आज फ़ेसबुक पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं, किसी के जानें के बाद केवल उसके अच्छे गुणों की बात करना और उसके अवगुणों को नज़र-अंदाज़ करना हमारी परम्परा रही है लेकिन इसके बावज़ूद भी कुछ लोग विरोध की ही बात करते दिखे।
अपनी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व ही उन्होने एक लेख सामना में लिखा था जिसमेँ उन्होंने साफ-साफ ज़िक्र किया था कि मेरी हालत चिन्ताजनक है किन्तु मेरे देश की हालत उससे अधिक सोचनीय है, ऐसी हालत में चुप कैसे बैठ सकता हूँ। जी बिल्कुल ऐसे थे बाल ठाकरे... आज के हिन्दुस्तान में जब मौन प्रधानमंत्री हों जो पहले से लिखे हुए बयान को पढ जाते हों... एक लाईन का स्टेटमेंट भी खुद से बोलनें की हिम्मत न रखते हों और एक रबर स्टैम्प की हैसियत रखते हों वैसे में ठाकरे जैसे प्रखर वक्ता की एक पहचान का न होना वाकई हिन्दुस्तान की राजनीति की एक बहुत बडी क्षति है।
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पूरे बुलेटिन परिवार की तरफ़ से बाला साहेब को श्रद्धांजलि...
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माना सन्नाटा गहरा और लम्बा रहा
माना सन्नाटा गहरा और लम्बा रहा पर चुप की जुबान पर शहद से शब्द थे, हैं ... गलती तुम्हारी है सौ प्रतिशत तुम दरवाज़े तक आये नहीं तो शब्द ....... इंतज़ार बन गए ! तुमने सोचा ही नहीं जिम्मेदारियों की परेशानियां सबके घर आती हैं मेरे घर भी आयीं लम्बी छुट्टियां ले डेरा बसा लिया और तुमने सोचा हम गुम हो गए !!! धत्त- एहसास कहाँ गुम होते हैं वे तो जिम्मेदारियों के संग वक़्त की तलाश करते हैं ......... तो हमने तलाशा है वक़्त कहना जो है बहुत कुछ ... देना है विश्वास - जब तक है जान हम आयेंगे लम्हा लम्हा आपकी खिदमत में रख जायेंगे ......
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राहुल गांधी बोले तो पोंsपोंs पोंपोंs..पोंsss
*राजनीति* में पूरी तरह फेल राहुल गांधी का कद जिस तरह कांग्रेस बढ़ा रही है, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस को काम पर नहीं चमत्कार पर यकीन है, उसे लगता है कि चुनाव में अभी डेढ साल बाकी है, तब तक कहां लोगों को सरकार की चोरी-चकारी याद रहेगी। ये सोचते हैं कि देशवासी राहुल गांधी का चेहरा देखेंगे और कांग्रेस के हक में वोट करेंगे। अगर सरकार को काम पर थोड़ा भी यकीन होता तो पार्टी सबसे पहले केंद्र सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के धब्बे को धोने का प्रयास करती। मुझे ये कहने में कत्तई संकोच नहीं है केंद्र की मौजूदा सरकार आजाद हिंदुस्तान की सबसे भ्रष्ट सरकार है। बात यहीं खत्म नहीं होती, मैं ये भी कह ... more »
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विरोधाभासी दृष्टिकोण
विरोधाभासी दृष्टिकोण हमारे द्वारा ना अपनाए जाने का कारण यह है की हमारा इंसानी दिमाग अव्यवस्था से डरता है और स्वतः ही मौजूदा अनुक्रम को चुनौती देने वाले नए विचारों को ख़ारिज या नज़रंदाज़ कर देता है ! जब कोई नयी संभावना पेश की जाती है जो प्रचलित धारणा को चुनौती देती हो तो यह महत्वपूर्ण होता है की आप उस प्रचलित धारणा के इतिहास को समझने में सक्षम हों और यह भी समझा पाएं की इस तरह की धारणा जब पहली बार स्थापित की गयी तब हमारे समाज से कहाँ गलती हो गई। कभी तो प्रचलित धारणा के विरुद्ध प्रश्न करो -- - गांधी को राष्ट्र पिता क्यों कहा गया ? किसी और को क्यों नहीं ? - गरीबी से दम तोड़ते बच्चों... more »
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मात शारदे!
मात शारदे! मात शारदे ! मुझे प्यार दे वीणावादिनी ! नव बहार दे मन वीणा को , झंकृत कर दे हंस वाहिनी , एसा वर दे सत -पथ -अमृत , मन में भर दे बुद्धिदायिनी , नव विचार दे मात शारदे! ज्ञानसुधा की, घूँट पिला दे सुप्त भाव का , जलज खिला दे गयी चेतना , फिर से ला दे डगमग नैया , लगा पार दे मात शारदे ! भटक रहा मै , दर दर ओ माँ नव प्रकाश दे, तम हर ओ माँ नव लय दे तू, नव स्वर ओ माँ ज्ञान सुरसरी , प्रीत धार दे मात शारदे ! मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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अपने साये में जीने दो...
*अपने साये में जीने दो.* * * सारी उम्र किया इन्तजार अब टूटे दिल को सीने दो कुछ समय बचा है जीने को अपने साए में जीने दो! उम्मीद थी तेरे आने की लेकिन हासिल कुछ न हुआ, पैगाम जिंदगी ने दिया मौत का मेरे हाल में मरने दो! बरसों हो गए मेरी आँखों से तेरी खटक जाती ही नही, तिनका उड़ गिरता आँखों पर यादें आँसू बन बहने दो! बेवफा कहे वो, मै बदनसीब अपने मुकद्दर को क्या कहूँ, अपनी बेवफाई, इल्जाम मुझ पर,बदनामी मेरी करने दो! मुहब्बत,बेवफाई,दर्द ऐ गम, देकर चले गये मुझको सारे, खुश रहो तुम ये दुआ है मेरी अब सितम धीर को सहने दो! *dheerendra,dheer, * * *
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कुपोषण व भुखमरी का अंत नही
*विश्व भूख सूचकांक में भारत * सुनील दत्ता *1995 - 96 के बाद से पिछले 16 - 17 सालो में इसमें कोई सुधार नही हुआ | 1996 में इसके भूख सूचकांक का स्कोर 22.6 था | अब 2012 में इसका 65 वे पायदान पर रहकर इसके सूचकांक का स्कोर 22.9 है * विश्व भूख सूचकांक में शामिल कुल 79 देशो में भारत 65 वे नम्बर पर है | साफ़ है कि भारत विश्व के भूख से सर्वाधिक पीड़ित देशो में से एक है | केवल 14 देश इससे ज्यादा पीड़ित है | इससे उपर के विकसित , विकासशील व पिछड़े देशो की स्थिति भारत से बेहतर है | भारत के पडोसी देशो में बंगला देश को छोड़कर बाकी सभी देशो की -- लंका , पाकिस्तान , नेपाल की स्थिति भारत से बेहतर है | बां... more »
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क्या खता इतनी बड़ी थी
क्या खता इतनी बड़ी थी क़त्ल किया नहीं सजा क़त्ल की दे दी हमें इल्म नहीं था शक क़त्ल से भी बड़ा गुनाह होता हमने तो छोटी बहन समझ कर कहा था हम तुम्हें चाहते हैं तुमने इज़हार-ऐ-इश्क समझ लिया बिना सोचे समझे गुनाहगार करार दे दिया रिश्तों से ऐतबार ही उठा दिया 783-26-24-10-2012 गुनाहगार,रिश्तों, गुनाह Dr.Rajendra Tela"Nirantar"
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भारतीयों को निष्कासित किया गया
*गांधी और गांधीवाद-**143* *संदर्भ और पुराने पोस्टों के लिंक यहां पर* *1909*** *भारतीयों को निष्कासित किया गया* * * सत्याग्रह आंदोलन के तीन वर्ष हो चुके थे। अब तक ट्रांसवाल के *7000* भारतीयों में से लगभग *1500*गिरफ़्तार हो चुके थे। फिर भी सत्याग्रही, खासकर तमिल सत्याग्रही अदम्य उत्साह का परिचय दे रहे थे। पारसी समूह भी सरकार के दमन का डटकर सामना कर रहा था। लेकिन जनरल स्मट्स नरम होने के मूड में नहीं था। ख़ूनी क़ानून में तीन तरह की सज़ा का प्रावधान था *–* ज़ुर्माना, क़ैद और देशनिकाला। अदालत को तीनों सज़ाएं एक साथ देने का अधिकार था। यह अधिकार छोटे-छोटे मजिस्ट्रेटों को भी दिया गया था। सत... more »
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यादों के दरख़्त...,
अतीत की यादों के सूखे दरख़्त अब भी हरियाली की आश लगाए आज भी वहीं उदास खड़े थे जहां छोड़ आए थे हम उनको सफर में आगे बढ़ जाने के लिए... उसी चौराहे से आज गुजरे तो अधूरे सफरों को पूरा करने का हौसला देते उन पड़ावों की याद मन के कोनें में फिर से जीवंत हो गई... बसंत के विखरे पत्तों से सूखे दरख़्तों तक का सफर आंसुओं के चंद कतरे देता है तो लबों पर हंसी के कुछ लम्हे भी.. इस वादे के साथ कि इन गलियों से गुजरते हुए तुम अपने आने का सिलसिला युं ही जारी रखोगे....
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भाग दरिद्दर!
इस बार भी दीपावली पैतृक आवास(चूडामणिपुर, बख्शा -नौपेडवा,जौनपुर ,उत्तर प्रदेश ) पर मनाने का मौका मिला .सालाना त्यौहार अपने पैतृक आवास पर मनाना मुझे अच्छा लगता है . बड़े मिश्रित अनुभव रहे . पिछले वर्ष से शुरू हुयी बाल रामलीला इस वर्ष बच्चों के और भी उल्लास के चलते अविस्मरणीय बनी . इस बार का प्रसंग था लंका दहन का . इस प्रसंग में बच्चों ने हनुमान के लंका में प्रवेश, लंकिनी से वार्ता और उसकी मुक्ति ,विभीषण से भेंट ,सीता को रावण द्वारा धमकाना ,हनुमान द्वारा श्रीराम की मुद्रिका गिराना ,उनके द्वारा अशोक वाटिका का उजाड़ना ,अक्षयकुमार का वध ,मेघनाथ द्वारा हनुमान को ब्रह्मपाश में बाँधना ,... more »
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इसका होना ही प्रेम है !!!
कुछ शब्दों का भार आज कविता पर है वो थकी है मेरे मन के बोझ भरे शब्दों से पर समझती है मेरे मन को तभी परत - दर - परत खुलती जा रही है तह लग उसकी सारी हदें उतरी है कागज़ पर बनकर तुम्हारा प्यार कभी कभी बेचैनी बनकर झांकती सी है पंक्तियों में ! ... कभी आतुर हुई है तुमसे इकरार करने को मुहब्बत का या फिर कभी जकड़ी गई बेडि़यों में पर यकीं जानो वह मुहब्बत आज भी जिंदा है मरी नहीं सुबूत मत मांगना ये धड़कने तुम्हारे नाम पर अब भी तेज हो जाती हैं !! ... जब भी प्रेम लम्हा बन आंखों में ठहरता है, मुझे इसमें ईश्वर दिखाई देता है किसी ने कहा है प्रेम और ईश्वर दोनो एक ही तत... more »
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गुडिया की रंगोली -सतीश सक्सेना
यह खूबसूरत रंगोली मेरी बेटी हर वर्ष अपने घर के आंगन में बनाती रही है ! इस वर्ष से उसका अपना घर , मायके में बदल जाएगा अतः उसकी यह अंतिम रंगोली है जिसे उसने अपनी भाभी विधि के साथ बनाया है ! संयोग से विधि की, अपने घर में, यह पहली रंगोली है ! मेरी गुडिया ने, विवाह से पूर्व, इस घर के प्रति अपनी जिम्मेवारियां, विधि को सौंपने की शुरुआत, इस रंगोली से कर दी, और विधि ने अपने घर में पहली रंगोली बनायी ! चार्ज देने और लेने की परम्परा, सुख से अधिक दुखदायी है ...मोह छोड़ा नही जाता , बेटी से बिछड़ना, बेहद कष्ट कारक है , मगर हकीकत स्वीकारनी होगी ! इस म... more »
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अपने पूर्वजों जैसी हरकत करना भी एक कला है ---
आपने बंदरों को कूदते फांदते अवश्य देखा होगा . कैसे एक मकान की छत से दूसरे मकान की छत पर या एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद फांद करते रहते हैं . इन्हें देखकर कई बार लगता है -- काश हम भी ऐसा कर पाते. हालाँकि कहते हैं , हमारे पूर्वज भी तो बन्दर ही थे. लेकिन फिर मानव ने विकास की पथ पर अग्रसर होते हुए अपने लिए सभी सुख साधन जुटा लिए. अब उसको इस तरह कूद फांद करने की आवश्यकता नहीं होती. लेकिन अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं , जो बंदरों की तरह हरकतें करके अपनी जीविका चलाते हैं. इसे आप उनका हुनर भी कह सकते हैं. लेकिन आप देखेंगे तो हैरान रह जायेंगे. अब इस वीडियो में देखिये , कैसे यह युवक एक पेड़ पर चढ... more »
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"मियाँ मैं शेर हूँ ... शेरों की गुर्राहट नहीं जाती ...
"मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती" -मुनव्वर राना हो सकता है आज लोग मेरी राय से सहमत न हो ... पर मेरे हिसाब से यह शेर बाला साहेब पर बिलकुल मुनासिब बैठता है !
आज का बुलेटिन यहीं तक.. कल तक के लिए देव बाबा को इजाजत दीजिए...
स्व. ठाकरे जी को विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंबढिया बुलेटिन
baal thaakre - ek hasti - nihsandeh, maun vinamra shraddhanjli unhe .
जवाब देंहटाएंlinks bahut hi achhe hain - arthpurn aur grahya .
net slow hone se roman lipi ka upyog kar rahi hun :)
मियाँ हम शेर हैं शेरों की गुर्राहट नहीं जाती...
जवाब देंहटाएंशायद यह बात लागू होती है बाला साहेब पर!! मगर.. जाने दीजिए!!
स्व॰ बाला साहेब को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्रों से सजा बुलेटिन..
जवाब देंहटाएंशेर आदमखोर.nice
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