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शनिवार, 10 अगस्त 2013

हम भूल गए हैं रख के कहीं …



आगे बढ़ने की चाहत 
नए ताने बाने 
एहसास जो मुंडेर पर रखी थी 
वह आज भी ताजा है 
बस - मुंडेर पर गए अरसा हुआ !
…………………… आइये चलें उस मुंडेर पर 
जहाँ एहसासों की आग से 
एहसासों का धुंआ 
मन की चिमनी से छन छन कर निकल रहा 
एहसासों की छौंक की महक कम नहीं हुई है 


14 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सूत्र। अपनी पुरानी कविता को देख अच्छा लग रहा है।

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  2. बिलकुल आप के अंदाज़ की तरह है आज की बुलेटिन ... अनोखी ... :)

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  3. वापस लौटना हमेशा सुखद होता है!

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  4. सुन्दर सूत्रों से सजा बुलेटिन।

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  5. जिन खोज तिन पाईयाँ...धन्यवाद...इस खोज के लिए...

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