने हम पेश करने
जा रहे हैं मुहम्मद रफ़ी का गाना, जो किशोर कुमार की आवाज़ में मन्ना दे साहब ने गाया
है और उसे प्रस्तुत कर रहे हैं हिमांशु कुमार!!
बड़ा घिसा हुआ
चुटकुला लगा न आप लोगों को. है ही, लेकिन आज अचानक याद आ गया तो इसका कोई न कोई
कारण तो होगा ही. तो चलिये एक और म्यूज़िकल सा मुहावरा दोहरा दूँ, शायद आपको कुछ
याद आ जाये. “अपनी डफली – अपना राग!” बात भी सही है भाई, जब डफली अपनी है
तो राग भी तो अपना ही होगा ना, मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में किशोर कुमार का गाना तो
नहीं हो सकता न. वही तो.
ये मुहावरे भी
अजीब होते हैं, कहना कुछ चाहते हैं और कहते कुछ और हैं. अब देखिये न, मेरी बकवास
झेलने के बाद तो आप भी सोचते होंगे कि “ऊँची दुकान – फीके पकवान”. पकवान
भले फीके हों लेकिन दुकान ऊँची बताने का शुक्रिया. इन दिनों मार्केट में एक नया
मुहावरा आया हुआ है: अपनी थाली – अपना पकवान! मतलब तो इसका पता नहीं, लेकिन
विद्वज्जनों के श्रीमुख से निकला हरेक शब्द अपने लिये तो किसी शास्त्र से कम नहीं.
हमने तो यही माना
है कि हमारा घर है और आप हमारे मेहमान हैं. अब आपको हम ये थोड़े न कहेंगे कि आप
अपनी थाली घर से लेकर आएँ. भई, हमने बुलाया है तो जो थाली-पत्तल होगा हमारे यहाँ
उसी में जिमाएँगे आपको, मगर जो भी जिमाएँगे प्रेम से. रही बात पकवान की तो जो
रूखी-सूखी है उसे शबरी का बेर समझ कर आपकी थाली में परोसते हैं या सुदामा के चावल
मानकर आपका स्वागत करते हैं.
किस्सा मुख़तसर ये
कि ये ब्लॉग-बुलेटिन हमारा घर है, बुलेटिन पर किसी भी दिन अपनी बात कहने
वाला जो कह गया वो थाली है और ये जो लिंक्स हमने ब्लॉग के वन-उपवन से चुने हैं,
उसे आप शबरी के बेर समझिये. इस देश में अतिथि को देवता का दर्ज़ा दिया जाता है.
आप हमारे लिये देवता समान हैं. खाने में नमक कम हो, चीनी ज़्यादा हो, मिर्च तेज़ हो
गई हो, खाना बासी हो, रोटी जल गई हो, चावल कच्चा रह गया हो, दाल में पानी कम पड़ा
हो, सब्ज़ी बेमौसम हो और बेस्वाद लगी हो तो बेशक हमें बताएँ. हम सिर झुकाकर माफ़ी
माँग लेंगे. आप दुबारा हमारे घर पधारें और हमारे यहाँ जूठन गिराने का सौभाग्य हमें
प्रदान करें इसके लिये हम उन कमियों को दूर करने का प्रयास करेंगे.
आख़िर में एक बड़ी
छोटी सी घटना. मेरे छोटे भाई का एक दोस्त है. वो जब भी कहीं बाहर रेस्त्राँ में
सभी दोस्तों के साथ खाना खाने जाता था, तो बिल चाहे कोई भी चुकाए वो रिसेप्शन पर
ये ज़रूर कहता था – भाई साहब! थोड़ी क्वालिटी सुधारिये! एक बार सभी दोस्तों ने मिलकर
उससे पूछ ही लिया कि यार क्वालिटी में क्या सुधार चाहिये तुम्हें? तो उसका जवाब
बड़ा सिम्पल सा था – कुछ नहीं, बस ऐसा कहते रहना चाहिये, इससे अपनी इम्पॉर्टेंस
बनी रहती है!”
ख़ैर, आप सब हमारे लिये इम्पॉर्टेण्ट हैं, नहीं तो आज के टाइम में बहुत से ख़र्च हो गये, पर हमारी टीम आज भी आप के आतिथ्य को सदा तत्पर है. आफ्टर ऑल - थाली भले हमारी हो, पकवान भले हमारा हो, लेकिन स्वाद तो आप से ही आता है!
शबरी के बेर
और
सलिल भाई तो राम का स्वीकार किया बेर हैं, जिसमें शबरी का प्यार है, और प्यार को समझनेवाले राम की स्नेहिल मुस्कान
जवाब देंहटाएंउनका हर बुलेटिन सचिन तेंदुलकर सा लगता है :)
रविवार के लिये बहुत कुछ है
जवाब देंहटाएंपढ़्ने की ही बस कुछ देर है
'उलूक' आभारी है बहुत
उसका भी है कुछ कुछ जहाँ
शबरी भी है राम भी है और बेर है ।
बढ़िया बुलेटिन व लिंक्स , प्रस्तुतिकरण भी बढ़िया , बिहारी भाई व बुलेटिन को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
bahut achche links hain......
जवाब देंहटाएं:) भाईसाहब ! थोड़ी क्वालिटी सुधारिए ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! कहने का अंदाज़ ......मज़ा आगया ।
चलता हूँ ....देखूँ, कहाँ किस थाली में क्या परोसा गया है ।
मान न मान मैं तेरा मेहमान.....
जवाब देंहटाएंजिसकी लिंक नहीं है वो यही सोच रहा होगा क्या :-p
बढ़िया बुलेटिन है दादा....आपके हाथों से परोसे व्यंजनों का स्वाद ही और है....
सादर
अनु
पढ़-गुन कर चुनने के बाद सलिल भाई का आईएसआई का ठप्पा लगेगा तो मार्का का लेख तो होगा ही!
जवाब देंहटाएंअंदाज़े बयां बड़ा अच्छा लगा। बहुत समय से हिंदी में कुछ अच्छा पढ़ने को नहीं मिल रहा था। फिर एक दिन मनीष कुमार जी के द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा अल टप्पे ही नज़र में आ गयी और हिंदी ब्लॉग्स का रास्ता मिला। अब काफी कुछ अच्छा पढ़ने को मिल जाता है।आपकी भाषा में कहूँ तो कई बार बड़े मीठे बेर हाथ लग जाते हैं।आप लोगों का प्रयास प्रशंसनीय है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबुलेटिन की भूमिका गजब रही। छोटे भाई के दोस्त आज के जमाने में खूब तरक्की करेंगे। आभार!
जवाब देंहटाएं"है और भी ब्लॉग बुलेटिन मे रिपोर्टर बहुत अच्छे ... पर कहते है कि सलिल दादा का अंदाज़ ए बयान और !!"
जवाब देंहटाएंबाकी क्या कहूँ ... आप सब जानते ही है ... :)
वैसे सलिल दादा चलते चलते ... यह तो हम भी आप से कहेंगे ... "थोड़ा क्वालिटी पर ध्यान दीजिये ..."
;)
आखिर "इम्पॉर्टेंस" तो हमें भी अपनी बनाए ही रखनी है |
:)
जवाब देंहटाएंभोजन की ओर रुचि बढ़ाने के लिए जो एपिटाइज़र रखा गया वह इतना स्वादिष्ट था कि उसी में रम गए हम ,अब ज़रा रुक लें , मेन कोर्स के साथ न्याय भी तो करना है .
जवाब देंहटाएं'शिप्रा की लहरें' यहाँ तक प्रवाहित करने हेतु आभार !
abhi jake aapka buletin padh pai.....bahut achha sazaya,likha bhi aapne...hamesha ki tarah....
जवाब देंहटाएंशबरी के बेर शीर्षक मे ही पोस्ट की गुणवत्ता झलक गयी।
जवाब देंहटाएंरोचक वार्ता !
भाई का पोस्ट हो और निराला ना हो तो आश्चर्य होगा
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधी पाठकों का हृदय से आभार... हमारी बुलेटिन को आपने सराहा यही हमारा सम्बल है और हमारी उत्तरोत्तर प्रगति में सहायक है ताकि हम अपनी गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाए रखें!
जवाब देंहटाएंपूरी टीम की ओर से आप सब को धन्यवाद!!
मानना पड़ेगा आपने अपनी बातों से दावत जीमने पर कइयों को मना ही लिया..बधाई व आभार !
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