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शनिवार, 2 नवंबर 2013

ये यादें......दिवाली या दिवाला ?

आदरणीय ब्लॉगर साथियों नमस्कार,

दिवाली खुशियों का त्यौहार है जिसको बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है | घर, दुकान, अन्दर, बहार, ऊपर, नीचे, आगे, पीछे यहाँ तक कि नालियों तक का पूजन किया जाता है और हर तरफ दिए जला कर खुशियाँ रौशनी की जाती है | अपने दिलों में सब नए साल के लिए आशा, उल्लास और उन्नति के भाव लिए प्रभु की पूजा अर्चना करते हैं | दिवाली प्रकाश और रौशनी का महोत्सव है और यह पांच दिनों तक मनाया जाता है | इसमें सभी परिवार और समुदाय मिलकर रौशनी, स्वादिष्ट भोज, पकवान, व्यंजन, आतिशबाज़ी, मेलों, प्रार्थना तथा संगीत कार्यक्रमों में सहभागिता करते हैं | सूर्योदय के साथ ही घर घर में सफाई अभियान चलाया जाता है, घर को फूल मालाओं, झालरों और सितारों से सजाया जाता है | सारे घर में दीप और मोमबत्तियां लगाई जाती हैं | मंदिर के लिए नए भगवान्, नया सामान, सोना चांदी और आतिशबाजी आदि खरीद कर लाइ जाती है | यही होता है क्या असल में दिवाली का मतलब ? या मैं एवाई सेंटी मारे जा रहा हूँ ?

दशहरा भी निपट गया | रावण का भी विकट गया | रावण को चटकाने के बाद राम मेहरारू ले अयोध्या आ लिए | अपनी पार्टी संग अयोध्या पर राज करने को अपनी कुर्सी संभाल ली और सरकार बना लिए | उनके प्रधानमंत्री बनने की ख़ुशी में दिवाली होने लग गई | कहा गया कि असत्य पर सत्य की जीत हो गई और इसलिए खुशियों, प्रकाश, गीत संगीत का दिन दिवाली कहकर मनाया गया | तो अगर आज के परिवेश में देखा जाये तो अब पांच साल में दिवाली मनाई जानी चाहियें ना की हर साल और दिवाली नहीं शायद सही मायनो में कहूँ तो दिवाला मनाया जाना चाहियें असल में तो |

अब आप पूछेंगे वो क्यों ?

भाई बुरा ना मानना फितूरी उलटी जाट खोपड़ी हूँ तो मैं कहूँगा वो यों के अब तो कितनी ही पार्टीयों में भतेरे नेता भरे पड़े हैं जो राम बनकर हर पांच साल में वनवास काट कर भारत की राजगद्दी सँभालने अपने विरुद्ध खड़े रावण को निपटने की फ़िराक में आन घमकते हैं और जैसे तैसे जुगाड़ लगा, जनता को मूर्ख बना, रावण को चित कर के जीत भी जाते हैं और अपनी मिश्रित गुरगों वाली अगड़म बगड़म साकार बना कर मज़े के साथ देश और जनता को भी लूटने लग जाता है | तो अब तो दिवाली का स्वरुप और मायने हर पांच साल में पांच सितारा होटल के कमरे में बैठ कर बदली कर लिए जाते हैं | तो फिर अब हर साल राम को आदर्श मान कर लक्ष्मी की मूर्ती लगा कर पूजने का क्या फायदा ? इस कलयुग में तो दिवाली मनाने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता और ना समझ आता है | शायद मेरी समझदानी थोड़ी सी टेड़ी है इसलिए ऐसा सोचा करता हूँ | क्योंकि अब तो हर जगह सत्य पर असत्य की विजय को मनाया जाता है तो दिवाली को तो खीसे के अन्दर रख देना चाहियें और बड़ा वाला दिवाला बहार लाकर वही मानना चाहियें |

बचपन में जब अपने ननिहाल या ददिहाल जाता था तब दिवाली की असल रौनक देखने को मिलती थी | छोटे शहर में नौचंदी जैसे मेले देखने को मिलते थे | बड़े बूढों का प्यार और स्नेह सहर्ष बातों और आँखों से झलकता था | वहां के मेलों का खास आकर्षण होता था गज़ब की गर्मी, धक्का मुक्की, मच्छर और वो लोग जो आँखों में काजल लगाये बालों को तेल से चिपकाये पिपिहरी बजाते, हुल्लड़ बाज़ी करते, छिछोरगिरी करते, उट पटांग हरकतें करते इधर उधर दौड़ते फिरते थे | ठेले पर अजीब से तेल की मिठाई और पकोड़े बिका करते थे और मेले में वो बड़ा वाला उड़न खटोले दिखा करते थे जिन पर बैठी जनता और गाँव की नव युवतियां चीख चिल्ली किया करती दिखती थी और मनचले उनपर फिकरे कसते सुनाई देते थे | जादूगर का मजमा, बड़ी टांगों वाला जोकर, बौना जोकर, अजीब गरीब शीशे, डरावनी गुफा, करतब बाज़ों के करतब, लस्सी की दूकान, चाट पकौड़ी के ठेले, बर्फ का गोला, गुलेल वाला ग्लाइडर, और धक्का मुक्की के बीच मनचले लौंडे, लौंडियों को ताड़ने में लगे रहते थे | इन सबको जीवंत जीने और अनुभव करने में बड़ा आनंद मिलता था | मेले के दुसरे कोने में नौटंकी भी खूब सजा करती थी | लाउड स्पीकर की फटी हुई आवाज़ ज़ोर ज़ोर से शोर से करती जिसमें फूहड़ फ़िल्मी गाने बजा करते थे और अन्दर एक मोटी, छिछोरी का उत्तेजक नाच देखने लौंडे लफडंर, बुड्ढ़े ठेले मारा मारी में लगे रहते थे ऐसे जैसे के दिवाली का प्रसाद बट रहा हो | पता नहीं कहाँ से लोगों का रेला, हुजूम का हुजूम मेले में शिरकत करने आता और जीवन की इस आपाधापी में मौज मस्ती के कुछ पल बिताता नज़र आता और देर रात एक सन्नाटा छोड़ गायब हो जाता | सब अपनी अपनी तरह से दिवाली मानाने में और अपनी दुनिया में मस्त हुआ करते थे |

मेले से लौटने पर घर पर और मोहल्ले में खूब धमाचौकड़ी मचती | आतिशबाज़ियाँ चलतीं | बम पटाखे फोड़े जाते और उल जुलूल काण्ड किये जाते | पडोसी के लैटर बॉक्स में गोला बम रखकर उड़ा दिया जाता | किसी के स्कूटर के टायर में बम लगा दिया जाता | तो कहीं किसी की खटिया के पायें में सुतली बम लगा दिया जाता | मुझे याद है एक दफा मोहल्ले के लड़कों ने एक गधे की पूँछ में दस हज़ारा लड़ी बाँध कर आग लगा दी थी और मैंने छत से उससे दुल्लात्तियां चलते देख खूब मज़े लिए थे | वो दिन भी क्या दिन थे | आपस में गले मिलना, मिठाइयाँ और खिलौने देना | बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेना और भी न जाने क्या क्या यादें बसी हैं इस बवनडरी दिमाग में |

आज बड़ा होने पर जीवन के झंझटों में उलझा दिल इन यादों की और उन दिनों की बराबरी नहीं कर पाता | ना वो आनंद रहा और ना ही वो त्यौहार रहे और न वो ज़माना रहा | समय बहुत बदल गया | लोग भी बदल गए | समय का बहुत अभाव है लोगों के जीवन में आज | एक दुसरे के लिए समय नहीं है किसी के भी पास  | अब वो रौनक देखने को नहीं मिलती कहीं भी सब कुछ खत्म होता जा रहा है | पर बचपन के पल और अनुभव भुलाए नहीं जा सकते | कहते हैं न बातें भूल जाती हैं यादें याद आती हैं | ये यादें ....

खैर! आप भी सोचिये इस बारे में दिवाली मनाएं या फिर दिवाला | मैं फिर मिलता हूँ |

वैसे दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनायें और हार्दिक बधाइयाँ | राम जी और लक्ष्मी मैया सभी पर अपनी कृपा बनाये रखें |

आज की कड़ियाँ 

दिवाली सन्देश - हिंदी शायरी

शुभ दीपावली - ज्योति कलश

पूजा छुप के करता तो बेहतर था - काजल कुमार

दीपक - ओंकार

जगमग दीपावली के कुछ यह भी रंग - शशि पुरवार

तुम्हारी जय हो उल्लू भैया, जयजय कार उल्लू भैया - सुमन पाटिल

दीपावली कल, इस तरह करें महालक्ष्मी और श्रीगणेश को प्रसन्न - विनीत वर्मा

दीपोत्सव - दुर्गा प्रसाद माथुर

ये दीप कहाँ रखूं ? - राम किशोर उपाध्याय

पावन स्‍मृति - अविनाश वाचस्‍पति

दीपावली की हार्दिक शुभ-कामनाएं - संजय कुमार चौरसिया

दीप ज्ञान का इक तुम जलाओ - रेखा जोशी

अब तुम्हारी याद में सुलगती नहीं लकड़ियाँ - वंदना गुप्ता

कोकिला को भी नमो ही चाहिए - अशोक पाण्डेय

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ - अल्पना वर्मा

हिंदी वालों के लिए सर्वश्रेष्ठ स्मार्टफ़ोन - रविशंकर श्रीवास्तव

दीप पर्व : हमारे देश और विदेशों में - महेंद्र मिश्रा

अपना उल्लू ले, महिलाएं बहार निकली हैं - सतीश सक्सेना

दिया समर्पण का रखना - सदा

कुछ बिखरी पंखुड़ियां - सुषमा

विचार - जीवन सिंह

फिर बैतलवा डाल पर - अज़दक

अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar charcha . achchhe link mile sath hi sabhi charchakar sathiyon ko Diwali ki hardik badhai shubhakamanayen ....

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  2. दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। meri rachna ko sthaan dene pt hardik abhar

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  3. दीवाली ही मनायें दीवाला नही । जाते हैं इन लिंक्स पर।

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  4. आपको मेरी तरफ से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  5. यादों के साये मे खूब दिवाली मनाई भैया जी ... जय हो !

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  6. पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
    वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
    सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
    कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
    जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
    रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||


    वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
    पावली=चवन्नी
    गावदी = मूर्ख / अबोध

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  7. बहुत खूब राम जी और लक्ष्मी मैया आप पर भी अपनी कृपा बनाये रखें दीपावली की शुभकामनाऐं !

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  8. काश
    जला पाती एक दीप ऐसा
    जो सबका विवेक हो जाता रौशन
    और
    सार्थकता पा जाता दीपोत्सव
    दीपपर्व सभी के लिये मंगलमय हो …

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  9. बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन एवं प्रस्‍तुति
    ... आभार

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  10. आदरणीय तुषार सर सभी लिंक्स अच्छे हैं, मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए आपका दिल से आभार एवं शुभ दीपावली।

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!