प्रकृति के रोम रोम में कौन सा रस नहीं,कहीं फूल,कहीं फल,कहीं नदी,कहीं झरने,कहीं रेत,कहीं बंजर,कहीं पर्वत....जितने रास्ते,उतने मायने- उपजाऊ धरती यदि अवर्णनीय है तो बंजर धरती से भी आगाज़ उठते हैं....कौंधती है प्रश्नों की बिजलियाँ- आखिर क्यूँ ! आधी जगह बारिश और एक कदम आगे धूप....इस अदभुत दृश्य के निकट ठिठकती है आँखें,मन और बादलों के समूह जैसी सोच ! मन और मस्तिष्क की सोच लेखन का उदगम है .... विराम लेना चाहो तो भी विराम नहीं .... एहसास ठिठके भी रहते हैं और चलते भी हैं,
कुछ ठिठके ख्याल चलते हुए - इस मन से उस मन तक -
मन्टू कुमार - http://mannkekonese.blogspot. in/
मै कौन हूँ???
यह एक ऐसा अटल सवाल है,जिसका जवाब पल-पल बदलता है और हमें सोचने पर मजबूर करता है |जिंदगी के हर सफर पर...हर मोड़ पर यह ओट बनकर जवाब माँगता है जो अब-तक के जवाबों से शायद संतुष्ट नही |
हम देखते हैं कि कभी-कभी किसी बात के अंत में यही जिंदगी हमसे कुछ दूर पर खड़ी होकर,हमारी नादानी पर मुस्कुरा रहीं होती है,जिससे इस सच का पता चलता है कि हमने आज-तक इस सवाल के जवाब देने में कहीं ना कहीं झूठ का सहारा लिया है | जिंदगी सही मायने में आगे बढ़े तो इसके लिए सच्चाई को आगे आना ही पड़ेगा और इसका फैसला हमारे हाथों में है |
हम खुद के नज़रिए में अपने-आप को काबिल मानकर मन को तसल्ली दिला सकते हैं पर जिंदगी केवल अपने खुद से नही चलती,इससे जुड़े हैं कई और जिनकी नज़र में हमारे वजूद का एहसास काफी हद तक मायने रखता है...यहीं जीवन का सच है...थोड़ा अजीब है पर सच है |
मेरे जिंदगी से भी जुड़े है कई ऐसे शख्स जिनकों,मुझसे उम्मीद है...शायद मै नही जानता कि वे मेरे बारे में क्या नज़रिया रखते हैं पर इतना जानता हूँ कि मेरी जिंदगी में सच्चे मन से इनका होना...सबकुछ बयां कर देता है(शायद)...
मै कौन हूँ ???
मै हूँ...
उस पिता का बेटा..." जो यह सोचकर आश लगाए बैठा है कि जो सपने मै नहीं देख सका वो अपने बेटे को हर नामुमकिन कोशिश करके जरुर दिखाऊँगा...जो कसक अधूरी रह गई वो बेटे के सहारे पूरा करूँगा "
मै हूँ...
उस माँ का बेटा..." जो दरवाजे पर बाट जोहे खड़ी रहती है...अपने सच्चे बेटे के इंतजार में जो दुनिया के नज़र में कैसा भी हों...जो जी भर के देखना चाहती है...जो फिर से गले लगाना चाहती है...चूमना चाहती है...फिर से दुलारना चाहती है "
मै हूँ...
उस बहन का भाई..."जो मजबूरन वो ना कर सकीं,मुझसे चाहती है...जिसके आँखों तले एक कामयाब भाई का
सपना पल रहा है...जिसको इंतजार है एक मजबूत कलाई पर राखी बाँधने को "
मै हूँ...
उस भाई का भाई..."जिसको विश्वास है मुझपर...हर एक फैसले पर...जो उन्हीं राहों को पीछा करता हुआ चला
आ रहा है,जहाँ मेरे कदमों के निशान मौजूद है "
मै हूँ...
उस दोस्त का दोस्त..."जिसने हर हालात में..हर पल..हर दम..मुझे जिंदगी को जीना सिखाया...जो आज मेरे पास नही पर दिल के बहुत करीब है "
मै हूँ...
किसी पराए के लिए अपना..." जो अनजान..बेखबर है...जिसको किसी अपने की तलाश है,इस छोटी सी दुनिया में "
मै हूँ...
एक आम आदमी जैसा दिखने वाला प्राणी...जो जिंदगी के हर पहलू को स्वीकारता आया है...जो जिंदगी के हर रंग को जीना चाहता है...जो इस बात में विश्वास रखता है कि दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी है...जिसने सिखा है हर एक को अहमियत देना...जिसको कुछ पाने की ललक है और खोना भी बखूबी जानता है "
मै तो इतना सा जानता हूँ कि जब कोई किसी से उम्मीद रखता है,तो सामने वाले को भी चाहिए कि वह उसके उम्मीदों पर खरा उतरे...क्यूंकि अगर उम्मीद पूरी ना हों तो बहुत दुःख होता है |
-निहार रंजन - http://kalambinbaat. blogspot.in/
इस कविता को पोस्ट करने से पहले यह बता दूँ की अपनी मिट्टी के कण-कण से मुझे बेहद प्यार है. यह देख कर बहुत अच्छा अनुभव होता है कि देश विकासरत है. हाँ कुछ ऐसी समस्याएँ जरूर हैं जिन्हें जिनपर सबको ध्यान देने की ज़रुरत है ताकि हर मायने में अपने देश को महान कहा जा सके. जो बातें अपने देश के बारे में महान हैं उस पर सवाल नहीं है यहाँ. ना ही वो कम होने वाले हैं. सवाल है यहाँ उन बातों पर जिनके बारे कदम उठाने की ज़रुरत है.
कैसे कह दूँ भारत महान?
जहाँ आज भी मर जाती बेटी
जीवन में आने से पहले
होती कलंकित वो जननी
कुलदीपक जो ना जन ले
हर क्षण वह फिर जलती है
क्या है मुझे इसका अभिमान?
कैसे कह दूँ भारत महान?
जहाँ आज भी वर्ण-विभेद
एक सामाजिक रोग है
छुआछूत का दंश सह रहे
अब भी करोड़ो लोग हैं
जब तक ना हो इन रोगों का
एक व्यापक समाधान
कैसे कह दूँ भारत महान?
जहाँ आज भी एक अदना सा जन
पिसता अफसर बेईमानों से
हो जाती दफ़न जिनकी पीड़ा
कुछ अखबारी हंगामों में
और जंग कानूनी लड़ते
हो जाते वो निष्प्राण
कैसे कह दूँ भारत महान?
जहां है अब भी अबला नारी
जिसका शोभा है लाचारी
धर्म, अशिक्षा से बंधीं
अब भी कैद है वो बेचारी
वो बिना बताये दर्द-ए-दिल
मर जाती सीकर जुबान
कैसे कह दूँ भारत महान?
जहाँ आज भी लड़ते है कुछ लोग
अपनी मज़हब की शान पर
और रह रह सुलगा देते हैं
घर एक-दूसरे का जान कर
फिर बहती है खून की नदियाँ
जिसमे आखिर मरता है “इंसान”
कैसे कह दूँ भारत महान?
जहाँ आज भी स्तनों का उभार
लड़की को औरत बनाती है
और गुड़िया के संग संग
एक बच्चा भी दे जाती है
फिर साल बीसवां लगते ही
विधवा होकर होता उनका बलिदान*
कैसे कह दूँ भारत महान?
* एक सच्ची कथा व्यथा की जिससे मैं अवगत हुआ दो तीन महीने पहले. एक बच्ची जो १५ साल की उम्र में पत्नी बनती है, १७ साल की उम्र में माँ और २०वाँ साल आते आते विधवा. फिर उसका जीवन ऐसे समाज में गुजरना है जहाँ पुनर्विवाह की अनुमति नहीं है.
मेघा मल्लिक - http://mallickmegha. blogspot.in/
वक़्त की दरिया बहुत तेज़
बहती है ..
थामने की कोशिश करो तो
रेत सी फिसलती है
गोया चंद दिनों पहले की
बात है..
फख्र से भाल उठा कर ,
आसमां से कहते थे,
थोडा और ऊँचा हो जा तू,
आगे मुझे तुझसे जाना है..
समीर ने भी अपनी ,
अमीरी की मंद-मंद,
तो कभी द्रुत चाल दिखाई,
हँस कर कहती रही उससे भी,
इठला ले थोड़ा तू भी हरजाई...
दिन बीतता रहा निशा की आड़ में,
सपने सुनहले बुनते रहे हम,
वक़्त की धार में....
सपने जो देखा,वो पाते गए हम,
प़र चाहत ख़तम ना हुई ,
खुद से ही दूर होते रहे हम,
हँसी आती है अब,
आह..
कितने बेवकूफ थे हम,
कल की चाह में "आज"खोते गए हम...
संगीता स्वरुप - http://geet7553.blogspot.in/
बैठी थीं दो स्त्रियां
कानन कुञ्ज में
गुमसुम सी
नि:मग्न हुई
अचानक एक
बोल उठी ,
मांडवी ! ज़रा कहो तो ,
तुम आपबीती .
निर्विकार भाव से
बोली मांडवी कि
क्या कहूँ और
कौन सुनेगा हमें
कौन पहचानता है
बोलो न श्रुतिकीर्ति?
हाँ सच है -
हम सीता की भगिनियाँ
भरत, शत्रुघ्न की भार्या
कहाँ- कहीं बोलो कभी
हमारा नाम आया ?
सीता का त्याग और
भातृ - प्रेम लक्ष्मण का
बस यही सबको
नज़र आया .
उर्मिला का
विरह वर्णन भी
साकेत में वर्णित है
इसी लिए
उसका भी नाम
थोड़ा चर्चित है ..
हमारे नामों को
कौन पहचानता है ?
श्रुतिकीर्ति की बात सुन
मांडवी अपनी सोच में
गुम हो गयी
जिया था जो जीवन
बस उसकी यादों में
खो गयी ..
जब आये थे भरत
ननिहाल से तो
उनका विलाप याद आया
राम को वापस लाने का
मिलाप याद आया .
लौटे थे भाई की
पादुकाएं ले कर
और त्याग दिया था
राजमहल को
एक कुटी बना कर .
सीता को वनवास में भी
पति संग सुख मिला था
मुझे तो राजमहल में रह
वनवास मिला था ..
जो अन्याय हुआ मेरे साथ
क्या वो
जग जाहिर भी हुआ है?
मुझे तो लगता है कि
हमारा नाम
अपनी पहचान भी
खो गया है..
यह कहते सुनते वो
स्त्री छायाएं न जाने
कहाँ गुम हो गयीं
और मेरे सामने एक
प्रश्नचिंह छोड़ गयीं ..
क्या सच ही
इनका त्याग
कोई त्याग नहीं था
या फिर रामायण में
इनका कोई महत्त्व नहीं था ???
सुशील - http://ulooktimes.blogspot. in/
वैसे कुत्ते के पास मूँछ है
पर ध्यान में ज्यादा
रहती उसकी टेढी़ पूँछ है
उसको टेढा़ रखना
अगर उसको भाता है
हर कोई क्यों उसको
फिर सीधा करना चाहता है
उसकी पूँछ तक रहे बात
तब भी समझ में आती है
पर जब कभी किसी को
अपने सामने वाले की
कोई बात पागल बनाती है
ना जाने तुरंत उसे
कुत्ते की टेढी़ पूँछ ही
क्यों याद आ जाती है
हर किसी की कम से कम
एक पूँछ तो होती है
किसी की जागी होती है
किसी की सोई होती है
पीछे होती है इसलिये
खुद को दिख नहीं पाती है
पर फितरत देखिये जनाब
सामने वाले की पूँछ पर
तुरंत नजर चली जाती है
अपनी पूँछ उस समय
आदमी भूल जाता है
अगले की पूँछ पर
कुछ भी कहने से बाज
लेकिन नहीं आता है
अच्छा किया हमने
अपनी श्रीमती की
सलाह पर तुरंत
कार्यवाही कर डाली
अपनी पूँछ कटवा कर
बैंक लाकर में रख डाली
अब कटी पूँछ पर कोई
कुछ नहीं कह पाता है
पूँछ हम हिला लेते हैं
किसी के सामने
जरूरत पड़ने पर कभी
तो किसी को नजर
भी नहीं आता है
इसलिये अगले की
पूँछ पर अगर कोई
कुछ कहना चाहता है
तो पहले अपनी पूँछ
क्यों नहीं कटवाता है !!
सहमति हो या असहमति
कुठाओं में उलझा हो मन
बाँध टूट जाए तो प्रकृति के कण कण कलम की नोक पर होते हैं - क्रमशः
सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
एक से एक सुंदर रचनाऎ और साथ में उल्लू के निठल्ले चिंतन से भी कुछ :)
जवाब देंहटाएंआभार !
सभी रचनायें बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट चयन के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचनाएँ....सभी..
जवाब देंहटाएंआभार
अनु
ब्लॉग बुलेटिन के मंच पर एक और बेहतरीन श्रृंखला शुरू करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार दीदी !
जवाब देंहटाएंआपके ठिठके एहसासों में हम भी शामिल हैं .... सुखद लगा ... बाकी चयन भी उत्कृष्ट .... आभार
जवाब देंहटाएंगज़ब गज़ब.
जवाब देंहटाएंआज ही देखा इस बुलेटिन को ! बहुत सुन्दर श्रंखला आरम्भ की है रश्मिप्रभा जी ! हर रचना खूबसूरत है ! आभार आपका इसे हम तक पहुँचाने के लिये !
जवाब देंहटाएंसोचने को विवश करती रचनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार...मुझे शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अलग-अलग रंगों में रंगी हुई...बहुत खूब |
सादर |
रचनाएँ अच्छी लगीं.
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