मुझे जानना हो तो तितली को देखो
गौरैया को देखो
पारो को देखो
सोहणी को जानो
मेरे बच्चों को देखो
क्षितिज को देखो
उड़ते बादलों को देखो
रिमझिम बारिश को देखो
बुद्ध को जानो
.............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
ख़ामोशी को देखो
बोलती आँखों को देखो
इस पार उस पार का रहस्य जानो
छत पर अटकी बारिश की एक बूंद को देखो
बर्फ के उड़ते फाहों से खेलो
दुधमुंहें बच्चे से ढेर सारी बातें करो
............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
दूर तक छिटकी चाँदनी देखो
आईने में खुद की मुस्कान देखो
रात गए सड़क से गुजरते टाँगे की टप टप सुनो
कागज़ की नाव पानी में डालो
कोई प्रेम का गीत गाओ
.............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
किसी नई दुल्हन को घूँघट में झांको
उसकी पायल की रुनझुन सुनो
उसकी मेहंदी से भरी हथेलियाँ निहारो
उसकी धड़कनों को सुनो
.............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
शाम की लालिमा को चेहरे पर ओढ़ लो
रातरानी की खुशबू अपने भीतर भर लो
पतवार को पानी में चलाओ
बढ़ती नाव में ज़िन्दगी देखो
पाल की दिशा देखो
...............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
कमरे को बन्द कर
उसकी चाभी कहीं गुम कर दो
उसके अन्दर अँधेरे में अपनी साँसों को सुनो
बाहर कोई नहीं है - एहसास करो
पानी नहीं है - प्यास को महसूस करो
अतीत को उन अंधेरों में प्रकाशित देखो
फिर सूर्य की पहली रश्मि को देखो
...............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
औरत जब करती है
अपने अस्तित्व की तलाश और
बनाना चाहती है
अपनी स्वतंत्र राह -
पर्वत से बाहर
उतरकर
समतल मैदानों में .
उसकी यात्रा शुरू होती है
पत्थरों के बीच से
ग़ज़ल जंगल की कोयल है सर्कस की नहीं जो ट्रेनर के इशारे पे गाये सो जनाब अरसा गुज़र जाने पे भी जब कोई ग़ज़ल नहीं हुई तो मैं परेशान नहीं हुआ फिर अचानक ज़ेहन कि मुंडेर पे ये कोयल बैठी दिखी जिसने मुश्किल से एक तान लगाईं और फुर्र हो गयी. जैसी भी है, उसी तान को आपके साथ बाँट रहा हूँ बस।
टाइम्स ऑफ इण्डिया में एक खबर पढ़ी . सात महीने पहले चौबीस वर्षीया वकील 'अणिमा मुरयथ ' १२७ साल पुराने 'कालीकट बार असोसिएशन' की सदस्या बनीं . पर उन्हें वहाँ अपनी ही उम्र के पुरुष सहकर्मियों का व्यवहार बहुत पुरातनपंथी लगा . उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर लिखा कि "मुझे पता नहीं दुनिया में और भी काम करने वाली जगह ऐसी हैं या नहीं. पर मेरे ऑफिस में और 'बार असोसियेशन' में आज भी भी पुरुष सहकर्मी , महिलाओं को 'शुगर कैंडी ' कहकर बुलाते हैं और ये कहते कि 'आप कितनी सुन्दर हैं ' उनके आगे पीछे घूमते रहते हैं . जैसा पुरानी मलयालम फिल्मों में प्रेम नजीर अपनी हीरोइनों से कहा करते थे . यहाँ लोगों का वही पुराना रवैया है ,या तो लोग महिलाओं को बहन बना लेते हैं या फिर उनकी तारीफ़ करके उन्हें प्रेमिका बना कर अधिकार जताना चाहते हैं , मेरी उनसे पूरी सहानुभूति है "
कमरे को बन्द कर
जवाब देंहटाएंउसकी चाभी कहीं गुम कर दो
उसके अन्दर अँधेरे में अपनी साँसों को सुनो
बाहर कोई नहीं है - एहसास करो
पानी नहीं है - प्यास को महसूस करो
अतीत को उन अंधेरों में प्रकाशित देखो
फिर सूर्य की पहली रश्मि को देखो
...............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
वाह!
इन सुन्दर पंक्तियों में निहित हैं सारे उत्तर!
बहुत सुन्दर!
कमरे को बन्द कर
जवाब देंहटाएंउसकी चाभी कहीं गुम कर दो
उसके अन्दर अँधेरे में अपनी साँसों को सुनो
बाहर कोई नहीं है - एहसास करो
पानी नहीं है - प्यास को महसूस करो
अतीत को उन अंधेरों में प्रकाशित देखो
फिर सूर्य की पहली रश्मि को देखो
...............
जो उत्तर मिले मैं हूँ !
.....अद्भुत....सुन्दर लिंक्स चयन...
आप इतना खूबसूरत कैसे लिख लेती हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति... आपको ये जानकर अत्यधिक प्रसन्नता होगी की ब्लॉग जगत में एक नया ब्लॉग शुरू हुआ है। जिसका नाम It happens...(Lalit Chahar) है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर ..... आभार।।
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना है ... नमन है आपकी कलम को ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी गज़ल को स्थान देने का ...
khoobsoorat buletin aapki rachna ne aur sundar kar diya
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर वाह !
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखनी , बेहतर लिंक्स
जवाब देंहटाएंअपनी बात कहने का सुंदर अंदाज़ .....सौन्दर्य पूर्ण लेखनी है दी आपकी ....आह्लादित कर जाती है ....प्रकृति से जोड़ जाती है ....कहीं खोया हुआ तारतम्य जैसे मिल जाता है ....!!प्रभावशाली प्रस्तुति और लिंक्स भी ....!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता , दरअसल मुझे तो लगता है प्रकृति स्वयं स्त्री है प्रकृति से मेरा तात्पर्य बृहत परिप्रेक्ष्य में है .. और जिस प्रकार प्रकृति को समझना, उसे परिभाषित करना असंभव है , हर बार इसके नए आयाम दिखने को मिलेंगे उसी प्रकार स्त्री को समझना उसे परिभाषा में बांधना असंभव है .. मैं बार बार नमन करता हूँ .. मेरी रचना को स्थान देने का शुक्रिया , अन्य लिंक्स पर अभी नहीं पंहुचा हूँ, समय मिलते ही सबको आराम से देखता हूँ .. :) आपका आभार ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
achchi kavitayen hai
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंजय हो दीदी ... आप की जय हो |
जवाब देंहटाएंआप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
कम किंतु सुंदर लिंक्स। आपकी कविता और अणिमा मुरयथ का अनुभव दोनों ही अच्छे लगे। पुरुष की मानसिकता तो आज भी वही है कोई ठोक कर कहता है कोई ढक कर।
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