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शनिवार, 8 दिसंबर 2012

प्रतिभाओं की कमी नहीं अवलोकन 2012 (7)


अवलोकन का लक्ष्य यज्ञ प्रोज्ज्वलित है,अश्वमेध यज्ञ की तरह .... अश्वमेध यज्ञ वही कर सकता था,जिसका वर्चस्व हो - यहाँ हिंदी साहित्य की कलम यानी सरस्वती का वर्चस्व है = सौभाग्य मेरा , मैं सारथी बनी हूँ .... दसो दिशाओं में अपनी आँखों को सजगता से भेजा है, जो रह जाये वह 'है', तयशुदा प्रयोजन के अनुसार उसका नम्बर अगले वर्ष होगा :)
यात्रा के आज के पड़ाव पर हैं क्रमशः ....
सबसे पहले अनुपम ध्यानी -

हर मोड़ पे है मौका
हर राह में है मौका
हर जीत , हर हार में है मौका
और मैं मौका परस्त हूँ

हार में है जीत का मौका
जीत में है त्याग का मौका
त्याग में है मोक्ष का मौका
और मैं मौका परस्त हूँ

अतीत में है अनुभव से सीखने का मौका
वर्तमान में है सपने देखने का मौका
भविष्य में सपने साकार करने का मौका
और मैं मौका परस्त हूँ

कौन कहता है मौका परस्ती एक दोष है
जिन्हें मौके मिलते हैं वह उन्हें बहा देते हैं
जीने नहीं मिलते वह भाग्य को ललकार देते हैं
पर मौका परस्ती में जो स्वाद है
वह शतरंज की छाओं में भी नहीं
जीत की मशालों में भी नहीं

मौका न मिले तुझे तो छीन ले मौका
जो तेरे मौके छुपा के रखते हैं
उन्हें तू त्याग दे,
अपने मौकों को खुद आकर दे
मौका परस्त न होगा तो
जीवन बिना ध्वज लहराए मुरझा जाएगा
तेरे नाम का दीप जले बिना ही इतिहास चला जाएगा

हमदमों में जो नाम आयेंगे,
मैं ये समझा था काम आयेंगे.

दस्तखत करके जिंदगी बेची,
अब तो किश्तों में दाम आएंगे.

ग़म टहलने चले गए शायद,
शाम तक घूम घाम आएंगे.

छोड़ दो उँगलियों पे अब गिनना,
रोज़ ऐसे मुकाम आयेंगे.

मुद्दतों बाद आज बैठे हैं,
आज हाथों में जाम आएंगे.

बहुत ज़रूरी है विचारों पर ठहरना ..... ठहरे नहीं तो न जानेंगे , जानकार भी होंगे अनजान .... एक बार सोचिये तो =

हर तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा है ! जिसे देखो उसे ही गिरफ्तार कर ले रहे हैं लोग  ! कारण ? --उनके अहम् को ठेस पहुँच गयी !  सरकार तो इंतज़ार में ही बैठी थी की फेसबुक वालों की कलम तोड़ दी जाए !  इन गिरफ्तारियों को देखकर उन्हें तो मौक़ा मिल गया फेसबुक पर लिखने वालों के खिलाफ ! बना दिया क़ानून ! अब भुगतिए 66-A को,  स्वतंत्र लेखन अब संभव ही नहीं है ! जी-हुजूरी का तडका तो लगाना ही पडेगा इन तानाशाहों के लिए !

अब न लोकतंत्र होगा , न ही आजादी , सिर्फ और सिर्फ बचेंगे तानाशाह और उनकी चाटुकार गुलाम जनता !  या तो तलवे चाटो या फिर गिरफ्तार हो जाओ! अपने अहम् को पोषित करने में उन्होंने ये भी नहीं देखा की उन्होंने स्वयं अपने पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार ली है !

लेकिन इन तानाशाहों को ये नहीं पता की की कभी नाव गाडी पर तो कभी गाडी नाव पर होती है ! आज इनको जितना तपना है तप लें , लेकिन तानाशाही के दिन पूरे अवश्य होते हैं ! औरंगजेब हो या सद्दाम , सभी के दिन पूरे हुए हैं ! विद्रोह को जन्म देती इस तानाशाही और इन तानाशाहों का भी अंत निकट ही है !

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  का हनन एक बहुत बड़ा गुनाह है ! इसका अंत होना ही चाहिए ! अन्यथा नयनों, पलकों , होठों पर रचे गए साहित्य ही बचेंगे , उनका रस , उनके प्राण  और लेखन की जीवंतता समाप्त हो जायेगी और साथ ही साथ बहुत से लेखक भी !

तो कीजिये चिंतन .... अगली सुबह तक 

13 टिप्‍पणियां:

  1. आदरनिया रश्मि जी,
    मेरी रचना तो स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार।

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  2. बहुत सुन्दर मन भावन प्रस्तुतीकरण ।

    जवाब देंहटाएं
  3. रश्मिजी हमेशा की तरह .....:)

    जवाब देंहटाएं
  4. एक और बेहद उम्दा पेशकश ... आभार रश्मि दीदी !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया रचनाएँ रश्मि दी...

    आभार
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहद खूबसूरत और संकलनीय श्रंखला चल रही है रश्मि दी । चुन चुन कर बेहतरीन पोस्टों का संचय किया आपने । आपके श्रम को नमन । अभी लौट कर आया हूं देखता हूं पिछली सारी कडियों को भी

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  7. छोड़ दो उँगलियों पे अब गिनना,
    रोज़ ऐसे मुकाम आयेंगे...!!!

    सभी रचनाओं का चयन एवं प्रस्‍तुति ...लाजवाब

    आभार आपका

    सादर

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  8. zeal ब्लॉग से दी गयी पोस्ट पहले ही पढ़ चूका हूँ , बहुत सही वषय पर सवाल |
    गजलनुमा कविता बहुत अच्छी लगी |

    सादर

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