प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम |
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नक्श फ़रियादी है .....
इक तसल्ली इक बहाना जो मिले ताखीर का हम न पूछेंगे खुदाया क्या सिला तदबीर का आँख पर बाँधे हुए कानून काली पट्टियाँ हौसला कैसे बढ़े ऐसे में दामनगीर का गुफ़्तगू अंदाज तेवर धार की पहचान हो शख्स़ ऐसा क्या करेगा फ़िर भला शमशीर का हम भी आखिर सीख लेंगे इस गज़लगोई का फ़न हमक़दम होने लगा है जब हुनर अकसीर का रेत के दाने मुसल्सल परबतों से तुल रहे खास है मौसम कि या फिर खेल राह्तगीर का रंज राहत धूप छाया इब्तिदा या इन्तिहा *नक्श फ़रियादी है किसकी शोखी ए तहरीर का* उलझनों से जूझ लेते हौसला तो था बहुत इक सही सा मिल न पाया लफ्ज़ बस तकबीर का **** तरही मिसरा जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से
नई तकनीकों से लैस होता कडकडडूमा कोर्ट
कडकडडूमा न्यायालय परिसर का प्रवेश द्वार दिल्ली की सभी पांच जिला अदालत परिसरों में से कडकडडूमा न्यायालय , जिसमें वर्तमान में दिल्ली के तीन जिलों , पूर्वी , उत्तरपूर्वी और शाहदरा जिला , की अधीनस्थ अदालतें काम कर रही हैं , का विकास शुरू से ही एक आदर्श कोर्ट परिसर की तरह किया गया है । बहुत से नए प्रयोगों व शुरूआत के लिए न्यायिक सुधारों के इतिहास में पहले से ही अपनी ख्याति का परचम लहरा रहे इस न्यायालय परिसर में , देश का पहला ई कोर्ट , देश का पहला संवेदनशील गवाह कक्ष एवं परिसर , हरित न्यायालय परिसर आदि के अलावा यहां सांध्यकालीन अदालतें , नियमित लोक अदालतें , मध्यस्थता केंद्र , विधिक ... more »"आप" का समर्थन कर मुश्किल में कांग्रेस !
आज बिना लाग लपेट के एक सवाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना... more »
अमित श्रीवास्तव ...... "तुम पे, क्या लिखूं"
सुना है, तुम लिखते भी हो, उसने पूछा था | हूँ ! मैंने कहा था | कुछ मेरे पे लिखो, प्यार भरी आँखों, से गुदगुदाया, तनिक मुझे, और उंगलियाँ, पकड़ ली थी मेरी | गोया, उनमें से हर्फ़ निकलेंगे अभी, और वो उन्हें, अपने इर्द गिर्द, समेट लेगी, और बना लेगी, लिबास, एक नज़्म का | मैंने कहा था, हाँ,पर उसके लिए, तुम्हे जानना होगा, मुझे | पर, मै जब भी, कोशिश करता हूँ, जानने की तुमको, तुम, मेरे ख्यालों की ही, हकीकत सी लगती हो | तुम पे कैसे लिखूं, तुम तो 'स्टेंसिल' हो, मेरी नज्मों की, मेरी ग़ज़लों की | समय तुमसे ही, छन कर, आता है, और, छपता सा जाता है, सफों पे, ज़िन्दगी के म... more »
ये कोशिश है परों को चाँद के फिर से कुतरने की ...
सभी मित्रों को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ... सन २०१४ आपके जीवन में सुख, शान्ति और नित नई खुशियाँ ले के आए ... खबर है आसमां पे कुछ सितारों के उभरने की ये कोशिश है परों को चाँद के फिर से कुतरने की जहाँ से लौटना मुमकिन नहीं होता है जीवन में ज़रूरी तो नहीं उस राह पे तन्हा गुज़रने की किसी के दिल में क्या है ये किसी को क्या पता होगा चलो कोशिश करें इस बज़्म में सजने सँवरने की सफर तय करके अब तो आ गई कश्ती किनारे पर करें अब बात क्या सागर के सीने में उतरने की अगर मिलना वही है जो लिखा है इस मुकद्दर में ज़रूरत क्या है फिर जीने की खातिर काम करने की अकेले भी उतर सकते हो पर अच्छा यही होगा सहारा हो जो तिन... more »पिछ्ला साल गया थैला भर गया मुट्ठी भर यहाँ कह दिया
*पता नहीं कितना अपनापन है इस खाली जगह पर फिर भी जब तक महसूस नहीं होता परायापन तब तक ऐसा ही सही दफन करने से पहले एक नजर देख ही लिया जाये जाते हुऐ साल को यूँ ही कुछ इस तरह हिसाब की किताब पर ऊपर ही ऊपर से नजर डालते हुऐ वाकई हर नये साल के पूरा हो जाने का कुछ अलग अंदाज होता है इस साल भी हुआ पहली बार दिखे शतरंज के मोहरे सफेद और काले डाले हाथों में हाथ बिसात के बाहर देखते हुऐ ऐसे जैसे कह रहे हो'बेवकूफ उल्लूक' खुद खेल खुद चल ढाई या टेढ़ा अब यही सब होने वाला है आगे भी बस बोलते चल... more »कितने दोहरे मापदंड !
व्यक्ति व्यक्ति से बने समाज के कितने दोहरे मापदंड हैं ! पत्नी की मृत्यु होते उम्र से परे,बच्चों से परे पति के एकाकी जीवन की चिंता करता है खाना-बच्चे तो बहाना होते हैं .... पत्नी पर जब हाथ उठाता है पति तो समवेत स्वर में प्रायः सभी कहते हैं "ज़िद्दी औरत है …………" किसी अन्य स्त्री से जुड़ जाए पति तो पत्नी में खोट ! पत्नी को बच्चा न हो तो बाँझ' बनी वह तिरस्कृत बोल सुनती है दासी बनी दूसरी औरत को स्वीकार करती है वंश" के नाम पर ! वंश' भी पुत्र से !!! … निःसंदेह, पुरुष एक ताकत है शरीर से सक्षम पर स्त्री के मन की ताकत को अनदेखा कैसे कर सकते हैं ! या फिर कैसे उस अबला (!!!) के साथ न... more »यूँ लगे मुस्कराये जमाना हुआ
जब से श्वासों का फिर से न आना हुआ ख़त्म जीवन का तब से तराना हुआ / इस कदर चाहता मेरा दिल है तुझे हार कर तेरा ही अब खजाना हुआ / भूल कर बेवफ़ा हो गया अजनबी जब से गैरों के घर आना जाना हुआ / जो किया सामना है दुखों का अभी यूँ लगे मुस्कराये जमाना हुआ / तोड़ना अब न विश्वास तुम फिर कभी दिल हमारा है सबका निशाना हुआ / बेटियाँ हो विदा मायके से गईं पति का घर भी न लेकिन ठिकाना हुआ / जोड़ता यूँ है किसके लिए आदमी खाली ही हाथ जग से रवाना हुआ / . ..............सरितानिर्भया की पुण्यतिथि पर विशेष
"कल तक सबको 'उस' के दर्द का अहसास था ; आज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !! कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ... उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !! किसी चैनल , किसी सभा मे 'उसके' बारे मे कोई सवाल नहीं है ; बहुतों के तन पर नई नई खादी सजी है तभी तो सफदरजंग के आगे पटाखों की लड़ी जली है ... बेगैरत शोर को अब किसी का ख्याल नहीं है !! जो लोग रोज़ लोकतन्त्र को नंगा करते हो ... उनको एक महिला की इज्ज़त जाने का अब मलाल नहीं है ! 'तुम' जियो या मारो ... किस को फर्क पड़ता है ... आओ देख लो अब यहाँ कोई शर्मसार नहीं है !! दरअसल 'तुम्हारी' ही स्कर्ट ऊंची थी ... 'इस' मे 'इनका' कोई दोष नहीं ... more »तुम रहोगे दिल में हमारे...
अलविदा २०१३ स्वागतम् २०१४ नींद भरी आँखें सहला रहा कोई टपकी है गालों पर इक बूँद नन्ही सी मैं जा रहा हूँ करोगे न याद मुझे साथ रहा है तीन सौ पैंसठ दिनों का मुझे याद रहेगी तुम्हारी छुअन पलट देते थे पन्ने हर पहली तारीख़ को देखते थे महीने की छुट्टियाँ सारे व्रत त्योहार और दूध का हिसाब लगाते थे निशान कब गैस बदली कब आएगी बेटी कब किसका है दिन खास कैसे भूलूँगा मैं जन्मदिन तुम्हारा वर्षगाँठ शादी की सी एल की तारीखें कैसे भूल पाऊँगा तुम्हारी आतुर आँखें सैलरी के लिए महीने का बदलना फिर से सहलाया कैलेंडर ने करोगे न याद मुझे माना कि दी हैं हमने कुछ कड़वाहटें भी पर दिया है साथ में पगडंडियाँ भी गुलम... more »ऐसा वैसा
छुपाना पड़े जो चेहरा कुछ ना हो ऐसा वैसा दागी ना हो वस्त्र कभी जो लगे ऐसा वैसा मिलजुल सब लोग रहे लगे एक परिवार जैसा एक जगह सर्वधार्मिक काम लगे संसार जैसा पहनावा कुछ ऐसा हो बट ना सके जात जैसा खाना सबको मिले सदा मिले दाल भात ऐसा मस्तिषक में भर प्रभु सब के कुछ एक जैसा देख एक दूजे को ना आये विचार ऐसा वैसा
बात नारों की नहीं,
जवाब देंहटाएंबात समानता की भी नहीं
बात मान-सम्मान की है
बहुत सुंदर बुलेटिन तथा बहुत बहुत आभार शिवम जी 'उल्लूक का पिछ्ला साल गया थैला भर गया मुट्ठी भर यहाँ कह दिया' को शामिल किया ।
जवाब देंहटाएंनिर्भय को मेरी विनम्र श्रधांजलि ...
जवाब देंहटाएंआज की विस्तृत चर्चा लाजवाब रही ... शुक्रिया मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...
आप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंन्याय जो कभी जहाँगीर की ज़ंजीर हुआ करता था आज असहायों के पैरों की बेड़ियाँ बन गया है!! सार्थक बुलेटिन!!
जवाब देंहटाएंएक अच्छा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संकलन...निर्भया को गए एक साल हो गया पर याद ताजा रही...श्रद्धांजलि|
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