इस वक्त दुनिया में चार सबसे बड़ी समस्याएं हैं। पहली जनसंख्या, दूसरी महंगाई, तीसरी बेरोजगारी और चौथी युवाओं को हर हफ्ते होने वाला सच्चा प्यार। उधर, पाकिस्तानी क्रिकेटर चाहते हैं कि भारत एक बार पाकिस्तान का दौरा करे, लेकिन इधर कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि अगर तालिबान पूरी तैयारी में है तो हम क्रिकेटरों के रूप में कुछ नेताओं को भेज सकते हैं। बलात्कारी को सजा क्या होनी चाहिए मामला विचाराधीन है, उम्मीद है जल्द जवाब आ जाएगा, आख़री भारतीय सरकार है, फैसला लेने में वक्त तो लगेगा ही, लेकिन पक्का समय मत पूछिए, क्यूंकि कश्मीर पर अभी तक विचार विमर्श चल रहा है। तेलांगना के मामले में एक महीना जरूर कहा है, लेकिन उम्मीद बहुत कम है, क्यूंकि दिल्ली गैंगरेप मामले को लेकर भी सरकार आधा महीना खा चुकी है।
टीवी सीरियल के लिए स्त्रियां मर्दों की विटामिन गोली भर है
बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति पर आधारित टीवी सीरियल बालिका वधू अब दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे की शादी सेट में पूरी तरह तब्दील हो चुका है. गले में एक धागा भर पहननेवाली जिस आनंदी को शुरु से ही भारी गहने और कपड़े से चिढ़ रही है,जिसे पहनकर वो अमिया तक नहीं तोड़ सकती थी, अब उसे मेंहदी लगाकर रखने की नसीहत देनेवाले रिश्तेदारों और सहेलियों की सिमरन की तरह सजाया-संवारा जा रहा है..और ये सबकुछ हो रहा है आनंदी के उस ससुराल में जहां वो जगिया की बालिका वधू बनकर आयी और जहां आकर दिन-रात उसने यही सोचा- कैसे इस ससुराल और दादी सा की चंगुल से निकलकर वापस बापू के घर भाग सकती है. लेकिन अगले दो-चार एपीसोड में कलक्टर साहब की पत्नी बनकर अपने पहले ससुराल यानी दादी सा के घर से विदा होनेवाली आनंदी के लिए सामाजिक कुरीति के तहत मिला जगिया, उसके साथ का अतीत और मौजूदा दगाबाजी ही पहला प्यार लगता है. आगे पढ़ें
पल्प फिक्शन से पल्प टेलीविज़न तक
न्यूज़ चैनल अपने आस पास के माध्यमों के दबाव में काम करने वाले माध्यम के रूप में नज़र आने लगे हैं। इनका अपना कोई चरित्र नहीं रहा है। गैंग रेप मामले में ही न्यूज़ चैनलों में अभियान का भाव तब आया जब अठारह दिसंबर की सुबह अखबारों में इस खबर को प्रमुखता से छापा गया। उसके पहले हिन्दी चैनलों में यह खबर प्रमुखता से थी मगर अभियान के शक्ल में नहीं। यह ज़रूर है कि एक चैनल ने सत्रह की रात अपनी सारी महिला पत्रकारों को रात वाली सड़क पर भेज दिया कि वे सुरक्षित महसूस करती हैं या नहीं लेकिन इस बार टीवी को आंदोलित करने में प्रिंट की भूमिका को भी देखा जाना चाहिए। उसके बाद या उसके साथ साथ सोशल मीडिया आ गया और फिर सोशल मीडिया से सारी बातें घूम कर टीवी में पहुंचने लगीं। एक सर्किल बन गया बल्कि आज कल ऐसे मुद्दों पर इस तरह का सर्किल जल्दी बन जाता है। कुछ अखबार हैं जो बचे हुए हैं पर ज्यादातर अखबार भी सोशल से लेकर वोकल मीडिया की भूमिका में आने लगे हैं। आगे पढ़ें
कितना जरुरी है डर...
हम बचपन से सुनते आये हैं " डर के आगे जीत है " , जो डर गया समझो मर गया " वगैरह वगैरह। परन्तु सचाई एक यह भी है कि कुछ भी हो, व्यवस्था और सुकून बनाये रखने के लिए डर बेहद जरूरी है। घर हो या समाज जब तक डर नहीं होता कोई भी व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल सकती। घर में बच्चे को माता - पिता का डर न हो तो वह होश संभालते ही चोर बन जाए, स्कूल में अध्यापकों का डर न हो तो अनपढ़ - गंवार रह जाए, धर्म - समाज का डर न हो तो न परिवार बचें, न ही सभ्यता। और अगर कानून का डर न हो, तो जो होता है , वह आजकल हम देख ही रहे हैं। यानि इतनी अव्यवस्था और अपराध हो जाएँ की जीना मुश्किल हो जाए। आगे पढ़ें
तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त
"तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त", जब यह गाना मार्केट आया था, इससे यह पता चलता हैं की समाज में औरत और मर्द में कितना फर्क हैं। हमारें समाज का बड़ा हिस्सा हैं जो औरत को चीज समझता हैं।
औरत और मर्द में इतना फर्क क्यूँ हैं? कौन हैं इसके लियें जिम्मेदार? हमारा सामाजिक ढांचा जो की स्त्री को केवल उपयोग की वस्तु समझता हैं। शायद यही वजह हैं जो स्त्री को हमेशा एक वस्तु की नज़र से देखा जाता हैं और यही बलात्कार की वजह बन जाती हैं, जैसा की 'यूज़ एंड थ्रो'। यही हकीक़त हैं हर एक रेप पीडिता की। आगे पढ़ें
जीवन पानी का बुलबुला है
मित्रो, लम्बे अंतराल के बाद आप के सामने अपनी नई पुरानी तीन कवितायेँ लेकर फिर प्रस्तुत हूँ. आशा है. आप भूले नहीं होंगे. इस बीच कविताओं को गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों के माध्यम से अपने चाहने वालों तक पहुंचता तो रहा हूँ परन्तु अपने इस ब्लॉग के व्यापक मित्र मंच से इन दिनों अवश्य वंचित रहा. आज मैं आप से मिलकर आनंदित हूँ और आप के साथ संवेदनात्मक भागीदारी का आकांक्षी भी हूँ. -सुरेश यादव आगे पढ़ें
बयान बवालों से 'बुद्धम् शरणम् गच्छामि' की गूंज तक - साप्ताहिक हलचल
रविवार, 6 जनवरी 2013। इसी के साथ नव वर्ष के प्रथम छह दिन खत्म होने जा रहे हैं। बीते सप्ताह के दौरान ज्यादा सुर्खियां बयानों को लेकर हुए बवालों पर बनी। अगर अंतर्राष्ट्रीय समाचारों की बात की जाए तो दो से अधिक सप्ताह बाद संडी हूक्स स्कूल के बच्चे जहां एक बार फिर स्कूल लौटे तो वहीं दूसरी तरफ तालिबानियों की गोली का निशान बनी मलाला को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। आगे पढ़ें
टीवी सीरियल के लिए स्त्रियां मर्दों की विटामिन गोली भर है
बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति पर आधारित टीवी सीरियल बालिका वधू अब दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे की शादी सेट में पूरी तरह तब्दील हो चुका है. गले में एक धागा भर पहननेवाली जिस आनंदी को शुरु से ही भारी गहने और कपड़े से चिढ़ रही है,जिसे पहनकर वो अमिया तक नहीं तोड़ सकती थी, अब उसे मेंहदी लगाकर रखने की नसीहत देनेवाले रिश्तेदारों और सहेलियों की सिमरन की तरह सजाया-संवारा जा रहा है..और ये सबकुछ हो रहा है आनंदी के उस ससुराल में जहां वो जगिया की बालिका वधू बनकर आयी और जहां आकर दिन-रात उसने यही सोचा- कैसे इस ससुराल और दादी सा की चंगुल से निकलकर वापस बापू के घर भाग सकती है. लेकिन अगले दो-चार एपीसोड में कलक्टर साहब की पत्नी बनकर अपने पहले ससुराल यानी दादी सा के घर से विदा होनेवाली आनंदी के लिए सामाजिक कुरीति के तहत मिला जगिया, उसके साथ का अतीत और मौजूदा दगाबाजी ही पहला प्यार लगता है. आगे पढ़ें
पल्प फिक्शन से पल्प टेलीविज़न तक
न्यूज़ चैनल अपने आस पास के माध्यमों के दबाव में काम करने वाले माध्यम के रूप में नज़र आने लगे हैं। इनका अपना कोई चरित्र नहीं रहा है। गैंग रेप मामले में ही न्यूज़ चैनलों में अभियान का भाव तब आया जब अठारह दिसंबर की सुबह अखबारों में इस खबर को प्रमुखता से छापा गया। उसके पहले हिन्दी चैनलों में यह खबर प्रमुखता से थी मगर अभियान के शक्ल में नहीं। यह ज़रूर है कि एक चैनल ने सत्रह की रात अपनी सारी महिला पत्रकारों को रात वाली सड़क पर भेज दिया कि वे सुरक्षित महसूस करती हैं या नहीं लेकिन इस बार टीवी को आंदोलित करने में प्रिंट की भूमिका को भी देखा जाना चाहिए। उसके बाद या उसके साथ साथ सोशल मीडिया आ गया और फिर सोशल मीडिया से सारी बातें घूम कर टीवी में पहुंचने लगीं। एक सर्किल बन गया बल्कि आज कल ऐसे मुद्दों पर इस तरह का सर्किल जल्दी बन जाता है। कुछ अखबार हैं जो बचे हुए हैं पर ज्यादातर अखबार भी सोशल से लेकर वोकल मीडिया की भूमिका में आने लगे हैं। आगे पढ़ें
कितना जरुरी है डर...
हम बचपन से सुनते आये हैं " डर के आगे जीत है " , जो डर गया समझो मर गया " वगैरह वगैरह। परन्तु सचाई एक यह भी है कि कुछ भी हो, व्यवस्था और सुकून बनाये रखने के लिए डर बेहद जरूरी है। घर हो या समाज जब तक डर नहीं होता कोई भी व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल सकती। घर में बच्चे को माता - पिता का डर न हो तो वह होश संभालते ही चोर बन जाए, स्कूल में अध्यापकों का डर न हो तो अनपढ़ - गंवार रह जाए, धर्म - समाज का डर न हो तो न परिवार बचें, न ही सभ्यता। और अगर कानून का डर न हो, तो जो होता है , वह आजकल हम देख ही रहे हैं। यानि इतनी अव्यवस्था और अपराध हो जाएँ की जीना मुश्किल हो जाए। आगे पढ़ें
ये कैसा जनादेश है
चीख है
पुकार है
चारों ओर हाहाकार है
लड़कियाँ लाचार है
समाज खूंखार है
बोटियाँ तैयार है
नोचनेवाला होशियार है
सारी दुनिया शर्मसार है आगे पढ़ें
चीख है
पुकार है
चारों ओर हाहाकार है
लड़कियाँ लाचार है
समाज खूंखार है
बोटियाँ तैयार है
नोचनेवाला होशियार है
सारी दुनिया शर्मसार है आगे पढ़ें
तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त
"तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त", जब यह गाना मार्केट आया था, इससे यह पता चलता हैं की समाज में औरत और मर्द में कितना फर्क हैं। हमारें समाज का बड़ा हिस्सा हैं जो औरत को चीज समझता हैं।
औरत और मर्द में इतना फर्क क्यूँ हैं? कौन हैं इसके लियें जिम्मेदार? हमारा सामाजिक ढांचा जो की स्त्री को केवल उपयोग की वस्तु समझता हैं। शायद यही वजह हैं जो स्त्री को हमेशा एक वस्तु की नज़र से देखा जाता हैं और यही बलात्कार की वजह बन जाती हैं, जैसा की 'यूज़ एंड थ्रो'। यही हकीक़त हैं हर एक रेप पीडिता की। आगे पढ़ें
जीवन पानी का बुलबुला है
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बयान बवालों से 'बुद्धम् शरणम् गच्छामि' की गूंज तक - साप्ताहिक हलचल
रविवार, 6 जनवरी 2013। इसी के साथ नव वर्ष के प्रथम छह दिन खत्म होने जा रहे हैं। बीते सप्ताह के दौरान ज्यादा सुर्खियां बयानों को लेकर हुए बवालों पर बनी। अगर अंतर्राष्ट्रीय समाचारों की बात की जाए तो दो से अधिक सप्ताह बाद संडी हूक्स स्कूल के बच्चे जहां एक बार फिर स्कूल लौटे तो वहीं दूसरी तरफ तालिबानियों की गोली का निशान बनी मलाला को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। आगे पढ़ें
बहुत अच्छे लिक्स..आभार
जवाब देंहटाएंप्रभावी सूत्र, संक्रान्ति काल में।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन...
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंक्स
आभार
अनु
सार्थक बुलेटिन कुलवंत भाई !
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