अनुभवों की पोटली कहो या गठरी
अपनी तलाश में उसे खोला
तो कई लोग मिले
जिनके अनुभवों में उर्वरक शक्ति थी
हवाओं में उन शक्तियों के अंश बिखेरे आगत के लिए
धूप भी दिखाया
ताकि कीड़े न लग जाये
इस पूरी प्रक्रिया में कई चेहरों के मध्य
मैं,तुम,आप,वो सब मिले
उम्र, उम्र से परे, समय की गिरफ्त में
एहसासों के अनुभव
अपने आप में हितोपदेश से कम नहीं होते ...........
आज़ादी
कुछ-कुछ वैसी ही है
जैसे छुटपन में
पांच पैसे से खरीदा हुआ लेमनचूस
जिसे खाकर मन खिल जाता था ...
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ...
आत्महत्या के लिए प्रेरित व्यक्ति कोई न कोई इशारा जरूर देता है। जरूरत है ,
उसके आस-पास वालों को इस इशारे को समझने की।
सजने लगे पंडाल
गलियों में
उत्साहित हैं बच्चे
गा रहे हैं झूमकर...
"ए हो!
का हो!
माता जी की
जय हो।"
बढ़ने लगी भीड़
मंदिर में
लगने लगे मेले
सुनाई पड़ रहा है भजन..
"या देवी सर्वभूतेषु
मातृ रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः।"
मेरे विचार मेरी अनुभूति: आह्वानी !
विघ्न हरो सब शुभ काम में
लेकर साथ गजानन को,
रक्षाकरो भक्तों को दुष्टों से
लेकर साथ षडानन को।
अगली गठरी बांधकर फिर आउंगी ................ अभी जाऊं ?
Rashmi Prabhaji , nau ratri ke avsar par bahut sundar sankalan ,Badhai, Aapne meri prarthana ke ek ansh shamil kiya,aabhar.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन पर लेने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंमैं,तुम,आप,वो सब मिले
जवाब देंहटाएंउम्र, उम्र से परे, समय की गिरफ्त में
एहसासों के अनुभव
लम्हा-लम्हा सुकून के शब्दों को बांधी गठरी से आपने जब यूँ खोला तो मिलना हुआ ...
सादर
पोटली भी नहीं पिटारा!! :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन में मुझे स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार.
जवाब देंहटाएंएक नवीन प्रयास, धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंMY BLOG
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