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सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

अगर नहीं पढ़ा तो जानेंगे कैसे ?





ज़िन्दगी उलझती,टूटती पैबन्दों के संग चलती है 
बिना सलवटों की ज़िन्दगी भी भला ज़िन्दगी होती है !.......... रश्मि 







( उन सच्चे कवियों को श्रद्धांजलिस्वरूप जिन्होंने फटेहाली में अपनी जिंदगी गुज़ार दी | )

किसी कवि का घर रहा होगा वह..  
और घरों से जुदा और निराला
चींटियों से लेकर चिरईयों तक उन्मुक्त वास करते थे वहाँ  
































मुझे लगता है पूजा की व्यस्तता में पढने की सामग्री अधिक हो गई है .... कल तक तो पढ़ ही लेंगे . कल कलश स्थापना है - सबको माँ दुर्गा की आगमन की शुभकामनायें 

8 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि प्रभा जी ..तह-ए-दिल से शुक्रिया ...बहुत विस्मित किया है आपने मुझे ....वाकई इतनी अच्छी रचनाओं के बीच खुद को पाकर रोमांच हुआ ..सभी रचनाएं बहुत स्तरीय हैं ..आभार

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  2. Anamika di ki rachna 'Deshwasiyon tum mook hi rehna' bahut saraahniya lagi..
    Bulletin mein rachna shaamil karne ke liye aabhar.
    Saadar
    Madhuresh

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  3. गिने चुने पर बेहतरीन लिंक्स

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  4. ्बहुत सुन्दर बुलेटिन सजाया है।

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  5. अनुपम प्रस्‍तुति
    के लिये आभार

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