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बुधवार, 26 जून 2013

दुर्घटनाएं जिंदगियां बर्बाद करती हैं और आपदाएं नस्ल ..........



उत्तराखंड आपदा , अभी पूरे देश के ज़ेहन में सिर्फ़ यही कौंध रहा है , उस भयावह आपदा जो कयामत बनके आई थी , बीते गुजरे एक सप्ताह से भी अधिक का समय बीत चला है , आज भी खबर यही है कि हज़ारों लोग अब भी मौत के मुंह में हैं । जिंदगियों के जाने का आंकडा , वो आंकडा जो सरकार बता रही है बढता जा रहा है और और इससे कई गुना ज्यादा वो संख्या होगी जो दिन बीतने के साथ ही उत्तराखंड की जमींदोज़ हो चुकी धरती और पहाड के बीच अब गुमनाम होने जैसी होती जा रही है । वो जो पिछले नौ दिनों से अपनों की तलाश में भटक रहे हैं , उनके बारे में जानने के लिए बेताब हैं , परेशान हैं , मायूस हैं जाने उनकी ये बेताबी , ये परेशानी और ये मायूसी कितनी लंबी होने वाली है कईयों की तो शायद उम्र भर के लिए ।

इस आपदा ने इंसानियत के रक्षक हमारे वीर जांबाज़ सैनिकों को अपना फ़र्ज़ निभाने का मौका दिया तो वहीं कुछ आदमखोर इंसानों के झुंड ने लाशों तक से व्याभिचार करके ये साबित कर दिया कि , इंसान अब जीवन स्तर की मानसिकता में पशुओं से कहीं अधिक घृणित और नीच हो गया है । ऐसे में एक कही हुई बात मुझे याद आ रही थी कि ,दुर्घटनाएं तो जिंदगियां बर्बाद करती हैं मगर आपदाएं नस्लों को तबाह कर देती हैं , युगों के लिए ।


हिंदी अंतर्जाल के विभिन्न प्लेटाफ़ार्मों पर , सभी अपनी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं , लेकिन इसी बीच मैं फ़ेसबुक पर अचानक नज़र पडती है , सुनीता भास्कर , पेशे से पत्रकार ,
जिनका ब्लॉग ही है , पत्रकार की डायरी और जितना मैं पढता जाता हूं दिल दिमाग सन्न होते जाते हैं ,

अपनी ताज़ा रिपोर्ट में वे लिखती हैं ,
" कईयों के परिजन खुद जान हथेली में रखकर ग्रुप में गुप्तकाशी या गौरीकुंड तक हो आए हैं, लेकिन उन्हें अपने कहीं नजर नहीं आए। कई परिजन चार चार हिस्सों में बंटे हैं। संगठनों द्वारा रात गुजारने के लिए दिए आशियाने से मुंह अंधेरे ही यह लोग उठ जाते हैं और चारों दिशाओं में फैल जाते हैं। एक सहस्त्रधारा हैलीपैड पर तो दूजा जौलीग्रांट एयरपोर्ट के गेट के बाहर अड्डा डालता है। तीसरा ऋषिकेश तो चौथा हरिद्वार में अपनों के इंतजार में खड़ा हो जाता है। उन्हें नहीं मालूम कि बचाव व राहत कार्य के बाद कौन किस रास्ते कब व कहां लाया जाएगा। कुछ लोग सभी अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं तो कोई दिन भर कैफे में सरकारी वेबसाइट खंगालते रहते हैं। आलम यह है कि मुंह अंधेरे की सुबह से शाम की कालिमा छंटने तक कोई भी मंत्री, अधिकारी उनके कांधे पर हाथ रख दिलासा देने वाला नहीं है। इसके उलट यह अधिकारी फोन स्वीच आफ कर वातानुकुलित कमरो में रहकर  उनके जले पर नमक ही छिडक़ने का काम कर रहे हैं।"


इस त्रासदी के आठ दिनों बाद कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी के आपदाग्रस्त क्षेत्र के दौरे पर कटाक्ष करते हुए गोदियाल जी अपने ब्लॉग अंधड पर लिखते हैं ,

"निकले तो थे गुपचुप दर्द बांटने 
बाढ़ पीड़ितों का,  
दर्मियाँ सफर तो भेद उनका 
किसी पे उजागर न हुआ, 
 मगर खुला भी तो कब, 
जब मंजिल पे वो पूछ बैठे;  
"आखिर इस जगह हुआ क्या था ?"


और इसके बाद शिवम मिश्रा जी ने एक पोस्ट लिंक प्रेषित की , जिसमें नित्यानंद जी ने बडे ही मार्मिक रूप से , पहाड की मां ’ को चित्रित किया है देखिए ,


पहाड़ की माँ ---------------


सीता 
पांच बच्चों की माँ है 
पार चुकी है पैंतालीस वर्ष 
जीवन के 
दार्जिलिंग स्टेशन पर 
करती है कुली का काम 
अपने बच्चों के भविष्य के लिए |


सिर पर उठाती है
भद्र लोगों का भारी -भारी सामान
इस भारी कमरतोड़ महंगाई में
वह मांगती है
अपनी मेहनत की कमाई
बाबुलोग करते उससे मोलभाव
कईबार हड़तालों में
मार लेती है पेट की भूख |


ब्लॉगर प्लेटफ़ार्म के अतिरिक्त , जागरण जंक्शन और नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स जैसे अन्य प्लेटफ़ार्मों पर भी यही विषय सबसे ज्यादा मथा जा रहा है , देखिए वहां यतीन्द्रनाथ , टिहरी बांद और हिमालय को मुद्दा बनाते हुए कहते हैं

"
1972 में योजना आयोग द्वारा टिहरी बाँध परियोजना को मंजूरी के साथ ही टिहरी और आस-पास के इलाके में बाँध का व्यापक विरोध शुरू हो गया था। जब विरोध के स्वर तत्कालीन केंद्र सरकार तक पहुंचा तब संसद की ओर से इन विरोधों की जांच करने के लिए 1977 में पिटीशन कमेटी निर्धारित की गई।1980 में इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने बाँध से जुड़े पर्यावरण के मुद्दों की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाई। इस समिति ने बाँध के विकल्प के रूप में बहती हुई नदी पर छोटे-छोटे बाँध बनाने की सिफ़ारिश की। पर्यावरण मंत्रालय ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के बाद अक्टूबर,1986 में बाँध परियोजना को एकदम छोड़ देने का फैसला किया। नवंबर, 1986 में तत्कालीन सोवियत संघ सरकार ने टिहरी बाँध निर्माण में आर्थिक मदद करने की घोषणा की। इसके बाद फिर से बाँध निर्माण कार्य की सरगर्मी बढ़ने लगी। फिर बाँध से जुड़े मुद्दों पर मंत्रालय की ओर से समिति का गठन हुआ। फरवरी, 1990 में इस समिति ने बाँध स्थल का दौरा करने के बाद रिपोर्ट दी कि “टिहरी बाँध परियोजना पर्यावरण के संरक्षण की दृष्टि से बिलकुल अनुचित हैं।”

 वहीं ब्लॉगर श्री जे एल सिंह , अपने ब्लॉग में बरसात से बर्बादी , को शब्दों में कुछ यूं पिरोते हैं ,
"

सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.
भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.
पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.
बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!
रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई
अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा "

नवभारत टाइम्स ब्लॉगस पर राजेश कालरा कहते हैं कि अब कभी सामने नहीं आ पाएगी सच्चाई

"बर्बादी के जितने भी अंदाजे लगाए जा रहे हैं, उनमें एक बात विशिष्ट है। मरने वालों की तादाद। शुरुआत 200 लोगों की मौत से हुई थी। फिर उत्तराखंड के सीएम ने कहा कि एक हजार लोग मरे हैं। फिर राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री ने कहा कि मरने वालों की तादाद 5000 तक पहुंच सकती है। अब अंदाजे लगाने का तो ऐसा है कि जिसका जो जी करे उतनी संख्या बता दे। समस्या यह है कि सभी अंधेरे में तीर चला रहे हैं क्योंकि सचाई यह है कि हमें कभी पता नहीं चलेगा कि असल में कितने लोग मारे गए।"

तो डाक्टर सामबे , आपदा प्रबंधन पर सवाल उठाते हुए कहते हैं , " 

kedarnath1.jpgईश्वर-अल्लाह पर हम आगे विचार करेंगे। पहले एक साधारण-सी बात कहते हैं और वह यह कि जो खतरों से खुद को बचाता है, खुदा उसी को बचाता है। अंग्रेजी कहावत है- 'God helps those who help themselves'। हम नदी, झील, पहाड़ और समुद्र के समीप जाएं, तो राम भरोसे न जाएं। अपनी समझदारी साथ लेकर जाएं। वहां की भौगोलिक स्थिति और संभावित खतरों के बारे में सजग होकर जाएं। यह पता करके जाएं कि अगर वहां आफत आई, तो वहां बचाव की क्या व्यवस्था है? वहां का आपदा प्रबंधन का रेकार्ड क्या है? हादसों के रेकार्ड आनेवाले खतरों से निपटने में मददगार होते हैं। कुदरत के कहर से बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं?"

वहीं ब्लॉगर तृप्ति अपने ब्लॉग कच्ची लोई में कहती हैं कि बारी हमारी भी बहुत जल्दी आनी है , अपनी पोस्ट को समाप्त करते हुए वो कुछ पंक्तियां लिखती हैं , 

"

तरक्की कर रहे हैं हम तरक्की करते जाएंगे
बहुत कुछ खो चुके हैं हम बहुत कुछ खोते जाएंगे
हैं जिंदा हम बड़ी बेशर्म सांसों के सहारे पर
मरेगा सामने वाला मगर हम जीते जाएंगे
कहानी सामने वाले की अपनी भी कभी होगी
वही तब आसमां होगा वही तब ये जमीं होगी
जो समझो बात इतनी सी तो फिर हर बात छोटी है
नहीं तो चाह में जीने की हम बस मरते जाएंगे..."

इधर पिछले दिनों ब्लॉगिंग में भी भूस्खलन का दौर जारी है , यानि कि उठापटक जी , अविनाश वाचस्पति जी ने अपने ब्लॉग को ही अलविदा करने का मन बना लिया , या शायद कह ही दिया और घोषणा कर डाली कि अब वे सिर्फ़ फ़ेसबुक पर ही नुमाया होंगे , इसी उहापोह में डाक्टर अरविंद मिश्रा जी की पोस्ट आई और क्या लबाबल बहस से लबरेज हो गई पोस्ट देखिए , डा मिश्रा ने लिखा ,
"वे पिछडे हैं जो ब्लॉगिंग तक ही सिमटे हैं " , जिसमें उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि ,
" आज भी मैं यह बल देकर कहता हूँ कि फेसबुक में ब्लागिंग से ज्यादा फीचर्स हैं और यह ब्लागिंग की तुलना में काफी बेहतर है .बहुत ही यूजर फ्रेंडली है . अदने से मोबाईल से एक्सेस किया जा सकता है .भीड़ भाड़ ,पैदल रास्ते ,बस ट्राम ट्रेन ,डायनिंग -लिविंग रूम से टायलेट तक आप फेसबुक पर संवाद कर सकते हैं . ज़ाहिर है यह सबसे तेज संवाद  माध्यम बन चुका है . महज तुरंता विचार ही नहीं आप बाकायदा पूरा विचारशील आलेख लिख  सकते हैं और गंभीर विचार विमर्श भी यहाँ कर सकते हैं। आसानी से कोई भी फोटो अपडेट कर सकते हैं . वीडियो और पोडकास्ट कर सकते हैं . ब्लॉगर मित्र तो इसे अपने ब्लॉग पोस्ट को भी हाईलायिट करने के लिए काफी पहले से यूज कर रहे हैं .यह पोस्ट भी वहां दिखेगी ही ...." 

जब पोस्ट इतनी धारदार, वारदार हो तो फ़िर प्रतिक्रिया तो आनी ही थी और क्या खूब आईं देखिए , 




  1. ब्लॉग अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। इसकी प्रासंगिगता कभी खत्म नहीं होगी।

    फ़ेसबुक और ट्विटर तुरंता जुमलेबाजी के माध्यम हैं। फ़ेसबुक मेरे लिये नोटिसबोर्ड की तरह है जहां अपने ब्लॉग की नोटिस लगाते हैं, जुमलेबाजी करते हैं, फ़ूट लेते हैं। ब्लॉग हमारे लिये घर की तरह है जहां हमेशा लौटने का, रहने का मन करता है।

    लिखने वाले की सबसे बड़ी इच्छा होती है कि लोग उसे पढ़ें और सराहें। प्रिंट मीडिया में छपना वाह-वाही समझी जाती हैं क्योंकि ब्लॉग के मुकाबले ज्यादा लोग पढ़ते हैं उसे। प्रिंट भले ही खबरों के लिये आउटडेटेड हो गया हो लेकिन बाकी लिखे पढ़े के लिये उसमें छपने का मजा ही कुछ और है। इसे स्वीकारने में कोई संकोच नहीं करना चाहिये।

    लेकिन प्रिंट मीडिया की अपनी सीमायें हैं। अगर आप बहुत बड़े सेलिब्रिटी नहीं हैं तो आपका लिखा सब कुछ वहां नहीं छप जायेगा। आपके अपने मन के भाव, उद्गार, संस्मरण , चिरकुटैयों, अपीलों , धिक्कार के लिये वहां कोई जगह नहीं होगी। उसके लिये आपको लौट के अपने यहां ही आना होगा और उसके लिये ब्लॉग से उपयुक्त कोई माध्यम नहीं है।

    ब्लॉगिंग ने आम लोगों को अभिव्यक्ति का जो सहज माध्यम प्रदान किया है उसकी तुलना और किसी माध्यम से नहीं हो सकती। लोग अपने भाव, कवितायें, सोच, संस्मरण अपने ब्लॉग पर लिखते हैं। ट्विटर पर शब्द सीमा है, फ़ेसबुक पर सर्चिंग लिमिटेशन। ब्लॉग पर आप अपनी सालों पहले की किसी भी पोस्ट पर डेढ़ -दो मिनट में पहुंच सकते हैं, फ़ेसबुक अपना दस दिन पुराना स्टेटस खोजने में भी घंटा लग सकता है। ब्लॉग जैसी आजादी और सुविधा और कहां?

    इस बीच एक घालमेल और हुआ है कि, ब्लॉग जो कि अभिव्यक्ति का माध्यम है और जिसकी कोई सीमा नहीं है को, साहित्यप्रेमियों और पत्रकार बिरादरी ने हाईजैक जैसा करके इसको साहित्यमंच या फ़िर पत्रकारपुरम जैसा बनाने की कोशिश करके इसको सीमित करना शुरु कर दिया है। जबकि ऐसा है नहीं- ब्लॉग आज के समय में दुनिया का सबसे तेज दुतरफ़ा माध्यम है। लेखक/पाठक के बीच अभिव्यक्ति और प्रतिक्रिया का इससे तेज और कोई खुला माध्यम नहीं है।

    ब्लॉग और फ़ेसबुक से पैसे कमाने की बात जो करते हैं वे लहरें गिनकर भी पैसा कमा सकतें हैं। उसके लिये व्यक्ति को लेखन सक्षम नहीं कमाई सक्षम होना चाहिये। पैसे कमाने और नाम कमाने और इनाम जुगाड़ने के लिये भी लोग तरह-तरह की तिकड़में लगानी होती हैं। वे सब आम आदमी के बस की नहीं होती।

    मैं ब्लॉग लेखन से क्यों जुड़ा हूं उसका यही कारण है कि अपनी तमाम अभिव्यक्तियों के लिये ब्लॉग ही सबसे मुफ़ीद माध्यम है। और कोई माध्यम इतना सहज और सुगम नहीं है जितना कि ब्लॉग। इसीलिये अपन इससे जुड़े हैं और इंशाअल्लाह जुड़े रहेंगे। आप भी यह पोस्ट सिर्फ़ ब्लॉग पर ही लिख सकते थे। लिख तो फ़ेसबुक पर भी सकते थे लेकिन अगर वहां लिखते तो हम इत्ता लंबा कमेंट वहां नहीं लिखते। रात को पढ़कर लाइक करके फ़ूट लिये होते। आपकी तमाम बहस-विवाद वाली तमाम पोस्टें जो ब्लॉग पर हैं वे हम फ़ौरन खोजकर पढ़ सकते हैं। फ़ेसबुक और दूसरे तुरंता माध्यमों पर -इट इज हेल ऑफ़ द टॉस्क! :)

    समय के साथ लोगों की धारणायें भी बदलती हैं। डेढ़ साल पहले हमने एक पोस्ट लिखी थी - ब्लॉगिंग, फ़ेसबुक और ट्विटर . उस पर आपका कहना था- ब्लॉग जगत में निश्चय ही एक मरघटी का माहौल बन रहा है ..हमें कोई खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए ….

    इसी पोस्ट पर आपके घोषित शिष्य संतोष त्रिवेदी की टिप्पणी थी- फेसबुक की लत छूट चुकी है,ट्विटर पर यदा-कदा भ्रमण कर लेते हैं पर ब्लॉगिंग पर नशा तारी है ! जब तक खुमारी नहीं मिटती,लिखना और घोखना जारी रहेगा !

    आज की स्थिति में ब्लॉग के प्रति आपका लगाव बरकरार है। और आपने लिखा भी -अपने आब्सेसन के चलते ब्लागिंग का दामन थामे हुए हैं मरघट में किसी का इंतजार करेंगे कयामत तक। संतोष त्रिवेदी उदीयमान ब्लॉगर से ब्लॉगिंग में अस्त से हो चुके हैं। फ़ेसबुक की लत दुबारा लगा गयी है। प्रिंट मीडिया में घुसड़-पैठ शुरु है और काफ़ी जम भी गयी है। आगे और जमेगी, जमे शुभकामनायें।

    जो सूरमा ब्लॉग को पिछड़ा बताकर फ़ेसबुक और ट्विटर पर जाने की बात कह रहे हैं उनको यह याद रखना चाहिये कि उनकी पहचान अगर है, कुछ लोग उनको जानते हैं तो वह सब एक ब्लॉगर होने के चलते है। वर्ना फ़ेसबुक और ट्विटर में अनगिन लोगों के हजारों, लाखों फ़ालोवर होंगे। कौन जानता है उनको?

    और किसी का पता नहीं लेकिन अपन ब्लॉगिंग अपन के लिये घर जैसा लगता है। जितनी सहजता यहां हैं मुझे उतना और कहीं नहीं। इसीलिये अपन ब्लॉगिंग से जुड़े हैं और लगता है कि आगे भी जुड़े सहेंगे।
    प्रत्‍युत्तर दें
    उत्तर
    1. अनूप जी ,
      प्रिंट मीडिया की व्याप्ति /पहुंच अब बहुत सीमित भौगोलिक क्षेत्रों तक रह गई है ! सोशल मीडिया वैश्विक है!
      भारत की किसी भी पत्रिका /समाचार पत्र की कितने दूर तक पहुँच है ?
    2. प्रिंटमीडिया की भौगोलिक व्याप्ति सिमटी है लेकिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के कंधे पर चढ़कर तो अभी भी यह दुनिया जहान तक पहुंचती है। :)
 और अभी तो प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है ,

चलिए अब चलते चलते आपको कुछ एक लाइना पोस्ट लिंक थमाए देते हैं ,

१.पढ लें धनुष के बारे में : सिलेमा इसके बाद देख लीजीएगा

२.जो तेरा है वो मेरा है : फ़िर क्यों चिंताओं ने घेरा है

३.उत्तराखंड के संकट में लोकतंत्र लापता :  न लोक का ही न ही तंत्र का है पता

४.जिंदगी यूं ही कटती रही : धूप छांव सी सिमटती रही

५.विंडो ८ में लगाएं विंडो ७ जैसा स्टार्ट बटन : और स्टार्ट करते ही पोस्ट लिखें :)

६.संजय जी कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए : जी आप सीरीयल देखते जाइए

७.राहुल बाबा का जन्मदिन बडा या मदद : अकल बडी या भैंस :)

८.पीने में रम गया है मन : रम का नाम सुनके ही मन हुआ प्रसन्न :)

९.ये आपदा सीख भी देती है : मगर हम कतई नहीं लेते , आदत से मजबूर

१०.आज का प्रश्न : हल करिए जी

चलिए आज के लिए इतना ही फ़िर मिलते हैं , नई बुलेटिन में , नए ब्लॉग पोस्टों और नई प्रतिक्रियाओं को समेटे हुए , तब तक उत्तराखंड पीडितों के लिए दुआ करते रहें , पढते रहें , लिखते रहें ।

शुक्रिया .....................

8 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्त मजा आ गया इतने विस्तृत कलेवर की पोस्ट पढ़वाई मुखपत्रा /मुख चिठ्ठा बनाम चिठ्ठा बहस पढ़वाई सब कुछ निहायत रोचक मय सेतु खबरों के .ॐ शान्ति .

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  2. आज के जमाने मे पेड़ न्यूज अखबारो मे पढ़ने मिलती है जिसमे सच्चाई को छुपाया जाता है तो टीवी पर झूठे भारत निर्माण को दिखाया जाता है
    मगर
    एक ब्लॉग बुलेटिन है जिसमे सच्ची ओर विस्तृत खबर मिलती है
    पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम का हृदयपूर्वक आभारी हु

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  3. अजय भाई जहां एक तरफ उत्तराखंड में राहत आौर बचाव के दौरान हेलीकॉप्टर क्रैश में अपने साथियों को खो देने के बाद भी सेना के जवान लोगों को बचाने में जी-जान से जुटे हैं वहीं दूसरी तरफ राहत कार्य का श्रेय लेने के होड़ में नेता लोग आपस में लड़ने पर उतारू हो गए हैं। उत्तराखंड में फंसे आंध्रप्रदेश के लोगों को सुरक्षित निकाले का श्रेय लेने के चक्कर में बुधवार को कांग्रेस और टीडीपी के नेता आपस में भिड़ गए। खबरों मे दिखाया गया कैसे कांग्रेस नेता हनुमंत राव और टीडीपी नेता रमेश राव के बीच देहरादून के जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर गाली-गलौज तथा हाथापाई हो गई।

    इन बेशर्म नेताओं को सेना के जवानों से सबक लेना चाहिए जहां एक तरफ सेना के बड़े से बड़े अधिकारी भी इस समय राहत कार्यों मे जी जान से जुटे है दूसरी ओर यह स्वार्थी नेता है जो आपदा के समय भी अपनी राजनीति चमकने मे जुटे है !

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  4. आभार आपका, पोस्ट को शामिल करने हेतु...आपदा के बारे में अपने आपमें ये एक दस्तावेज़ बन गया है..काश इतना सब देखने, पढने के बाद भी कुछ सीख सकें..

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!