चक्रव्यूह में होना
उसे आंकना
बाहर निकलने से बेखबर
शांत मनःस्थिति लिए
उसकी संरचना देखना
परखना
अधिक शक्ति देता है !
छद्म पितामह, द्रोण ....कर्ण
आशीष शिक्षा स्नेहिल दान
इनका प्रश्न ही कहाँ ...
यहाँ तो होड़ है शिव धनुष लेने की
स्मरण ही नहीं
कि शिव यह अधिकार सिर्फ राम को ही देंगे
.......
निःस्वार्थ परिवर्तन की इच्छा हो
तभी शिव धनुष फूल सा हल्का बनता है !
वर्चस्व का व्यूह है - परम्परारहित
आरम्भ से पूर्व समाप्त
न शस्त्र की ज़रूरत
न शास्त्र की
मौन द्रष्टा बनकर रहना है
.....
अंतर्नाद
प्यार की मीठी चाय
तब रोया था वो...
पाँव लफ़्ज़ के उलझ पड़े थे,
छिटक के साँसें - सांय - गिरी थीं,
आँखों के फिर आस्तीन पर
प्यार की मीठी चाय गिरी थी,
बर्फ ख्वाब के पिघल गए तब,
पलक से बूँदें हाय, गिरी थीं..
हाँ, रोया था वो...
मेरे बटुए में तुमको बस मिलेंगें नोट खुशियों के,
मैं सब चिल्हर उदासी के अलग गुल्लक में रखता हूँ.
jay ho ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत- बहुत हार्दिक आभार रश्मि जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए यहाँ आकर अच्छे पठनीय सूत्र मिले
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिनक्स ...शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स....
जवाब देंहटाएंबढियां बुलेटिन...
जय हो दीदी आपकी ... :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर..
जवाब देंहटाएंवर्चस्व स्थापित करने के होड़ की अच्छी कही !
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स!
बहुत सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक ,अच्छा लगा
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