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गुरुवार, 31 जनवरी 2013

बाल श्रम, आप और हम - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

फिल्म इस्माइल पिंकी ने पिंकी को भले ही शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया फिर पिंकी की सहायता करने वालों की एक लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई बावजूद इसके आज पिंकी का क्या हुआ वह क्या कर रही है, यह अब शायद ही कोई जानता हो । आज भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पिंकी जैसी अनेकों बालक बालिकाएं हैं जिन्हे बचपन में ही स्कूल जाने की बजाय काम पर लगा दिया जाता है जबकि एक तरफ सरकार जहां बच्चों को कुपोषण से बचाने, उन्हे साक्षर करने के दावे कर रही है यहीं नहीं उसने बाल श्रम पर भी रोक लगाई है, बावजूद इसके बाल श्रम बदस्तूर जारी है। हमारे आस पास ही देख लीजिये आपको ऐसी न जाने कितनी पिंकी और छोटू मिल जाएंगे ! गली के नुक्कड़ की चाय की दुकान हो या हाइवे का ढ़ाबा यह छोटू आप को हर जगह मिल जाता है आप चाहे या न चाहे ... और तो और कभी कभी तो आपके घर तक आ जाता है जैन साहब की दुकान से आप के महीने के राशन की 'फ्री होम डिलिवरी' करने ... कैसे बचेंगे आप और हम इस से ... कभी सोचा है !!??

आज हम बात कर रहे हैं बलिया की एक पांच वर्षीय छोटी और अत्यंत भोली भाली सीमा की, जो स्कूल में जाने की बजाय आज अपने सिर पर लकड़ी का गठ्ठर ढोने व बकरियां चराने को मजबूर है। कहने को तो उसका दाखिला आंगनबाड़ी केंद्र में कराया गया है लेकिन वह जाती कब है इसकी जानकारी न तो आंगनबाड़ी केंद्र की संचालिका दे पा रही है और न ही उसके अभिभावक। अपने माता-पिता के कार्यो में बचपन से ही सहयोग कर रही सीमा को भी स्कूल जाने पढ़ने खिलने का शौक है लेकिन मासूम सीमा अपनी गरीबी का दर्द बयां करने लायक भी तो नहीं। हाल ही मे हमने भारतीय गणतंत्र का 64वां वार्षिक समारोह मनाया हैं लेकिन हम बचपन में अपने औकात से अधिक बोझ ढो रहे उन मासूमों की खुशहाली के लिए क्या कर रहे हैं यह बताने वाला कोई नहीं। सरकार ने कानून बनाया है, दावे भी करती रही है लेकिन प्रभुनाथ की बिटिया सीमा जैसी बहुतेरे बच्चे आज कम उम्र के बावजूद परिवार का बोझ ढोने को विवश हैं। 

पिछले दिनों फेसबूक पर एक तस्वीर देखी थी ... यहाँ लगा रहा हूँ ... आप सब भी देखिये ... और संभव हो तो इस तस्वीर को बदलने की ओर एक प्रयास जरूर करें !

सादर आपका 

शिवम मिश्रा

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जलपरी बुला अब पानी में नहीं उतर सकतीं कभी

रणधीर सिंह सुमन at लो क सं घ र्ष !
जलपरी बुला अब पानी में नहीं उतर सकतीं कभी, गलत इंजेक्शन की वजह से! *सातों समुंदर तैर कर आयी भारत की विश्वविख्यात जलपरी बुला चौधरी अब अपने घर के तालाब में भी तैर नहीं सकती। गलत इंजेक्शन से ​​उनकी जान तो बच गयी, पर पानी में उतरने की मनाही है। इससे उसके प्राण संशय का खतरा है।पूर्व विधायक अंतरराष्ट्रीय तैराक बुला चौधरी​​ के साथ हुए हादसे से साफ जाहिर है कि इस देश में चिकित्सा के नाम पर क्या कुछ हो जाता है और लोग कैसे गलत इलाज से बेबस हो जाते हैं।पानी में उतरते ही उनकी धड़कनें धीमी हो जाती हैं।दुनियाभर के खेल प्रेमी इस बहादुर तैराक के करतब से परिचित हैं। लेकिन हालत यह है कि चिकित्सकों ... more »

असमंजस..

shikha varshney at स्पंदन SPANDAN
कल रात सपने में वो मिला था कर रहा था बातें, न जाने कैसी कैसी कभी कहता यह कर, कभी कहता वो कभी इधर लुढ़कता,कभी उधर उछलता फिर बैठ जाता, शायद थक जाता था वो फिर तुनकता और करने लगता जिरह आखिर क्यों नहीं सुनती मैं बात उसकी क्यों लगाती हूँ हरदम ये दिमाग और कर देती हूँ उसे नजर अंदाज मारती रहती हूँ उसे पल पल यूँ ही, ऐसे ही, किसी के लिए भी। मैं तकती रही उसे, यूँ ही निरीह, किंकर्तव्यविमूढ़ सी क्या कहती, कैसे समझाती उसे कि कितना मुश्किल होता है यूँ उसे दरकिनार कर देना सुनकर भी अनसुना कर देना और फिर भी छिपाए रखना उसे रखना ज़िंदा अपने ही अन्दर रे मन मेरे !! मैं कैसे तुझे बताऊँ जो त... more »

विश्व पुस्तक मेला ...दिल्ली (इंटरनेशनल बुक फेअर )

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ
आप सब सादर आमंत्रित हैं ......विश्व पुस्तक मेला ...दिल्ली मैं,अंजु चौधरी अपना दूसरा कविता संग्रह "ए-री-सखी " और स्वत्रंत संपादन के क्षेत्र में कदम रखते हुए ''अरुणिमा'', एवं मुकेश कुमार सिन्हा जी और रंजू भाटिया जी के साथ मिल कर हम लोगों का दूसरा साँझा काव्य संग्रह ''पगडंडियाँ''के विमोचन के अवसर पर हम आप सबको दिल से आमंत्रित करते हैं .आपकी सब की उपस्थिति और शुभकामनाएँ हमें संबल देंगी और नव सृजन के लिये प्रोत्‍साहित करेंगी. दिल्ली के प्रगति मैदान में ४ फरवरी २०१३ से शुरू हो रहें विश्व पुस्तक मेला (इंटरनेशनल बुक फेअर )में ,१० फरवरी २०१३ का दिन तीनों ही पुस्तकों के विमोचन के लिए निश्चि... more »

"वो" ने खूब हँसाया

भावना पाण्डेय at रूद्र
हा हा हा मज़ा आ गया। मैने पिछली दो एक ब्लाग पोस्ट पर "वो" के बाबत विचार लिखे थे। फेसबुक पर "वो" कौन है यह बताया भी मगर ये जानकर हसीँ रुक नहीँ रही की "वो" से किसने खुद को/किसी को समझा ।कसम से एसे लोग भी न "एक आइटम " ही हैँ। अपनेआप की/किसी की हमारी लाईफ मेँ कोई अहमियत भी है ये समझने की गफ़लत मेँ जीते हैँ।मगर क्यू भई ?

कलम तुम उनकी जय बोलो...

नजर टेढ़ी जवानो की भिची जो मुट्ठिया हो फिर भगत आजाद अशफाको की रूहे झूम जाती है, जय हिंद के जयघोष से उट्ठी सुनामी जो तमिलनाडु से लहरे जा हिमालय चूम आती है मेरी धरती मेरा गहना इसे माथे लगाउंगा जब तक सांस है बाकी इसी के गीत गाउंगा, गुजरी कई सदिया मगर इक वास्ते तेरे हजारो बार आया हू हजारो बार आउंगा कहू गंगा कहू जमुना कहू कृश्ना कि कावेरी रहू कश्मीर या गुजरात या बंगाल की खाडी, मै हिन्दी हू या उर्दू हू कन्नड हू कि मलयालम मै बेटा हू सदा तेरा तु माता है सदा मेरी तेरे नगमे मेरे होठों पे कलमा के सरीखे है तेरे साए हूँ इस बात का अभिमान कर... more »

मिलिये छोटू से ...

शिवम् मिश्रा at जागो सोने वालों...
मिलिये छोटू से ... इस की इस मुस्कान पर मत जाइए साहब ... बेहद शातिर चीज़ है यह ... "देखन मे छोटो , घाव करे गंभीर" टाइप ... इस से बचना नामुमकीन है ! आप कितनी भी कोशिश कर लीजिये ... इस से आप नहीं बच सकते ... दावा है मेरा !! गली के नुक्कड़ की चाय की दुकान हो या हाइवे का ढ़ाबा यह छोटू आप को हर जगह मिल जाता है आप चाहे या न चाहे ... और तो और कभी कभी तो आपके घर तक आ जाता है जैन साहब की दुकान से आप के महीने के राशन की 'फ्री होम डिलिवरी' करने ... कैसे बचेंगे आप और हम इस से ... कभी सोचा है !!?? ज़रा सोचिएगा ... समय मिले तो ... वैसे जरूरी नहीं है !====================== *जागो सोने वालों ...*

लाला लाजपत राय

Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता at रेत के महल
पंजाब केसरी के बारे में हम सब ही जानते हैं । 28 जनवरी को जन्मे लालाजी एक लेखक और अडिग नेता थे । कोंग्रेस के नरम रवैये के साथ सहमत न रहने से, लालाजी ने कोंग्रेस के "गरम दल" का निर्माण किया, जो "लाल बाल पाल" समूह भी कहलाया ( गरम दल में लाला लाजपत राय के साथ बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे) साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन में पुलिस लाठीचार्ज से ये बुरी तरह घायल हुए और 17 नवम्बर

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा मैथली शरण गुप्त को स्त्री है तेरी यही कहानी आँचल में है दूध आँखों में है पानी वो पानी नहीं आंसू हैं वो आंसू जो सागर से गहरे हैं आंसू की धार एक बहते दरिया से तेज़ है शायद बरसाती नदी के समान जो अपने में सब कुछ समेटे बहती चली जाती है अनिश्चित दिशा की ओर आँचल जिसमें स्वयं राम कृष्ण भी पले हैं ऐसे महा पुरुष जिस आँचल में समाये थे वो भी महा पुरुष स्त्री का संरक्षण करने में असमर्थ रहे मैथली शरण गुप्त की ये बातें पुरषों को याद रहती हैं वो कभी तुलसी का उदाहरण कभी मैथली शरण का दे स्वयं को सिद्ध परुष बताना चाहते हैं या अपनी ही जननी को दीन हीन मानते हैं ऐसा है पूर्ण पुरुष का अस्तित्व...

हँसी को जिंदा रखना है तो ....

सदा at SADA
सच कहो ऐसा कोई होता है क्‍या ??? दर्द में मुस्‍कान :) घायल अन्‍तर्मन बड़ा ही विरल क्षण रहा होगा जब विधाता ने तुम्‍हारे मन को ये हौसला दिया होगा स्‍व का ओज़ लिये तुम एक नई दिशा चुनती सच ही तो है रूपांतरण में दमन नहीं बोध होता है जैसे वैसे ही तुमने चुनौतियों से सीखा है हर दिन कुछ नया करना तुम्‍हारी जीवंत विचार शक्ति प्रेरित करती है और एक नई ऊर्जा का संचार करती है ... कितना खरा था तुम्‍हारा व्‍यवहार स्‍नेह के बदले में तुमने समर्पण सीखा मान के बदले में तुमने आशीषों का खजाना लुटा दिया दोनो हाथों से, बदले में क्‍या मिला ये जब भी पूछा तुम टाल गई या बदल दी दिशा बातों की .... सच क... more »

'विश्वरूपम' - बिना मतलब का विवाद

'विश्वरूपम' पर बिना मतलब का विवाद उठाया जा रहा है। मामला कोर्ट में है, जिसे दोनों पक्षों की बात सुनकर फैसला सुनाना चाहिए। राजनितिक कारणों से अथवा पब्लिसिटी के लिए विवाद करना, विरोध स्वरुप जगह-जगह तोड़-फोड़ करना, धमकियाँ देना घटिया मानसिकता है। किसी भी बात का विरोध करने अथवा अपना पक्ष रखने का तरीका हर स्थिति में लोकतान्त्रिक और कानून के दायरे में ही होना चाहिए। मैंने 'विश्वरूपम' नहीं देखी, इसलिए फिल्म पर टिपण्णी करना मुनासिब नहीं समझता हूँ, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढोल पीटने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों से इतना ज़रूर मालूम करना चाहता हूँ कि दूसरे पक्ष को सुने बिना अपनी बात ... more »

सब काला हो गया है..

कुछ नहीं है, कुछ भी तो नहीं है... बस अँधेरा है, छितरा हुआ, यहाँ, वहाँ.. हर जगह... काले कपडे में लिपटी है ये ज़िन्दगी या फिर कोई काला पर्दा गिर गया है किसी नाटक का... इस काले से आसमान में ये काला सूरज काली ही है उसकी किरणें भी चाँद देखा तो वो भी काला... जो उतरा करती थी आँगन में अब तो वो चांदनी भी काली हो गयी है... उस काले आईने में अपनी शक्ल देखी तो आखों से आंसू भी काले ही गिर रहे थे.. डर है मुझे, कहीं इस बार गुलमोहर के फूल भी तो काले नहीं होंगे न....
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. फ़िर एक सामयिक सवाल के साथ चुनिंदा पोस्टों को सहेज़ लाए हैं आप मिसर जी । बेहतरीन प्रस्तुति

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  2. तस्वीर गर ये बदल जाये तो क्या है...:(

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  3. सारे लिंक पढ़ने योग्य ...सहेज लिये हैं अभी ...

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  4. बाल श्रम का मूल कारण गरीबी और लालच है
    मेरी पोस्ट को यहा स्थान देने का शुक्रिया शिवम भाई.

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    आभार आपका

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  6. गंभीर मुद्दा उठाया गया है इस बुलेटिन के माध्यम से...

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