उल्फत भी काम ना आई
या यूँ कहो रास ना आई
तो इशकजादे से बन बैठे देवदास
हो गया अंगूर खट्टे हैं सा चेहरा ...............
अब हम कवि नहीं रहे,कहानीकार भी नहीं .... हम सब पञ्च परमेश्वर बन गए हैं - वो भी नकली ! क्योंकि सारे वोट हम अपने बक्से में डाल लेते हैं . इन्कलाब की धरती हो या उपदेशक की .... हम सब भगत सिंह हैं और बुद्ध. भगत सिंह के साथ न सुखदेव,न आज़ाद,न बटुकेश्वर दत्त,न राजगुरु - तो एक डफली एक राग सबकी अपनी अपनी . सीखनेवाला कोई नहीं,अब तो पैदा लेते सब सबकुछ जान लेते हैं ....... पोंगा पंडित बने सब अशुद्ध मंत्र पढ़ रहे - स्थिति है -
का खायीं का पीहीं
का लेके परदेस जायीं !!!
रुकिए रुकिए .... कुछ पढ़ ही लीजिये,बाद में जो मन करे कहिये ...... पसंद आये तो मन में रखियेगा
नहीं तो सड़क पर फेंक दीजियेगा :) और गाते चलियेगा
'कौन कौन कितने पानी में
सबकी है पहचान मुझे'
बचपन के रंग: एक बच्ची स्कूल नहीं जाती, बकरी चराती है
और लिंक चाहिए ? बंधू इतना तो पहले ईमानदारी से पढ़िए और यह गाना सुन ही लीजिये - :)
शानदार भूमिका /सुंदर संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक संयोजन | आभार रशिम जी |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लींकों से सजा ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंईमानदारी से पढने के लिए इतने लिंक भी बहुत ज्यादा हैं।
जवाब देंहटाएं:)
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बहुत ही सुन्दर एवं रोचक ब्लॉग बुलेटिन,आभार.
जवाब देंहटाएंबढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंरोचक शीर्षक से सजी पोस्ट
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