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शुक्रवार, 7 जून 2013

घुंघरू

आदरणीय सदस्यगण
सादर प्रणाम 

आज प्रस्तुत है एक कविता जिसे मैंने एक घुंघरू के विचारों के माध्यम से प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया है | आशा करता हूँ के आपको बुलेटिन पसंद आएगा | 


आज एक 
मूक घुंघरू भी 
कह उठा
मैं, मूक नहीं हूँ 
वो कहता है 
मेरा स्वर
प्रत्येक व्यक्ति के 
लिए नहीं है 
उस व्यक्ति के
लिए नहीं है 
जो मुझे जानने की 
इच्छा रखता है 
जो मुक्ता का 
स्वर जानता है 
दर्द पहचानता है 
उच्च स्वर का 
यन्त्र अचानक 
मौन कैसे हुआ 
जिसने संसार को 
अनेक स्वर दिए 
पर, बदले में 
मिला एक 
दाग भरा नाम
फिर वो मूक हुआ 
उसने अपनी शांति में 
ईश्वर को सुना 
बस अब तक तो 
वो बजता था 
तब, सब सुनते थे 
पर आज 
ईश्वर का स्वर स्वयं 
बजना है 
वो मूक बना 
उस स्वर का 
आनंद लेता है 
इस लिए ईश्वर को 
पाने वाला ही 
उस घुंघरू की 
ताल और लय
सुन पायेगा

आज की कड़ियाँ 












फिलहाल इतना ही कल की कल सोचेंगे और प्रस्तुत करेंगे | धन्यवाद्  |

जय हो मंगलमय हो  | जय श्री राम  | हर हर महादेव शंभू  | जय बजरंगबली महाराज 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका तुषार जी......रश्मि जी के ब्लॉग 'मैं' का लिंक आज यहीं से मिला ।

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  2. सुन्दर बुलेटिन-
    आभार आदरणीय प्रस्तोता

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  3. सुन्दर लिंक्स से सजा सुन्दर बुलेटिन ………घुँघरू की वो आवाज़ भी वो ही सुन पायेगा जो खुद घुँघरू बन जायेगा और जिसे खुदा खुद सुनवायेगा ।

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  4. बढ़िया प्रस्तुति तुषार भाई ... लगे रहिए !

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  5. घुंघरू की खनकती आवाज़ ..........बेहद सुन्दर

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  6. बहुत लाजवाब कविता और उतने ही लाजवाब लिंक्स, आभार.

    रामराम.

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  7. 'घुँघरू' की खनक और रचनाओं के बहुरंगी चुनाव बहुत अच्छे रहे !

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  8. सुंदर रचना 'घुँघरू' की बढिया खनक

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  9. मौन में ही संगीत छुपा है..सुंदर बोध भरी कविता..आभार!

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  10. बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...

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  11. आप सभी महानुभावों का बहुत बहुत शुक्रिया मेरी बुलेटिन पर आने और सराहने के लिए और मेरा हौसला बढ़ने के लिए | आभार

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