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रविवार, 2 फ़रवरी 2014

टेलीमार्केटिंग का ब्लैक-होल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

मोबाइल फोन की जरूरत को आप हम सभी समझते हैं। इसके बिना अब तो जीवन अधूरा सा लगने लगा है। तेजी से हो रही मोबाइल क्रांति का आनंद सभी उठा रहे हैं, लेकिन इस क्रांति ने एक अशांति भी फैला दी है।

कभी भी, कही भी अचानक फोन की घंटी बजती है। दूसरी ओर एक आवाज आती है, सर या मैडम या आपका नाम..। क्या आपसे दो मिनट बात हो सकती है? अमूमन जवाब होता है मैं बिजी हूं या कभी बात नहीं कर सकता। लेकिन इस फोन से व्यक्ति तंग तो आ ही जाता है।

समझ तो यह नहीं आता कि इन लोगों के पास नंबर आता कहां से है और यह नाम कैसे जान लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि आपका नाम और नंबर इन लोगों के पास कैसे पहुंचता है? विज्ञापनों के इस अतिक्रमण के लिये कुछ हद तक हम भी जिम्मेदार हैं। किसी मॉल या शोरूम में जा कर उनकी 'गेस्ट बुक' भरना, या किसी अच्छे रेस्त्रां में खाने के बाद उनको 'फीड बैक' देना, यह सब करके हम अपने संपर्क सूत्र जैसे मोबाइल नंबर, ई-मेल, जन्म-तिथि इत्यादि सार्वजनिक ही तो कर रहे हैं।

फेसबुक या ऐसी ही कितनी ही अन्य वेबसाइट्स भी ये विवरण मांगते हैं। उदाहरण के तौर पर एक जींस खरीदने पर भी हम अपना नाम, फोन नंबर और ई-मेल आसानी से लिख देते हैं। ऐसा करने से बचकर हम कुछ हद तक इस समस्या से निजात पा सकते हैं।

क्या आप जानते है कि आपका नंबर कौन बच रहा है? हमारे ये नंबर इनको मिलते कैसे हैं? क्या टेलीकॉम कंपनी का ही कोई कर्मचारी कुछ रुपयों के लिये अपना 'डेटाबेस' बेच देता है? या फिर कई टीमें हैं जो बाकायदा ऐसे मॉल और होटलों में जा कर, पैसे देकर हमारा लेखा-जोखा हासिल कर लेती हैं?

भारत जैसे देश में जहां लाखों नौजवान पढ़ाई पूरी करने के बाद भी नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं, उनका ऐसे कामों में लग जाना नामुमकिन नहीं। यह एक 'ब्लैक-होल' जैसी स्थिति है। जो छोटी कंपनियां इसमें पूरी तरह या 'पार्ट टाइम' लगी हैं, वो अपने आंकड़े बताने को तैयार नही होती ताकि हम जान सकें कि क्या हमारा कोई जानकार ही तो इस खेल मे शामिल नहीं हो गया |

सब से चिंताजनक बात यह है कि यह सब देश भर मे डीएनडी सेवा का लागू होने के बाद भी खुल कर चल रहा है वो भी ट्राई के दुनिया भर के नियमों के होते हुये भी |

विचार कीजिएगा इस पर ... 

सादर आपका 

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मधुमास में

Asha Saxena at Akanksha

कश्मीर की विरासत और आर्कियोएस्त्रोनौमी

अभिषेक मिश्र at DHAROHAR

आह! जिंदगी ....खुशी का वो पल

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ

हमारी दिल्ली, हमारी शान...??? आक्क थूsss

कंक्रीट के जंगलो में...

कार्टून :- रामपुर की भैंस ...

राधा अलबेली ( सवैया - मत्तगयन्द)

जम्हूरियत की बात मत पूछो यारों

कुछ ना इधर कुछ ना उधर कहीं हो रहा था

सुशील कुमार जोशी at उल्लूक टाईम्स

सौ साल पहले उसने कहा था

Madhavi Sharma Guleri at उसने कहा था...

उसने जीना सीख लिया

Harminder Singh at vradhgram

" वो सात भैंसे ......."

हाडौती 'कहानी' प्यास लगै तो .....

दिनेशराय द्विवेदी at अनवरत

jindgi tujhe salaam...जिन्दगी तुझे सलाम

कभी ऐसा नहीं लगता कभी वैसा नहीं लगता - निदा फ़ाज़ली

Navin C. Chaturvedi at ठाले बैठे 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार एक टेलिकॉलर ने मुझे कॉल किया और मुझे लोन के बारे में बताने लगी.. मैंने जब कहा कि मैं ख़ुद बैंक में हूँ! मगर वो पीछे ही पड़ी थी कि फिर भी ले लीजिए. अंत में ऊबकर मैने कहा,"छोड़ो न प्रियंका (उसने यही नाम बताया था) ये सब! कल सण्डे है, क्या कर रही हो! लोन लोन बाद में खेल लेना!" उसने फोन रख दिया तुरत!
    ये सारे फोन कॉल्स रिकॉर्ड होते हैं, इसलिए उनसे पर्सनल बात करो तो वो फ़ोन काट देते/देती हैं!
    शॉपिंग के समय मैं विज़िटर्स बुक भी साइन करता हूँ और कमेण्ट भी देता हूँ (ब्लॉग की आदत है) लेकिन मोबाइल नम्बर में पहले पाँच नम्बर मेरे फ़ोन के और बाद के पाँच नम्बर अपनी श्रीमती जी के लिख देता हूँ.. भाई मिल्के ख़रीदारी की है तो मिला जुला नम्बर होना चाहे ना!
    लिंक्स कुछ देख चुका हूँ बाकी धीरे धीरे!!

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  2. ये फ़ोन वाले मिलकर आपको परेशान करते रहेंगे, आप प्रारम्भ होते ही मना कर दीजिये। सुन्दर और पठनीय सूत्र।

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  3. बहुत से सुंदर सूत्रों से सजे आज के बुलेटिन में उल्लूक का सूत्र "कुछ ना इधर कुछ ना उधर कहीं हो रहा था" को शामिल करने के लिये आभार शिवम जी !

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  4. अभी तक मोबाईल नहीं रखा है इसलिये कुछ शाँति है पता नहीं कब तक रहेगी :)

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  5. वार्ता बढ़िया है ||
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
    आशा

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  6. बहुत बढ़िया . आभार, आप सभी का.

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  7. ये अक्सर हम लोगों को परेशान करते हैं। विचार - विमर्श करने योग्य विषय। सुन्दर बुलेटिन भईया :-)

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  8. मोबाइल पर कई फोन आते रहते हैं उन्हें इग्नोर करना ही एक उपाय लगा |
    सार्थक लेख |

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