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मंगलवार, 7 अगस्त 2012

वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (संस्मरण ) का तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011 शिखा वार्ष्णेय




वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (संस्मरण ) का तस्लीम परिकल्पना सम्मान-२०११ शिखा वार्ष्णेय

स्पंदन

अंतर मन में उठती हुई भावनाओं की तरंगें .जिन्हें शिखा वार्ष्णेय शब्द रूप देकर अपने ब्लॉग को सजाती हैं ताकि उसका आकर्षण लोगों को

आमंत्रित करे , इस ब्लॉग की तरंगों से कोई अछूता न रहे .
खुद को लोगों के सम्मुख रखते हुए शिखा कहती हैं कि -
अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और 
मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ
तो लिखना ही पड़ेगा न [:P].तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ moscow state university 
से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में 
न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है 
परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.खैर कुछ समय पत्रकारिता की और उसके बाद गृहस्थ जीवन में ऐसे रमे की 
सारी डिग्री और पत्रकारिता उसमें डुबा डालीं ,वो कहते हैं न की जो करो शिद्दत से करो [:D].पर लेखन के कीड़े इतनी 
जल्दी शांत थोड़े ही न होते हैं तो गाहे बगाहे काटते रहे .और हम उन्हें एक डायरी में बंद करते रहे.फिर पहचान हुई इन्टरनेट
से. यहाँ कुछ गुणी जनों ने उकसाया तो हमारे सुप्त पड़े कीड़े फिर कुलबुलाने लगे और भगवान की दया से सराहे
भी जाने लगे. और जी फिर हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब फुर्सत की घड़ियों में लिखा हुआ कुछ,हिंदी
पत्र- पत्रिकाओं में छप जाता है और इस ब्लॉग के जरिये आप सब के आशीर्वचन मिल जाते हैं.और इस तरह हमारे
अंदर की पत्रकार आत्मा तृप्त हो जाती है.
......
पत्रकार हो या लेखक या कवि .... किसी भी कलाकार की तृप्ति है श्रोता, द्रष्टा , टिप्पणीकार ....
2009 से इसी तृप्ति की अदम्य चाह लिए शिखा हमारे बीच आईं और मात्र संस्मरण ही नहीं ... कविताओं को 
भी माध्यम बनाया हम तक पहुँचने का .
........
जीवन को जितनी भी सरलता से हम जीना चाहें , विचारों , रिश्तों , आदर्शों ... का एक मकड़ जाला सा बन ही जाता है इर्द गिर्द और गाहे बगाहे हर कोई सोच
ही बैठता है - क्यूँ !

कौन

क्यों घिर जाता है आदमी,

अनचाहे- अनजाने से घेरों में,

क्यों नही चाह कर भी निकल पता ,

इन झमेलों से ?

क्यों नही होता आगाज़ किसी अंजाम का

,क्यों हर अंजाम के लिए नहीं होता तैयार पहले से?

ख़ुद से ही शायद दूर होता है हर कोई यहाँ,

इसलिए आईने में ख़ुद को पहचानना चाहता है,

पर जो दिखाता है आईना वो तो सच नही,

तो क्या नक़ाब ही लगे होते हैं हर चेहरे पे?

यूँ तो हर कोई छेड़ देता है तरन्नुम ए ज़िंदगी,

पर सही राग बजा पाते हैं कितने लोग?

और कोंन पहचान पता है उसके स्वरों को?

पर दावा करते हैं जेसे रग -रग पहचानते हैं वे,

ये दावा भी एक मुश्किल सा हुनर है,

सीख लिया तो आसान सी हो जाती है ज़िंदगी,

जो ना सीख पाए तो आलम क्या हो?

शायद अपने और बस अपने में ही सिमट जाते हैं वे

ओर भी ना जाने कितने मुश्किल से सवाल हैं ज़हन में,

जिनका जबाब चाह भी ना ढूँड पाए हम,

शायद यूँ ही कभी मिल जाएँ अपने आप ही,

रहे सलामत तो पलके बिछाएँगे उस मोड़ पे..."

.........
आखिर क्या है -

कसूर

फिर वही धुँधली राहें,

फिर वही तारीक़ चौराहा.

जहाँ से चले थे

एक मुकाम की तलाश में,

एक मंज़िल के

एक ख्वाब के गुमान में

पर घूम कर सारी गलियाँ

आज़,

फिर हैं मेरे सामने-

वही गुमनाम राहें ,

वही अनजान चौराहा.

तय कर गये एक लंबा सफ़र,

हल कर गये राह की

सब मुश्किलातों को,

पर आज़ खड़े हैं फिर

उसी मोड़ पर,

हो जेसे पूरा सफ़र नागवारा.

जितनी कोशिश करते हैं समझने की,

उतनी ही अजनबी हो जाती है ये दुनिया,

मालिक ने तो दिया

बस एक चेहरा आदमी को,

उपर कई चेहरे लगा लेता है ये ज़माना.

प्यार के बदले दुतकार मिलती है,

वफ़ा के बदले इल्ज़ाम मिलता है,

शांति की तमन्ना में तकरार का सबब है,

ओर इसी को ज़िंदगी कहता है ये ज़माना.

क्यों हम ही नही समझ पाए आख़िर,

दुनियादारी-जो हर कोई जनता है,

हम ही क्यों बेबस हो जाते हैं अक्सर,

शायद शराफ़त ही है हमारा कुसूर सारा..."

...........
होता है यही

जीवन सार


कभी देखो इन बादलों को!

जब काले होकर आँसुओं से भर जाते हैं,

तो बरस कर इस धरा को धो जाते हैं.

कभी देखो इन पेड़ों को,

पतझड़ के बाद भी,

फिर फल फूल से लद जाते हैं,

ओर भूखों की भूख मिटाते हैं.

कभी देखो इन नदियों को,

पर्वत से गिरकर भी,

चलती रहती है,

अपना अस्तित्व खोकर भी

सागर से मिल जाती है.

फिर क्यों हम इंसान ही ,

दुखों से टूट जाते हैं,

एक गम का साया पड़ा नही की,

मोम बन पिघल जाते हैं.

क्यों हम नही समझते

इन प्रकृति के इशारों को,

हर हाल में चलने के इस ,

जीवन के मनोभावों को.

कभी इस बादल की तरह,

अपने आँसुओं से ,

किसी के पाओं धो कर देखो!

कभी इन पेड़ों की तरह,

अपने दुख के बोझ को,

किसी के सुख में बदल कर देखो.

इस नदियों की तरह,

किसी की पूर्णता के लिए,

ख़ुद को मिटा कर देखो.

कायनात ही

इंसान के सुख-दुःख का आधार है

इस प्रकृति के इशारों में ही ,

जीवन का सार है.....


प्रश्न , उत्तर , निष्कर्ष का स्पंदन कभी हल देता है, कभी बेचैनी , कभी एक भूलभुलैया , कभी आक्रोश , 
कभी मौन , कभी सत्य , कभी विरोधाभास ...

NRI

उलझे धागे

जा रहे हो कौन पथ पर...

इतने सारे लिंक्स आपसबों के लिए एक सौगात है , बाकी पूरा ब्लॉग आपका , हमारा ही है . पर थोड़ा हँस लें 
हम - ऐसा हो तो क्या हो :)
देश के गंभीर माहौल में निर्मल हास्य के लिए :)

पृथ्वी पर ब्लॉगिंग का नशा देख कर कर स्वर्ग वासियों को भी ब्लॉग का चस्का लग गया. और उन्होंने भी 
 ब्लॉगिंग शुरू कर दी. पहले कुछ बड़े बड़े देवी देवताओं ने ब्लॉग लिखने शुरू किये, धीरे धीरे ये शौक वहां रह रहे सभी आम
और खास वासियों को लगने लगा यहाँ तक कि यमराज के भी कुछ गणों ने ब्लॉग बना लिए और उत्पात मचाने
लगे.कुछ लोगों ने अपना अपना मुखिया भी चुन लिया .जब कुछ छोटे देवी देवता अच्छा लिखने लगे और उन्हें
अच्छा रिस्पॉन्स भी मिलने लगा तब इंद्र का सिंहासन डोलने लगा. स्वर्ग में हडकंप मचने लगा .सबको अपनी
अपनी कुर्सी और रोटी की चिंता सताने लगी.तो इंद्र ने एक सभा बुलाई देखिये एक झलक ---सबसे पहले नारद का
दल आया -.दुहाई है प्रभु दुहाई है .आज कल ब्लॉग में इतना मौलिक और अच्छा सामान मिलने लगा है हमारी तो
रोजी छिन रही है प्रभु .पहले जिस चीज़ के लिए अख़बारों के मालिक हमें पैसे देते थे हमारी चिरौरी करते थे, अब
उन्हें वो सब फ्री में मिल रहा है .प्रभु वो अब हमें पूछते ही नहीं .जहाँ जगह खाली मिलती है कोई ब्लॉग की पोस्ट
लेकर ठोक देते हैं . कुछ करिए प्रभु ....कुछ करिए.
इंद्र.- हाँ समस्या तो गंभीर है तुम ऐसा करो पहले खुद एक ब्लॉग बनाओ फिर ब्लॉगरों से दोस्ती हो जाये तो 
उन्हें बरगलाना शुरू करो.उन्हें कहो कि अपनी पोस्ट अख़बारों में ना दें फ्री में. उन्हें पैसे का लालच दो ,उन्हें कहो कि
अखबार वाले उन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं.उनकी कीमती चीज़ का इस्तेमाल फ्री में कर रहे हैं.देखो !ये पढने लिखने
वाले लोग बड़े सैंटी होते हैं. ये तरीका जरुर काम करेगा और वो इसके खिलाफ आवाज़ उठाएंगे. अब अखवार वाले
हर किसी को तो पैसे देने से रहे .और मान लो देने भी लगे, तो पैसे के चक्कर में लोग वह लिखेंगे जो उनसे लिखने
को कहा जायेगा और फिर ब्लॉग पोस्ट की सहजता और रोचकता ख़तम हो जाएगी.तो अखबार वाले फिर से
तुम्हारे पास चले आयेंगे और तुम्हारी चांदी ही चांदी.
दल - अरे महाराज ये भी किया अब तक कर रहे हैं. कुछ ब्लॉगर तो झांसे में और पैसे के लालच में आ भी गए. 
पर कुछ तो बहुत ही ढीठ हैं वो कहते हैं हम तो ब्लॉग लिखते हैं अपनी ख़ुशी के लिए, अपने विचार ज्यादा लोगों तक
पहुँचाने के लिए, फिर वो कैसे भी पहुंचे. चाहे अखबार से या रेडिओ से हम तो खुश ही होंगे.और ब्लॉग लिखने में कौन
से हमें पैसे मिलते हैं जो कहीं और छपने से पैसे की उम्मीद करें .बस हमारी बात हमारे नाम से ज्यादा लोगों तक
पहुँच रही है तो हम तो खुश हैं.उस पर भगवान हमें तो सारी राजनीति देख कर लिखना पढता है ये ब्लॉगरों की तो
कोई जबाबदेही है नहीं , बिंदास लिखते हैं तो जनता हाथों हाथ ले रही है.बहुत कहा कि स्वर्ग की ब्लॉगिंग में कचरा
है, हनुमान की सेना है उसपर उसके हाथ में उस्तरा पकड़ा दिया है.पर कोई सुनता ही नहीं.चुपचाप बस अपना काम
करते रहते हैं.
तभी भड़भड़ाता दूसरा दल आया -
महाराज एक और विकट समस्या है .वो है टिप्पणियों की . कुछ लोगों के ब्लॉग में इतनी टिप्पणी आती है कि
पूछो मत हाँ ये और बात है कि वो लिखते भी ठीक ठाक ही हैं, और दूसरों को सराहते भी हैं. लेन देन है महाराज.
और हम अपनी अकड़ में कहीं जा नहीं पाते.इत्ते इत्ते लिंक भेजते हैं लोगों को कि इनबॉक्स रोने लगे फिर भी
हमें कम टिप्पणी मिलती हैं . बहुत दुखी हैं महाराज क्या करें.
इंद्र. - तुम ऐसा करो कि एक एक अभियान छेड़ दो, कि ये टिप्पणी वगैरह सब बेकार है. जो स्तरीय लिखने 
वाला है उसे इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए और इसका आप्शन ही बंद कर देना चाहिए.
दल - अरे ये भी किया था प्रभु ! और कुछ दोस्त तो साथ भी आ गए.कुछ देवताओं को उनकी महानता का 
 वास्ता देकर साथ मिलाया कि इन टिप्पणियों से उनका स्तर गिर जाता है .पर प्रभु उन लोगों का क्या करें जो 
महा जिद्दी हैं .कहते हैं कि हमारा तो दो शब्दों से भी उत्साह बढता है .आखिर हर कलाकार अपनी कला पर तालियाँ और वाह
वाह चाहता है वही उसकी उर्जा है. फिर हम क्यों नहीं .और प्रभु उसपर स्वर्ग की देवियों और अप्सराओं ने भी
ब्लॉगिंग शुरू कर दी है .अब तक तो वे देवताओं के कामों में ही उलझी रहती थीं अब जब से लिखना शुरू किया है
कमाल हो गया है ऐसा लिखती हैं कि सब खिचे चले जाते हैं .हमने तो यहाँ तक फैलाया कि अप्सराओं के 
लेखन पर नहीं, वे अप्सराएँ हैं इसलिए लोग जाते हैं उनकी पोस्ट पर.परन्तु कोई फायदा नहीं प्रभु! 
उनके लेखन में ताजगी है, मौलिकता है और उनके पास समय भी है प्रभु .हमें तो कोई पूछता ही नहीं .
अब कितना किसी को भड़काएं ..तभी ब्रह्मा का दल दौड़ा दौड़ा आया - प्रभु गज़ब हो गया .
हर कोई आम ओ ख़ास लिखने लगा है. हर कोई कवितायें,
कहानियां ,संस्मरण लिख रहा है कोई विधा नहीं छोड़ी भगवन ! साहित्य की तो ऐसी तेसी हो गई है प्रभु !.उनके
लेखन में इतनी ताजगी है हमारा साहित्य तो किलिष्ट लगता है लोगों को .उनकी पोस्ट धडाधड छप रही है प्रभु .
ईमानदार अभिव्यक्ति होती है तो लोग खूब पसंद कर रहे हैं .पर भाषा के स्तर का क्या प्रभु? हमें कौन पूछेगा
फिर ? अनर्थ हो रहा है अनर्थ.\
इंद्र - अरे तो आप मुहीम चलाइये कि स्तरीय लिखा जाये , सार्थक लिखा जाये. अपने को ऊँचा और दूसरे के लेखन
को निम्न बताइए.लोगों को भडकाइये कि पॉपुलर लोगों की पोस्ट पर ना जाएँ .उन्हें लिखना नहीं आता.भाषा और
विधा के नाम पर फेंकिये पत्थर उनपर .जरुर असर होगा .फिर आप ही आप होंगे और भाषा भी जहाँ की तहां रहेगी .
दल- वही तो कर रहे हैं प्रभु! कुछ लगाये भी हुए हैं इसी काम पर. परन्तु जैसे कुछ लोगों के कान पर जूं तक 
नहीं रेंगती महाराज, रिएक्ट ही नहीं करते हंगामा ही नहीं होता फिर क्या करें. हमें तो सार्थक लेखन के नाम 
पर बार बार ना जाने कितनी निरर्थक पोस्ट लिख डालीं.पर कोई असर नहीं हुआ. .सहायता कीजिये भगवान रहम
 कीजिये हर उपाय कर लिया है.कुछ ब्लॉगरों को ब्लॉगिंग छुडवाने के लिए टंकी पर भी चढ़ाया पर अब उसे भी कोई भाव नहीं
देता. तो बेचारे खुद ही उतर आते हैं थोड़ी देर में. माना कि ब्लोगिंग सहज, सरल अभिव्यक्ति का मंच है पर अगर
वो हमारे क्षेत्र में घुसपेठ करेंगे तो गुस्सा तो आएगा ना प्रभु !
दुहाई है ...दुहाई है...दुहाई है.....
स्वर्ग लोक में से आता शोर सुनकर यमराज के कुछ गणों के भी कान खड़े हो गए .
उन्हें उत्पात करने का मौका मिल गया .सोचा चलो बहती गंगा में हमऊँ हाथ धो लें इसी बहाने दो चार पर 
भड़ास निकाल आयें .सो उन्होंने आकर सभा में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और सभा बिना किसी 
हल या नतीजे के ही समाप्त हो गई.और यह

हाथ में सुट्टा लबों पे गाली ,हाय री मीडिया बेचारी....


विद्युत् सी भावनाएं ... यादों की , एहसासों की , अनुभवों की शिखा ने संजोये हैं और हमें अमीर बना दिया है ...
हमें ही नहीं दूसरे देश को भी दिया है . है न ?

16 टिप्‍पणियां:

  1. Waise to Shikha ko ye puruskaar sansmaran ke liye diya ja raha hai, par hamne inko blog pe jis roop me dekha hai ... wo ya hai ki ... ye hindi ke har vidha me fit ho jati hain.... kabhi sansmaran likhti hain to kabhi london ke hyde park ki sair karane lagti hain to kabhi shaandaar kavitayen....!!
    CONGRATULATIONS!!
    GOD BLESS!!

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  2. bahut bahut badhaai shikha .............tumhara likha hamesha naye naye anubhav karwaata hai ..

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  3. शिखा जी बधाई....
    अब तो आप यहाँ है सो पार्टी पक्की :-)

    आभार रश्मि दी
    अनु

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  4. शिखा जी को मेरी बिटिया की ओर से बधाई..उनकी सबसे बड़ी फैन.. दिल्ली से आने का सबसे बड़ा दुःख उसे इसी बात का है कि वो शिखा से नहीं मिल पाई!!

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  5. शिखा वार्ष्णेय जी को इस सम्मान के लिए बहुत२ बधाई,,,,,

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  6. वाह यह बहुत बढ़िया खबर बताई आपने ... जय हो रश्मि दी ... :)

    शिखा जी को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं ... बाकी पार्टी तो हम लखनऊ मे ले ही लेंगे ... ;-)

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  7. कायनात ही
    इंसान के सुख-दुःख का आधार है
    इस प्रकृति के इशारों में ही ,
    जीवन का सार है.....
    बधाई क्या बधाया...आज तो बधाई गाओ रंग महल में ,असुवन चौक पुराओ री माई रंग महल में .. ,शुक्रिया कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    मंगलवार, 7 अगस्त 2012
    भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से

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  8. शिखा जी को बहुत-बहुत बधाई....
    आपका इस प्रस्‍तुति के लिए आभार

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  9. आपकी लेखनी से मेरा ब्लॉग चमक उठा रश्मि जी!! बहुत बहुत आभार आपका.इस अद्भुत बुलेटिन का और आप सभी पाठकों का आपकी अमूल्य शुभकामनाओं के लिए.

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  10. शिखा जी को बहुत-बहुत बधाई.

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  11. शिखा जी की लेखनी साहित्य की कई विधाओं को धन्य करती है. जितना अप्रतिम संस्मरण वो लिखती है उतना ही जीवन्तता लिए यात्रा वृतांत . उनकी कवितायेँ किसी भी पाठक को सोचने को बाध्य करती है तो उनके सम सामयिक आलेख और रिपोर्ट्स उनके अन्दर के पत्रकार की जागरूकता को दर्शाते है .बधाई उनको .

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  12. शिखा जी के संस्मरण प्रभावित करते हैं।
    अच्छी लगी यह पोस्ट।

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!