ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये आज पेश है अवलोकन २०१३ का बाल दिवस विशेषांक ...
प्रतिभाओं की कमी नहीं तो बच्चे किसी से कम नहीं - फिर ज़रूरी है उनकी बातें,उनके लिए कुछ विशेष ! आज तो बच्चों का दिन है,चाचा नेहरू की मुस्कान और उनके गुलाब की तरह देश का उज्जवल भविष्य, तो देते हैं कुछ सार्थक उपहार,जिससे बच्चों के चेहरे हो जाएँ गुलाब - सबके दिल हो जाएँ बाग़-बाग़ यानि garden garden :)
क्रिएटिव कोना: बच्चों का हो पूर्ण विकास— अगर ...
(ड़ा0हेमन्त कुमार)
“साहित्य संगीत कला विहीनः,साक्षत पशु पुच्छ विषाण हीनः”—मतलब यह कि साहित्य संगीत और कला से विहीन मनुष्य पूंछ और सींग रहित पशु के समान होता है। यह श्लोक बहुत पहले लिखा गया था।पर इसकी सार्थकता हमेशा रहेगी। वैसे तो इसमें कही गई बातें हर व्यक्ति के ऊपर लागू होती हैं लेकिन अगर हम इस श्लोक को बच्चों के विकास के संदर्भ में देखें तो इसकी प्रासंगिकता आज के समय के लिये और भी बढ़ जाती है।
आज बच्चों के अंदर जो उच्छृंखलता,उद्दण्डता और विद्रोही होने के हालात पैदा हो रहे हैं उसके पीछे बहुत से कारण हैं।बच्चों के चारों ओर का वातावरण,उनका पारिवारिक माहौल,स्कूल की स्थितियां,दोस्तों की संगत,टी0वी0,इण्टरनेट इत्यादि। इन्हीं में से एक कारण है उनका कला जगत से दूर होना। आज आपको बहुत कम परिवार ऐसे मिलेंगे जहां बच्चों को किसी कला से जोड़ने की कोशिश होती दिखाई पड़े।ज्यादातर अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ लिखकर इंजीनियर,डाक्टर,
आई0ए0एस0,पी0सी0एस0 या कोई बड़ा अफ़सर बन जाय। और इसके लिये वे बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवायेंगे। कई-कई ट्यूशन और कोचिंग सेण्टर्स भेजेंगे हजारों रूपये खर्च करेंगे।मतलब सुबह से शाम तक सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई।थोड़ा बहुत जो समय बचा वो टी0वी0,इण्टरनेट के हवालें। नतीजा सामने है।बच्चों के ऊपर बढ़ता मानसिक दबाव,तनाव,रिजल्ट खराब होने पर डिप्रेशन,हीन भावना जैसी मनोग्रन्थियां बच्चों को जकड़ने लगती हैं।कहीं बच्चा अधिक निराशा में पहुंचा तो वो आत्महत्या तक करने की कोशिश कर बैठता है।
जबकि इन सारी दिक्कतों से अभिभावक अपने बच्चों को बचा सकते हैं। सिर्फ़ उसे किसी भी कला से जोड़ कर।चाहे वह गायन हो,नृत्य हो,स्केचिंग,पेण्टिंग म्युजिक,अभिनय या फ़िर कोई अन्य कला हो। इनसे जुड़ने से बच्चे के अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा। उसे लगेगा कि वह किसी चीज में तो दक्ष है।
ऐसा नहीं है कि आज समाज से या परिवार से कलाओं का लोप हो गया है। कलाओं का स्थान आज भी परिवारों में है। परन्तु आज उसका स्वरूप,मकसद बदलता जा रहा है।बहुत से परिवारों में आज भी बच्चों को नृत्य,संगीत,अभिनय आदि कलाओं का प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है। लेकिन उसके पीछे उनका मकसद व्यावसायिक हो गया है न कि बच्चों का आत्मिक विकास। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा आगे चलकर उस कला के माध्यम से धन कमा सके। जब कि ऐसा नहीं होना चाहिये। किसी भी कला का सर्वप्रथम उद्देश्य बच्चों को या किसी भी व्यक्ति को एक अच्छा इन्सान बनाना होता है। उसे अनुशासन सिखाना होता है।व्यावसायिकता तो बहुत आगे की बात होती है। और फ़िर यह जरूरी नहीं है कि हर बच्चा गायन सीख कर सोनू निगम या अभिनय सीख कर शाहरुख खान बने ही। लेकिन इतना तय है कि वह बच्चा उस कला के माध्यम से अनुशासित जरूर हो जायेगा।समय की पाबन्दी जरूर सीखेगा।मेहनत करना जरूर सीखेगा। उसके अंदर आत्मविश्वास जरूर पैदा होगा—कि वह भी कुछ करने लायक है।
हमारे अभिभावकों को भी यह बात समझनी चाहिये कि यदि वे अपने बच्चों को पढ़ाई के,स्कूल के तमाम दबावों और तनावों से छुटकारा दिला सकते हैं तो इस काम में कोई भी कला निश्चित रूप से किसी दवा,चिकित्सक,मनोचिकित्सक से बढ़ कर कारगर सिद्ध हो सकती है। इतना ही नहीं कला भी उसके सम्पूर्ण विकास में उतनी ही सहायक होगी जितना कि पढ़ाई-लिखाई या खेलकूद। मैं इस बात को पुष्ट करने के लिये यहां एक उदाहरण दूंगा। मैंने अपने एक मित्र से कहा कि आप अपने बेटे को शैक्षिक दूरदर्शन के कार्यक्रमों में क्यों नहीं भेजते?बस इतना कहना था कि वो उखड़ गये मेरे ऊपर। उन्होंने सीधे-सीधे मुझसे कह दिया कि “मैं अपने बच्चों को बर्बाद नहीं करना चाहता। और अब दुबारा कभी मुझसे यह बात मत कहना।” मैं उनका गुस्सा देख कर चुप हो गया। लगभग पांच छः साल के बाद मेरे वही मित्र अपने बच्चे को लेकर मेरे पास आये। उस समय उनका बच्चा कक्षा 8 में था। उन्होंने मुझसे कहा कि “इसे कुछ याद ही नहीं होता।दिन रात पढ़ता रहता है। और भेजे में कुछ घुसता ही नहीं।खेलने कूदने में भी मन नहीं लगता।कुछ कह दो तो रोने लगता है।” वो अपने बेटे के भविष्य को लेकर काफ़ी चिन्तित भी लग रहे थे।मैंने उन्हें शान्त कराया। और उनसे अनुरोध करके उनके बेटे को मैंने एक इन्स्ट्रुमेण्टल म्युजिक की क्लास ज्वाइन करवा दी। लड़के ने बांसुरी बजाना सीखना शुरू किया। और छःमहीने बितते बीतते उस बच्चे का पूरा स्वभाव ही बदल गया। उसका सारा गुस्सा,सारी उद्दण्डता गायब। वह अब पढ़ने में भी रुचि लेने लगा था। उनका वही जिद्दी,शैतान बच्चा हाई स्कूल,इण्टर प्रथम श्रेणी में पास हुआ। फ़िर इन्जीनियरिंग पास किया।आजकल वही बच्चा एक मल्टीनेशनल कम्पनी में है।
यह सब बताने का मेरा यहां सिर्फ़ यही उद्देश्य था कि आप अपने बेटे को पढ़ाई,लिखाई के साथ ही किसी कला से भी जोड़िये।क्योंकि कला सिर्फ़ एक मनोरंजन या व्यवसाय का साधन ही नहीं है बल्कि यह ----
बच्चे को अनुशासित बनाती है।
बच्चे के अंदर आत्मविश्वास भरती है।
वह किसी भी काम को एक व्यवस्थित और साफ़ सुथरे ढंग से करना भी सीखता है।
उस कला के माध्यम से बच्चे का मानसिक तनाव भी खतम होता है।
उस कला में रोज नये प्रयोगों के करने से उसका बुद्धि कौशल भी बढ़ता है।
वह अपने भावी जीवन में भी हर काम को बहुत ही सलीके से और कलात्मक ढंग से पूरा करता है।
कला बच्चे के अन्दर कुछ नया करने ,सृजित करने का उत्साह भी पैदा करती है।
कला बच्चे के व्यक्तित्व को सौम्य,हंसमुख और मिलनसार बनाती है।
और सबसे बड़ी और अहम बात यह कि कोई भी कला आपके बच्चे के व्यक्तित्व को सम्पूर्ण बनाती है।
इसलिये सभी अभिभावकों के साथ ही सभी शिक्षकों से भी यही कहूंगा कि बच्चों को किसी भी कला से जोड़कर देखिये आपको हर रोज उसके व्यक्तित्व,व्यवहार,कौशल और प्रदर्शन का एक नया और अनूठा आयाम दिखाई पड़ेगा।
(कैलाश शर्मा )
एक जंगल में घना पेड़ था,
उसके कोटर में तीतर रहता.
उसका कौआ ख़ास दोस्त था,
वह जुआर के खेत में रहता.
कौए से मिलने की इच्छा से,
तीतर उड़ कर गया खेत पर.
एक खरगोश ने पीछे आकर,
कब्ज़ा किया उसके कोटर पर.
जब तीतर घर आया शाम को,
कोटर में खरगोश को देखा.
तीतर बोला तुम बाहर निकलो,
नहीं जानते है यह घर मेरा?
जब होने लगी बहस दोनों में,
हुए इकट्ठे जंगल के जानवर.
बोले खरगोश से बाहर आओ,
यह तो है तीतर का ही घर.
बोला खरगोश जो घर में रहता,
उसका ही वह घर कहलाता.
मैं बैठा हूँ इस कोटर के अन्दर,
इस पर मेरा हक़ बन जाता.
सभी विचार विमर्श कर के भी
वे नहीं कोई निर्णय कर पाये.
तब सलाह दी बुज़ुर्ग हिरन ने,
निष्पक्ष व्यक्ति को ढूँढा जाये.
तीतर व खरगोश चल दिये,
किसी निष्पक्ष की तलाश में.
उनको मिली जंगली बिल्ली,
जो बैठी थी सुनसान राह में.
तुम क्या हमारा न्याय करोगी,
बिल्ली से बोले वे दोनों जाकर.
बिल्ली बोली मैं ऊँचा सुनती,
कहो बात तुम पास में आकर.
जैसे ही दोनों पास में आये,
बिल्ली झपट पडी दोनों पर.
पकड़ उन्हें अपने हाथों से,
खाया दोनों को खुश होकर.
जो साथी, हमदर्द तुम्हारे,
उनकी राय सदा ही मानो.
अजनबियों की राय हमेशा
सोच समझ कर ही मानो.
ये तो हुआ बड़ों का उपहार - अब बच्चों की प्रतिभा से मिलते हैं और इस विश्वास को मजबूत बनाते हैं -
'होनहार बिरवान के होत चिकने पात'
(अक्षिता यादव)
मैंने इक कहानी पढ़ी और मुझे अच्छी लगी, सो आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ-
एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था. वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में जाता और गुब्बारे बेचता . बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले, बैंगनी, काला । और जब कभी उसे लगता कि बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते।
एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ी एक बच्ची ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रही था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंची और मासूमियत से बोली, ” अगर आप ये काला वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”
गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ बिलकुल जाएगा बिटिया ! गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है बल्कि इस पर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है।.”
कितनी अच्छी बात कही गुब्बारे वाले ने। ठीक इसी तरह यह बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। कोई अपने जीवन में क्या हासिल करेगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर नहीं बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है। अंतत: हमारा attitude (रवैया) हमारा altitude (ऊँचाई) तय करता है।
....तो कैसी लगी यह कहानी आप सबको। पसंद आई न और कित्ती अच्छी बात कही गई है इस कहानी के माध्यम से ...
बाल सजग
एक ऐसा ब्लॉग है, जो बना है सिर्फ बच्चों के लिए। इसकी टीम में सभी मजदूर बच्चे हैं, जो
काम करते हैं और साथ ही कवितायें-कहानियां भी कहते हैं
तो घूमते है थोड़ी देर उनकी दुनिया में -
प्राणी बड़ा ही बंधा हुआ ,
साबित होता जा रहा है .....
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे से जा रहा है .....
जो वो कर रहा है,
वही करने की वो सोच रहा है ......
न उसकी अपनी समझ है ,
न ही अपनी सोच है ......
जो देख रहा है प्रक्रति और संसार से ,
वो वही कर रहा है ......
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे जा रहा है ......
अब वह समय दूर नहीं ,
जिसमें प्राणी को प्राणी बाधेगा .....
आँगन की उस चौपाल में,
जहां प्राणी ही प्राणी आयेगा .....
प्राणी को देख के ,
प्राणी के मुख में मुस्कान होगी .....
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे जा रहा है .......
लेखक : अशोक कुमार
कक्षा : १०
अपना घर
मंहगाई ने आसमान छू डाला ,
गरीबों को तो भूखा मार डाला .....
सब्जी मंहगी, अनाज मंहगा,
अब तो हर सामान है मंहगा .....
पेट्रोल तो इतना मंहगा हो गया,
गाड़ियों में पेट्रोल डलवाना .....
कितना ज्यादा मंहगा पड गया ,
नया नेता बनाने से ......
कुछ बदलाव नहीं आया ,
सभी चीजों को मंहगाई ने है खाया ......
नाम : चन्दन कुमार, कक्षा : ७, अपना घर
अंत में साहिर लुधियानवी के गीत की पंक्तियाँ दोहराती हूँ =
'बच्चों तुम तकदीर हो कल के हिंदुस्तान की
बच्चों की दुनिया में झांककर देखा .....बहोत खूबसूरत है ....आभार उसकी खलक दिखने के लिए...!!!
जवाब देंहटाएंआज तो बच्चों का दिन है .... बच्चों की दुनिया और उनकी बातों के बीच बुलेटिन की इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंnice post computer and internet ki nayi jankaari tips and trick ke liye dhekhe www.hinditechtrick.blogspot.com
जवाब देंहटाएंaapka hriday se aabhar
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंआज बच्चों का दिन
और बच्चों की ही बात !
हैप्पी चिल्ड्रंस डे !
बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंअरे वाह ... अवलोकन २०१३ के अंतर्गत बाल दिवस की जुड़ी पोस्टें ... जय हो रश्मि दीदी ... बेहद उम्दा आइडिया रहा ... जय हो !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...आभार
जवाब देंहटाएंवाह ..ढेर सारी बाल पोस्ट्स। मेरे ब्लॉग "पाखी की दुनिया" को शामिल करने के लिए थैंक्स।
जवाब देंहटाएंबच्चों का दिन मस्त रहा | लाजवाब पोस्ट्स चुने आपने | जय हो मंगलमय हो | हर हर महादेव |
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