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रविवार, 9 जून 2013

कभी तो आदमी बन जाओ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

एक बार गर्मी में मौसम में एक मजदुर को एक सेठ के दूकान पर बहुत भारी वजनी सामान लेकर जाना था
बेचारे मजदुर का चिलचिलाती धुप, गर्मी और प्यास के कारण
बुरा हाल हो रहा था....

बहुत दूर तक चलने के बाद आखिर दूकान आ गयी और सारा सामान उतार कर उस मजदुर को कुछ राहत मिली तब भी उसे बहुत जोरो से प्यास लगी थी.

उसने सेठजी को कहा...' सेठ जी थोडा पानी पिला दो...'
सेठ आराम से अपने गद्दी पर बैठे ठंडी हवा का आनंद उठा रहे थे,
उन्होंने इधर-उधर देखा और अपने नौकर को आवाज लगायी ...
काफी देर तक नौकर नहीं आया ...,

मजदुर ने फिर कहा सेठ जी पानी पिला दो ......,
सेठ जी ने कहा :
रुको अभी मेरा आदमी आये तो वह तुम्हे पानी पिला देगा......
कुछ और समय बीता..
बार-बार मजदुर की नज़रें ठन्डे पानी के मटके पर जा रही थीं ।
प्यास से बेहाल उसने अपनी सूखे होठो पर जुबान फेरते हुए कहा:
सेठ जी बहुत प्यास लगी है .. पानी पिला दो ...

सेठ जी झल्ला कर उसे डांटने लगे ..
थोडा रुक जा न अभी मेरा आदमी आएगा और पिला देगा तुझे पानी....

प्यास से बेहाल मजदूर बोला :
सेठ जी कुछ समय के लिए आप ही "आदमी" बन जाओ न ..!!!


सादर आपका 

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" स्कूल कैसा हो ...............प्रथम भाग "

*बच्चों की शिक्षा के चार भाग कहे जा सकते हैं :* *१. नर्सरी से कक्षा ५ तक -प्रथम भाग * *२. कक्षा ६ से कक्षा १० तक -द्वितीय भाग * *३. कक्षा ११ से कक्षा १२ तक -तृतीय भाग * *४. जीवन यापन हेतु शिक्षा -अंतिम भाग * *इस पोस्ट में चर्चा प्रथम भाग की :* बच्चे की प्रथम किलकारी के साथ ही माँ बाप उसके सुनहरे भविष्य के सपने संजोने लगते हैं । अब तो दो या तीन वर्ष की आयु होते ही स्कूलों में प्रवेश की मारा मारी प्रारम्भ हो जाती है । आज की तारीख में स्कूल एक उद्योग की तरह पनप रहा है । स्कूल वालों को आपसे या आपके बच्चे से कोई सरोकार नहीं । वे भी समाज में स्थापित सबल और प्रभावशाली लोगों के बच्चों को अ... more »

कौन्तेय तुम्हें कहना होगा .....

udaya veer singh at उन्नयन (UNNAYANA)
* **कौन्तेय तुम्हें कहना होगा ..... * * **मुझे जन्म मिले या मोक्ष इतर * *जब तक बसुधा पररहना होगा * *स्थान दिया यदि कोख मुझे * *कौन्तेय तुम्हें कहना होगा- * * * *ज्ञात नहीं अपराध हमारा * *क्यों जीवन अभिशप्त हुआ * *पल पल भींगा है त्याज्य तेरा* *हृदय ज्वाल में दग्ध हुआ -* * * *आ, त्याग भव्य प्रासादों को * *मेरे झोपड़ में रहना होगा -* * * *मैं कह सकूँगा ,तूं मां मेरी ,* *तुम पुत्र मुझे , एक बार कहो ,* *मैं भी तो तेरा जाया हूँ * *अब भरी सभा स्वीकार करो -* * * *ममता - माया दो राहों से * *कोई एक तुम्हें चुनना होगा-* * * *त... more »

बात कुछ भी हो बेरुखी से न पेश आया जाये ..

sunil..... at different stroks
* ** **किसी पे हकीक़तो को यू ना जताया जाये ,* *बात कुछ भी हो बेरुखी से न पेश आया जाये ..* * **यकबयक होश भी खो सकती हैं ये दीवानगी ,* *रुख से चिलमन अहिस्ता अहिस्ता हटाया जाये .* * **दुनियाए मोहब्बत के अपने अलग उसूल हैं,* *सबरी के जूठे बेर भी बड़े चाव से खाया जाये ..* * **मनमानी के जज्बातों में भी कोई शबाब हैं,* *बात तो जब हैं ,मज़बूरी को भी हसके निभाया जाये ..* * **तन्हाई ए मुल्के परदेश भी एक सबक हैं ,* *मेहनत के चूल्हे पे आस के उसूलो को पकाया जाये ..* * **क्यों राम रहीम चलने लगे हैं साथ साथ ,* *चलो फिर किसी मस्जिद को गिराया जाये .....*

यादों का पुल

जब हम मिले वर्षों बाद सामने था यादों का पुल लटकता हुआ हमारी जिंदगी के दो छोरों से जिस पर चल कर हमें मिलना था और फिर इस पार या उस पार जिंदगी को आगे बढ़ाना था कितना खतरनाक लगता था एक कदम बढ़ाते ही पुल के टूटने का डर गिर कर बिखरने का डर रोंगटे खड़े करने वाला भविष्य का डर पर डर के आगे ही तो जीत होती है और अब तक की जिंदगी में हार न तुमने मानी थी न मैंने तभी तो खड़े थे यादों के पुल के दो तरफ हौसला देख कर एक दूजे को अपने आप बढ़ गया सांसों की गति को थामे हमारा कदम पुल पर बढ़ गया वह हिला जोरों से चरमराया पर हमारे कदमों को रोक न पाया और हार गया हमारी हिम्मत और साहस के आगे जीत का जश्न ... more »

मत संहार करो वृक्षों का

ऋता शेखर मधु at मधुर गुंजन
५ जून विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है... *मत संहार करो वृक्षों का* श्मशानी निस्तब्धता छाई है उभरी दर्द भरी चहचहाहट नन्हें-नन्हें परिंदों की, शायद उजड़ गया था उनका बसेरा मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे| गुजर रही थी लम्बे रास्ते से गूँजी एक सिसकी नज़रें दौड़ाईं इधर उधर थके हारे पथिक की कराहट थी, शायद छिन गया था विशाल वृक्ष की छाया मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे| जा रही थी पगडंडी से किनारे की फ़ैली ज़मीं पे पाँव रखा ज्योंहि दरकने की आवाज़ आई ये धरती की फटी दरारें थीं चरमरा कर फटी धरती दरारें भरे कैसे आकाश ने बरसना छोड़ दिया था आकाश बरसे भी कैसे मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे| अचानक... more »

सुनो ! मै गांधारी नहीं हूँ ...

सुनो ! मै गांधारी नहीं हूँ ----------------------------------- सदियाँ गुज़र गई समय बदल गया पर तुम्हारी अपेक्षा वही रही कहा न मै गांधारी नहीं हूँ मै सीता भी नहीं हूँ ---------- सीता ने नहीं देखा किसी को सिवा राम के ------ मैने तो सिनेमा के नायकों की कितनी तारीफ़ तुमसे ही की फिर तुम भी तो राम नहीं हो मुझसे ये अपेक्षा क्यूं ?? मै औरत हूँ हाड़ मांस बनी अपना अस्तित्व भी बचाने की कोशिश कर रही हूँ फिर अपना व्यक्तित्व भी तो खोजना है मुझे संबंधों का खेल ही तो है रिश्तों का जंगल है औरत का जीवन ----- रोम रोम पल पल का हिसाब मांगा जाता है यहाँ अगर नकार दिया तो हंगामा मीरा को भी विष का प्याला मिला कोई... more »

दीदारे-यार

Dr.NISHA MAHARANA at Tere bin
दिल से दिल मिले तो .... प्यार होता है दिलो - दिमाग मिले तो ..... दीदारे-यार होता है

गीत

गीत अभिव्यक्ति है कवि के अन्तर्मन की कवि के हर क्षण जीये हुए जीवन की जो शब्दों में ढलकर कलम के नोक पर परिमार्जित होकर मन की भावना के भाव सहेजता से कागज पर ढ़लकर बन जाता है एक गीत जब मन भावनाओं के पंख लगा कर ह्रदय के विशाल क्षेत्र पटल पर सुख दुःख लाभ हानि सभी संवेदनाएं को समेट कर अपने दिल में सृजन करता है एक खट्टी मीठी दास्तान जो शब्दों में थिरकते हुए बन जाता है एक गीत ये गीत महक उठते हैं जब भी कभी इसे पुकारते हैं तो हमारे करीब आ खड़ा हो जाता है उसी एहसास को लेक... more »

इस समय जो दिमाग में आया, वो बाहर निकाला

वर्तमान को पकड़नेवाले कहते हैं बीती बातों-घटनाओं को थाम कर क्‍या करना। कब तक उन्‍हें याद रखें, उन पर बात करें, उन्‍हें रोने-धोने का विषय बनाएं। आज मैं आप लोगों को अगस्‍त २०११ के अन्‍ना आंदोलन, रामलीला मैदान दिल्‍ली का नजारा याद कराऊं। मैं स्‍वयं यहां एक दो दिन उपस्थित था। लोगों के नारे, आक्रोश,राष्‍ट्र भावना देख कर सहसा किसी को भी यकीन नहीं हो सकता था कि इससे पहले भी कुछ इस तरह रहा होगा या इसके बाद भी कुछ ऐसा होगा। बदलाव की तैयारी में भिंची मुटि्ठयां हवा में लहरा रही थीं। राष्‍ट्रभक्ति से ओतप्रोत नारों-गीतों-भजनों की आवाज कानों में पड़ती तो मानो हर नौजवान खुद को शहीद भगत सिंह, चन्‍द्र... more »

छत्‍तीसगढ़ी महागाथा : तुँहर जाए ले गिंयॉं

Sanjeeva Tiwari at आरंभ Aarambha
छत्‍तीसगढ़ी गद्य लेखन में तेजी के साथ ही छत्‍तीसगढ़ी में अब लगातार उपन्‍यास लिखे जा रहे हैं। ज्ञात छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यासों की संख्‍या अब तीस को छू चुकी है। राज्‍य भाषा का दर्जा मिलने के बाद से छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य की खोज परख में भी तेजी आई है। इसी क्रम में कोरबा के वरिष्‍ठ साहित्‍यकार कामश्‍वर पाण्‍डेय जी के द्वारा रचित छत्‍तीसगढ़ी महागाथा ‘तुँहर जाए ले गींयॉं’ को पढ़ने का अवसर मुझे प्राप्‍त हुआ। वर्तमान छत्‍तीसगढ़ के गॉंवों में व्‍याप्‍त समस्‍याओं, वहॉं के रहवासियों की परेशानियों एवं गॉंवों से प्रतिवर्ष हो रहे पयालन की पीड़ा का चित्रण इस उपन्‍यास में किया गया है। आधुनिक समय में भी ... more »

दिमाग़ और समझ से ही जीवन नहीं चला करता

समय अविराम at समय के साये में
*हे मानवश्रेष्ठों*, काफ़ी समय पहले एक *युवा* मित्र मानवश्रेष्ठ से *संवाद* स्थापित हुआ था जो अभी भी बदस्तूर बना हुआ है। उनके साथ कई सारे विषयों पर लंबे संवाद हुए। अब यहां कुछ समय तक, उन्हीं के साथ हुए *संवादों के कुछ अंश* प्रस्तुत किए जा रहे है। आप भी इन अंशों से कुछ गंभीर इशारे पा सकते हैं, अपनी सोच, अपने दिमाग़ के गहरे अनुकूलन में हलचल पैदा कर सकते हैं और अपनी समझ में कुछ जोड़-घटा सकते हैं। संवाद को बढ़ाने की प्रेरणा पा सकते हैं और एक दूसरे के जरिए, सीखने की प्रक्रिया से गुजर सकते हैं। ------------------------------ दिमाग़ और समझ से ही जीवन नहीं चला करता सिर्फ़ पैसे के ल... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्रेरक कथा ...जो जान है इस बुलेटिन की
    शुक्रिया बढ़िया लिंक के संकलन के लिए भी .....

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  2. सेठ जी कुछ समय के लिए आप ही "आदमी" बन जाओ न ....
    बात कुछ भी हो बेरुखी से न पेश आया जाये ....
    जो दिमाग में आया, वो बाहर निकाला ....
    दिमाग़ और समझ से ही जीवन नहीं चला करता ....
    तो फिर
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. बहुत बढ़िया ...."आदमियों" का आकाल पड़ा है इन दिनों !!!

    लिंक्स भी अच्छे..
    सस्नेह
    अनु

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  4. कहानी बहुत अच्छी...लिंक्स भी अच्छे|
    ....आभार !!

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  5. मुझे तो आदमी ही बना कर भेजा है भगवान् ने .... और सेठ मैं अभी तक बना नहीं तो मुझे तो किसी से कोई भी और कैसी भी आपत्ति नहीं | मैं बखूबी पानी पिलाने में सक्षम हूँ | जिसे जब भी जैसी भी प्यास लगे मुझे बता दे मैं मदद कर दूंगा | बहुत शानदार सीख और लाजवाब बुलेटिन | जय हो भैया जी |

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  6. आदमी बनना आसान नहीं .... लिंक्स काफी अच्छे

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  7. प्रेरक कथा सहित बहुत ही उपयोगी लिंक्स, आभार.

    रामराम.

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  8. कहानी सिखाती है कि "इंसान बनना कठिन है।"
    सुन्दर बुलेटिन शिवम भाई,,,। :)

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  9. सारे लिंक्स अच्छे... कहानी में सेठ धूर्त... मेरे पोस्टको शामिल करने के लिए आभार .

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  10. सेठ आदमी बन जाते तो रोना ही क्या था ..
    बहुत बढ़िया सन्देश और बढ़िया लिनक्स भी.

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  11. जय हिन्द !!!

    ऐसे सेठ आदमी नही बन सकते ....सुन्दर सभा

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