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सोमवार, 9 दिसंबर 2013

प्रतिभाओं की कमी नहीं (30)

ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -

अवलोकन २०१३ ...

कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का ३० वाँ भाग ...



अहम् - छीन लेता है सबकुछ
अहम् - व्यक्तित्व को निखरने नहीं देता 
फिर इसे त्यागने में कैसी तकलीफ 
जीना हो सुकून से 
पाना हो कुछ सहज,सरल 
तो अहम् के कांटेदार बाड़ों को हटा देना ही सही है 
अपने अहम् से हाथ लहुलुहान होंगे 
रखने में भी,हटाने में भी 
तो हटाकर जो ज़ख्म होगा 
वह सुकून का मरहम भी देगा  … 


आज मैं आपको सबसे पहले मिलवाती हूँ उस प्रतिभा से जो इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में कार्यरत हैं = श्री अरुण वर्मा  .... 

जंगलों में जब शब्द उतरते हैं,
तब ज़िम्मेदारियों के मध्य से निकला मन कुछ सुनता है 
उन शब्दों को आप भी सुनिये -


स्वर में स्वर का विश्वास 

एक स्वर है,
जो अनदेखे परिंदों के पंख
भारती की वीणाऔर विष्णु के शंख
की पहचान देता है-
बाक़ायदा अलग होती आहट
तभी तो
मेरे पीछेकी दुनिया
मेरे रोने में मेरी वेदना,
हँसने में खुशी
नि:शब्द चिन्तन की चेतना,
और भयद चीत्कारों से
मापती है
परेशानियों की एक-एक थरथराहट
अकेली आवाज़ एक पहचान है
सस्वर प्रार्थना, किन्तु
अकेलेपन से अंजान है
और तब
बाहरी और गहरी नींद के कानों में भरती है
स्वपनों की मरती हुई
फुसफुसाहट ... 

अरुण वर्मा 




(स्मिता)

ज़िन्दगी
 इन दिनों     कुछ     अजीब सी हो गई है............ 
कुछ बाते हैं , जो पीछा नहीं छोड़ रहीं …..
उस भंवर से   ...अपने आपको ....निकाल   नहीं पा रही हूँ .......
बार बार वे ही बातें घूम फिर कर सामने आ खड़ी होती हैं .........
पता नहीं ........मैं इतना कमजोर कैसे हो जाती हूँ .......कभी कभी ….

क्यों नहीं  ......सबकी तरह मैं भी उल्टा जवाब दे पाती ??

शायद ये संस्कारों का असर है …..
कभी सीखा ही नहीं ….
मुझे भी कितने जवाब सूझते हैं पर ….
वक़्त गुजर जाने के बाद ….
क्या     करूँ       ?? .......मैं ऐसी ही हूँ …. 
  शायद       सब की ज़िन्दगी में ऐसे लम्हे आते   होंगे  न ..... 
जब इंसान मजबूर हो जाता है ..

हम किसी के लिए अच्छा करते हैं 
या अच्छा सोचते हैं 
तो उन को एहसास क्यों नहीं होता .???

लोग साथ क्यों छोड़ देते हैं ?
रिश्तो की इज्जत करना भूल क्यों जाते हैं ?

ईर्ष्या........जैसी भावना इतनी प्रबल क्यों हो उठती है.?? 
कि सारी अच्छाइयों को ढँक लेती है ?


यही सब सवाल हैं ..
और हम सब 
इसकी कीमत चुका रहे हैं …...
अपना सेल्फ रेस्पेक्ट गँवा के ..हासिल क्या हुआ ?.
.
कहते हैं ज़िन्दगी कभी रूकती नहीं ..
पर मुझे लग रहा है ………
 ज़िन्दगी में समय और उम्र के अलावा सब कुछ ठहर सा गया है ………….
…….

अब तो जैसे ……….
किसी चीज में कोई रूचि ही नहीं रह गई..
किसी के लिए कुछ करने का मन ही नहीं होता.....
फिर वही साये पीछा सा करने लगते हैं ……

कोशिश कर रही हूँ      इस मनः स्थिति से दूर निकलूँ ….…...

अभी कहीं पढ़ा था …..
जो तुम्हारे पीछे बोलता है उसे बोलने दो …
क्यों कि  वो उसी लायक है       कि   तुम्हारे पीछे ही रहे …..
उसे कभी इतनी तवज्जोह मत दो ...... कि वो तुम्हारे विचारों पर हावी हो सके …..

इस बात को अपने ऊपर लागू करने का प्रयास जारी है ….
शायद सफल भी हो जाऊं ……यही उम्मीद है ….


(विभु कुंवर चौहान)

अपने दरवाजे पर एक दस्तक सुनकर मै अपनी नींद से जागा....!
मेरे कुछ ख्वाब आये थे मुझसे मुलाकात की खातिर....!!
कुछ सवालों से भरे थे तो कुछ जवाब लाये थे....!
वो अपने चेहरों पर लिखी मेरी कुछ किताब लाये थे....!!
किताबों में किस्से थे मेरे और कुछ अरमान लिखे थे....!
फिर से दोहराने सारे अरमानों को वो मेरे पास आये थे....!!
उनको शिकवा था मुझसे के उन्हें याद नहीं करता....!
रख के सिरहाने पर कहीं मै उन्हें भूल जाता हूँ....!!
मै हर ख्वाब से कहता हूँ के मै भूला नहीं उसको....!
है अब भी इल्म हर एक ख्वाब की तासीर का मुझको....!!
अधूरा छोड़ कर एक ख्वाब भी कहीं जाने नहीं वाला....!
मेरा हर ख्वाब मोती है इन्हें खोने नहीं वाला....!!
अपने दरवाजे पर एक दस्तक सुनकर..............!
मेरे कुछ ख्वाब आये थे..........................!!

(वाणी मेहता)

हर रात के बाद एक नई सुबह आती है ,
मेरे जीवन में उम्मीदो की रौशनी वो लाती है।
कहने  को तो कुछ भी नहीं मेरे पास,
पर फिर भी जीवन जीने की मुझे है आस।

तकदीर के आगे किसी की नहीं चलती
पर बिना मेहनत  क्या जीवन की गाड़ी  चलती?
मैं  भी मेहनत  करता हूँ ,
रोज़ दर दर भटकता हूँ ,
गिरता हूँ, संभालता हूँ 
तभी टकराता हूँ आप से-
महत्वाकांशी , ओजपूर्ण , गौरवमय  इंसान से
जो धिक्कारता मुझे, चला जाता मेरे पास से। 
सोचा क्यों ना  बात करूँ  मैं  आज आप से

अरे बाबू  - माना  तकदीर ने मुझे दगा दिया
पर तुमने क्या भला किया ?
निगाहें चुराकर मुहँ  फेर लिया !
और मुझे लाचारी और बेबसी के अन्धकार में फिर से धकेल दिया।

यह सुनकर बाबु  सकपकाया
न जाने क्यों उसे  मेरी आँखों में विश्वास नज़र आया
अपनी अकड़  में बाबू  बोला  मुझसे  - क्या कर सकता है तू जीवन में?

यह सुनकर मैं बोला - सपने कौन नहीं देखता ?
मैं  भी कुछ बनाना चाहता हूँ
मैं  पढना चाहता हूँ, अपने सपनो को साकार करना चाहता हूँ
लाचारी और बेबसी के इस जीवन से बहार निकल,
एक आत्म निर्भर जीवन जीना चाहता हूँ। 
मैं  इस देश का गौरव बनना चाहता हूँ, 
मैं  अकेला हूँ, असहाय हूँ
इस संसार से अनभिज्ञ हूँ
मेरे पैरों तले ज़मीन नहीं, सर पर साया नहीं
मैं  आपका सहारा चाहता हूँ
निवेंदन करता हूँ आप से
थाम लो हाथ मेरा, दे दो सहारा मुझे
दलदल में फसाँ  हूँ, बाहर  निकालो मुझे
तड़पता हूँ, छटपटाता  हूँ , थोडा सुकूँ  दे दो मुझे
हर पल नीर बहाता  , मुस्कान दे दो मुझे
लाचारी की बेडियों में जकड़ा हूँ, आज़ाद कर दो मुझे
सपने है मेरे कुछ,  पंख दे दो उन्हें
होंसला  और विश्वास है मेरे पास, अपना साथ दे दो मुझे
मौका दो मुझे - जीने दो मुझे, जीने दो मुझे
एक आत्मनिर्भर जीवन, जीने दो मुझे
सुनकर हैरान था बाबू ,
बोला मुझसे - होंसला और साहस  है तुझ में
जीने की आस है तुझे

हम सभी आत्म-निर्भर है , इन बच्चों  के अधूरे सपनो को पूरा कर सकते है। 
तो क्यों न हम सब हाथ मिलाये
विकासशील देश को विकसित  बनाये
आइये हम सब आगे बढे
समाज की निम्न रेखा से इन लोगों को ऊपर ऊठाएं

और  इन्हे आत्म निर्भर बनाये। 

8 टिप्‍पणियां:

  1. पठनीय पोस्टों का शानदार अवलोकन ... आभार दीदी |

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  2. बहुत ही सुन्दर और पठनीय संकलन बनता जा रहा है यह।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए आपका बहुत- बहुत आभार | बहुत सुन्दर संकलन बनाया है आपने | सराहनीय प्रयास....!!

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  4. बहुत ही अच्छी और चुनिन्दा प्रस्तुति!!

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  5. वाह पूरे तीस बहुत खूब !
    अभी तो रेल के डब्बे
    जुड़ना शुरु ही हुऐ हैं :)

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  6. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ......मुझे बहुत दुःख है की कैसे मैं अभी तक इस सूचना को नहीं देख पाई ..आज अचानक ही नजर पड़ गई .......इधर काफी दिनों से कुछ लिख नहीं पाई हूँ....जल्दी ही कोशिश करती हूँ....

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