1949, 1984 और 2014. देखने में इन तीनों साल का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं. लेकिन अभी जो देश के माहौल 2014 में बन रहे हैं, उससे जॉर्ज ऑरवेल की किताब 1984 की याद आ जाती है जो 1949 में लिखी गई थी. लेकिन हालात आज भी वैसे ही हैं. बिग ब्रदर की आँखें और थॉट पुलिस की निगरानी जैसे हालात कहाँ बदले हैं. हर घर में एक बड़ी स्क्रीन लगी है जिसपर दिन भर ख़बरों की उल्टियाँ करते चीख़ते रह्ते हैं पत्रकार – वो देखो कौव्वा कान लेकर भागा जा रहा है. और हम...! सारे दिन फेसबुक और ट्विट्टर पर कौव्वे का पीछा करते रहते हैं. अप-डेट्स की इतनी जल्दी होती है कि अपने कान को हाथ लगाकर भी नहीं देखते.
ऐसे में एक ब्लॉग
आया था आज से करीब चार साल पहले, जिसने चुनौती दी इस मानसिकता को. उनका कहना था कि
जो ख़बरें हमें दिखाई जा रही हैं हम उन्हें बदल नहीं सकते, लेकिन हमें उन ख़बरों
को हज़म करने के तरीके में बदलाव लाने की ज़रूरत है. रविनार जी के इस
ब्लॉग का नाम है मीडियाक्रुक्स! पिछले चार सालों में हमारे आस-पास फैले एक
बड़े हिन्दी ब्लॉग-महासागर के किनारे टिप्पणियों की सीपियों का बिखराव बहुत कम हुआ
है. लेकिन यह एक ऐसा अंग्रेज़ी ब्लॉग है, जहाँ कभी इनका अकाज हुआ करता था, लेकिन आज
ऐसी सीपियों के अम्बार लगे हैं. और सिर्फ ब्लॉग पर ही नहीं ट्विट्टर पर भी इनके फॉलोवर्स
की संख्या ज़बर्दस्त है. कमाल तो तब हो गया जब हाल ही में भारत-न्युज़ीलैंड क्रिकेट
मैच के दौरान दर्शकों के बीच इस ब्लॉग का बैनर लोगों ने उठा रखा था.
राजनीति की समझ नहीं
है मुझे और ख़बरें काटने को दौड़ती हैं मुझे. ऐसे में मेरे लिये मेरे अभिन्न मित्र चैतन्य आलोक ही टीवी, अख़बार और पत्रिका का काम करते हैं. आज की इस बुलेटिन की प्रेरणा
भी वही हैं. इसलिए आज की बुलेटिन में एक ख़ास वर्ग में उन लिंक्स को दर्शाया है
जिन्हें देखकर शायद हमें ख़बरें देखने की एक नई रोशनी मिले.
750वीं ब्लॉग-बुलेटिन में आज कुछ सीरियस हो गया ना. ये बिहारी जब हिन्दी बोलता है तो हमेशा कुछ न
कुछ सीरियस बात ही होती है. क्या करूँ -
"ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत नहीं कुछ और भी है,
ज़ुल्फ-ओ-रुख़सार की जन्नत नहीं कुछ और भी है
भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में
इश्क़ ही एक हक़ीक़त नहीं कुछ और भी है."
तो एक बार ज़ुल्फ, रुख़सार, जुदाई, अश्क़, तबस्सुम, वफा, मौसम, इश्क़, दिल, जिगर, हिज्र, से बाहर से निकलकर, एक नज़र उस पर भी डालें जो अभी कुछ रोज़ पहले गुज़रा है. हमारा, हमारे लिए और हमारे द्वारा विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र. कल को लोग ये न कहें कि हम यही डिज़र्व करते थे, इसलिये हमें ऐसा ही तंत्रलोक ऊप्स लोकतंत्र मिला है!
और अब कुछ मेनस्ट्रीम ब्लॉग
750 वीं पर बहुत बहुत बधाई सलिल जी
जवाब देंहटाएंहम रुके हैं फिर कहेंगे ये लीजिये पढ़िये
7500 वीं भी सलिल जी ने है आज लगाई :)
नया सा बुलेटिन, कितना कुछ बताता, सुन्दर सूत्र..
जवाब देंहटाएंकुछ हटकर कही बात ...सार्थक बुलेटिन ...!!बढ़िया सूत्र ।
जवाब देंहटाएंबड़े भैया की बुलेटिन .......... खास और एक नंबर :)
जवाब देंहटाएंये बिहारी बाबू हिन्दी बोलते ही क्यूँ हैं?? इत्ती संजीदा बुलेटिन...कौनो प्यार मोहब्बत की बात नहीं ?? :-(
जवाब देंहटाएंफिर भी दादा लगाये हैं बुलेटिन तो पढ़ना तो पड़ेगा!!
प्रणाम दादा ...कभी तो फेसबुक पर आकर बोल बतिया लीजिये ...
सादर
अनु
सलिल सर
जवाब देंहटाएंहो सकता है आपको इस 'सर' पर आपत्ति हो. पर आज की पोस्ट के बाद आपको 'सर' ही कहना पड़ेगा. इस पोस्ट को लेकर बातें तो बहुत हैं... पर जवाब देने की स्थिति में नहीं हूँ.
दीपक भाई! सर कहकर पैर छूने वाले कई बच्चों को समझाया है कि ये सर पैर का मेल ठीक नहीं। आज उनमें से कितनों का चाचा, बाउजी, पापा हूँ। आप तो बरसों से भाई हैं मेरे।
हटाएंवैसे कह देना था जो भी कहना हो। :)
भाई, सात गलियों में खाक छानने के बाद मिली हिन्दी । वैसे तो ब्लाग बुलेटिन में रचनाओं का चयन स्तरीय ही होता है फिर यह सात सौ पचासवीं पोस्ट आपने लगाई है सभी रचनाएं देखनी ही थीं । अगली पोस्ट का भी इन्तजार रहेगा ही ..।
जवाब देंहटाएंजब ब्लॉग मीडियाक्रुक्स पर बहुत कम लोग जाते थे, तब हमने उनसे अनुमति माँगी थी कि हिन्दी पाठकों के लिए हम उनकी कुछ पोस्ट हिन्दी में अनुवाद कर अपने ब्लॉग "सम्वेदना के स्वर" पर लगाना चाहते हैं. उन्होंने फ़ौरन अनुमति दे दी. और हमने एक पोस्ट प्रकाशित भी की. लेकिन बाद में हमारा ही ब्लॉग लिखना छूट गया!!
जवाब देंहटाएं"ये बिहारी जब हिन्दी बोलता है तो हमेशा कुछ न कुछ सीरियस बात ही होती है."
जवाब देंहटाएंहमारा अनुभव तो यह कहता है कि आप जब भी बोलते कुछ न कुछ सिरियस बात जरूर होती है ... अब भले ही आप उसको को व्यंग्य मे लपेट कर पेश करें या सीधे सीधे ... आपकी पोस्ट मे ऐसे न जाने कितनी मिसालें मिल जाएंगी ... मेरे जैसे आप के नियमित पाठक यह बखूबी जानते है | और आप की इस अदा के ही हम सब मुरीद है |
आज की बुलेटिन का अंदाज़ तो अनोखा होना ही था ... एक तो आपका और चैतन्य भाई का कॉम्बो ऊपर से एक से बढ़ कर एक लिंक्स ... क्या हिन्दी ब्लॉग जगत के ... क्या उन खास ब्लोगस/साइट्स के जिन का जिक्र आपने ऊपर की चर्चा मे किया है |
आम तौर पर हम लोग इन आलेखों से अछूते रह जाते है आपका आभार कि आज 750 वीं बुलेटिन के बहाने हम सब को इन लिंक्स तक जाने का मौका मिला |
पूरी टीम और सभी पाठकों को 750वीं बुलेटिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ ... यह सफर यूंही चलता रहे यही दुआ है |
लगता है आप सभी को फेसबुक से हटाकर ब्लॉग पढ़ने के लिए मजबूर कर देंगे।..बेहतरीन बुलेटिन। लिंक्स अभी देखे नहीं, देखता हूँ।
जवाब देंहटाएंएक नई रौशनी के साथ ही बेहतरीन लिंक्स .... बुलेटिन की शोभा बढ़ाने में पूरी तरह कामयाब हो गये हैं .... बधाई सहित शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसादर
बिहार की छवि - बिहारी भाई, … जब भी उसकी कलम चलती है, बिहार पे नाज होने का अर्थ समझ में आता है !
जवाब देंहटाएंजो भी पोस्ट होता है, मैच जीतता है।
बुलेटिन टीम को 750वीं पायदान छूने के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं । सलिल दादा आपका जादू जब चलता है तो उसके आगे सब फ़ीका पड जाता है । ब्लॉगों की ओर दोबारा लौटना लौटाना अच्छा लग रहा है
जवाब देंहटाएंBihari shabd dekh hum bhi aa gaye...achha laga,achhe link then..thnx
जवाब देंहटाएंभाईया जी नमस्कार .....बहुत ख़ुशी हुई आपके द्वारा सम्मान पाकर ...कही शामिल किया जाय पढने के लिए तो यह ख़ुशी की ही बात है हमारे लिए ....आभार आपका दिल से...थोडा क्या ज्यादा ही देर से देखे .इस गलती को नजरअंदाज करियेगा
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