प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
आज १५ मई है ... आज अमर शहीद सुखदेव जी की १०६ वीं जयंती है ! सुखदेव जी का जन्म पंजाब के शहर लायलपुर में श्रीयुत् रामलाल थापर व
श्रीमती रल्ली देवी के घर विक्रमी सम्वत १९६४ के फाल्गुन मास में शुक्ल
पक्ष सप्तमी तदनुसार १५ मई १९०७ को अपरान्ह पौने ग्यारह बजे हुआ था । जन्म
से तीन माह पूर्व ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण इनके ताऊ अचिन्तराम
ने इनका पालन पोषण करने में इनकी माता को पूर्ण सहयोग किया। सुखदेव की
तायी जी ने भी इन्हें अपने पुत्र की तरह पाला। इन्होंने भगत सिंह, कॉमरेड
रामचन्द्र एवम् भगवती चरण बोहरा के साथ लाहौर में नौजवान भारत सभा का गठन
किया था ।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये जब योजना बनी तो साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का पूरा साथ दिया था। यही नहीं, सन् १९२९ में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किये जाने के विरोध में राजनीतिक बन्दियों द्वारा की गयी व्यापक हड़ताल में बढ-चढकर भाग भी लिया था । गांधी-इर्विन समझौते के सन्दर्भ में इन्होंने एक खुला खत गांधी जी के नाम अंग्रेजी में लिखा था जिसमें इन्होंने महात्मा जी से कुछ गम्भीर प्रश्न किये थे। उनका उत्तर यह मिला कि निर्धारित तिथि और समय से पूर्व जेल मैनुअल के नियमों को दरकिनार रखते हुए २३ मार्च १९३१ को सायंकाल ७ बजे सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी पर लटका कर मार डाला गया। इस प्रकार भगत सिंह तथा राजगुरु के साथ सुखदेव भी मात्र २३वर्ष की आयु में शहीद हो गये ।
जैसा कि मैंने पहले बताया गांधी-इर्विन समझौते के सन्दर्भ में सुखदेव जी ने एक खुला खत गांधी जी के नाम अंग्रेजी में लिखा था गांधी जी को लिखे गए उस पत्र का हिन्दी अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ - जरूर पढ़ें !
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये जब योजना बनी तो साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का पूरा साथ दिया था। यही नहीं, सन् १९२९ में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किये जाने के विरोध में राजनीतिक बन्दियों द्वारा की गयी व्यापक हड़ताल में बढ-चढकर भाग भी लिया था । गांधी-इर्विन समझौते के सन्दर्भ में इन्होंने एक खुला खत गांधी जी के नाम अंग्रेजी में लिखा था जिसमें इन्होंने महात्मा जी से कुछ गम्भीर प्रश्न किये थे। उनका उत्तर यह मिला कि निर्धारित तिथि और समय से पूर्व जेल मैनुअल के नियमों को दरकिनार रखते हुए २३ मार्च १९३१ को सायंकाल ७ बजे सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी पर लटका कर मार डाला गया। इस प्रकार भगत सिंह तथा राजगुरु के साथ सुखदेव भी मात्र २३वर्ष की आयु में शहीद हो गये ।
जैसा कि मैंने पहले बताया गांधी-इर्विन समझौते के सन्दर्भ में सुखदेव जी ने एक खुला खत गांधी जी के नाम अंग्रेजी में लिखा था गांधी जी को लिखे गए उस पत्र का हिन्दी अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ - जरूर पढ़ें !
अमर शहीद सुखदेव जी की १०६ वीं जयंती
आज अमर शहीद सुखदेव जी की १०६ वीं जयंती पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते है !
सादर आपका
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रौशनी है चराग जलने तक
*फना** **हो** **जाएगे** **सम्हलने** **तक** *** *कौन** **जीता** **है** **रुत** **बदलने** **तक** *** *जश्न** **कर** **जिंदगी** **के** **हमराही** *** *साथ** **है** **रास्ता** **बदलने** **तक** *** *पढ़** **भी** **लो** **उम्र** **के** **हसीं** **सफहे** * *रौशनी** **है** **चराग** **जलने** **तक** *** *अश्क** **आँखों** **में** **रोक** **कर** **रखना** *** *लाजमी** **है** **ये** **रात** **ढलने** **तक** *** *धुंध** **से** **भरा** **है** **सारा** **आलम** *** *वो** **भी** **है** **सिर्फ** **आंख** **मलने** **तक** *** * (16/2/2010-**अनु**)*
संवेदनशील चिंतक का चला जाना
*डा.असगर अली इंजीनियर का देहावसान* एक मूर्धन्य विद्वान. निर्भीक मैदानी कार्यकर्ता और संवेदनशील चिंतक का चला जानाअभी कुछ समय पहले, डा. असगर अली इंजीनियर की आत्मकथा प्रकाशित हुई थी। आत्मकथा का शीर्षक है *'आस्था और विश्वास से भरपूर जीवन शांति, समरसता और सामाजिक परिवर्तन की तलाश'* । आत्मकथा का यह शीर्षक असगर अली इंजीनियर की जिंदगी का निचोड़ हमारे सामने प्रस्तुत करता है। मैं असगर अली को कम से कम पिछले 40 वर्षों से जानता हूं। मैंने उनके साथ कई गतिविधियों में भाग लिया है और अनेक यात्राएं की हैं। देश के दर्जनों शहरों में मैंने उनके साथ सेमीनारों, कार्यशालाओं, सभाओं और पत्रकारवार्ताओं में भ... more »
1984 – ए रोड स्टोरी
इस बार मई माह में गाँव जाना हुया एकदम अकेले. मार्च में चचेरी बहन के विवाह पर देश-विदेश से इकट्ठा हुए कुनबे वालों की गहमागहमी के बाद, मेरे सबसे छोटे चाचा का घर सुनसान पड़ा था. इधर, हमारे घर का ताला ही तब खुलता है जब भिलाई से कोई पारिवारिक सदस्य वहाँ पहुंचता है. अकेले [...] The post 1984 – ए रोड स्टोरी appeared first on ज़िंदगी के मेले.
ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे
ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी बह चली मै अब बहती हवाओं में उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे इस से पहले कि रुख हवाओं का न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै जन्म जन्म के साथी बन के मेरे ले लो मुझे आगोश में तुम अपने ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे
बदलता और सुलगता भारत:- भाग-२... राम भरोसे हिन्दुस्तान
पिछली पोस्ट में हमनें देश की समस्याओं और आज के पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रियाओं से अवगत कराया था। आज हम कुछ समाधान की ओर चलते हैं। *देश की वोटिंग प्रणाली* *१*. देश की वोटिंग प्रणाली पर गौर कीजिए। देश का सबसे बड़ा युवा वर्ग जो अपने मूल स्थान से दूर किसी महानगर में नौकरी करता है। इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाली एक बड़ी आबादी का वोटिंग लिस्ट में नाम वहां नहीं होता जहाँ वह रहता है. मेरे साथ काम करने वाले लोग मुंबई की वोटिंग लिस्ट में नाम नहीं लिखवाते क्योंकी दौड़ भाग कौन करे। यह वर्ग सोमवार से शुक्रवार काम करने के बाद वीकेंड पर आराम करना पसंद करता है… यह हमारा युवा वर्ग है और... more »
दुआ सबकी मिल गयी, अच्छा हुआ
एक माह पहले जन्मदिन पर ढेरों बधाइयाँ आयी थीं, मन सुख से प्लावित हो गया था। आँखें बन्द की तो बस यही शब्द बह चले। यद्यपि फेसबुक पर इसे डाल चुका था, पर बिना ब्लॉग में स्थान पाये, बिना सुधीजनों का स्नेह पाये, रचना अपनी पूर्णता नहीं पा पाती है। दुआ सबकी मिल गयी, अच्छा हुआ, चिहुँकता हर बार मन, बच्चा हुआ, कुछ सफेदी उम्र तो ले आयी है, हाल फिर भी जो हुआ, सच्चा हुआ। दिन वही है, बस बरसता प्यार है, इन्द्रधनुषी सा लगे संसार है, मूक बहता, छद्म, दुविधा से परे, उमड़ता है, नेह का व्यापार है। लाज आती, कोई आँखों पर धरे, शब्द मधुरिम कर्णछिद्रों में ढरे, कुटिल मन की गाँठ, दुखती क्षुद्रता, ... more »
कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
तलाश है कुछ किरदारों की जो बोल सके वो अल्फाज जो दफन है अन्दर एक कहानी की शक्ल में ताकि एक दिन वो कहानी कही जा सके सुनी जा सके एक दिन जब खड़े हो हम किसी मशरूफ सड़क पर और वहाँ मिल सके एक अधूरे लम्हे से कुछ जोड़ सके उसमे कुछ घटा सके और कम-स-कम कह सके एक पूरी कहानी फिर चलें तो ये सड़क शायद पार कर सके वरना भीड़ बहुत है धकेलने के लिए उनके लम्हे हम नहीं पढते न ही वो हमारे हम अलग अलग कहानियों के किरदार है सो एक दूसरे से बातचीत नहीं रखते ताकि आखिर में कहा जा सके कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं इनका असलियत से कोई ताल्लुक नहीं है...
मेरी कहानी, हमारी कहानी
"हैलो, मेरा नाम लाउरा है, क्या आप के पास अभी कुछ समय होगा, कुछ बात करनी है?" मुझे लगा कि वह किसी काल सैन्टर से होगी और पानी या बिजली या टेलीफ़ोन कम्पनी को बदलने के नये ओफर के बारे में बतायेगी. इस तरह के टेलीफ़ोन आयें तो इच्छा तो होती है कि तुरन्त कह दूँ कि हमें कुछ नहीं बदलना, पर अगर काल सैन्टर में काम करने वालों का सोचूँ तो उन पर बहुत दया आती है. बेचारे कितनी कोशिश करते हैं और उन्हें कितना भला बुरा सुनना पड़ता है. बिन बुलाये मेहमानों की तरह, काल सैन्टर वालों की कोई पूछ नहीं. पर वह काल सैन्टर से नहीं थी. उसे मेरा टेलीफ़ोन नम्बर बोलोनिया में मानव अधिकारों पर वार्षिक फ़िल्म फैस्टिवल ... more »
सुखदेव के जन्मदिवस पर
सुखदेव आजादी के योद्धा होने के साथ-साथ एक क्रान्तिकारी भी थे। उन्होंने भगत सिंह और राजगुरु के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी के फंदे को चूम लिया था। *शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले। * *वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगी।* सुखदेव और भगत सिंह 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही साल लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हुए। हमें उनकी दोस्ती की मिशाल से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। उनके एक अन्य साथी शिव वर्मा ने* "संस्मृतियाँ"* में क्रांतिकारी कामों और उनकी दोस्ती के बारे में बहुत शानदार जानकारी दी है। सुखदेव का जन्म पंजाब के शहर लायलपुर में रामलाल थापर और रल्ली देवी ... more »
क्यों पंछी हुआ उदास...!!! पलायन का दर्द ?..
क्यों पंछी हुआ उदास ,अपना नीड़ छोड़ कर , जिसे संजोया था ,तिनका -तिनका जोड़ कर। न किया गिला किसी से ,न शिकायत किसी की , चुप-चाप उड़ चला वो ,अपनी पीड़ ओढ़कर। मुड़ के देखा तो था , पड़ा बिखरा हुआ अतीत , पर जा रहा था वो,कुछ सच्चे रिश्ते तोड़ कर। खट्टी-मीठी यादे चल रहीं थी ,चलचित्र की तरह , दिल करता था देखता रहे, चित्रों को जोड़ कर। टीस सी उठ रही है दिल में , उस दर को छोड़ते , है !इल्तिजा वक्त से ,
तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा : कौन हैं इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दिकी ?
फिल्म 'अर्थ' और उसका संवेदनशील संगीत तो याद है ना आपको। बड़े मन से ये फिल्म बनाई थी महेश भट्ट ने। शबाना, स्मिता का अभिनय, जगजीत सिंह चित्रा सिंह की गाई यादगार ग़ज़लें और कैफ़ी आज़मी साहब की शायरी को भला कोई कैसे भूल सकता है। पर फिल्म अर्थ में शामिल एक ग़ज़ल के शायर का नाम शायद ही कभी फिल्म की चर्चा के साथ उठता है। ये शायर हैं इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दिकी ( Iftikhar Imam Siddiqui ) साहब जिनकी मन को (अगर ये विषय आपकी पसंद का है तो पूरा लेख पढ़ने के लिए आप लेख के शीर्षक की लिंक पर क्लिक कर पूरा लेख पढ़ सकते हैं। लेख आपको कैसा लगा इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया आप जवाबी ई मेल या वेब साइट पर जा... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!
शहीद सुखदेव को शत शत नमन और ब्लॉग बुलेटिन के पायलट को जन्मदिन की अशेष शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स के साथ एक बेहतरीन बुलेटिन। आभार :)
जवाब देंहटाएंनये लेख : 365 साल का हुआ दिल्ली का लाल किला।
अमर शहीद सुखदेव जी को शत शत नमन....बेहतरीन जानकारी के साथ मेरे ब्लॉग को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने के लिए...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्र..आभार।
जवाब देंहटाएंशहीद सुखदेव को शत शत नमन और Shivam ji को जन्मदिन की शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंअमर शहीद सुखदेव जी को शत शत नमन.............सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंशिवम, ब्लाग बुलेटिन में मुझे जगह देने के लिए बहुत धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंशहीद सुखदेव को सादर नमन
जवाब देंहटाएंऔर बेहतरीन लिंक्स पढ़वाने के लिए शुक्रिया शिवम्
सस्नेह
अनु
आप सब का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंब्लाग बुलेटिन में मुझे जगह देने के लिए बहुत धन्यवाद ,आभार
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शहीद सुखदेव से जुड़ी बातें साझा करने के लिए!
जवाब देंहटाएं