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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

कलकत्ता की दुर्गा पूजा - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आइये आज आपको घर बैठे बैठे कलकत्ता की दुर्गा पूजा के नज़ारे दिखाता हूँ ... साथ साथ वहाँ की दुर्गा पूजा के बारे मे थोड़ी जानकारी भी देने की कोशिश करूंगा !

मेरी पैदाइश और परवरिश दोनों कलकत्ता की है ! १९९७ में कलकात्ता छोड़ कर मैं मैनपुरी आया और तब से यहाँ का हो कर रह गया हूँ ! आज भी अकेले में कलकत्ता की यादो में खो सा जाता हूँ | कलकत्ता बहुत याद आता है , खास कर दुर्गा पूजा के मौके पर, इस लिए सोचा आज आप को अपने कलकत्ता या यह कहे कि बंगाल की दुर्गा पूजा के बारे में कुछ बताया जाये !

यूँ तो महाराष्ट्र की गणेश पूजा पूरे विश्व में मशहूर है, पर बंगाल में दुर्गापूजा के अवसर पर गणेश जी की पत्नी की भी पूजा की जाती है।


[षष्ठी के दिन]

मां दुर्गा का पंडाल सज चुका है। धाक, धुनुचि और शियूली के फूलों से मां की पूजा की जा रही है। षष्ठी के दिन भक्तगण पूरे हर्षोल्लास के साथ मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। यह दुर्गापूजा का बोधन, यानी शुरुआत है। इसी दिन माता के मुख का आवरण हटाया जाता है।

[कोलाबोऊ की पूजा]
सप्तमी के दिन दुर्गा के पुत्र गणेश और उनकी पत्नी की विशेष पूजा होती है। एक केले के स्तंभ को लाल बॉर्डर वाली नई सफेद साड़ी से सजाकर उसे उनकी पत्नी का रूप दिया जाता है, जिसे कोलाबोऊ कहते हैं। उन्हें गणेश की मूर्ति के बगल में स्थापित कर पूजा की जाती है। साथ ही, दुर्गा पूजा के अवसर एक हवन कुंड बनाया जाता है, जिसमें धान, केला आम, पीपल, अशोक, कच्चू, बेल आदि की लकडि़यों से हवन किया जाता है। इस दिन दुर्गा के महासरस्वती रूप की पूजा होती है।
[108 कमल से पूजा]
माना जाता है कि अष्टमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए इस दिन विशेष पूजा की जाती है। 108 कमल के फूलों से देवी की पूजा की जाती है। साथ ही, देवी की मूर्ति के सामने कुम्हरा (लौकी-परिवार की सब्जी) खीरा और केले को असुर का प्रतीक मानकर बलि दी जाती है। संपत्ति और सौभाग्य की प्रतीक महालक्ष्मी के रूप में देवी की पूजा की जाती है।
[संधि पूजा]
अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट, यानी कुल 48 मिनट के दौरान संधि पूजा की जाती है। 108 दीयों से देवी की पूजा की जाती है और नवमी भोग चढ़ाया जाता है। इस दिन देवी के चामुंडा रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इसी दिन चंड-मुंड असुरों का विनाश करने के लिए उन्होंने यह रूप धारण किया था।

[सिंदूर खेला व कोलाकुली]

दशमी पूजा के बाद मां की मूर्ति का विसर्जन होता है। श्रद्धालु मानते हैं कि मां पांच दिनों के लिए अपने बच्चों, गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने मायके, यानी धरती पर आती हैं और फिर अपनी ससुराल, यानी कैलाश पर्वत चली जाती हैं। विसर्जन से पहले विवाहित महिलाएं मां की आरती उतारती हैं, उनके हाथ में पान के पत्ते डालती हैं, उनकी प्रतिमा के मुख से मिठाइयां लगाती हैं और आंखों (आंसू पोंछने की तरह) को पोंछती हैं। इसे दुर्गा बरन कहते हैं। अंत में विवाहित महिलाएं मां के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। फिर आपस में एक-दूसरे के माथे से सिंदूर लगाती हैं और सभी लोगों को मिठाइयां खिलाई और बांटी जाती है। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। वहीं, पुरुष एक-दूसरे के गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। यहाँ सब एक दुसरे को विजय दशमी की बधाई 'शुभो बिजोया' कह कर देते है | यहाँ एक दुसरे को रसगुल्लों से भरी हंडी भेंट करना का भी प्रचालन है |

[मां की सवारी]

वैसे तो हम सब जानते है कि माँ दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं, पर बंगाल में पूजा से पहेले और बाद में माँ की सवारी की चर्चा भी जोरो से होती है | यह माना जाता है कि यह उनकी एक अतरिक्त सवारी है जिस पर वो सिंह समेत सवार होती हैं |
जैसी कि जानकारी मिली है इस वर्ष देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं और नाव की सवारी कर लौटेंगी।
 
पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को दुर्गा पूजा की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !

सादर आपका 

शिवम मिश्रा

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शक्ति-पूजन का अर्थ

कितनों ने जाना ??

 

झील सी होती हैं स्त्रियाँ 

लबालब  भरी हुई संवेदनाओं से


चलती कार में ठिठकी निगाहें ....

ऐसा क्या देखा ??

 

मन की सिहरन...

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चींटी और हाथी !

दोस्त या दुश्मन ??

 

हर विधा में है टॉन्सिल का इलाज़

अच्छी खबर 

 

क्या ज़रुरत है मुझे सौ बरस जीने की….

आप ही बताओ 

 

बड़े लोग...बड़ी बात

न कोई समझे न कोई जाने 

 

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तेरे बालों की ...

 

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क्या 

 

मरने के लिए देश में सबसे शानदार जगह कौन सी है?

अपना अपना घर 


"मां सिद्धिदात्री"

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मन में बसेंगे राम

पहले जगह तो मिले 

 

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जय 

 

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भूमध्य-रेखा पर

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हि‍माचल यात्रा

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मैं तुम और जीवन (मेरी कविता …. विवेक रस्तोगी)

हम्म 

 

ये वक्त भी बदल जाएगा

उम्मीद तो यही है 

 

हवा यूँ हीं तो नहीं सर पटकती ..

पता करना पड़ेगा 

 

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!

20 टिप्‍पणियां:

  1. अहो भाग्य...कभी नहीं देखी कलकत्ता की दुर्गा पूजा. अब तो लन्दन की ही देखते हैं.पर इतना कुछ मालूम न था.आभार बहुत बहुत.

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  2. अद्भुत,अलौकिक .... मन में शुभ बिजोया कहती

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  3. कलकत्ता की पूजा देखने की बहुत इच्छा है, आपके माध्यम से अच्छी जानकारी मिली।

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  4. जय माता की!
    जय सिया राम!
    मैनपुरी के महाबली ब्लॉगर का आभार जो यहीं बैठे-२ कलकत्ता में होनेवाली दुर्गा पूजा के दरश दिखला दिए...

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  5. दुर्गा पूजा की एक आलौकिक अनुभूति करवाने के लिए और मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार आप का शिवम् जी..आप सब को भी दुर्गा पूजा की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !

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  6. कलकत्ता की दुर्गापूजा का बढ़िया विवरण...दुर्गापूजा की बधाई ओर शुभकामनाएँ!!

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  7. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई

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  8. वाह.....
    बहुत सुन्दर....
    यूँ लगा खुद हो आये पूजा में...

    लिंक्स भी प्यारे...
    शुक्रिया शिवम जी...
    आपके लिए ढेर सारी खुशियों की कामना...

    अनु

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  9. कोलकाता की पूजा देखी है .... यहाँ बहुत सुंदर प्रस्तुति पूजा की ....

    सार्थक बुलेटिन

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  10. बहुत अच्छे सूत्र संतुलित किये हैं, विजयदशमी की शुभकामनायें ।

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  11. आप को भी दुर्गा पूजा की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !

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  12. वाह शिवम् भाई, कोलकाता में कुछ दिन रहा पर पूजा नहीं देख पाया कभी | धन्यवाद जानकारी के लिए |

    विजयादशमी की शुभकामनाएं !!!

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  13. माँ की महिमा का बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..
    सुन्दर सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें

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  14. कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
    इक तीर मेरे सीने में मारा के हाय-हाय!!

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  15. विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं

    बढिया, बहुत सुंदर
    क्या बात

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  16. कोलकाता की दुर्गा पूजा देखकर मन प्रसन्न हो गया ।जय माँ दुर्गा

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  17. मुझे भी सुअवसर मिला है कोलकाता की दुर्गापूजा को देखने का। विशिष्ट धार्मिक अनुभव है।

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  18. कोलकाता की दुर्गा पूजा का सजीव चित्रण देखने को मिला ....बहुत शुक्रिया ...
    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु आभार

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