लीजिये साहब पेश है सनातन कालयात्री की ब्लॉग यात्रा का तीसरा भाग :-
अब तक आप पढ़ चुके है :- भाग 1 और भाग 2
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गणित
का मारा है हम सब का दुलारा सीधा सादा (आड़ा) अब तक कुंवारा बिदेसी
बलियाटिक हिन्दी बिलागर अभिषेक ओझा। इनके बारे में लिखते हुये प्रायिकता के
किसी नियम के अनुसार माइक्रोसॉफ्ट इंडिक ने सादा को आड़ा कर दिया ;)
आप मिलेंगे तो लगेगा ही नहीं यह आई
आई टीयन इतने बड्डे पोस्ट पर है! ये सौन्दर्य पारखी उच्च गणित के
सिद्धांतों के बारे में मुझे समझ में आ जाय (बाकी के लिये सानूँ की) इस ढंग
से अपने ब्लॉग पर 'बतियाते' हैं। अपनी रानी के बारे में यह कहते हैं
Mathematics: King of abstraction... Queen of Sciences. देखियेगा http://baatein.aojha.in/, बहुत ही रोचक है लेकिन मेरे ऊपर नकल का शक़ मत न कीजियेगा, कई बार हमलोग एक ही जैसा सोच फोच लेते हैं।
लेकिन सबसे मजेदार है इनका उवाच, जिसके बारे में ये कहते हैं - Once upon a
time I tried to write ... दैवयोग से एक बार ये पटना पहुँचे और वैरीकूल
भाई साहब से मिल बैठे। फिर तो जो पटनिया डायरी लिखी गयी उसने अगरदा मचा
दिया! नहीं विश्वास हो तो पर्हिये न!
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तीन
राज्यों की पृष्ठभूमि लिये जयपुर से ज्ञान बाँटती हैं हिन्दी ब्लॉगर -
वाणी शर्मा। राजस्थान के सांस्कृतिक रंगों के बारे में खूब मन लगा कर बताती
हैं और कभी कभी चिकोटियाँ भी काटती हैं
(यह लिखने पर भी चिकोटी मिलने
की पूरी सम्भावना है)। समसामयिक मुद्दे हों या स्त्री विमर्श जैसे नाजुक
विषय, बहुत ही सलीके से, सुलझे ढंग से अपनी बात कहती हैं।
इनके लिये मुस्कुराहट एक बड़ा हथियार है।
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दूर
लन्दन से हिन्दी ब्लॉग लिखती हैं विदुषी डा. कविता वाचक्नवी। संस्कृत की
अध्येता हैं और भारतीय संस्कृति और स्त्री विमर्श पर भी लिखती हैं। बसंत
पंचमी को इन्हों ने ऐसे चेताया - वसंत पंचमी निराला का अवतरण दिवस है, तो
वीर हकीकत राय का बलिदान दिवस भी।
आधुनिक भारत के सबसे कम आयु के ज्ञात बलिदानी देशभक्त वीर हकीकत राय को
वंसत पंचमी के दिन खुले में फाँसी दे दी गई थी। पुण्य स्मृतियों को शत शत
प्रणाम !!
ये हिन्दी में ग़जल भी रचती हैं। इनका ब्लॉग है 'वागर्थ' यानि 'वाक्+अर्थ'।
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हिन्दी
ब्लॉगरी ने भगोड़े भी देखे हैं। इन भगोड़ों की सूची अद्यतन की जाती रहेगी।
पलायन कई बार आवश्यक भी होता है। कई बार व्यक्ति और ऊँचे फलक पर चढ़ जाता है
लेकिन जो अच्छा लिखते हैं उनकी बात तो होती ही है। आप लोग भी ऐसे पलायितों
के लिंक यहाँ दे सकते हैं।
एक पलायित जो उल्लेखनीय हैं, वे हैं श्रीश पाठक 'प्रखर'।
पढ़िये इनकी जिन्दगी वाया रूट नं 615
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कम
रचते हैं युवा ब्लॉगर अभिषेक आर्जव लेकिन जो लिखते हैं क्या खूब लिखते
हैं! भाषा विज्ञान के अध्येता हैं, उत्तर पूर्व के सौन्दर्य को अपने कैमरे
से कभी कभी दिखा देते हैं। कवितायें अवश्य एक से बढ़ कर एक रचे होंगे लेकिन
अभी डायरी के पन्नों से मुक्त नहीं हुईं।
इनका ब्लॉग है - आर्जव, सहज सरल सतत……..। 'आर्जव' संस्कृत के ऋजु शब्द की देन है जिससे अर्जुन भी भया।
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छ्द्मनामियों
और बेनामियों ने एक युग में हिन्दी ब्लॉगरी में कहर बरपा कर रखा था। अंट
शंट के अलावे बहुत रिमार्केबल खरी खोटी और सार्थक कहने सुनने वाले भी थे।
उनकी उपस्थिति से रंग अलग ही रहता था।
विधेयात्मक योगदान देने वालों और अब भी सक्रिय नामों
में सबसे ऊपर हैं सबके आदरणीय छ्द्मनामी ब्लॉगर - उन्मुक्त। गणित, पर्यटन
और मुक्त सॉफ्टवेयर पर� बहुत ही रोचक लिखते हैं। पॉडकास्ट भी उम्दा करते
हैं। सम्भवत: ये एकमात्र ऐसे ब्लॉगर हैं जिनके एक फैन ने बाकायदा इनके
ब्लॉग का एक और ब्लॉग बना रखा है!
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एक
दिन जय हिन्दी का उद्घोष लिये एक बेनामी ने एक बहुत ही ज्वलंत विषय पर
अच्छी बहस करा दी। बाद में लोग एक दूसरे पर शक करते रहे कि यह रही होंगी या
रहा होगा। वह मोहभंग बेनामी अब पलायित श्रेणी में है।
नाम पूछा आप ने? नाम ही 'बेनामी' है। पढ़िये वह बहस, उसके बाद इस पुच्छल तारे में वैसी चमक नहीं दिखी।
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हिन्दी
में ब्लॉगरी करते हैं मीडिया वाले पुण्य प्रसून बाजपेयी। सराहनीय
अंतर्दृष्टि रखते हैं। वर्तनी की अशुद्धियाँ कभी कभी अखर जाती हैं।
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आई
टी से जुड़ी नयी पीढ़ी भी तत्सम शब्दावली युक्त हिन्दी में ऐसी पैठ रखती है
कि छ्न्दबद्ध और गहन अनुभूतियों एवं प्रेक्षण से आपूरित काव्य रच सके।
मुक्त छन्द में भी उतने ही सिद्धहस्त। विश्वास न हो तो अविनाश चन्द्र के इस
ब्लॉग को देखिये।
मेरी कलम से - मेरा
यहाँ होना, ना होना सिर्फ तभी तक है, जब तक ये शब्द हैं। धूसरित वर्णों की
आपाधापी हूँ मैं...जुलाई से जीवन में व्यस्त हैं, इसलिये ब्लॉग लेखन पर
विराम है।
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अविनाश ने कवयित्री तोरू दत्त की अंग्रेजी कविता का कितना सुन्दर भावानुवाद किया है, देखिये:
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सरोकारनामा
लिखते हैं गोरखपुरी लखनवी पत्रकार दयानन्द पांडेय। तीखापन, बेलाग बेलौस
बात इनकी विशेषतायें हैं। इनके सरोकार अजबे गजब हैं!
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प्राची
के पार 302 फॉलोवरों का मुजरिम है दर्पण शाह। इस युवा की कवितायें समझदार
युवतियों को खूब भाती होंगी। नयी पीढ़ी की कविताई सराहनी हो और एक खास अनुभव
लेना हो तो इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें।
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सुखी
कैसे हों की तकलीफ़देह पड़ताल में जुटे हैं सलीमा सलीमा वाले बम्बइया
ब्लॉगर प्रमोद सिंह। कम लोगों को बहुते समझ में आते हैं और जब आते हैं तो
एक तलब सी होने लगती है।
ब्लॉग का नाम है ब्रेख्त के नाटक के एक पात्र
पर अज़दक।अपनी तमाम अहमकाना हरकतों के बावजूद अज़दक के कामों की परिणति
अच्छी ही होती है।
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प्रमोद
सिंह अपने फॉलोवरों को अन्हार घर के ढिबरी कैरियर्स कहते हैं तो पद्म सिंह
अपने ब्लॉग का शीर्ष वाक्य 'अन्हियारे से लड़ती अदना ढिबरी... सीने मे
दावानल भी ... और सागर आगम अतल भी...' रखते हैं। इन दोनों में कोई सम्बन्ध
है या नहीं, मुझे नहीं पता। सलीमा सलीमा
वाले परमोद बाबू बाईं ओर झुकान रखते हैं तो पद्म दक्षिणावर्त पंखुड़ियों
वाले। जो भी हो पद्म सिंह हैं कई विधाओं में निष्णात।
इनकी अवधी रचना 'चला गजोधर कौड़ा बारा' पढ़िये, मौसम तो अब भी बसंत से हेमंत की ओर भाग रहा है!
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अमीर
धरती के ग़रीब लोगों की फिक्र करते हैं 36 गढ़िये ब्लॉगर अनिल पुसदकर। कई
संघों में अध्यक्ष वोध्यक्ष हैं, जाने अब पत्रकारिता भी करते हैं या नहीं!
हड़काते हैं एकदम टॉप क्लास।
इनके ब्लॉग लेखों के कुछ शीर्षक देखिये - 'धर्मांतरण को कम्पलसरी कर दो
ना.ना रहेगा हिंदू ना रहेगा प्रदूषण का झंझट', 'जो शराब नौ दिन खराब रहती
है वो दसवे दिन कैसे अच्छी हो सकती है?', ' मिठाई न खायें तो क्या चिकन
खायें,चाकलेट खायें?', 'पवार,खुर्शीद,राबर्ट,राहुल गलत नही, तो गलत है
कौन?' - मने कि आलवेज इन फुल्ल फॉर्म।
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अभय
तिवारी को ब्लॉग लिखे 8 महीनों से अधिक हो चुके हैं। शब्द चर्चा जैसे समूह
के संचालक हैं, सरपत फिलम भी बनाते हैं, रूमी का अनुवाद भी करते हैं,
अम्बेडकर को भी पढ़ते पढ़वाते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि सहायता और सलाह
बढ़िया देते हैं। आप के यहाँ आयेंगे तो
पहले चारो ओर के वृक्षों के नाम गुण पूछेंगे, उसके बाद उन पर फुदकती
चिड़ियों के बारे में कुछ बता कर अचरज में डालेंगे। इन्हें भोजन करते देखना
बहुत सुखद होता है।
सड़क पर बायें चलते ये निर्मल आनन्द की खोज में रहते हैं और हम जैसों को भगवान सिंह की डगर दिखा देते हैं।
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नये
संसार में प्रोफेसर हैं प्रतिभा सक्सेना। प्राचीन द्रौपदी और नये युग की
देहातिन भानमती पर समान अधिकार से लिखती हैं। अपने लिखे की चोरी से परेशाँ
भी ( ऐसा लिखती ही क्यों हैं कि चुराने का मन करे!)। एक बार तो सब्जियों
में टमाटर के प्रभुत्त्व पर ऐसी खरी खोटी माने कि झिड़की सुनाई लगाई कि मन
तृप्त हो गया।
पढ़िये अभी ये साली गाली पर खफा खफा सी हैं:
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यमन
कल्याण ठाठ का पुराना राग है जिसे कर्नाटक संगीत शैली में कल्याणी कहा
जाता है और विवाह के अवसर पर मंगल स्वरूप बजाया जाता है। इसके प्रकार
प्राचीन संसार में अन्य देशों में भी थे जैसे पश्चिमी संगीत का लिडियन मोड।
इस्लामी आक्रमणों के साथ आये कलाविदों ने इसे यहाँ भी पहचाना और यमन नाम दिया जो कि पहले राग यमुना नाम से प्रचलित बताया जाता है।
जिस तरह से पखावज को काट कर तबला बना दिया गया और� त्रितंत्री वीणा को
सितार वैसा ही कुछ इस राग के साथ घटित हुआ। इसे अरबों द्वारा लाया गया
बताना ठीक नहीं। यह यहाँ पहले से ही था। वैसे भी राग नाम यादृच्छ रखे गये
हैं। हंसध्वनि का हंस से कोई सम्बन्ध नहीं, सारंग को मोर नहीं पता।
इस राग पर कुछ बड़े ही अच्छे गीत गढ़े गये जैसे:
सरस्वती चन्द्र - चन्दन सा बदन, चंचल चितवन
चित्रलेखा - मन रे तू काहे न धीर धरे
बरसात की रात - ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
लव - साथिया तूने ये क्या किया
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अलग
हट के कुछ अनलिखा पढ़ना है तो यूरोप से हिन्दी ब्लॉगरी करते सुनील दीपक को
पढ़िये। मेनू लिस्ट है - भारत, इटली, समस्त जगत, संस्कृति, सभ्यता, विकास,
इतिहास, भाषा, लेखक, पुस्तकें, कला, नृत्य, यौनता, यात्राएँ, बहस ..। खालिस
ब्लॉगरी करते हैं। दिल्ली आये तो यमुना के प्रदूषण पर जम कर कैमरा घुमाये।
शरीर की लज्जा पर 'जो न कह सके' क्या कहते हैं?
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सेंटियाने
को सामाजिक अपराध मानने वाले त्वचा रोग विशेषज्ञ डा. अनुराग आर्य अपने
कंफेशंस, सवाल और सुबहे इकठ्ठा करते हैं 'दिल की बात' में। इन्हें एक बार
अभिषेक ओझा के साथ अवश्य बैठना चाहिये यह समझने के लिये कि जीवन कई वृत्तों
का जोड़ नहीं है!
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Rajiv Ojha
लखनऊ का बिन्दासपन देखना हो तो मिलिये राजीव ओझा से। पत्रकार हैं और अपन
टाइप के लंठ हैं। कम शब्दों में महीन मार करते हैं। सुनिये बसंत ऋतु में लू
का संगीत
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नई सड़क से कस्बा देखते हैं मीडियाकर्मी हिन्दी ब्लॉगर रवीश कुमार। इनका ब्लॉग है - http://naisadak.blogspot.in/
पढ़िये, इस ब्लॉग के बारे में क्या लिखा हिमांशु ने:
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...अंतिम
पत्र में भी उसने ‘श्राप’ ही लिखा था... हमेशा, जब भी गुस्साती तो श्राप
तक पहुँच जाती थी – एकदम बच्चों की तरह। मैं शाप कह कर सुधारने की कोशिश
करता तो हँस देती – वह कहूँगी तो पाप लगेगा पापी! भगवान तुम्हें हर दुख,
खरोंच, चोट चाट से बचाये रखे। फिर भावुक
हो जाती और ठीक उसी समय मैं उसे चूम लेता था। कैसा रिश्ता था वह? उसका
श्राप इस जीवन में हमेशा मेरे साथ रहेगा। वह मुझे मुक्त करने नहीं आने
वाली। नदी में बह चुकी राख कभी लौट कर आई है भला?...
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'चला
बिहारी ब्लॉगर बनने' नाम से ब्लॉग लिखते हैं सलिल वर्मा। बहुमुखी प्रतिभा
और उत्तम स्वर के धनी। कहानियों, नाटकों को अपना स्वर दे पॉडकास्ट भी करते
हैं। इनकी अपनी एक खास शैली है और भाषा भी बिहार अंचल की भोजपुरी।
पढ़िए और सुनिए ओ हेनरी की एक कहानी का नाट्य रूपांतरण - एक सम्मिलित प्रयास।
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ललित
निबन्ध और यदा कदा गीत/कविता रचने वाले रेलवे अधिकारी प्रवीण पांडेय का
ब्लॉग 'न दैन्यं न पलायनं' नेटप्रिय है। बहुत ही निरपेक्ष अन्दाज में अपनी
बात कहते हैं और पठन, लेखन, टिप्पणन तीनों में नियमित हैं।
हम जैसों को तसल्ली रहती है कि कोई टिपियाये
या न, प्रवीण बाबू अवश्य आयेंगे और अपनी एकलाइना टीप का प्रसाद दे
जायेंगे। एकलाइना टिप्पणियाँ कभी कभी विषय और लेख दोनों के पार चली जाती
हैं जिस पर एकाध जन परिवाद भी प्रस्तुत कर चुके हैं और पांडेय जी से
'समाधान' भी पा चुके हैं।
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हिन्दी
ब्लॉग जगत के व्यंग्य चित्रकार हैं काजल कुमार। ये बहुत भ्रमणशील हैं और
अपने यात्रावृत्त ढेर सारे चित्रों एवं उनके लघु विवरणों के साथ बहुत ही
रोचक और सधे ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
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ब्लॉगर
चैतन्य आलोक और सलिल वर्मा लँगोटिया यार हैं(इसे केवल पुराने मुहावरे का
प्रयोग ही समझा जाय)। मैं आज भी कभी कभी कंफ्यूज हो जाता हूँ कि कौन कौन है
:)
संवेदना के स्वर ब्लॉग पर� जो कि साझा ब्लॉग है, आर्थिक घोटालों
और अन्य सम्वेदनशील मुद्दों पर अधुना और नई विधि से चर्चा होती है। उदाहरण
के लिये देखिये यह लेख:
अभी फिलहाल यह यात्रा एक विराम पर है ... अरे भई आखिर इतनी लंबी यात्रा एक
बार मे कैसे पूरी की जा सकती है और वैसे भी इन के ब्लॉग का नाम "एक आलसी का चिठ्ठा" ऐसे ही थोड़े न है ... ;-)
अगली पोस्ट तक इन के
पास बैठो कि इनकी बकबक में नायाब बातें होती हैं, तफसील पूछोगे तो कह देंगे - "मुझे कुछ नहीं पता।"
वाह क्या बात है. यह नया क्लेवर भी अच्छा है
जवाब देंहटाएंWaah
जवाब देंहटाएंअरे वाह जगब धुआंधार लगाये हैं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चल रही है यात्रा ... चलते रहिए !
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन..
जवाब देंहटाएंइति वार्ता:!
जवाब देंहटाएंऔर आगे ...
जवाब देंहटाएंखूब पढ़ कर बहुत विस्तार से चर्चा की है। बधाई।
जवाब देंहटाएंकई ऐसे लिंक मिले जिन्हें पढ़ कर लगा, अब तक यहाँ क्यों नहीं पहुँची -आभार आपका!
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