प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
आज १५ जनवरी है ... आज ही दिन सन १९४८ मे
फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा ने भारतीय सेना के पहले कमांडर इन
चीफ़ के रूप मे कार्यभार संभाला था ... तब से ले कर आज तक हर साल १५ जनवरी
को भारतीय सेना अपना सेना दिवस मनाती आई है ! हर साल इस दिन भारतीय सेना का
हर एक जवान राष्ट्र के प्रति अपने समर्पण की कसम को दोहराता है और एक बार
फिर मुस्तैदी से तैनात हो जाता है राष्ट्र सेवा के लिए ! इस दिन की शुरुआत
दिल्ली के अमर जवान ज्योति पर शहीदों को सलामी दे कर की जाती है ! इस साल
भारतीय सेना अपना ६५वां सेना दिवस मना रही है !
एक हमारा देश, हमारा वेश,
हमारी कौम, हमारी मंज़िल,
हम किससे भयभीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
प्रणाम !
फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा |
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
एक हमारा देश, हमारा वेश,
हमारी कौम, हमारी मंज़िल,
हम किससे भयभीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
- डा ॰ हरिवंशराय बच्चन
सादर आपका
शिवम मिश्रा
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घोंघा बसंत
कभी तुममे था जीवन ! रेत कुरेदने पर निकल आये हो बाहर। अब खाली हो असहाय खालीपन के एहसास से परे बन चुके हो खिलौना खेलते हैं तुम्हें रेत से बीन-बीन बच्चे ढूँढता हूँ तुममें जीवन काँपता हूँ भरापूरा अपने खालीपने के एहसास से! मैं घोंघा बसंत।
अवांछित टहनियाँ ...
कुछ ताज़ी हवा के लिए खिड़की खोली तो ठंडी हवा के साथ तेज कर्कश सी आवाजें भी आईं, ठण्ड के थपेड़े झेलते हुए झाँक कर देखा तो घर के सामने वाले पेड़ की छटाई हो रही थी।एक कर्मचारी सीढीयाँ लगा कर पेड़ पर चढ़ा हुआ था और इलेक्ट्रिक आरी से फटाफट टहनियां काट रहा था, दूसरा ,थोड़ी दूरी पर ही ट्रक के साथ रखी मशीन में उसे डालता जा रहा था , जहाँ हाथ की हाथ उन लकड़ियों के चिप्स बनते जा रहे थे जिन्हें उस ट्रक में इकठ्ठा किया जा रहा था , और फिर इन्हें फुटपाथ की खुली मिटटी के ऊपर डाल दिया जाता है जिससे की मिट्टी या धूल न उड़े, यानि उन टूटी हुई टहनियों की रिसायकलिंग की जा रही थी। यह कार्य यहाँ प्र... more
ज्वाला बनकर दमको
इस तरह, घुटनो में सर छुपाकर आँखो से आँसू बहा कर क्या होगा..? उठो ! बदल डालो अपनी इस छबि को बन कर दुर्गा काली संघर्ष का तुम बिगुल बजादो उठा लो, हाथों में हौसलों का तलवार और करो दुराचारियों का संहार फिर कभी कोई दुष्कर्म का साहस न कर सके कर दो नष्ट इस रक्त बीज को फिर कभी कोई दुर्भाव न पनप सके तुम एक शक्ति हो,खुद को पहचानो ज्वाला बनकर दमको भीतर एक आग जगाओ पड़ने वाले हर कुदृष्टि को भस्म कर डालो कोई कृष्ण नहीं आयेगे खुद को खुद ही बचाना होगा लेकर हाथों में मशाल कर लो खुद से एक वादा बदल डालो इस भ्रष्ट समाज को जिससे हर स्त्री,निर्भयता से कही भी आजा सकें फिर कभी more »
वो तनहा !
*छोड़कर घर फुटपाथ पर वो पड़ा था वक़्त ने कितना कड़ा चांटा जड़ा था गाँव को लगता था साहब बन गया वो आखिरी दम सांस में काँटा गड़ा था सपने तोड़े सबके और उम्मीदें जलाई राख पर अपनी आज वो तनहा खड़ा था की बगावत समझा खुद को सिकंदर पेट का सच आज सपनो से बड़ा था किस तरह कहता मुझे वापस बुला लो सारे घर से रात भर कितना लड़ा था *
रिश्तों का गणित
मैंने मैंने रख दिया था हर रिश्ता अलग अलग कोष्ठ में और सोचा था कि हल कर लूँगी रिश्तों के सवाल गणित की तरह पर रिश्ते कोई गणित तो नहीं निश्चित नहीं होता कि कौन सा कोष्ठ कब खोलना है किसे गुणा करना है और किसे जोड़ना है बस करती रहती हूँ कोशिश कि रिश्तों के कोष्ठकों के मिल जाएँ सही हल और रिश्तों का गणित हो जाए सफल ..
बोलती कहानियाँ - ठिठुरता हुआ गणतन्त्र
'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में मंटो की रचना "खोल दो" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य "ठिठुरता हुआ गणतंत्र" जिसे स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। इस व्यंग्य का पाठ (टेक्स्ट) हिंदिनी पर पढ़ा जा सकता है। "ठिठुरता हुआ गणतन्त्र" का कुल
अब वार्ता नहीं, युद्ध हो अंतिम विकल्प
पाकिस्तानी सेना का जो कुकृत्य अभी हाल में दिखा, उसमें चौंकाने वाली बात कम दिखी। उस देश का जन्म और तन्त्र, दोनों ही नफरत पर आधारित रहे हैं। ऐसे में उनसे अमन की, भाईचारे की, सौहार्द्र की आशा करना अपने आपमें बेमानी है। राजनैतिक रूप से, कुटनीति के रूप में भी उस ओर से कभी भी सकारात्मक माहौल बनता दिखा नहीं है, जो भी, जितने भी कदम उस ओर से उठाये गये हैं वे कहीं न कहीं एक प्रकार का दिखावा ही साबित हुए हैं। पाकिस्तान का मूल स्वरूप देखकर उससे प्रत्येक पल में ऐसे ही कुकृत्य की आशा रहती है। इससे पहले एक-दो बार नहीं, कई-कई बार उसने तमाम सारे नियमों, संधियों का उल्लंघन करके more »
याद की रेज़गारी के बीच
एक बेपरवाही का पर्दा है। मुसलसल हवा की आमद के साथ हिलता है और धोखा होता है कि कोई आया। दीवार पर बीते दिन की महीन परछाई है। उड़ते हुये रंगों की याद का कोलाज है। फूल सा फाहा है स्मृति का। हालांकि नहीं लौट कर आता कुछ भी फिर भी दुआ भी कोई चीज़ है। जहां रहे खुश रहे, आक के डोडे से बिछुड़ा हुआ सफ़ेद पंख लगा उम्मीद सरीखा बीज सा पल। उदासियों की विदाई की कुछ बातें हैं, बेवजह बातें। कि जिंदगी के बस्ते में रखी याद की रेज़गारी के बीच एक चेहरा खड़ा है, रुत बदलने की उम्मीद लिए खड़े किसी पेड़ की तरह। * * * याद करना चाहिए उस दुख को जिसके साथ पहली बार आया था मुक्ति का खयाल। मैं मगर दिल more »
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी...क्या करूँ?
*क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?* *अमर शहीद* *क्या करूँ?* *मैं दुखी जब-जब हुआ संवेदना तुमने दिखाई,* *आप और हम* *मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा, रीति दोनो ने निभाई, किन्तु इस आभार का अब हो उठा है बोझ भारी; क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? * *एक भी उच्छ्वास मेरा हो सका किस दिन तुम्हारा? उस नयन से बह सकी कब इस नयन की अश्रु-धारा? **सत्य को मूंदे रहेगी शब्द की कब तक पिटारी? क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? * *कौन है जो दूसरों को दु:ख अपना दे सकेगा? कौन है जो दूसरे से दु:ख उसका ले सकेगा? क्यों हमारे बीच धोखे का रहे व्यापार जारी? क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? क्यों न... more »
जीती-जागती "की-चेन"
पैसा कमाने के लिए इंसान क्या-क्या तरीके इजाद करता है और उसके लिए कहां तक नृशंस हो सकता है इसका उदाहरण चीन में शुरु हुए एक नये खब्त से समझा जा सकता है। चाहे "पेटा" वाले लाख कोशिश कर लें पर इंसान का शैतानी दिमाग जीव-जंतुओं पर जुल्म करने से बाज नहीं आता। चीन में भी हमारी तरह वास्तु इत्यादि पर विश्वास करने वाले लाखों लोग हैं। जो मानते हैं कि जल-जीवों को अपने साथ रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी धारणा को भुनाने के लिए किसी खब्ती दिमाग के व्यापारी ने वहां आजकल छोटी-छोटी मछलियों और कछुओं को प्लास्टिक की थैलियों में बंद कर "की चेन" की तरह बेचना शुरु कर दिया है। जिससे आशातीत कमाई होन... more »
उफ़ कैसे हो तुम एकदम ट्रेडिशनल सैडिस्ट से - ?
उफ़ कैसे हो तुम एकदम ट्रेडिशनल सैडिस्ट से - ? ------------------------------------------------ तुम मेरी पतंग को हमेशा काट क्यूँ देते हो ? क्यूँ नहीं उड़ने देते मुक्त आकाश में उसमे में मै खुद को महसूस करती हूँ न पर तुम ---बस हो न वही --ट्रेडिशनल पुरुष कांच वाला तीखा मांझा लाकर चुपके से - अरे ना ना सीनाजोरी से काट देते हो मेरी पतंग मेरी उड़ान ---कैसे हो तुम एकदम सैडिस्ट --छीन लेते हो मेरा आकाश कोई कैसे मुस्करा सकता है --किसी के आंसू पे इसी लिए तो तुम्हे सैडिस्ट कहा -- हो न तुम एकदम वही . एक बात कहूँ सुनो ---अब ज्यादा खुश न हो अब मेरी कोई उड़ान तुम नहीं रोक पाओगे मैने तुम्हारे तीखे ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
जय हिन्द की सेना !!!
गज़ब की फास्ट सर्विस है आपकी! मैं तो दंग रह गया। अभी तो पोस्ट किया था। ..आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिनक्स, बच्चन जी की कविता पढवाने का आभार
जवाब देंहटाएंसबसे बेहतर कविता है बच्चन जी की। बेटे के लिए ले लिया हूँ इसका प्रिंट . खूबसूरत पोस्ट
जवाब देंहटाएंजय हिंद की सेना.
जवाब देंहटाएंवाकई सर्विस तेज है एकदम डोमिनोज पिजा की तरह :).
ये है सबसे तेज सर्विस - शिवम सर्विस...
जवाब देंहटाएंजिसमें है जादू स्नेह का और टोना है मुस्कान का....
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
गज़बई ढाए हो भैया.......आभार हमारी पोस्ट के लिए.....
जवाब देंहटाएंबच्चन जी की कविता पढ़वाने के लिए आभार .... बढ़िया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंआज की तारीख में इससे बेहतर और सटीक कुछ और नहीं हो सकता ,। सार्थक बुलेटिन । सभी लिंक्स और पोस्टें संग्रहणीय हैं
जवाब देंहटाएंसार्थक बुलेटिन । सभी लिंक्स और पोस्टें संग्रहणीय हैं... ब्लॉग में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंएकदम खरी खरी...
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर सूत्र, भारत का सीना तना रहे।
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया बुलेटिन
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