आप लोग भी सोचते
होंगे कि ई आदमी हमेसा गायब रहता है अऊर जैसहीं ई बुलेटिन ५० का नंबर पर पहुंचता
है अचानक परकट हो जाता है. ऐसा आदमी को बुलेटिन में रखने का कउन फायदा है, जो बाकी
टाइम त लापता रहता है बस ५० का पहाडा पढकर चला आता है. त सुनिए भाई लोग, ई बिहारी
से पीछा छोड़ाना एतना आसान नहीं है. चचा ग़ालिब फरमा गए हैं कि
मिटाया मुझको
होने ने, न होता मैं तो क्या होता..."
त भाई लोग अऊर बहिन जी असल में हम बुलेटिन के फाउंडर मेंबर में से हैं, एही से बाबू सिवम मिसिर हमको ढो रहे हैं. ऊ का कहते हैं कि बात साँप अऊर छुछुन्दर वाला है न ई बिहारी को छोडते बनता है न धरते.
त चलिए हमहूँ
अपना जलवा देखाने में कब पीछे रहते हैं. असल में इधर लिखना एकदम खतम हो गया है.
मगर पढाई चालू है. फेसबुक पर तनी-मनी जो समय मिलता है, ऊ बिता लेते हैं. मन बहाल
जाता है अऊर लोग को एकीन होते रहता है कि हम ज़िंदा हैं.
काल्हे फेसबुक पर हमरे एगो दोस्त सवाल उठाये कि ऊ फिलिम “एक रुका हुआ फैसला” देखे अऊर बहुत परभावित हुए (ई सिनेमवे अइसा है कि बाँध लेता है).
बाद में अंगरेजी सिनेमा “12 Angry Men” देखे, ऊ हो बहुत परभावित किया. हिन्दी वाला सिनेमा अंगरेजी वाला का एकदम सेम टू सेम है.
बाकी हिन्दी सिनेमा के क्रेडिट में अंगरेजी सिनेमा का कोनो जिकिर नहीं है. बात सहिये था. कम से कम बासु चटर्जी साहब को ई लिखना तो चाहिए था.
अब देखिये अभी
हाल में एगो सिनेमा आया था “लूटेरा” (इस्पेलिंग मिस्टेक नहीं है – पोस्टर पर
अइसहीं लिखल है).
ऊ सिनेमा में ढेर सारा बाउंडरी बनाने के बाद ओ. हेनरी के कहानी का क्लाइमेक्स देखाया. अऊर क्रेडिट में लिखा कि “द लास्ट लीफ” पर आधारित.
बहुत सा सिनेमा साहित् के ऊपर बना, बाकी कोनो लेखक खुस नहीं, अऊर कोनो दरसक भी खुस नहीं. असल दुनो अलग-अलग माध्यम है. जहाँ सिनेमा में डाइरेक्टर अऊर लेखक अपना बात कहना चाहता है ओहाँ ओरिजिनल उपन्यासकार कुछ अऊर कहना चाहता है. पुराना सिनेमा “चित्रलेखा” देखने के बाद एही निरासा हुआ था, “गाइड” के बाद आर. के. नारायण भी बहुत बमक गए थे.
हमरे लिए सबसे परभावित करने वाला अऊर कभी नहीं भूलने वाला सिनेमा है “जूनून”. स्याम बेनेगल का डायरेक्ट किया ससी कपूर के प्रोडक्सन का सिनेमा. ओरिजिनल कहानी रस्किन बौंड का “flight of the Pigeons”. मगर अभी उपन्यास पढने पर देखे कि बहुत फरक है. उपन्यास पढ़ने में एगो ऐतिहासिक दस्तावेज मालूम पडता है, लेकिन सिनेमा त कमाल है.
ऊ सिनेमा में ढेर सारा बाउंडरी बनाने के बाद ओ. हेनरी के कहानी का क्लाइमेक्स देखाया. अऊर क्रेडिट में लिखा कि “द लास्ट लीफ” पर आधारित.
बहुत सा सिनेमा साहित् के ऊपर बना, बाकी कोनो लेखक खुस नहीं, अऊर कोनो दरसक भी खुस नहीं. असल दुनो अलग-अलग माध्यम है. जहाँ सिनेमा में डाइरेक्टर अऊर लेखक अपना बात कहना चाहता है ओहाँ ओरिजिनल उपन्यासकार कुछ अऊर कहना चाहता है. पुराना सिनेमा “चित्रलेखा” देखने के बाद एही निरासा हुआ था, “गाइड” के बाद आर. के. नारायण भी बहुत बमक गए थे.
हमरे लिए सबसे परभावित करने वाला अऊर कभी नहीं भूलने वाला सिनेमा है “जूनून”. स्याम बेनेगल का डायरेक्ट किया ससी कपूर के प्रोडक्सन का सिनेमा. ओरिजिनल कहानी रस्किन बौंड का “flight of the Pigeons”. मगर अभी उपन्यास पढने पर देखे कि बहुत फरक है. उपन्यास पढ़ने में एगो ऐतिहासिक दस्तावेज मालूम पडता है, लेकिन सिनेमा त कमाल है.
बात चला था
क्रेडिट देने से. त ब्लॉग जगत अऊर फेसबुक, दुनो पर रोज एही हंगामा लगा रहता है कि
लोग किसी का कबिता/इस्टैटस चोरा कर छाप देता है अऊर बेचारे असली लिखने वाला को
कोनो क्रेडिट नहीं मिलता है.
हम त लिखकर भुला
जाते हैं कब का लिखे थे. फुर्सत कहाँ है, हमसे बढ़िया लिखने वाला लोगबाग है इहाँ, त
हम काहे परेसान होयें. ऊ का कहते है:
" किस किस की फ़िक्र कीजिये किस किस को रोइए,
आराम बड़ी चीज़ है
मुँह ढँक के सोइए..."
त चलिए, फॉर अ चेंज, नज़र डालते हैं आज के कुछ चुनिन्दा फेसबुक स्टैटस पर:
अब तो
साला फेसबुक भी प्रिडिक्टिव हो गया है। पहले ही अंदाजा लग जाता है कि आज
टाईमलाईनों पर क्या नजारे होंगे। कौन किस किस्म की बधाई चेंपेगा और कौन बकरा
कटन्नी पर मुंह बिचकायेगा। किसका शाकाहार भाव आज जागृत होगा और किसका पर्यावरण
प्रेम कुश्ती लड़ेगा। कौन विमर्श के नाम साहित्यिक लीद करेगा और कौन कम्बख्त रक्तिम
कविताएं रचेगा। कौन बकलोल रोनी सूरत बनाये स्टेटसेस ठेलेगा और कौन घर में दाल-भात
खाने के बावजूद फेसबुक पर मुर्ग मुसल्लम की तस्वीरें चेंपेगा
इटज् भौकाल एरा डूड
इटज् भौकाल एरा डूड
ब्लॉग बुलेटिन में फेसबुक चर्चा फाउल है पर मस्त है। अजय जी कहेंगे ई त हमरा काम है सलिल जी यहाँ भी !
जवाब देंहटाएंआपका पिक्चर प्रेम देखकर आनंद आता है। खूब देख लेते हैं। कहाँ से करते हैं मनमाफिक डाउनलोड? जो चाहते हैं वही देख लेते हैं!
:) Devendra sir ne sahi kaha :)
जवाब देंहटाएं:-) दादा बड़ा इंतज़ार रहता है इस पचास के पहाड़े की अगली सीढ़ी का.....मन प्रसन्न हो जाता है !!! काश शिवम् आपको और भी ज्यादा बुलेटिन डालने के लिए पटा पाते :-)
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
गजबे है आज का बुलेटिन त
जवाब देंहटाएंऊ का है कि आजकल अपन को भी ससुरे ब्लाग की ही जादा याद आवत रही...इ फेसबुक सौतन सारा समय चिपकी ही रहत है...कछु करनो पड़ेगो जाके लाने...
जवाब देंहटाएंका बात करते हैं दादा ई पेसल ओकेजन पे तो आपका आना बनता ही है , फ़ेसबुकिया धुकधुकिया एक्सपरेस खूब चलाए हैं आप धडाधड से
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंloktantra par charchaye hona chahiye
जवाब देंहटाएं@देवेन्द्र पाण्डेय जी! दरअसल मुझे लैपटॉप पर फिल्म देखने में मज़ा नहीं आता.. यहाँ आकर एक बड़ी अच्छी बात यह हुई कि एक डीवीडी की दुकान वाला मिल गया है मुझे. बस उसे लिस्ट देनी पडती है और इंतज़ार करना होता है उसके फोन का.. अच्छी फिल्मों की डीवीडी का बहुत अच्छा संकलन हो गया है इन दिनों!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बुलेटिन सजाये भैया ... लाजवाब ... जय हो
जवाब देंहटाएंलीजिये, फेसबुक भी ब्लॉग का डोमेन बन गया।
जवाब देंहटाएंलाजबाब प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति रही यह भी!!! फेसबुक माइक्रो ब्लॉग का माध्यम है, इसलिए उसकी चर्चा करना भी सही है।
जवाब देंहटाएं"असल में हम बुलेटिन के फाउंडर मेंबर में से हैं, एही से बाबू सिवम मिसिर हमको ढो रहे हैं. ऊ का कहते हैं कि बात साँप अऊर छुछुन्दर वाला है न ई बिहारी को छोडते बनता है न धरते."
जवाब देंहटाएं@सलिल दादा ... काहे हमरा कंबल परेड करवा देते है जी ... :)
वैसे गज़ब का बुलेटिन लगाए दादा चचा गालिब से शुरू किए और भतीजे आदि के जन्मदिन की ख़बर पर फूल स्टॉप लगाए ... जय हो ... :)
सभी पाठकों तहे दिल से ६५० वीं पोस्ट की मुबारकबाद ... आप सब के स्नेह के बिना यह सफर शायद ही कभी हो पता !
सलिल जी !!! आपको पढ़ना किसी दस्तावेज़ से कम नहीं होता । बेहतरीन पोस्ट
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