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गुरुवार, 6 मार्च 2014

ईश्वरीय ध्यान और मानव

आदरणीय ब्लॉगर मित्रगण सादर नमन

आज की बुलेटिन एक अलग रंग में रंगी आधात्मिक विचारों से लबरेज़ और मानव के एक अनोखे रूप को प्रस्तुत करती हुई आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | एक विचार जो यकायक ही मस्तिष्क में कौंधा और तुरंत ही कागज़ पर उतर आया और बन गया आज की प्रस्तुति का सबब | तो पेश कर रहा हूँ अपने अलबेले दिमाग से उपजे कुछ ख़यालात |


मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वरीय ध्यान मानव के लिए सबसे बड़ा सूरज है | जिस प्रकार सूरज के निकलने से समस्त संसार जगमगा उठता है ठीक उसी प्रकार प्रभु की ज्योति पाने से इंसान भी स्वर्ण के भाँती दमकने लगता है | उसका अंत करण एक अद्भुत अलौकिक रौशनी में डूब जाता है और फिर वह व्यक्ति जब संसार में जिस किसी वास्तु को देखता है तब उसे सब जगह वो ही प्रकाश नज़र आता है, जो अंत करण में विद्यमान है | तब सभी उसे अपने समान लगते हैं | समस्त मानव जाति उसकी बंधू बन जाती है, यानि सभी इंसान उसके भाई, नातेदार, रिश्तेदार, यार दोस्त, मित्र, अग्रज, अनुज सब एक समान लगते हैं | छल-कपट, उंच-नीच, जात-पात, मोह-माया, अच्छा-बुरा, बैरभाव, लोभ आदि के प्रश्नों से ऊपर उठकर उसकी सोच एक अलग संसार और आकाश में विचरण करती है | ज्ञान, अपनेपन, विश्वास, सहनशीलता, स्वीकरण, त्याग,  की एक अलग अवस्था उसके मन-मस्तिष्क में समाहित होती है | वो अवस्था सम्पूर्ण मानवता की अवस्था होती हैं जिस पर इश्वर भी कहते हैं कभी कभी नतमस्तक हो जाता है |

आज की कड़ियाँ 

छोटी छोटी खुशियाँ - कुशवंश

ये 'कामवालियां - शालिनी कौशिक

पकाऊ फ्रेन्ड्स - सरिक खान

टाइटैनिक की कहानी - अनीता

पिता की महानता - आमिर अली

पीर विरह की - मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

टुकड़े - मीनाक्षी मिश्रा तिवारी

स्त्री है वह - डिंपल सिरोही

कहीं किसी ख़याल का निशान भी नहीं बचा - सौरभ शेखर

भावों की चमक - चेतन रामकिशन

कम खुदा न थी परोसने वाली - मीता

अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा सूत्र । सुंदर संकलन ।

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  2. बढ़िया बुलेटिन भाई तुषार ... आभार इन उम्दा लिंक्स के लिए |

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  3. सार्थक एवं पठनीय सूत्रों से सजा बेहतरीन बुलेटिन !

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  4. तथ्यपूर्ण सूत्र है आज |बढ़िया बुलेटीन |

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  5. ज्ञान, अपनेपन, विश्वास, सहनशीलता, स्वीकरण, त्याग, की एक अलग अवस्था उसके मन-मस्तिष्क में समाहित होती है | वो अवस्था सम्पूर्ण मानवता की अवस्था होती हैं जिस पर इश्वर भी कहते हैं कभी कभी नतमस्तक हो जाता है |

    बहुत सुंदर विचार..तुषार जी, आपने सही लिखा है..बहुत बहुत आभार !

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  6. आप सभी गुणीजन का बहुत बहुत धन्यवाद

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