प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
आज बातें नहीं ... आज सिर्फ और सिर्फ स्व॰ अदम गोंडवी जी की एक नज़्म ... और कुछ नहीं ...
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में "
इस के बाद कुछ भी कहने की कोई गुंजाइश नहीं रहती ... है कि नहीं ???
सादर आपका
शिवम मिश्रा
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अभी नहीं चुका हूँ मैं...
आनन्द वर्धन ओझा at मुक्ताकाश....[मित्रों, आज प्रभु-कृपा से मैंने जीवन के साठ वर्ष पूरे किये हैं. सुबह सोकर उठा, तो प्रथमतः जो भाव उपजे, उन्हें कविता-तत्त्व का ख़याल किये बिना लिख डाला था. इन भावों को आपके सम्मुख रख रहा हूँ. --आ.] मैं न रुका था कभी, मैं न झुका था कभी, जीवन की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते साठ सीढ़ियाँ लाँघ चुका मैं सोच रहा हूँ-- अभी और आगे चलना है, निर्द्वंद्व चलूँगा, नहीं रुकूँगा, लूँगा अब संकल्प नए, स्वर नए साधूंगा, काल के कपाल पर पाग न नया बांधूंगा, अवरोधों से जूझूंगा, जीवन को और ज़रा बूझूँगा ! जब तक सीढ़ी ख़त्म न हो चढ़ता जाउंगा, बढ़ता जाउंगा; चुकना होगा जब-- चुक जाऊँगा, *अभी नहीं चुका हूँ मैं...!*
.....और मैं हतप्रभ सा देखता रह गया!
noreply@blogger.com (Arvind Mishra) at क्वचिदन्यतोSपि...
पिछले कुछ दिनों मैं जौनपुर जनपद के अपने पैतृक आवास पर छुट्टियों के दौरान था जब 1/2 नवम्बर की रात को दो- ढाई बजे से चार बजे के दौरान वह अद्भुत आकाशीय नज़ारा दिखाई दिया. मुझे बचपन में ऐसा ही दृश्य दिखायी दिया था तब मेरी बाल सुलभ उत्सुकता को शांत करते हुए मेरे बाबा जी ने कहा था तुम यह जो घेरा सा देख रहो हो चंद्रमा के चारो ओर यह दरअसल इंद्र की सभा है और वे मौसम के आगामी रुख पर विचार विमर्श कर रहे हैं -घटना थी चन्द्र छल्ले या चन्द्र आभा की . चन्द्रमा ठीक मेरे सिर के ऊपर और उसके चारो ओर सटीक गोलाई में ४४ अंश का घेरा ....मैं विस्मित सा देखता रह गया -आधी रात के बाद की घोर निद्रा मे... more »
इरोम शर्मिला की कविता : अमन की खुशबू
Digamber Ashu at विकल्पअमन की खुशबू जब अपने अंतिम मुकाम पर पहुँच जाय जिन्दगी तुम, मेहरबानी करके ले आना मेरे बेजान शरीर को फादर कोबरू की मिट्टी के करीब आग की लपटों के बीच मेरी लाश का बादल जाना अधजली लकड़ियों में उसे टुकड़े-टुकड़े करना फावड़े और कुल्हाड़े से नफ़रत से भर देता है मेरे मन को बाहरी आवरण का सूख जाना लाजमी है इसे जमीन के अंदर सड़ने दो कुछ तो काम आये यह आने वाली नस्लों के इसे बदल जाने दो खदान की कच्ची धातु में मैं अमन की खुशबू फैलाऊंगी अपने जन्मस्थल कांगली से जो आने वाले युगों में फ़ैल जायेगी सारी दुनिया में *(देश-विदेश, अंक-10 में प्रकाशित. अंग्रेजी से अनुवाद पारिजात )*
शर्त ....
Ragini at अस्तित्वशर्त .... जीवन में, हर कदम पे, हर रिश्तें में, हर मोड़ पे, खड़ी है .... मुहँ बाए सुरसा की तरह। होती हज़म अक्सर ही उसको ..... ढेर सारी भावनाएं, चढ़ जाती हैं भेंट कई मान्यताएं, हो जाती हैं स्वाहा तेरी-मेरी अनेकों इच्छाएँ। जिंदगी शर्तों पे जी नहीं जाती पर ....... रोज़ ही जीते हैं हम, मर-मर के, करते ख़तम स्व अस्तित्व शर्तों के साए में। ............डॉ . रागिनी मिश्र ..............
क्या मांसाहार में कोई शक्ति है?
सुज्ञ at निरामिष
माँसाहार से आने वाले क्षणिक आवेश और उत्तेजना को उत्साह और शक्ति मान लिया जाता है। जबकि वह आवेग मात्र होता है विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह आतंक व वेदना से भयभीत हो जाता है उसका शरीर मरणांतक संघर्ष करता है परिणामस्वरूप उत्तेजक रसायन व हार्मोन उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे आवेशोत्पादक तत्व मांस के साथ उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं। दिल्ली के राकलैंड अस्पताल की मुख्य डायटीशियन सुनीता कहती हैं कि माँसाहार के लिए जब पशुओं को काटा जाता है तो उनमें कुछ हार्मोनल बदलाव होते हैं। ये हार्मोनल प्रभाव माँसाहार... more »
ये बगावत का दौर है यारों , और न सही , तेवर तो बनाए रखो ,
खाक होगी सियासत एक दिन , सीने में आग तो जलाए रखो ….ये जान ले सियासत बेशक तू बेशर्म दिल सख्त है ,और ये तेरा ही जो वक्त है,
हम भी हुंकारते रहेंगे तेरी नकेल कसने को , जब तक इस शरीर में रक्त है ….more »
पहली बरसी पर विशेष - ओ गंगा… बहती हो क्यूँ . ..
शिवम् मिश्रा at बुरा भला
विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार, निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम, ओ गंगा तुम. .. ओ गंगा… बहती हो क्यूँ . .. . . . नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई, निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ. . . . इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को सबल संग्रामी, समग्रगामी. . बनाती नही हो क्यूँ. . . . विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार, निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम, ओ गंगा तुम. .. ओ गंगा… बहती हो क्यूँ . .. अनपढ़ जन अक्षरहीन अनगिन जन खाद्यविहीन निद्रवीन देख मौन हो क्यूँ ? इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को सबल संग्रामी, समग्रगामी. . बनाती नही हो क्यूँ. ... more »
योजना के यज्ञ में शक्ति जिसे समिधा बनाती है, उसके क़दमों के निशाँ गहरे होते हैं ... आकाश मिश्रा
रश्मि प्रभा... at शख्स - मेरी कलम से
आकाश के उस पार क्या होगा ? निःसंदेह एक आकाश और - जो सितारों की सौगात लिए चाँद और सूरज के संग हमारे लिए छत बनकर हमारे लिए ही प्रतीक्षित होगा . उस आकाश के आगे भी कवि बच्चन ने कहा होगा - इस पार प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा !... उस पार का रहस्य,संभावनाएं हमेशा बनी रहती है और अनुसन्धान को विचरता मन उस दिशा में बढ़ता है,चिंतन करता है ... जीवन, जीवन को जीने के लिए आजीविका,उसके लिए शिक्षा-कर्मठता .... उस रास्ते से अपनी विशेष रूचि के लक्ष्य के आगे बढ़ना विशेष शक्ति की विशेष योजना है . इस योजना के यज्ञ में शक्ति जिसे समिधा बनाती है, उसके क़दमों के निशाँ गहरे होते हैं . लिख... more »
अबकी दिवाली ऐसी मनाना !
मुकेश पाण्डेय चन्दन at मुकेश पाण्डेय "चन्दन"*अबकी दिवाली ऐसी मनाना* *दीयों में नहीं , दिल में भी ज्योत जलाना * *दूर हो मन का अँधेरा , ऐसा हो प्रकाश * * बस घरों में ही नहीं , जीवन में भी हो उजास* *दीप मालाओं सा, प्रकाशित हो जीवन * *दूर हो अँधेरा , उज्जवल हो मन * *अपने ही नहीं , दूजों के जीवन में खुशियाँ लाना * * **अबकी दिवाली ऐसी मनाना* *खुशियों से उन्हें भर दो , जो दिल है खाली * * खुद तक सीमित न रखना ये दिवाली * * रोशन हो उनके घर भी, जिनकी सूनी है थाली * *सबके घर हो रोशन , ऐसी हो दिवाली * *दीयों में नहीं , दिल में भी ज्योत जलाना * *अबकी दिवाली ऐसी मनाना*
कुछ गुनाह ...!!!
सदा at SADA
कुछ गुनाह भागते हैं भागते ही रहते हैं सच का सामना करने से सच का भय उन्हें चैन से पलकें भी झपकने नहीं देता खोजती दृष्टि ... के आगे जब भी पड़े सूखे पत्ते से कांप उठे या पीला ज़र्द चेहरा लिये अपनी ही नजरो से ओझल होते ... कुछ गुनाहों को मैने देखा है नींद के लिये तरसते हुये खुली आंखों से लम्बी रातों की कहानी सन्नाटों को चीरती अंजानी आवाजें घबराकर कानों पर हथेलियों का रखना चिल्लाकर दीवारों के आगे सच कुबूल करना फिर पसीने से तर-ब-तर हो थाम लेना सिर को उफ् ये क्या हो गया ! के शब्द सच कहूँ जीना दूभर कर देते हैं ... कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी सच के सामने शर्मिन्... more »
उम्मीदों के चिराग़....!!!
यादें....ashok saluja . at यादें...
*यह रचना मेरे द्वारा पिछली **दीवाली **पर रची गई थी| * *जो मैंने सुबीर जी के रचे दीवाली** मुशायरे पर भेजी थी |* *पर मेरा भाग्य या दुर्भाग्य यह रचना दीवाली** बीत जाने पर ,* *एक और नौजवान शायर के साथ ' बासी दीवाली** मनाते है "के* *मौके पर सुबीर संवाद सेवा के मंच पर सुबीर जी ने प्रकाशित * *की थी.... * *आज भाग्य से इस रचना को मैं दीवाली** से थोडा पहले ही आपके * *समक्ष प्रस्तुत करके ....आपको दीवाली** की शुभकामनाएँ देना * *और अपने लिए आपसे स्नेह प्राप्त कर लेना चाहता हूँ ......* *तो प्रस्तुत है ,आप सब के लिए यह मेरी रचना...अग्रिम दीवाली** मुबारक * *और आशीर्वाद के रूप में !!!* उम्मीदों के... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
बढ़िया लिंक्स .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र...
जवाब देंहटाएंआभार शिवम् जी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
सभी लिंक्स बहुत अच्छे और विचारणीय
जवाब देंहटाएंमेरी ''शर्त'' बिना शर्त शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद शिवम् जी! सभी लिंक्स बहुत ही अच्छे हैं। आभार।
जवाब देंहटाएंभैया , अदम गोंडवी जी की ये नज्म तो मेरी पसंदीदा में से है , शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बहुत अच्छे हैं , 'कुछ गुनाह' और 'शर्त' विशेष पसंद आये |
सादर
शिवम बाबू!! ये नज़्म नहीं गज़ल है..!! और लिंक्स ज़ोरदार!!
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बहुत अच्छे और विचारणीय है... आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स...
जवाब देंहटाएंआभार इस बुलेटिन का...
अनु
स्व गोंडवी जी की ये रचना आज के परिपेक्ष्य में बिलकुल खरी उतरती है ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स ,
सादर
मधुरेश
जोरदार, हर पोस्ट मानो एक आयोजन
जवाब देंहटाएंवाह का खूबसूरत और सटीक पंक्तियां लाए हैं शिवम भाई । पोस्ट सब नायाब कतरे हैं । हमारी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स के साथ ... बुलेटिन
जवाब देंहटाएंआपका आभार