युगों से एक ही प्रश्न
एक ही गुहार - परिवर्तन परिवर्तन परिवर्तन ....
किसने राहत की सांस ली
आपने?आपने?आपने?
शिक्षित तो हम हुए
गाँव गाँव बिजली जली
कई संस्थाएं खुलीं
पैसे की तो बरसात हुई समझो
पर ...... किस परिवर्तन ने सबको अकेला बना दिया
मांग - और और और में तब्दील हो गई
रोटी कपड़ा और मकान की परिभाषा बदल गई
रिश्तों के तेवर बदल गए ... कितने युग और चाहिए परिवर्तन के लिए ताकि एक स्वस्थ समाज,देश की रचना हो ......
कोई भी घटना जब अपने चरम पर पहुंचती है तभी अखबारों की सुर्खियाँ बनती है. लेकिन उन सुर्ख़ियों तक पहुँचने की नीचे वाली पायदानों तक भी बहुत कुछ घटित होता रहता है, समाज में. हम, अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में लिप्त,अपने समान विचारों वाले लोगों के बीच उठते बैठते,सीमित दायरे में क़ैद , यह जान ही नहीं पाते कि अभी तक कितनी ही कुरीतियों , उंच-नीच ,भेदभाव, और संकीर्ण मानसिकता से आप्लावित है हमारा ,दूसरे क्षेत्रों में तेजी से प्रगति करता समाज.
महानगरों की छोड़ दें तो बड़े शहरों में भी ...............
महानगरों की छोड़ दें तो बड़े शहरों में भी ...............
घुघूतीबासूती: चाहें तो कई युग लग सकते हैं चाहें तो ...
रश्मि रविजा का लेख ' कितने युग और लगेंगे इस मानसिकता को बदलने में??' पढ़ा। उन्होंने लेख में बेटी के विवाह के समय वर पक्ष द्वारा उसके माता पिता का घोर अनादर किए जाने की घटना बताई है। यह होता रहता है। समाज में ऐसे व्यवहार को बहुत सही न भी कहा जाए तो भी उसे सहा जाता है। वह व्यवहार वर पक्ष से कुछ कुछ अपेक्षित भी होता है। ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले तक पति द्वारा पत्नी को डाँटा जाना, पत्नी का पति से कुछ भी ( खाना खाने पकाने, कपड़े धोने, घर की सफाई आदि से कुछ बड़ा काम ) करने से पहले अनुमति लेना, पति का घर के काम में हाथ न बँटाना आदि सब अपेक्षित व्यवहार होते थे। यदि कोई इससे हटकर काम करता था तो उस सामान्य व्यवहार को महान की श्रेणी में डाल दिया जाता था। यदि कोई पति पत्नी को डाँटता नहीं था, उसे अपने मन का करने देता था,( तो विचित्र क्या हुआ? क्यों भाई, प्रकृति ने मन और दिया ही क्यों था उसे?) घर के काम कर देता था, बच्चे की नैपी बदल देता था, रोते बच्चे को चुप करा देता था तो स्त्री को ऐसा लगता था जैसे पिछले जन्म में उसने ना जाने क्या पु्ण्य किए थे कि उसे ऐसा पति मिला। वह यह नहीं सोचती थी कि ऐसा ही पति मिलना उसका अधिकार है। जिसका पति यह सब नहीं करता वह दुर्भाग्यवान है, उसे पति के व्यवहार में बदलाव की माँग व कोशिश करनी चाहिए।
जब तक रहते हैं हम तब तक इमारत सांस लेती है और त्यक्त होते ही मानों इमारत का भी जीवन समाप्त होने लगता है... और विरानगी समाते समाते धीरे धीरे वह बन जाता है खंडहर!
हर युग की यही कहानी है, हर इमारत ढ़हती है..., यादों के महल भी समय के साथ खंडहर बन जाते हैं..., हमारा शरीर भी तो एक रोज़ कभी बुलंद रही छवि का अवशेष मात्र ही रह जाता है...!
न जाने कितनी मनौतियों मांगी देवी मईया से
बहुत अनुनय विनय की थी बाबा नें
तब कहीं जन्मी थी वैदेही ---दुनिया में आते ही -
बंदूकें दाग कर स्वागत हुआ था उसका
लोग जलभुन कर बोले भी --छठी मनाये हैं
मानो कुलदीपक जन्मा हो ---पराई अमानत है
kaash sudhar jaaye sab
जवाब देंहटाएं.. कितने युग और चाहिए परिवर्तन के लिए ताकि एक स्वस्थ समाज,देश की रचना हो ......
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने ...
परिवर्तन से पहले परिवर्तन की पहल तो हो ... यहाँ तो वही होती नहीं दिखती :(
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंजबतक सोच में परिवर्तन नहीं होगा तब तक सामाजिक परिवर्तन की आशा करना बेकार है.
जवाब देंहटाएंNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
हर युग पीड़ा और बढ़ा जाता है धीरे धीरे
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन करने के लिए खुद में परिवर्तन लाना होगा,खुद को बदलना नही दूसरो को दोष देना बेकार है,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
दीदी की ट्रेडमार्क प्रस्तुति और हॉलमार्क असर!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ,इतनी पुरानी पोस्ट याद रखने के लिए .
जवाब देंहटाएंदूसरी पोस्ट भी बहुत सार्थक हैं
सभी लिंक्स एक से बढकर एक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सुन्दर लिंक्स...
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