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बुधवार, 19 दिसंबर 2012

प्रतिभाओं की कमी नहीं अवलोकन 2012 (16)



किनारा नदी के साथ होता है
नदी किनारों को तोड़ आगे बढ़ना चाहती है 
तलाश अपने अपने किनारों की होती है 
बाँध दिया तो तलाश कहाँ 
विस्तार कहाँ !
साधारण रेखा हो या लक्ष्मण रेखा 
बाँध तोड़ने के तूफ़ान ही सीख बनते हैं 
... संबंधों के आगे लकीर अमिट हो ही नहीं सकती 
सोचो ना,
लकीर खींचकर तुमने पंखों को बाँध दिया 
नियति को बाँध दिया 
... नियति भला बंधन स्वीकार करती है ...
उसे तो बढ़ना होता है 
.... सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होने की तलाश में 
तलाश तत्व में विलीन होने की 
स्वत्व के ऐतिहासिक परिवेश के लिए ........................ 
................................................................................................... प्रतिभाओं की अबाध गति से बहती भावनाएं ऐतिहासिक अवलोकन बन जाये - यही प्रयास है लक्ष्य है एहसास भेदी 

स्पंदन SPANDAN: उलझा सुलझा सा कुछ...(शिखा वार्ष्णेय)


मन की राहों की दुश्वारियां
निर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा पर
और यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करते 
ये तो होती हैं संभावनाओं की गुलाम 
ये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयं 
देख कर हालातों का रुख 
मुड़ जाती हैं दृष्टिगत राहों पे
कुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों में 
फिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएं 
आपके ही हाथों में निहित होती हैं.
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कुछ पल छोड़ देने चाहिए यूँ ही 
तैरने को हलके होकर 
शून्य में 
मिले जहाँ बहाव ,बह चलें
क्यों जरुरी है उनका 
सही गलत निर्धारण करना
उन्हें भारी बना देना 
और करना ज़बरदस्ती,
बाँधे रखने की कोशिश।
जबकि बंध तो नहीं पाते वे फिर भी
क्योंकि मन की डोरी होती है बड़ी कच्ची 
उससे बाँध भी लें  उन पलों को 
तो रगस उसमें भी लगती है 
फिर शनै : शनै :  कोमल सी वो डोरी 
टूट जाती है कमजोर होकर. 


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मेरा अपना मेरा है 

उस पर हक़ भी मेरा है
क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका 
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो 
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .

एक दिन भगवानने आकर मुझसे कहा ,
बस तेरे पास अब बारह घंटे बाकी है ..
तेरी जिंदगीके ...जी ले जो तेरी आरजू हो ,
पूरी हो जायेगी जो तू चाहे ....
मैंने मुस्कुरा दिया ....
बस जो भी कर रही थी वो करती रही ...
भगवानको लगा मैंने उनकी बात को
कोई तवज्जो नहीं दी .....
ग्यारह घंटे के बाद वो फिर मेरे पास आये ,
मुझसे कहा मैं तुम्हे फिर एक पूरा दिन देना चाहता हूँ ,
अभी भी जी ले जैसे तू चाहे ....
मैंने कहा उन्हें ...
जानती हूँ भगवान मेरे होते हुए भी
दुनिया ऐसे ही जीती है जैसा वो चाहती है ,
मेरे बाद भी वैसे ही जियेगी जैसे जी आ रही है ,
कुछ नहीं बदलेगा इसमें ...सिर्फ मैं ही नहीं होउंगी ,
और धीरे धीरे सिर्फ यादोंके दायरेमें कैद हो जाउंगी ....
लेकिन ...अगर आप मुझे इस लिए दो बार मिलने आये ,
उससे बढ़िया किस्मत क्या हो सकती है ,
जो बरसों की तपश्चर्या के बाद भी न होता है ,
वो आपके दीदार मुझे निस्पृह होने पर मिल गए ....
चलो आपका हाथ थामे आपके साथ ही ले चलो ........

अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं 

महकती जाती ये जज़्बात से फ़िज़ाएं हैं
कोई कहीं मेरे अश’आर गुनगुनाएं हैं

वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं

ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
मैं मानता हूं ...मेरी भी..... कई ख़ताएं हैं

मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं

6 टिप्‍पणियां:

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