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रविवार, 30 सितंबर 2012

लाहौर चौराहे का नाम भगत सिंह चौक | ब्लॉग बुलेटिन


आज शाम एक न्यूज़ साईट पर एक न्यूज़ दिखी.... समाचार था .. "लाहौर चौराहे का नाम पाकिस्तान ने भगत सिंह चौक रखा" जी बिलकुल हमारे लिए यह किसी खुश खबरी से कम न थी..  सोचा इलेक्ट्रानिक मीडिया में देखा जाये इस पर कोई रिपोर्ट आ रही होगी.. लेकिन नहीं.. यहाँ पर तो कोई और ही राग अलापा जा रहा था.. जैसे आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान का मैच नहीं कोई युद्ध होने वाला है...  यार गंभीर सोच में पड़ गए की क्या नमक मिर्ची मसाला लगा के मीडिया मैच के पहले युद्ध का माहौल गरम करता है.. और फिर पूरा देश एंटी पाकिस्तान लहर में निपट लेता है... शायद पाकिस्तान में भी ऐसा ही होता होगा और वह लोग एंटी हिन्दुस्तानी रंग में रंगते होंगे.. मैच शुरू होने के बाद समाधी लगा कर हर कोई केवल मैच देखता है और फिर मैच ख़त्म होने के बाद शोर गुल का माहौल बड़े अच्छे रंग में रंग जाता है | क्या बूढ़े और क्या बच्चे.. हर कोई हिंदुस्तान और पाकिस्तान में मैच में खूब इन्वाल्व हो जाता है... वैसे आज अन्ना हजारे की तरफ से काफी न्यूज़ सुनने को मिली.. समाचार चैनल वाले ब्रेकिंग न्यूज़ दिखा रहे थे.. उनको एयर-पोर्ट पर लेने न अरविन्द केजरीवाल पहुंचे और न ही मनीष शिशोदिया.. 

हम इतना ही सोचे.. की अबे तुमको क्या लेना देना.. ये चले आते हैं हर बात में तीन पांच करने.. लेकिन यह लोग हमेशा अजीब से रंग में रंगे रहेंगे और ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर पूरे देश को बेकूफ बनाते रहेंगे...  वैसे खेल को खेल ही रहने दिया जाए और मीडिया को देश-हित और सरोकार के दायरे में ही रहकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए... आज शहीदे-ए-आज़म की न्यूज़ से कोई टी-आर-पी नहीं आएगी सोच कर केवल क्रिकेटिया रंग में धूम धाम करते रहना... कहाँ तक नीति संगत है.. 



चलिए आज के बुलेटिन की और चला जाए 

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फूलों से नाम
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क्या समाज में अमीरी -- गरीबी दैवीय प्रतिफल है ?
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उनका मुस्काराना गज़ब ढा गया
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जीवन एक बहुत ही ख़ूबसूरत उपहार है....
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रिटायर होने पर
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आकांक्षा यादव को 'हिंदी भाषा-भूषण' की मानद उपाधि
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फैंसी ड्रेस कम्पीटिशन
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मैंने ज़िन्दगी को नहीं जिया, ज़िन्दगी ने मुझे जिया है
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भारतीय काव्यशास्त्र – 125
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शहरी भैंसें
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सारनाथ
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उसकी यादों में आये इतवार तो अच्छा हो....
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बहुलतावाद का मुखौटा
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मित्रों आज का ब्लॉग बुलेटिन यहीं तक। कल फिर से मुलाकात होगी। तब तक देव बाबा को इजाज़त दीजिये

जय हिंद 

शनिवार, 29 सितंबर 2012

सरकार मस्त.. जनता पस्त.. ब्लॉग बुलेटिन


कभी कभी सोचता हूँ कितना मुश्किल है हिंदुस्तान में आम आदमी का जीवन कितना कठिन है.. हम और आप शायद हर कोई ई-एम्-आई में बोझ तले दबे और कुचले हुए हैं... जिसे देखिये बस कर्ज तले डूबा है... सरकार को टैक्स देने के बाद इस मिडिल क्लास के हिस्से में कितना आता है.. और कितना जाता है... सोचना मुश्किल नहीं है.. हम और आप हमेशा उलझे ही रहेंगे इस किश्त के फेर में... ई-एम्-आई फ्री जीवन शायद कभी नहीं मिलने वाला... सरकार के हिसाब से टैक्सपेयर को सब्सिडी का सिलिंडर नहीं मिलना चाहिए और वह किसी राहत का पात्र नहीं है... इन-डायरेक्ट टैक्स की वसूली में हिंदुस्तान नंबर वन है..  हमारे देश में भिखारी भी टैक्स देता है.. और फिर डायरेक्ट टैक्स पेयर और इस मिडील क्लास के बारे में तो कहना ही क्या.. हम तो पैदा ही कर्जे में हुए थे और जैसे जैसे बड़े होते गए देश में आर्थिक सुधारों के नाम पर कर्जे में बढ़ोत्तरी ही होती गई... अब तो साहब रुपये की इस दुर्दशा को देख कर रोना आता है... क्या हालत हो गयी है अपनी.. एक डालर की कीमत पचपन रुपये ? क्या इस दुर्दशा के लिए सरकार ज़िम्मेदार नहीं.. पेट्रोल कंपनियों के घडियाली आंसू और दाम बढाती सरकार के तर्क की सच्चाई क्या है ? जी यकीं मानिए हिंदुस्तान की कोई भी तेल कंपनी किसी भी प्रकार से घाटे में नहीं हैं और सभी खूब मुनाफा कमा रही हैं और सरकारी मेहरबानी से फल-फूल रही हैं... 

डीजल की कीमत प्रति लीटर पांच रुपये बढ़ी... बाज़ार तुरंत चढ़ गया...  आलू सीधा तीस रुपये की रेंज में और प्याज बीस रुपये की रेंज में आ गया...   अब साहब पता तो हर किसी को है लेकिन बोले कौन...  हम और आप तो अपनी ई-एम्-आई की जुगाड़ में लगे हैं न...  लगे रहेंगे..  यह सब सरकारी साजिश है हर किसी को फ़साने और अपने आप में उलझा देने की... मित्रों आज़ादी के बाद जब कांग्रेसी सरकारों ने औद्योगीकीकरण के राह पर अपने कदम बढ़ाये थे तक कोई माडल साथ नहीं था और भेड़-चाल चाल रही थी... आज भी कमोबेश वही स्थिति है.. कुछ बदला नहीं है वरन कुछ घरानों की तरक्की हुई है और बाकी पूरे देश में मामला फसा हुआ है... छोटे और मझोले व्यापारी अपना वजूद बचाए रखने के लिए जूझ रहे हैं और कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों को छोड़ कर पूरे देश में उहा-पोह की ही स्थिति है.. महंगाई अपने चरम पर है और डिमांड सप्लाई की इस श्रंखला में बन्दर-बाट जोरो पर है.. कहना गलत न होगा लेकिन सरकारी नीतिया कुछ वर्ग विशेष के लिए ही हैं.. हम और आप सरकार के लिए एक खिलौना हैं जिसके साथ सरकार जब चाहे तक खेल सकती है.. बाकी कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है.. सतीश जी का यह कार्टून अपने आप में सब कुछ कह रहा है... 


कार्टून साभार श्री सतीश आचार्य
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अब आज के बुलेटिन की और चलते हैं।
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मित्रों आशा है आपको आज का बुलेटिन पसंद आया होगा। तो फिर मिलते हैं कल फिर से एक नए मुद्दे और कलेवर के साथ। तब तक देव बाबा को इजाजत दीजिये।

जय हिंद 

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !




कुछ बहरों को सुनाने के लिए एक धमाका आपने तब किया था ,
एसे ही कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है,
हो सके तो आ जाओ !! 
 
 
शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी को उनके १०५ वे जन्मदिवस पर पूरे ब्लॉग जगत की ओर से शत शत नमन | 
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !! 
 
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शहीदे आजम रहा पुकार

ई. प्रदीप कुमार साहनी at मेरा काव्य-पिटारा
*("शहीदे आजम"* सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना ) जागो देश के वीर वासियों, सुनो रहा कोई ललकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो, चलो लिए जलती मशाल; कहाँ खो गई जोश, उमंगें, कहाँ गया लहू का उबाल ? फिर दिखलाओ वही जुनून, आज वक़्त की है दरकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | पराधीनता नहीं पसंद थी, आज़ादी को जान दी हमने; भारत माँ के लिए लड़े हम, आन, बान और शान दी हमने | आज देश फिर घिरा कष्ट में, भरो दम, कर दो हुंकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | कई कुरीति,... more » 
 

उम्रदराज़ लोगों में लिव-इन रिलेशनशिप

जीवन के सांझ का अकेलापन, सबसे अधिक दुखदायी है. इसलिए भी कि जिंदगी की सुबह और दोपहर तो जीने की जद्दोजहद में ही बीत जाती है. सांझ ही ऐसा पडाव है,जहाँ पहुँचने तक अधिकांश जिम्मेदारियाँ पूरी हो गयी होती हैं. जीवन के भाग-दौड़ से भी निजात मिल जाती है और वो समय आता है,जब जिंदगी का लुत्फ़ ले सकें. सिर्फ अपने लिए जी सकें. अपने छूटे हुए शौक पूरे कर सकें. अब तक पति-पत्नी पैसे कमाने ,बच्चों को संभालने....सर पर छत का जुगाड़ और चूल्हे की गर्मी बचाए रखने की आपाधापी में एक दूसरे का ख्याल नहीं रख पाते थे .एक साथ समय नहीं बिता पाते थे.और आजकल उन्नत चिकित्सा सुविधाएं ,अपने खान -पान..स्वास्थ्य के more » 
 

जनसंघर्ष ,विद्रोह और विविधता के कवि -जनकवि नागार्जुन

जयकृष्ण राय तुषार at सुनहरी कलम से...
जनकवि -नागार्जुन समय -[30-06-2011से 05-11-1998] परिचय - नागार्जुन हिंदी कविता में एक विलक्षण कवि हैं |वह जिस खाँचे में फिट बैठते उसका निर्माण या सृजन स्वंय उन्होंने ही किया है |जिस तरह छायावाद के कवियों में प्रसाद ,निराला ,पन्त और महादेवी को महत्वपूर्ण माना जाता है उसी तरह प्रयोगवादी कवियों में शमशेर ,त्रिलोचन ,केदारनाथ अग्रवाल और नागार्जुन को माना जाता है |नागार्जुन किसान ,मजदूरों ,छात्रों के आंदोलनों के साथ -साथ बहुत बड़े राजनीतिक कवि भी माने जाते हैं |जनकवि नागार्जुन रूप और विविधताओं के कवि हैं | जनसंघर्षों के कवि हैं |इनकी कवितायें बिना किसी लाग -लपेट के सीधे व्यवस्था की पीठ पर ... more »

श्रद्धांजलि

*कार्टूनिस्ट डॉ. सतीश श्रृंगेरी का निधन* लोकप्रिय कन्नड़ कार्टूनिस्ट और आयुर्वेद चिकित्सक सतीश श्रृंगेरी का आज सुबह (२७ सितम्बर, २०१२ को) फ़ेंफ़ड़ों से जुड़ी संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया। उनकी आयु केवल ४४ वर्ष थी। कला-कार्टूनकला में उनकी बचपन से ही रुचि रही। अभिनव रामानन्द हाई स्कूल (किग्गा), जो श्रंगेरी के निकट एक दूरस्थ गांव है, में पढ़ाई के दौरान उन्होंने ड्रॉइंग का खूब अभ्यास किया और बहुत से कार्टून-कैरीकेचर बनाए। उन्होंने कार्टून कला सिखाने के लिए भी प्रयास किया। वह श्री जगद्गुरु चंद्रशेखर भारती मे
 

निदा फ़ाजली के दोहे

NAVIN C. CHATURVEDI at ठाले बैठे
सीधा साधा डाकिया जादू करे महान इक ही थैली में भरे आँसू अरु मुस्कान ॥ घर को खोजे रात दिन घर से निकले पाँव वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव॥ मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार दिल ने दिल से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार॥ बच्चा बोला देखके मस्जिद आलिशान अल्ला' तेरे एक को इत्ता बड़ा मकान॥ 
 

ख्वाब तुम पलो पलो

तन्हा कदम उठते नहीं साथ तुम चलो चलो नींद आ रही मुझे ख्वाब तुम पलो पलो आशिक मेरा हसीन है चाँद तुम जलो जलो वो इस कदर करीब है बर्फ़ तुम गलो गलो देखते हैं सब हमें प्रेम तुम छलो छलो जुदा कभी न होंगे हम वक्त तुम टलो टलो दूरियां सिमट गयीं हसरतों फूलो फलो नेह दीप जलता रहे उम्मीद तुम मिलो मिलो 
 

एक अच्छे उद्देश्य के आंदोलन का बुरा अंत

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
करीब दो साल पहले अन्ना हजारे के दिशा-निर्देश में शुरू हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का जो हश्र हुआ है,वह दुखदाई तो है ही साथ ही करोड़ों देश वासियों की उम्मीदों पर भी पानी फेरने वाला साबित हुआ। आम-लोगों को एक आस बंधी थी कि उनकी मेहनत की कमाई का वह हिस्सा जो टैक्स के रूप में सरकार लेती है और जिसका अच्छा-खासा प्रतिशत बेईमानों की जेब में चला जाता है, उसका जनता की भलाई में उपयोग हो सकेगा। उनको अपना हक पाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पडेगा। भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और भ्रष्टाचारियों की नकेल कसी जा सके। रोज-रोज की घोटाले की खबरों और उसमें लिप्त सफेद पोशों के काले चेहरों को देख आम आदमी पूरी त... more » 
 

नौजवान भारत सभा का गठन

Digamber Ashu at विकल्प - 4 hours ago
भगत सिंह ने 1926 से ही वास्तविक प्रजातंत्र यानी समाजवादी प्रजातंत्र की ओर अपने कदम बढ़ा दिये थे. इसी लक्ष्य के लिए उन्होंने अपने साथी भगवती चरण वोहरा के सहयोग से 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना करने का बीड़ा उठाया और यह जानते हुए कि क्रांति का काम देश की आम जनता को संगठित किये बिना सम्भव न होगा, उन्होंने पंजाब में जगह-जगह 'नौजवान भारत सभा' की इकाइयां गठित करने का काम शुरू कर दिया. 'नौजवान भारत सभा' नाम से ऐसा जान पड़ता है कि मानो यह छात्रों-नौजवानों की माँगों के दायरे में काम करने वाला ही संगठन होगा, लेकिन असल में उनका यह संगठन भारत की आज़ादी एवं मजदूरों-किसानों की शोषण-दमन से पूर्ण म... more » 
 

काश,बर्फी के कानों की जांच हुई होती !

Kumar Radharaman at स्वास्थ्य
आज* टाइम्स ऑफ इंडिया* में मुंबई से छपी एक रिपोर्ट कहती है कि इस बारे में अभी निश्चित रूप से भले कुछ न कहा गया हो कि मोबाइल फोन का बहरेपन से संबंध है अथवा नहीं,मगर डाक्टरों का कहना है कि जो शिकायतें पहले साठ साल से ज्यादा के लोगों में मिलती थीं,अब बीस-पच्चीस साल के युवाओं में भी मिल रही हैं। कान में पैदा हो रही समस्याएं ट्यूमर तक का कारण बन रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल से दूर रहने वालों की तुलना में,इसके प्रयोक्ता में ऐसा ट्यूमर होने की संभावना 50 फीसदी ज्यादा होती है। बहरेपन की मूल वजह है वांछनीय स्तर से अधिक तेज़ आवाज़ को अधिक देर तक सुनने की आदत। यदि हम 80  more » 
 

हो रहा भारत निर्माण ( व्यंग्य कविता )

मुकेश पाण्डेय चन्दन at मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
१२ सितम्बर को साहित्य अकादमी , मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल तथा हिंदी विभाग , डॉ हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय , सागर द्वारा आयोजित ' पद्माकर समारोह ' काव्यपाठ हुआ . जिसमे कई बड़े कवि-कवियत्रियो के साथ मैंने भी अपनी कवितायेँ पढ़ी . उनमे से एक कविता आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ . हो रहा भारत निर्माण ! *ऐ जी , ओ जी , लो जी , सुनो जी * *हम करते रहे जी -जी , वो कर गए 2 जी * *महंगाई का चढ़ा पारा , बिगड़ी वतन की हेल्थ * *सब मिल के खा गए , खेला ऐसा कामनवेल्थ * *दुनिया करे छि-छि , हो कितना भी अपमान * *अबे चुप रहो ! हो रहा भारत निर्माण ..... * *पेट्रोल इतना महंगा , पकड़ो अ... more » 
 

शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी की १०५ वी जयंती पर विशेष

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
*कुछ बहरों को सुनाने के लिए एक धमाका आपने तब किया था ,* *एसे ही कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है,* *हो सके तो आ जाओ !! * * * * * *शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी को उनके १०५ वे जन्मदिवस पर सभी मैनपुरीवासीयों की ओर से शत शत नमन | * * * *इंकलाब ज़िंदाबाद !! *  
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आज का ब्लॉग बुलेटिन बस यहीं तक ...
 
अब आज्ञा दीजिये ...
 
सादर आपका 
 


जय हिन्द !!

बुधवार, 26 सितंबर 2012

कुछ तो फर्क है, कि नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ ... 

सड़क पर दो कुत्ते आपस में लड़ रहे थे। पास के दुकानदार को नागवार गुजरा। उसने आवाज देकर कुत्तों को भगाना चाहा, पर कुत्ते लड़ते-भौकते ही रहे। तब दुकानदार ने सड़क से एक बड़ा-सा पत्थर उठाया और चला दिया उन कुत्तों पर। इसके पहले कि उन्हे पत्थर लगता वे दोनों रफूचक्कर हो गये। और इत्तफाकन वह पत्थर पड़ोसी की दुकान में जा गिरा और उसका शोकेस का शीशा टूट गया। वह नाराज होकर बुरा भला कहने लगा। पत्थर चलाने वाले दुकानदार ने समझाने की कोशिश की कि उसने जानबूझकर दुकान पर पत्थर नहीं फेंका था। परंतु दूसरा दुकानदार मानने को तैयार ही नहीं था। वह दुकान में हुए नुकसान की भरपाई की मांग कर रहा था। बात यों बढ़ी कि दोनों गाली-गलौज से मारपीट पर उतर आए और फिर ऐसे भिड़े कि एक का सर फट गया। मामला पुलिस तक जा पहुंचा। पुलिस मामला दर्ज कर दोनों को वैन में बिठाकर थाने ले जा रही थी कि रास्ते में लाल सिगनल पर गाड़ी रुकी। पत्थर चलाने वाले ने बाहर झांका देखा, लड़ने वाले वही दोनों कुत्ते एक जगह बैठे उनकी तरफ कातर दृष्टि से देख रहे थे। पत्थर चलाने वाले शख्स को लगा मानो वे दोनों हम पर हंस रहे हों तथा एक दूसरे से कह रहे हों, ''यार, ये तो सचमुच के लड़ गये।''
दूसरे ने कहा, ''हां यार, हमें तो लड़ने की आदत है और हमारी कहावत भी जग जाहिर है परन्तु ये तो हम से भी दो कदम आगे है।''
 
कुछ समझे आप ???
 
सादर आपका 
 
 
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जहाँ सूखे में भी बहार है -- दुबई ...

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन
वर्षों पहले हम मित्रों ने एक ख्वाब बुना था -- बाल बच्चों समेत विदेश यात्रा पर जाने का . ख्वाब पूरा हुआ पूरे ३२ साल बाद जब तीन मित्रों को इक्कट्ठा कर पाए और कार्यक्रम बना पाए, हालाँकि अब बाल तो सभी के कम ही बचे थे . जैसे ही ऑफिस से अनुमति आई , हमने टिकेट कटाई , वीज़ा की अर्जी लगाई, हबीब सैलून से कटिंग कराई और भाई चल दिए दुबई . विमान से नीचे का नज़ारा ऐसा दिख रहा था जैसे रेगिस्तान में जगह जगह घर बने हों , कोई पेड़ नज़र नहीं आया . लेकिन शहर में पहुंचते ही भूल से गए की पेड़ों की भी ज़रुरत होती है . ठहरने के लिए बढ़िया होटल था -- दुबई में चार / पांच सितारा होटल्स की भरमार है . आखिर , उन... more »

एक बेहतर विडियो कन्वर्टर

नवीन प्रकाश at Hindi Tech - तकनीक हिंदी में
विडियो मनोरंजन का एक बेहतर साधन है और मोबाइल फोन्स के आने से विडियो बनाने और देखने में काफी सुविधा हो गयी है पर अक्सर ही हमें एक मोबाइल फ़ोन से दुसरे मोबाइल फ़ोन या एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में विडियो देखने से पहले उन्हें अलग अलग फोर्मेट में कन्वर्ट करने की जरुरत होती है . ऐसे ही कामो के लिए एक बेहतर प्रोग्राम आपके लिए . इस सॉफ्टवेयर का नाम है *video converter* *"Video to Video"* इसकी मदद से आप किसी विडियो को अन्य किसी फोर्मेट या प्रमुख ऑडियो फोर्मेट में बदल सकते हैं . इसकी सबसे बड़ी विशेषता है प्रमुख विडियो फोर्मेट, यू ट्यूब, *hdtv* , के साथ ही मोबाइल फ़ोन के लिए ... more »

परिचय - वंदना गुप्ता

रश्मि प्रभा... at परिचय
अपरिचित हूँ मैं .......... ना जाने कैसे कह देते हैं हाँ , जानते हैं हम खुद को या फ़लाने को मगर किसे जानते हैं ये भेद ना जान पाते हैं कौन है वो ? शरीर का लबादा ओढ़े आत्मा या ये शरीर ये रूप ये चेहरा -मोहरा कौन है वो जिसे हम जानते हैं जो एक पहचान बनता है क्या शरीर ? यदि शरीर पहचान है तो फिर आत्मा की क्या जरूरत मगर शरीर निष्क्रिय है तब तक जब तक ना आत्मा का संचार हो एक चेतन रूप ना विराजमान हो तो शरीर तो ना पहचान हुआ तो क्या हम आत्मा को जानते हैं वो होती है पहचान ये प्रश्न खड़ा हो जाता है अर्थात शरीर का तो अस्तित्व ही मिट जाता है मगर सुना है आत्मा का तो ना कोई स्वरुप होता है आत्मा... more »

गीत,,,

Dheerendra singh Bhadauriya at काव्यान्जलि ...
*गीत,* *तुम न्यारी तुम प्यारी सजनी लगती हो पर- लोक की रानी नख से शिख तक तुम जादू फूलों सी लगती तेरी जवानी, केशों में सजता है गजरा नैनों में इठलाता है कजरा खोले केश सुरभि है बिखरे झुके नैन रच जाए कहानी, माथे पर सौभाग्य की बिंदिया जिसके गिरफ्त में मेरी निदिया पहने कानों में चन्दा से कुंडल और तन पर भाये चूनर धानी, कर कमलों में कंगना सजते पैरों में बिछिया नूपुर बजते संगीत तेरे आभूषणों का सुन बलखाये कमर चाल मस्तानी, निकले होठोंसे हँसीं का झरना यौवन पुष्पों का उठना गिरना देखकर तेरी मदमस्त अदाये गढ़ जाए न कोई नई कहानी,* *dheerendra bhadauriya*,,,,,

हल्का- फुल्का

shikha varshney at स्पंदन SPANDAN
कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई जैसे सहित्य की धार कोई निरीह अबला कहे, कोई मदमस्त कमाल. ******************* दीवारों ने इंकार कर दिया है कान लगाने से जब से कान वाले हो गए हैं कान के कच्चे. ********************* काश जिन्दगी में भी गूगल जैसे ऑप्शन होते जो चेहरे देखना गवारा नहीं उन्हें "शो नेवर" किया जा सकता और अनावश्यक तत्वों को "ब्लॉक " ****************************** कोई सांसों की तरह अटका हो ये ठीक नहीं एक आह भरके उन्हें रिहा कीजिये. ******************************* मेरे हाथों की लकीरों में कुछ दरारें सी हैं शायद त... more »

ये किस पेड़ के पैसे से हो रहा छवि निर्माण --------------mangopeople

anshumala at mangopeople
आज कल बड़े जोर शोर से सभी टीवी चैनलों पर भारत का निर्माण हो रहा है और इस निर्माण पर करोड़ो रूपये खर्च कर रही है वो सरकार जो कहती है की उसके पास जनता को सब्सिडी देने के लिए पैसे नहीं है , अब कोई पुछे की सरकार की छवि निर्माण के लिए किस पेड़ से पैसे आ रहे है ( उस पेड़ का नाम है आम जानता की जेब ), शायद राजनीति में सबक लेने की परम्परा नहीं है यदि होती तो मौजूदा सरकार पूर्व में इण्डिया शाइनिंग का हाल देख कर ये कदम नहीं उठाती | बचपन में नागरिक शास्त्र की किताब में पढ़ा था की किसी देश की सरकार का काम बस लोगों से टैक्स वसूलना और खर्च करना नहीं होता है उसका काम ये भी है की अपने देश में रह  more »

तुम जो नहीं हो तो... आ गए बताओ क्या कर लोगे...

*कल रात देवांशु ने पूरे जोश में आकर एक नज़्म डाली अपने ब्लॉग पर, डालने से पहले हमें पढाया भी, हमने भी हवा दी, कहा मियाँ मस्त है छाप डालो... और तभी से उनकी गुज़ारिश है कि हम उसपर कोई कमेन्ट करें (वैसे सच्चे ब्लॉगर लोग के साथ यही दिक्कत है , उन्हें कमेन्ट भी ढेर सारे चाहिए होते हैं ...) हमें भी लगा, ठीक है चलो साहब की शिकायत दूर किये देते हैं ... कमेन्ट क्या पूरी की पूरी पोस्ट ही लिख मारी ... ये है उसकी लिखी नज़्म ... ********************************* तुम जो नहीं हो तो... ********************************* चाँद डूबा नहीं है पूरा, थोड़ा बाकी है | * * वो जुगनू जो अक्सर रात भर चमकने पर,* * ... more »

तुम जो नहीं हो तो...

देवांशु निगम at तुम हाँ तुम ....
चाँद डूबा नहीं है पूरा, थोड़ा बाकी है | वो जुगनू जो अक्सर रात भर चमकने पर, सुबह तक थक जाता, रौशनी मंद हो जाती थी, अभी भी चहक रहा है, बस थोड़ा सुस्त है | यूँ लगता है जैसे रात पूरी, जग के सोयी है , आँख में जगने की नमी है, दिल में नींद की कमी | सूरज के आने का सायरन, अभी एक गौरेया बजाकर गयी है | अब चाँद बादलों की शाल ओढ़ छुप गया है , सो गया हो शायद, थक गया होगा रात भर चलता जो रहा | मेरी मेज़ पर रखी घड़ी में भी, सुबह जगने का अलार्म बज चुका है | गमलों में बालकनी है, डालें उससे लटक रही हैं , फूल भी हैं , बस तुम्हारी खुशबू नहीं. महकती ... -- देवांशु (चित्र गूगल इमेजेस से)

माँ और बेटे

Archana at अपना घर
*यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी ** तस्वीर साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो **तस्वीर में... * *आज की तस्वीर में रश्मि रविजा जी हैं अपने बेटों किंजल्क और कनिष्क के साथ ये कहते हुए कि ---* * मन होता है..वे दिन फिर से एक बार लौट आएँ, इन दोनों की मासूम शरारतों वाले :)* *और रश्मि जी का ब्लॉग है-- अपनी,उनकी,सबकी बातें*

संविधान क्या कहता है !

रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
देश का पूरा शासन संविधान के अनुरूप ही निर्धारित होता है और फिर उसको समय की मांग के अनुरूप उसमें संशोधन भी होते रहते हैं और सबसे अधिक तो सत्तारूढ़ दल अपने स्वार्थ के अनुसार उसमें संशोधन भी करते रहते हैं क्योंकि वे इस काम को करने के लिए सक्षम होते हैं। यहाँ केंद्र शासन, राज्य शासन या फिर स्थानीय शासन सभी कुछ तो इसमें परिभाषित किया गया है -- सांसद, विधायक, पार्षद और उससे आगे चले तो ग्राम प्रधान सबके चुनाव से लेकर उनके दायित्व और हितलाभ तक सुनिश्चित है, लेकिन ऐसे लोगों द्वारा किया गया गैर जिम्मेदाराना काम या फिर बयान देने पर या अपने क्षेत्र के जनाधार में निराशात... more »

रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है

varsha at likh dala
रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है बहुत करीब बैठे भी बेगाने से  हैं एक  पीली चादर बात करती हुई सी है बाल्टी का रंग भी  बोल पड़ता है कई बार वह बांस की टूटी ट्रे भी  सहेजी हुई  है  बाबा की पेंटिंग तो रोज़ ही रास्ता रोक लेती है   उन खतों के मुंह सीले हुए से  हैं वह ब्रश, वह साबुन, सब बात करते हैं किसी  के खामोश होने से कितनी चीज़ें बोलती हैं मुसलसल मैं भी बोलना चाहती हूँ तुमसे इतना कि हलक सूख जाए और ये

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

अहंकार में तीनों गए - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज का ज्ञान :-

अहंकार में तीनों गए ;
 धन, वैभव और वंश !
 ना मानो तो देख लो ;
 रावण , कौरव और कंस !

सादर आपका 


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ये मोहब्बत जो ना कराये थोडा - सत्य वचन देवी 

~: कुछ हाइकु :~ - फिर सवाल पैदा होता है कि काए कू 

सल्तनत ... - सलामत नहीं 

रस और विचार का संगम .... एक काव्य संध्या ऐसी भी ! - अच्छा 

नपुंसकता - गंभीर बीमारी है 

बॉस की पत्नी हैं आप, बॉस नहीं .. - इत्ती सी बात समझती नहीं है यार

तुम कहाँ हो ? - कुछ पता तो चले 

.......... नकाब -- संजय भास्कर - सब पहने है 

गाँठ पड़ना ठीक है ! - पर हमने तो कुछ और ही सुना था 

 

राजनेता कौन होता है ??? - हम तो नहीं है 

" दर्द का महाराजा .......दाँत का दर्द ...." - दिल मेरा दर्द का गोदाम बन कर रह गया 

श्रद्धांजलि ...... - हम सब की भी ओर से ... 

 

श्री गणपतिजी की अष्टोत्तरशत नामावली यानी श्री गणेशजी के १०८ नाम, - जय हो 

किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !! - हम्म

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे ...6 - ज़िन्दगी से बड़ी किताब नहीं 

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अब आज्ञा दीजिये ...

 जय हिन्द !!

सोमवार, 24 सितंबर 2012

रोमिंग फ्री... ब्‍लॉग बुलेटिन

भैया अगले साल से रोमिंग फ्री हो गयी है... मतलब एक देश और एक नंबर... देखने मे अच्छा लग रहा है लेकिन शायद थोड़ी गड़बड़ भी हो सकती है... जी बिलकुल पहले आप एक नंबर को देख कर अंदाज़ा लगा लेते थे की फलां नंबर मुंबई का है या दिल्ली का, लैंडलाइन का है या मोबाइल का। लेकिन अब यह संभव नहीं होगा क्योंकि बदलते दौर के नंबर अंदेशा ही नहीं लगने  देंगे की आखिर यह मोबाइल नंबर किस क्षेत्र का है और किसका है। जी बिलकुल, सूचना और प्रौद्योगिकी के इस दौर मे कहना गलत नहीं होगा की इसके दुरुपयोग की भी संभावना है और जब तक सारा डाटा सेंट्रल लोकेशन से जोड़ा नहीं जाता मामला गड़बड़ ही रहेगा। 

वैसे हमारे और आपके लिए तो यह खुशखबरी ही है... सो आनंद लीजिये॥ 
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वैसे बुलेटिन की ओर बढ्ने से पहले आइये थोड़ा हंसी के गोलगप्पे खाये जाए॥
संता ( लाइब्रेरियन से )- ये रखो अपनी किताब , इतने सारे करेक्टर ओर कोई कहानी ही नहीं 

लाइब्रेरियन - ओह तो वो आप हें जो टेलीफोन डाइरेक्टरी इश्यू करा कर ले गए थे
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एक दिन दो पुराने दोस्त गधे बाजार में मिले। एक गधा बोला - यार तुम तो बहुत कमजोर हो गए हो। क्या तुम्हारा मालिक तुम्हें ठीक से खाने पीने को नहीं देता ?
दूसरे गधे ने ठंडी सांस भरकर कहा - हां दोस्त, खाने पीने को तो ठीक से मिलता ही नहीं है साथ ही काम भी बहुत करवाता है। मेरा मालिक सचमुच बहुत खराब आदमी है।
पहले गधे ने कहा - तो फिर ऐसे मालिक को तुम छोड़ क्यों नहीं देते ? किसी दिन मौका देखकर भाग जाओ न ?
दूसरा गधा - मैं भाग नहीं सकता ।
पहला गधा - पर क्यों ?
दूसरा गधा - मेरे मालिक की एक बहुत ही खूबसूरत बेटी है। जब भी वह उस पर नाराज होता है तो मेरी तरफ इशारा करके उससे कहता है कि ”देखना, एक दिन तेरी शादी मैं इस गधे से कर दूंगा” ……. अब यार, मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं ……

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आज का बुलेटिन 

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पेड़ पर नहीं उगते पैसे क्‍या ? उगते हैं, उगते हैं, उगते हैं
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मेरा नाम...
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स्वपन कुसुम....
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तनहा हूँ भी तनहा नहीं भी
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पत्नी पर दुमदार दोहे
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अंधविश्वास की गलियों मे..
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एक धुन जिंदगी को गुनगुनाने की ....
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हमारे वोट, पेड़ पर उगते हैं क्या ? (व्यंग गीत)
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बंजारा सूरज 
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अकेला आगमन, अकेला प्रयाण ..
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गरीब का सलाम ले / गोपाल सिंह नेपाली
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भारत परिक्रमा- आखिरी दिन
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बरसात का उत्तरार्ध
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फ़र्क
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मधुबनी में पान खिलाने पर तुगलकी फरमान
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मित्रो तो आशा है आपको आज का फटफटिया बुलेटिन पसंद आया होगा। तो फिर देव बाबा को इजाजत दीजिये , तो फिर मिलते हैं एक ब्रेक के बाद...

जय हिन्द 

रविवार, 23 सितंबर 2012

मैनेजर पुराण... ब्‍लॉग बुलेटिन


मित्रों कल की पोस्ट की सफलता के बाद लीजिये मैनेजर पुराण ... अजी यह पोस्ट हमने कोई दो साल पहले लिखी थी। ओरिजिनल लिंक यह रही

परिभाषा

१. मैनेजर दुनिया का वह प्राणी है, जो सोचता है की नौ औरते मिलकर एक महीने में संतान उत्पन्न कर सकती हैं
२. यह ऐसा प्राणी है, जो आपको उसी टाइम पर बुलाएगा जब आप काफी का एक गरमा गरम कप लेकर अपनी डेस्क पर आये हो, और उसका काम उतनी ही देर में ख़त्म हो जायेगा जितनी देर में आपकी काफी ठंडी हो जाए....
३. इसकी आँखे केवल टार्गेट डेट देखती हैं
४. इसको चमचा-गिरी पसंद होती है, मगर एक लिमिट तक
५. अगर आप अपने मैनेजर के पहले ऑफिस से घर जा रहे हैं, तो फिर समझिये की आप गए... विधाता भी नहीं बचा सकता (यह उड़न तश्तरी जी की कुंडली से उठाया है, सो इसके द्वारा होने वाले उंच नीच के लिए कृपया कान्टेक्ट समीर लाल :)) )
६. कोई भी शहर हो कोई भी गाँव को मैनेजर की जात एक जैसी ही होती है
७. मैनेजर को इस धोके में रखना बहुत ज़रूरी है, की आप उसके वफादार हैं... गलती से भी उसको आपकी असलियत पता लगी... समझ लीजिये की आपकी बैंड बजी...
८. आपको भ्रम होगा की आपकी हरकतों पर वह ध्यान नहीं दे रहा है... मगर ऐसा नहीं है, वह आपकी हर गतिविधि पर पूरा ध्यान दे रहा है... बेचारे को यही करने के लिए तो मैनेजर बनाया है...
९. मैनेजर कभी भी आपसे रिपोर्ट मांग सकता है, तो हमेशा तैयार रहिये... गलत या सही अपना कान्फिडेंस बनाये रहिये. ससुरा अपने आप पट जायेगा.
१०. अगर आप अपने मैनेजर को पटा नहीं सकते, तो फिर उसको कन्फ्यूज़ करिए... अगर वह आपका बाप हुआ तो फिर कन्फ्यूज़ नहीं होगा, बल्कि आपकी ही लाइफ के बारह बजा देगा.... तो प्लीज़ टेक एक्स्ट्रा केयर हेयर
११. प्रमोसन पाने के लिए असरदार नुस्खा... मुझे एक असरदार सरदार ने दिया था... अपने मैनेजर को बोलिए... अगर तूने मेरे को प्रोमोसन नहीं दिया तो मैं जाके सबको बता दूंगा तो की मेरा प्रमोसन हो गया है.... बेचारा टेंसन में आ जायेगा
१२. अपनी सैलेरी और प्रमोसन का ज़िक्र अपने बॉस के अलावा और किसी से ना करिए...
१३. ऑफिस में होने वाली हर छोटी छोटी सी बातों पर कान और ध्यान दीजिये, क्या मालूम कौन सी बात कितनी ज़रूरी है..
१४. अपने कान एकदम साफ़ रखिये....
१५. मैनेजर की कोई भी कठोर बात एक कान से सुनिए दुसरे से निकाल दीजिये.... माई बाप है आपका
१६. याद रखिये बड़े बड़े तेनालिरामो, बड़े बड़े बीरबलों ने अपने बॉस को पटाकर ही अपना उल्लू सीधा किया था, सो उनके आदर्श अपने सामने रखिये
१७. अपने मैनेजर से जब भी बात करें, तो उसे बोलने दें.. क्योंकि वह भी अपने मैनेजरों से सुन के आ रहा है ना
१८. याद रखिये मैनेजरों के मैनेजरों से जितनी दूरी बना कर रख सकें उतना ज़रूरी है
१९. मैनेजर को इस छलावे में रखना ज़रूरी है की आप उसकी हर बात सुन रहे हैं... अगर उसको कहीं असलियत पटा लगी तो फिर जिम्मेदार आप खुद होंगे.
२०. याद रखिये, ऑफिस में ना कोई आपका दोस्त है और ना कोई दुश्मन... सारे आप ही की तरह हैं... अपना उल्लू सीधा करो और सुखी रहो.
२१. प्रोजेक्ट में डाक्य़ूमेंटेसन ऐसा करिए की वह आपके मैनेजर को समझ में ना आये... अगर गलती से वह समझ गया तो फिर आपको डबल काम करना पड़ेगा
२२. टार्गेट डेट कभी भी सही मत दीजिये, हमेशा अपना सहूलियत मार्जिन रखना ज़रूरी है
२३. चाय और काफी के ब्रेक में अगर मैनेजर साथ हो तो फिर गलती से भी क्रिकेट, हाकी गिल्ली डंडा वगैरह वगैरह का ज़िक्र आए तो भी चुप रहिये. केवल और केवल ऑफिस के काम का ज़िक्र आये तो ही अपना मुंह खोलिए
२४. जब आप कुछ नहीं कर रहे हो, तब भी आपका व्यस्त दिखना ज़रूरी है
२५. शराफत का लबादा ओढ़े रहिये, और अपनी गलती कभी भी मत मानिए...
२६. ऑफिस में अपने हिस्से ढेरों काम ले कर रखिये, आप पर लोग निर्भर रहे.... मगर आप अपना काम कर रहे हैं... मैनेजर का भरोसा बनाये रखिए
२७. मैनेजर का जन्मदिन और शादी की साल-गिरह, वगैरह वगैरह याद रखिये....
२८. ऑफिस में होने वाली हर लड़ाई... हर बहस... से दूर रखिये... कम से कम मैनेजर को पटा नहीं लगना चाहिए.
२९. ज़रूरत से ज्यादा ईमानदारी आपको ले डूबेगी... सो समझदारी से काम लीजिये
३०. याद रखो तुम्हारे आने के पहले भी ऑफिस का काम चलता था और तुम्हारे जाने के बाद भी चलता रहेगा... सो क्या नया जोड़ लिया और क्या छोड़ लिया....
३१. जब कोई नया मैनेजर आये, तो शुरूआती दिन बहुत ज़रूरी हैं, इससे पहले की आपका सहकर्मी फायदा उठा ले जाए आप आगे बढिए.
३२. मैनेजर की सत्य है और जगत मिथ्या... समझे की नहीं...
३३. जो बीत गया, सो बीत गया। अपने हाथ से कोई गलत काम हो गया हो तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए.... अबे जो छुट्टी पे है या नौकरी छोड़ कर चला गया है उस पर दोष दल दो और क्या
३४. असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं। बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति मैनजर को पटते हैं और अपना रास्ता खुद बनाते हैं।
३५. अपनी डेस्क पर फाइलें, पानी की कुछ बोतलें, ज़रूर रखें... फीलिंग आती है की आप काम काज करने वाले आदमी हैं
३६. कंप्यूटर का वाल-पेपर किसी भगवान् की फोटो लगा लें... बॉस सोचेगा की धर्म कर्म वाला आदमी है... वैसे इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है
३७. ऑफिस में जिसके पास मैनेजर का साथ है, उसके अनेक मित्र, भाई बन्धु हो जाते हैं
३८. उतना ही काम करो जितना ज़रूरी है... अगर गलती से भी ज्यादा काम करोगे तो फिर खुद तो मरोगे भी और अपने आने वाले को भी मारोगे...
३९. कंप्यूटर पर काम करो तो कम से कम पचास विंडो ओपन कर लो... इससे अगर कोई कंप्यूटर मानिटर देखेगा तो समझ जायेगा की आप कितना ज्यादा काम करते हैं
४०. मैनेजर का फोन, बीवी के फोन से ज्यादा जरुरी है.. सो कभी भी मिस मत करिए...

(अभी चालीसा मारा है, बाकी का गुरु मंत्र भी जल्दी ही दुंगा)

-देव

चलिए आज के बुलेटिन की और चलें।

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कुत्ता दिवस!

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अस्मिता ,वर्चस्व और अमेरिकी जेल व्यवस्था
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मुझे तो मार दोगे
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एक वोटर का पत्र : सेकुलर नेता जी के नाम
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समय ठहर उस क्षण,है जाता
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1989 की कवितायें - दो तिहाई ज़िन्दगी
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बच्चों की भाषा और अध्यापक” पुस्तक को पढ़ते हुए...
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सद्‍भावना का अंतर्राष्ट्रीय चेहरा
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लेखन के लिए बस जूनून चाहिए ....
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लब-प्यार से लबालब
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चोट पानी जब करता है तो पत्थर टूट जाते हैं
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टाइगर पटौदी को पहली बरसी पर विनम्र श्रद्धांजलि
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मित्रो आज का बुलेटिन यहीं तक, कल फिर मिलेंगे एक नए मुद्दे के साथ। तब तक देव बाबा को इजाजत दीजिये।

जय हिंद 


शनिवार, 22 सितंबर 2012

थोड़ा कहा बहुत समझना - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

आज कॅरियर में आगे बढ़ने के लिए केवल अच्छा काम करना ही काफी नहीं होता, बल्कि अपने बॉस के व्यक्तित्व को पहचान कर उसके अनुकूल व्यवहार करने की कला को भी प्रोफेशनल सॉफ्ट स्किल का जरूरी हिस्सा माना जाता है। आइए जानते हैं कि अलग-अलग तरह के सीनियर्स के साथ कैसे पेश आना चाहिए..
मि. एंग्रीमैन
बिना किसी बात के भी गुस्सा करना ये अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। अगर कभी रैंडमली इनका बीपी चेक किया जाए तो कम से कम 200 तो निकलेगा ही। ऐसे बॉस के अधीन काम करने वालों को तो कई बार यह भी समझ नहीं आता कि आखिर उन्हें डांट किस वजह से पड़ी है।
एक्सपर्ट की राय
अगर कभी आपके बॉस बेवजह आपको डाटते हैं तो उस वक्त उनसे बहस न करें, लेकिन बाद में जब कभी उनका मूड अच्छा हो तो उनसे विनम्रतापूर्वक यह जरूर पूछें कि उस वक्त मुझे मेरी किस गलती की वजह से डाट पड़ी थी।
मि. भुलक्कड़
ये अचानक आपसे कहते हैं कि कल मैंने जो फाइल तुम्हें संभालकर रखने के लिए दी थी, उसे जरा ले आओ। अब आप चाहे लाख मिन्नतें करें कि सर, आपने मुझे कोई फाइल नहीं दी थी, पर ये आपकी एक नहीं सुनेंगे। जब आप फाइल ढूंढ़ने में अपना आधा घटा बर्बाद कर चुके होंगे तो ये बडे़ प्यार से आपको अपनी केबिन में बुलाकर कहेंगे, परेशान मत हो, यह यहीं मेरी फाइलों के नीचे दबी पड़ी थी।
एक्सपर्ट की राय
ऐसी स्थिति में आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है। बॉस को हर जानकारी ई-मेल के माध्यम से दें और उनसे आग्रह करें कि मेल मिलने के बाद वह रिप्लाई जरूर करें। अगर उन्हें किसी डॉक्यूमेंट की हार्ड कॉपी सौंपनी हो तो इसके लिए एक रजिस्टर बना लें और उस पर इंट्री जरूर करें।
मि. इंडिया
कुछ बॉस वाकई मिस्टर इंडिया की तरह अदृश्य होते हैं। ये ऑफिस में ही होते हैं, पर अपनी सीट पर कभी दिखाई नहीं देते। अगर किसी कर्मचारी को इनसे कुछ पूछना होता है तो वह परेशान हो जाता है।
एक्सपर्ट की राय
हमेशा सतर्क रहें और जब भी आपके बॉस अपनी सीट पर बैठे दिखाई दें, मौके का फायदा उठाएं। उनसे जितनी जरूरी बातें डिस्कस करनी हैं या जिन पेपर्स पर साइन करवाना है, उसी वक्त करवा लें।
मि. हवा-हवाई
हवा में बेवजह डींगें हाकते हुए अपनी बेहिसाब प्रशंसा करना ऐसे बॉसेज का प्रिय शगल होता है। ऐसे लोग बेहद बातूनी होते हैं। हर छोटी से छोटी घटना या प्रसंग के लिए इनके पास सुनाने के लिए कोई न कोई ऐसा वाकया जरूर होता है, जिसमें इनके सद्गुणों का बखान भरा होता है। इन्हें अपनी उपलब्धियों से जुडे़ सारे आकडे़ कंठस्थ होते हैं, जिनका जिक्र ये अकसर करते रहते हैं।
एक्सपर्ट की राय
परेशान न हों, क्योंकि इससे आपका कोई नुकसान नहीं होने वाला। कुछ लोग बेहद आत्ममुग्ध होते हैं। बार-बार अपनी प्रशसा करना भी एक तरह का मेंटल मेकैनिच्म है, जिसके जरिये व्यक्ति अनजाने में अपना मनोबल बढ़ा रहा होता है। हाँ, उनके ज्यादा बोलने की वजह से अगर आपके काम में व्यवधान पैदा हो तो उनकी बातों में ज्यादा दिलचस्पी न दिखाएं और अपने काम में जुटे रहें। अगर वह समझदार होंगे तो खुद ही चुप हो जाएंगे।
मि. कन्फ्यूच्ड
पहले किसी प्रोजेक्ट के लिए खुद ही आइडिया देकर उस पर काम शुरू करवाना और जब आधे से ज्यादा काम हो जाए तो उसे यह कहकर खारिज कर देना कि इसमें मजा नहीं आ रहा, कुछ अलग हटकर होना चाहिए। जब दूसरी बार आप नए ढंग से रिपोर्ट तैयार करके ले जाएँगे तो वह बडे़ शांत भाव से फाइल एक तरफ रखते हुए कहेंगे, इसे रहने दो। अभी हम पहले वाले आइडिया पर ही काम करेंगे।
एक्सपर्ट की राय
ऐसे में आप कर भी क्या सकते हैं? वो कहावत है न बॉस इज ऑलवेज राइट। अगर कभी बॉस आपके द्वारा तैयार की गई किसी रिपोर्ट को रिजेक्ट कर देते हैं, तब भी आप उसकी फाइल सुरक्षित रखें, ताकि अगर वह आपको दोबारा उसी पर काम शुरू करने के लिए कहें तो आप आसानी से उसे पूरा कर सकें।
मि. रसिक
इस प्रजाति के बॉस प्राय: हर ऑफिस में देखने को मिल जाते हैं। फीमेल स्टाफ के प्रति अतिशय उदारता बरतना, उनसे फिल्म और म्यूजिक जैसे सरस विषयों पर गपशप करना, उनके पहनावे पर अक्सर कंप्लीमेंट देना, उन्हें लिफ्ट देने के लिए तत्पर रहना, अक्सर उनके साथ फ्लर्टिंग करना और उनके मोबाइल पर जोक्स भेजना आदि इनकी आदतों में शुमार होता है।
एक्सपर्ट की राय
अगर आपके भी बॉस ऐसे हैं तो आपको अपने व्यवहार और बॉडी लैंग्वेज को लेकर विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। इनके साथ हमेशा सम्मानजनक दूरी बनाए रखनी चाहिए। अंतत: आपकी योग्यता ही काम आएगी।
मि. शक्की
ऐसे बॉसेज की वक्र दृष्टि से बच पाना बहुत मुश्किल होता है। ये पहले से ही यह मानकर चलते हैं कि आपके काम में कोई न कोई निजी स्वार्थ जरूर होगा। ये आपके कामकाज और गतिविधियों पर माइक्रोस्कोप जैसी सूक्ष्म और पैनी नजर रखते हैं। शक करना इनकी आदत में शुमार होता है। काम के दौरान ये अक्सर आपके कंप्यूटर पर ताक-झाककर यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कहीं आप काम के साथ-साथ चैटिंग तो नहीं कर रहे |
एक्सपर्ट की राय
आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि शक की बीमारी का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है। अगर आप ईमानदार हैं तो निडर होकर काम करें। निराधार शक की वजह से वह आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे।
मि. अधीर
आपको कोई काम सौंपने के बाद इनके लिए दस मिनट भी चैन से बैठना मुश्किल हो जाता है। काम के फॉलोअप के लिए ये आपको कई फोन कर डालते हैं। शायद ये यही समझते होंगे कि काम करने वाले व्यक्ति के दिमाग और अंगुलियों में कोई ऐसा माइक्रोचिप लगा होता है कि काम बताते ही कर्मचारी अलादीन के जिन्न की तरह पूरा करके उन्हें सौंप देगा।
एक्सपर्ट की राय
जब भी आपको कोई काम सौंपा जाए तो उसी वक्त बॉस से उसकी डेडलाइन के बारे में पूछ लें, अगर आपको ऐसा लगता है कि उसे पूरा करने में ज्यादा समय लग सकता है तो उन्हें उसी वक्त स्पष्ट रूप से बता दें कि यह काम पूरा करने में दो के बजाय चार घटे लगेंगे।
मि. बैलेंस्ड
यह बॉसेज की सबसे दुर्लभ प्रजाति है। सिर्फ काम से काम रखना, किसी के साथ पक्षपात न करना, मुश्किल परिस्थितियों में भी शांत रहना, अगर कभी कोई गलती हो भी जाए तो सबके सामने डाटने के बजाय अपने केबिन में बुलाकर आपको आपकी गलती के बारे में बताना, इनकी खूबी है।
एक्सपर्ट की राय
अगर आपको ऐसे बॉस के साथ काम करने का मौका मिला है तो यह अच्छी बात है कि आप तनावमुक्त होकर काम कर सकते हैं। इस अवसर का इस्तेमाल आप अपनी प्रोफेशनल स्किल्स बढ़ाने के लिए करें, लेकिन ऐसे बॉस की अच्छाइयों का फायदा उठाने की कोशिश न करें, क्योंकि ऐसे लोगों को गलत बातें बर्दाश्त नहीं होतीं। 

वैसे अगर आपने गौर किया हो तो ऊपर दिये गुण ब्लॉग जगत के कुछ ब्लॉगर बंधुओं से भी मेल खाते है ... नाम आप बताएं !

सादर आपका 

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पिता और बेटी

Archana at अपना घर
*यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी तस्वीर साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो तस्वीर में... आज की तस्वीर में हैं कार्टूनिस्ट इरफ़ान जी अपनी बेटी ‘सरगम’ के साथ --* *और यहाँ आप उनका काम देख सकते हैं--* http://www.cartoonsbyirfan.com/

पैसा, पेड़ नहीं उगता

श्यामल सुमन at मनोरमा
बहुत सुना बचपन से भाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता देश-प्रमुख ने अब समझाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों का अपने खाते रोज मलाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता बोल रहे थे देश-प्रमुख ही या कोई रोबोट वहाँ लादे लोगों पर मँहगाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता राजनीति में रहकर भी जो धवल वस्त्र के स्वामी थे खुद ही छींट लिया रोशनाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता मन मोहित ना किया किसी का आजतलक जो भारत में बना आज है वही कसाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता उनके भी आगे पीछे कुछ जिनको रीढ़ नहीं यारो बातें उनकी ही दुहराई, पैसा, पेड़ नहीं उगता ऐसा बोले देश-प्रमुख जब सुमन चमन का क्या सोचे मजबूरी की राम दुहाई... more »

आओ सरकार-सरकार खेलें....

आओ सरकार-सरकार खेलते हैं । एक गठबंधन बनाते हैं । मैं तुम्हें समर्थन दूंगा । तुम मुझे सहयोग करना । प्रधानमंत्री तुम्हारी पार्टी से । गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री भी तुम अपनी पार्टी के नेता को बना लो । मुझे कोई मंत्रालय नहीं चाहिए । लेकिन हमारी पार्टी गठबंधन में रहेगी । हम बाहर से समर्थन करेंगे । तुम जब चाहो, जिस विभाग में चाहो घोटाला करना । जब मर्जी हो, किसी भी चीज की कीमत अपने हिसाब से बढ़ा लेना । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है । लेकिन चूकि हमारी पार्टी गरीब, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पार्टी है, इसलिए हम रौल बैक की मांग करेंगे । समर्थन वापसी की धमकी भी देंगे । तुम्हारे खि... more »

तुमने ही तो कहा था

mukti at feminist poems
हमें कहा गया कि कुछ भी करने से पहले इजाज़त ली जाए उनकी ‘लड़कियाँ आज्ञाकारी होनी ही चाहिए’ किसी भी सूरत में, हमने हर काम करने से पहले उनकी इजाज़त ली ये बात और है कि किया वही जो दिल ने कहा कि दिल और दिमाग किसी और के कहने से नहीं चलते, और कुछ 'सोचने' से पहले इजाज़त लेने की बात भी नहीं थी। हमें निर्देश दिया गया था कि चलते समय ध्यान रखना दो क़दमों के बीच का फासला न हो एक फुट से ज्यादा कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं लगतीं, हमने उनकी बात मानी और उसी एक फुट के अन्दर अपनी सारी दुनिया बसा ली, कम से कम हमारी दुनिया अब हमारे क़दमों के नीचे थी और हमारे कदम भी ज़मीन पर। जब हमन... more »

" पैसे पेड़ पर नहीं उगते ......."

बहुत साधारण सी बात है कि, पैसे पेड़ पर नहीं उगते | यह जुमला अक्सर सुनने को मिलता है | मध्यम वर्ग के परिवारों में अक्सर बच्चे या महिलायें अगर किसी चीज़ की फरमाइश कर दे और कमाने वाला पुरुष अगर सीमित आमदनी वाला है तब वह बरबस उनकी फरमाइश सुन कर कह उठता है , पैसे पेड़ पर तो उगते नहीं | ऐसा नहीं है कि वह उनकी फरमाइश से इत्तिफाक नहीं रखता या पूरी नहीं करना चाहता पर हताशा वश ( अपने परिवार की इच्छा पूरी न कर पाने के दबाव में ) ऐसा कह उठता है | इस कथन के पीछे उसे भी मानसिक पीड़ा बहुत होती है | जब भी या जिस भी परिस्थिति में इस जुमले का प्रयोग किया गया हो या किया जाता हो , वह स्थिति अधिकतर लाच... more »

कलाई घडी

अरुण चन्द्र रॉय at सरोकार
कलाई पर बंधा है समय मारता है पीठ पर चाबुक और दौड़ पड़ता हूँ मैं घोड़े की तरह आगे और आगे अंतहीन घडी मुस्कुराती है कलाई पर बंधी बंधी मुझे हाँफते देख

थोड़ा कहा बहुत समझना ...

शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes
*जो प्रधानमंत्री जी ने कहा :- " रुपये पेड़ों पर नहीं उगते ..." जो वो कहना चाह रहे थे :- " रुपये कोयले की खदानों मे मिलते है ..."*

अनोखी शब्दावली

संगीता स्वरुप ( गीत ) at गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
शब्दों का अकूत भंडार न जाने कहाँ तिरोहित हो गया नन्हें से अक्षत के शब्दों पर मेरा मन तो मोहित हो गया । बस को केवल " ब " बोलता साथ बोलता कूल कहना चाहता है जैसे बस से जाएगा स्कूल । मार्केट जाने को गर कह दो पाकेट - पाकेट कह शोर मचाता झट दौड़ कर कमरे से फिर अपनी सैंडिल ले आता . घोड़ा को वो घोआ कहता भालू को कहता है भाऊ भिण्डी को कहता है बिन्दी आलू को वो आऊ । बाबा की तो माला जपता हर पल कहता बाबा - बाबा खिल खिल कर जब हँसता है तो दिखता जैसे काशी - काबा । जूस को कहता है जूउउ पानी को कहता है पायी दादी नहीं कहा जाता है कहता काक्की आई । छुक - छुक को वो तुक- ... more »

कैसी होती है माँ ...??

रश्मि प्रभा... at मेरी नज़र से
*सतीश सक्सेना* [image: [papa21.jpg]] http://satish-saxena.blogspot.in/ * * * * *कैसी होती है माँ ...??* कई बार रातों में उठकर दूध गरम कर लाती होगी मुझे खिलाने की चिंता में खुद भूखी रह जाती होगी मेरी तकलीफों में अम्मा, सारी रात जागती होगी ! बरसों मन्नत मांग गरीबों को, भोजन करवाती होंगी ! सुबह सबेरे बड़े जतन से वे मुझको नहलाती होंगी नज़र न लग जाए, बेटे को काला तिलक, लगाती होंगी चूड़ी ,कंगन और सहेली, उनको कहाँ लुभाती होंगी ? बड़ी बड़ी आँखों की पलके,मुझको ही सहलाती होंगी ! सबसे सुंदर चेहरे वाली, घर में रौनक लाती होगी अन्नपूर्णा अपने घर की ! सबको भोग लगाती होंगी दूध मल... more »

नई ग़ज़ल

अरसे बाद ग़ज़ल कही है...... ! आप की खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ_____---- किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या किरन आयी कहाँ से रौशनी की अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं ‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’ मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ बताऊँ आपको अपना पता क्या ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या

सिनेमा सोल्यूशन नहीं सोच दे सकता है: टीम चक्रव्यूह

- दुर्गेश सिंह निर्देशक प्रकाश झा ताजातरीन मुद्दों पर आधारित फिल्में बनाने के लिए जाने जाते रहे हैं। जल्द ही वे दर्शकों के सामने नक्सल समस्या पर आधारित फिल्म चक्रव्यूह लेकर हाजिर हो रहे हैं। फिल्म में अर्जुन रामपाल पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं तो अभय देओल और मनोज वाजपेयी नक्सल कमांडर की भूमिका में। फिल्म की लीड स्टारकास्ट से लेकर निर्देशक प्रकाश झा से पैनल बातचीत: अभय देओल मैं अपने करियर की शुरुआत से ही ऐक्शन भूमिकाएं निभाना चाहता था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कोई किरदार मुझे नहीं मिला। यदि मिला भी तो उसमें ऐक्शन भूमिका का वह स्तर नहीं था। हिंदी सिनेमा में अक्सर ऐसा होता है कि लो... more »

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

मौन धरती रह गयी गुमसुम रहा आकाश......



जीवन ठहरता, चक्र घुमाया जा सकता,तो दर्द की हर तहरीर की तस्वीर बदली जा सकती है. पर ऐसा नहीं होता. एक दुखद घटना हुई,बी.एस.पाबला जी के युवा पुत्र गुरप्रीत का आकस्मिक निधन .... स्तब्द्धता की स्थिति में गले, मस्तिष्क में सारे शब्द स्थिर हो गए .
आज भी शब्द स्थिर हैं...वक़्त अपनी धुरी पर चलता जा रहा है, .....बड़ी मुश्किल है !करवटें बदलती ज़िन्दगी का सामना करना
फिर भी पाबला जी के जन्मदिन पर हम अपनी संवेदना उन्हें देते हैं इन पंक्तियों के साथ -
एक लम्बी सी कहानी

भूमिका बन रह गयी

धूप छाँही रंग का

हर ढंग दुनिया कह गयी

मौन धरती रह गयी
गुमसुम रहा आकाश....... दर्द रोने से कम नहीं होता,पर हम सब अपने अश्रु कणों के साथ आपके साथ हमेशा हैं पाबला जी...

सहज होना आसान नहीं, पर होना पड़ता ही है- तो है इंतज़ार आपके लौटने का ...
शुभकामनाओं के साथ
ब्लॉग बुलेटिन परिवार