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बुधवार, 26 सितंबर 2012

कुछ तो फर्क है, कि नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ ... 

सड़क पर दो कुत्ते आपस में लड़ रहे थे। पास के दुकानदार को नागवार गुजरा। उसने आवाज देकर कुत्तों को भगाना चाहा, पर कुत्ते लड़ते-भौकते ही रहे। तब दुकानदार ने सड़क से एक बड़ा-सा पत्थर उठाया और चला दिया उन कुत्तों पर। इसके पहले कि उन्हे पत्थर लगता वे दोनों रफूचक्कर हो गये। और इत्तफाकन वह पत्थर पड़ोसी की दुकान में जा गिरा और उसका शोकेस का शीशा टूट गया। वह नाराज होकर बुरा भला कहने लगा। पत्थर चलाने वाले दुकानदार ने समझाने की कोशिश की कि उसने जानबूझकर दुकान पर पत्थर नहीं फेंका था। परंतु दूसरा दुकानदार मानने को तैयार ही नहीं था। वह दुकान में हुए नुकसान की भरपाई की मांग कर रहा था। बात यों बढ़ी कि दोनों गाली-गलौज से मारपीट पर उतर आए और फिर ऐसे भिड़े कि एक का सर फट गया। मामला पुलिस तक जा पहुंचा। पुलिस मामला दर्ज कर दोनों को वैन में बिठाकर थाने ले जा रही थी कि रास्ते में लाल सिगनल पर गाड़ी रुकी। पत्थर चलाने वाले ने बाहर झांका देखा, लड़ने वाले वही दोनों कुत्ते एक जगह बैठे उनकी तरफ कातर दृष्टि से देख रहे थे। पत्थर चलाने वाले शख्स को लगा मानो वे दोनों हम पर हंस रहे हों तथा एक दूसरे से कह रहे हों, ''यार, ये तो सचमुच के लड़ गये।''
दूसरे ने कहा, ''हां यार, हमें तो लड़ने की आदत है और हमारी कहावत भी जग जाहिर है परन्तु ये तो हम से भी दो कदम आगे है।''
 
कुछ समझे आप ???
 
सादर आपका 
 
 
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जहाँ सूखे में भी बहार है -- दुबई ...

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन
वर्षों पहले हम मित्रों ने एक ख्वाब बुना था -- बाल बच्चों समेत विदेश यात्रा पर जाने का . ख्वाब पूरा हुआ पूरे ३२ साल बाद जब तीन मित्रों को इक्कट्ठा कर पाए और कार्यक्रम बना पाए, हालाँकि अब बाल तो सभी के कम ही बचे थे . जैसे ही ऑफिस से अनुमति आई , हमने टिकेट कटाई , वीज़ा की अर्जी लगाई, हबीब सैलून से कटिंग कराई और भाई चल दिए दुबई . विमान से नीचे का नज़ारा ऐसा दिख रहा था जैसे रेगिस्तान में जगह जगह घर बने हों , कोई पेड़ नज़र नहीं आया . लेकिन शहर में पहुंचते ही भूल से गए की पेड़ों की भी ज़रुरत होती है . ठहरने के लिए बढ़िया होटल था -- दुबई में चार / पांच सितारा होटल्स की भरमार है . आखिर , उन... more »

एक बेहतर विडियो कन्वर्टर

नवीन प्रकाश at Hindi Tech - तकनीक हिंदी में
विडियो मनोरंजन का एक बेहतर साधन है और मोबाइल फोन्स के आने से विडियो बनाने और देखने में काफी सुविधा हो गयी है पर अक्सर ही हमें एक मोबाइल फ़ोन से दुसरे मोबाइल फ़ोन या एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में विडियो देखने से पहले उन्हें अलग अलग फोर्मेट में कन्वर्ट करने की जरुरत होती है . ऐसे ही कामो के लिए एक बेहतर प्रोग्राम आपके लिए . इस सॉफ्टवेयर का नाम है *video converter* *"Video to Video"* इसकी मदद से आप किसी विडियो को अन्य किसी फोर्मेट या प्रमुख ऑडियो फोर्मेट में बदल सकते हैं . इसकी सबसे बड़ी विशेषता है प्रमुख विडियो फोर्मेट, यू ट्यूब, *hdtv* , के साथ ही मोबाइल फ़ोन के लिए ... more »

परिचय - वंदना गुप्ता

रश्मि प्रभा... at परिचय
अपरिचित हूँ मैं .......... ना जाने कैसे कह देते हैं हाँ , जानते हैं हम खुद को या फ़लाने को मगर किसे जानते हैं ये भेद ना जान पाते हैं कौन है वो ? शरीर का लबादा ओढ़े आत्मा या ये शरीर ये रूप ये चेहरा -मोहरा कौन है वो जिसे हम जानते हैं जो एक पहचान बनता है क्या शरीर ? यदि शरीर पहचान है तो फिर आत्मा की क्या जरूरत मगर शरीर निष्क्रिय है तब तक जब तक ना आत्मा का संचार हो एक चेतन रूप ना विराजमान हो तो शरीर तो ना पहचान हुआ तो क्या हम आत्मा को जानते हैं वो होती है पहचान ये प्रश्न खड़ा हो जाता है अर्थात शरीर का तो अस्तित्व ही मिट जाता है मगर सुना है आत्मा का तो ना कोई स्वरुप होता है आत्मा... more »

गीत,,,

Dheerendra singh Bhadauriya at काव्यान्जलि ...
*गीत,* *तुम न्यारी तुम प्यारी सजनी लगती हो पर- लोक की रानी नख से शिख तक तुम जादू फूलों सी लगती तेरी जवानी, केशों में सजता है गजरा नैनों में इठलाता है कजरा खोले केश सुरभि है बिखरे झुके नैन रच जाए कहानी, माथे पर सौभाग्य की बिंदिया जिसके गिरफ्त में मेरी निदिया पहने कानों में चन्दा से कुंडल और तन पर भाये चूनर धानी, कर कमलों में कंगना सजते पैरों में बिछिया नूपुर बजते संगीत तेरे आभूषणों का सुन बलखाये कमर चाल मस्तानी, निकले होठोंसे हँसीं का झरना यौवन पुष्पों का उठना गिरना देखकर तेरी मदमस्त अदाये गढ़ जाए न कोई नई कहानी,* *dheerendra bhadauriya*,,,,,

हल्का- फुल्का

shikha varshney at स्पंदन SPANDAN
कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई जैसे सहित्य की धार कोई निरीह अबला कहे, कोई मदमस्त कमाल. ******************* दीवारों ने इंकार कर दिया है कान लगाने से जब से कान वाले हो गए हैं कान के कच्चे. ********************* काश जिन्दगी में भी गूगल जैसे ऑप्शन होते जो चेहरे देखना गवारा नहीं उन्हें "शो नेवर" किया जा सकता और अनावश्यक तत्वों को "ब्लॉक " ****************************** कोई सांसों की तरह अटका हो ये ठीक नहीं एक आह भरके उन्हें रिहा कीजिये. ******************************* मेरे हाथों की लकीरों में कुछ दरारें सी हैं शायद त... more »

ये किस पेड़ के पैसे से हो रहा छवि निर्माण --------------mangopeople

anshumala at mangopeople
आज कल बड़े जोर शोर से सभी टीवी चैनलों पर भारत का निर्माण हो रहा है और इस निर्माण पर करोड़ो रूपये खर्च कर रही है वो सरकार जो कहती है की उसके पास जनता को सब्सिडी देने के लिए पैसे नहीं है , अब कोई पुछे की सरकार की छवि निर्माण के लिए किस पेड़ से पैसे आ रहे है ( उस पेड़ का नाम है आम जानता की जेब ), शायद राजनीति में सबक लेने की परम्परा नहीं है यदि होती तो मौजूदा सरकार पूर्व में इण्डिया शाइनिंग का हाल देख कर ये कदम नहीं उठाती | बचपन में नागरिक शास्त्र की किताब में पढ़ा था की किसी देश की सरकार का काम बस लोगों से टैक्स वसूलना और खर्च करना नहीं होता है उसका काम ये भी है की अपने देश में रह  more »

तुम जो नहीं हो तो... आ गए बताओ क्या कर लोगे...

*कल रात देवांशु ने पूरे जोश में आकर एक नज़्म डाली अपने ब्लॉग पर, डालने से पहले हमें पढाया भी, हमने भी हवा दी, कहा मियाँ मस्त है छाप डालो... और तभी से उनकी गुज़ारिश है कि हम उसपर कोई कमेन्ट करें (वैसे सच्चे ब्लॉगर लोग के साथ यही दिक्कत है , उन्हें कमेन्ट भी ढेर सारे चाहिए होते हैं ...) हमें भी लगा, ठीक है चलो साहब की शिकायत दूर किये देते हैं ... कमेन्ट क्या पूरी की पूरी पोस्ट ही लिख मारी ... ये है उसकी लिखी नज़्म ... ********************************* तुम जो नहीं हो तो... ********************************* चाँद डूबा नहीं है पूरा, थोड़ा बाकी है | * * वो जुगनू जो अक्सर रात भर चमकने पर,* * ... more »

तुम जो नहीं हो तो...

देवांशु निगम at तुम हाँ तुम ....
चाँद डूबा नहीं है पूरा, थोड़ा बाकी है | वो जुगनू जो अक्सर रात भर चमकने पर, सुबह तक थक जाता, रौशनी मंद हो जाती थी, अभी भी चहक रहा है, बस थोड़ा सुस्त है | यूँ लगता है जैसे रात पूरी, जग के सोयी है , आँख में जगने की नमी है, दिल में नींद की कमी | सूरज के आने का सायरन, अभी एक गौरेया बजाकर गयी है | अब चाँद बादलों की शाल ओढ़ छुप गया है , सो गया हो शायद, थक गया होगा रात भर चलता जो रहा | मेरी मेज़ पर रखी घड़ी में भी, सुबह जगने का अलार्म बज चुका है | गमलों में बालकनी है, डालें उससे लटक रही हैं , फूल भी हैं , बस तुम्हारी खुशबू नहीं. महकती ... -- देवांशु (चित्र गूगल इमेजेस से)

माँ और बेटे

Archana at अपना घर
*यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी ** तस्वीर साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो **तस्वीर में... * *आज की तस्वीर में रश्मि रविजा जी हैं अपने बेटों किंजल्क और कनिष्क के साथ ये कहते हुए कि ---* * मन होता है..वे दिन फिर से एक बार लौट आएँ, इन दोनों की मासूम शरारतों वाले :)* *और रश्मि जी का ब्लॉग है-- अपनी,उनकी,सबकी बातें*

संविधान क्या कहता है !

रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
देश का पूरा शासन संविधान के अनुरूप ही निर्धारित होता है और फिर उसको समय की मांग के अनुरूप उसमें संशोधन भी होते रहते हैं और सबसे अधिक तो सत्तारूढ़ दल अपने स्वार्थ के अनुसार उसमें संशोधन भी करते रहते हैं क्योंकि वे इस काम को करने के लिए सक्षम होते हैं। यहाँ केंद्र शासन, राज्य शासन या फिर स्थानीय शासन सभी कुछ तो इसमें परिभाषित किया गया है -- सांसद, विधायक, पार्षद और उससे आगे चले तो ग्राम प्रधान सबके चुनाव से लेकर उनके दायित्व और हितलाभ तक सुनिश्चित है, लेकिन ऐसे लोगों द्वारा किया गया गैर जिम्मेदाराना काम या फिर बयान देने पर या अपने क्षेत्र के जनाधार में निराशात... more »

रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है

varsha at likh dala
रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है बहुत करीब बैठे भी बेगाने से  हैं एक  पीली चादर बात करती हुई सी है बाल्टी का रंग भी  बोल पड़ता है कई बार वह बांस की टूटी ट्रे भी  सहेजी हुई  है  बाबा की पेंटिंग तो रोज़ ही रास्ता रोक लेती है   उन खतों के मुंह सीले हुए से  हैं वह ब्रश, वह साबुन, सब बात करते हैं किसी  के खामोश होने से कितनी चीज़ें बोलती हैं मुसलसल मैं भी बोलना चाहती हूँ तुमसे इतना कि हलक सूख जाए और ये

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!

22 टिप्‍पणियां:

  1. सब समझ गए हम .बढ़िया बुलेटिन .

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  2. बढ़िया कथा....बेहतरीन बुलेटिन....
    शुक्रिया...

    अनु

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  3. भाई शिवम , बाकी सब तो ठीक है ये बताओ कि कहीं ये लघुकथा मेरी और शेखर की जवाबी पोस्ट से तो इंस्पायर नहीं है ??? :) :)

    अगर नहीं है तो कोई बात नहीं और अगर है भी तो भी कोई बात नहीं :) :) :)

    पोस्ट शामिल करने का शुक्रिया !!!!! :) :)

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  4. आप समझाएं और हम ना समझे ऐसा हो सकता है ..... :)
    माँ और बेटे**रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है ------------
    बहुत-बहुत शुभकामनाएं :))

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  5. लड़ने वाले लड़ा करे,हमको क्या है करना
    कथा सारी समझ गए,अब काहे को डरना,,,,,

    सुंदर लिंकों से सजी बुलेटिन में मेरी रचना को स्थान देने के लिये,,,,, आभार,,,,,,,शिवम जी,,,,

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  6. कम शब्दों मे ज्यादा समझा दिया ....

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  7. अच्छी सीख देती है।सुन्दर पोस्ट के लिए शुक्रिया शिवम् जी । मेरे नए पोस्ट "श्रद्धांजलि : सदाबहार देव आनंद" को भी एक बार अवश्य पढ़े। धन्यवाद
    मेरा ब्लॉग पता है:- Harshprachar.blogspot.com

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  8. ये सारी दौलत पेट्रोल की ही तो है पेट्रो डॉलर्स की है .कोई ताज्जुब नहीं यहाँ पेट्रोल सस्ता पानी मंहगा है .दुबई दर्शन के लिए आभार .अगली किस्तों का रहेगा इंतज़ार .ये सारे महा नगर गगन चिढाती इमारतों से देखनें में एक जैसे ही क्यों लगतें हैं चाहे वह शिकागो हो या लासवेगास ,या हो दुबई .


    जहाँ सूखे में भी बहार है -- दुबई ...

    डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन

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  9. ज़ोरदार रही है यह बोध कथा भी .कुत्ते दुश्मनी नहीं निभाते .गांठ बाँध के नहीं रखते आइन्दा देख लेने की .

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  10. आभार !ये प्यार यूं ही सलामत रहे ताउम्र .
    माँ और बेटे

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  11. ये सारी दौलत पेट्रोल की ही तो है पेट्रो डॉलर्स की है .कोई ताज्जुब नहीं यहाँ पेट्रोल सस्ता पानी मंहगा है .दुबई दर्शन के लिए आभार .अगली किस्तों का रहेगा इंतज़ार .ये सारे महा नगर गगन चिढाती इमारतों से देखनें में एक जैसे ही क्यों लगतें हैं चाहे वह शिकागो हो या लासवेगास ,या हो दुबई .

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  12. जुल्म की मुझपे इन्तहा कर दे ,

    मुझसा बे -जुबान ,फिर कोई मिले ,न मिले .

    एक से एक बढ़िया बिम्ब दियें हैं आपने व्यंजना असरदार रहीं हैं सबकी सब -


    मेरे हाथों की लकीरों में कुछ दरारें सी हैं

    शायद तेरे कुछ सितम अभी भी बाकी हैं.
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    बुधवार, 26 सितम्बर 2012
    मेरी संगत अच्छी है

    हल्का- फुल्का

    shikha varshney at स्पंदन SPANDAN

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  13. केशों में सजता है गजरा
    नैनों में इठलाता है कजरा
    खोले केश सुरभि है बिखरे
    झुके नैन रच जाए कहानी,

    माथे पर सौभाग्य की बिंदिया
    जिसके गिरफ्त में मेरी निदिया(नींदिया )....
    पहने कानों में चन्दा से कुंडल
    और तन पर भाये चूनर धानी,

    देखकर तेरी मदमस्त अदाये (अदाएं ).....



    गढ़ जाए न कोई नई कहानी, रोमांटिक







    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    बुधवार, 26 सितम्बर 2012
    मेरी संगत अच्छी है

    रोमांटिक अंदाज़ की बढ़िया गजल .

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  14. बहुत सुंदर शिक्षाप्रद लघु कथा | साथ में उम्दा लिंक्स उपलब्ध कराती पोस्ट |
    मेरी नई पोस्ट:-
    ♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥

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  15. बुलेटिन के कॉफ़ी सारे सेतु पढ़े .चयन समन्वयन एवं प्रस्तुति बे जोड़ .बधाई .लिंक्स पे टिपण्णी भी की .वही टिपण्णी अनजाने में यहाँ भी पेस्ट की .शिवम् मिश्राजी से पता चला इसकी ज़रुरत नहीं हैं .लिंक्स की टिपण्णी यहाँ न चिपकाएँ .उनका अनुदेश सर माथे पे .आइन्दा के लिए हमने नोट कर लिया है .यहाँ इसलिए लिखा है ताकि सनद रहे हमने अपनी चूक को तस्दीक किया है .शुक्रिया .

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  16. कहानी बहुत अच्छी लगी, बाकी लिंक भी देखने को मिले. मेरा विषय उठाया इसके लिए धन्यवाद ! जो समय हमारे पास है उसमें सही दिशा की ओर जाने वालों को चुनना है.

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  17. बुलेटिन में मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए धन्यवाद !

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!