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शनिवार, 4 अगस्त 2012

तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011 ' वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि का सम्मान मुकेश कुमार सिन्हा





तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011 ' वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि का सम्मान मुकेश कुमार सिन्हा

जिंदगी की राहें

जो कभी लगती है, बहुत लम्बी! तो कभी दिखती है बहुत छोटी!! निर्भर करता है पथिक पर, वो कैसे इसको पार करना चाहता है......... सच ही कहा है मुकेश ने , इसी भाव से सारे पथिक इन रास्तों से गुजरते हैं . कोई कह पाता है अपनी यात्रा के अनुभवों को , कोई लिख लेता है तो कोई अनलिखा , अनकहा से कवि की कलम में खुद को ढूंढ लेता है .

2007 में मिली थी ऑरकुट पर मुकेश से - उसकी दीदी बनकर . तब उसने मेरी कलम में अपने अनकहे , अनलिखे को ढूँढा , और एक कलम लेकर पास आ बैठा ..... और अपनी भावनाओं को जीवंत बना दिया 2008 से ब्लॉग के माध्यम से .
युवा मन , तंग राहें , बोझिल करते ताने और कुछ कर गुजरने की चाह में चयन ऐसा भी होता है
आज के परिपेक्ष्य में
कोई तुमसे पूछे कि ..........
कलम या कि तलवार ???
बिना सोचे समझे
मुंह बोलेगा ..........तलवार !
बेशक दिल के एक कोने से आवाज आएगी
कलम - ना कि तलवार !!!!

बेशक कलम की अपनी ताकत है
बेशक कलम कुछ भी कह सकता है
पर दुनिया को एक ही झटके में
अपनी ओर मोड़ सकता है तलवार !!!!"

बचपन से हम पढ़ते हैं - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है . जिसे ज़रूरत होती है - रोटी, कपड़ा और मकान की . रोटी जो पेट की आग बुझाये , कपड़ा जो श्रम को बरक़रार रखे और मकान ....जो सुरक्षित होने का एहसास दे ...और प्यार का स्पर्श दे - एक मकान बचपन से युवा , युवा से वृद्धावस्था ... सबकुछ सहेजकर रखता है . दीवारों में सिर्फ ईंट गारे नहीं होते , कितनी मनौतियाँ , आशीष, मनुहार , स्पर्श होते हैं ....
मुहब्बत की खुशबु से जब महक उठता है
ईंट गारे से बना मकान!
तो बन जाता है प्यार का घरोंदा
चहक उठता है मकान!
जब इस घरोंदे में
दो दिलो के प्यार की निशानी
खिलता है एक नन्हा सा फूल
तो स्वर्ग मैं तब्दील हो जाता है यह मकान!..."

माँ ... जन्म देकर , सांस सांस में प्रवाहित होकर , मुश्किलों में कवच बनकर , जाड़े में गर्म स्पर्श , गर्मी में शीतलता देकर ईश्वर कहलाती है . माँ माँ माँ ..... एक अनिर्वचनीय साथ . दादी , नानी को भी यह संबोधन देना अच्छा लगता है . मुकेश ने अपनी दादी को ही कहा है -
थी तो वो एक औरत ही
दिखने में साधारण
लोगों को लगती हो शायद
किसी हद तक बदसूरत
लेकिन मेरे लिए, मेरे लिए....
सबसे अधिक खुबसूरत
क्योंकि थी वो ममता की मूरत!!!
मेरी "मैया"
मैया!!!!!!!!!!!!! "

बचपन से युवा होने के क्रम में होता है - पढोगे लिखोगे तो होगे नवाब .... नवाब होने की राह में होती है परीक्षाएं , मिलती है एक अदद नौकरी , जिसे पाने के बाद ख्वाब जागते हैं

महीने की पहली तारिख

एक आम नौकरी पेशा

व्यक्ति के आँखों की चमक

है लहराती

जब आ जाती

महीने की पहली तारिख

होता है

हाथो में पूरा वेतन

परन्तु फिर भी

होती है एक चुनौती

क्योंकि बीत चुके फाके के दिन

और अनदेखे भविष्य का सामना

हर महीने का हर पहला दिन

दिखता है एक साथ

रहती है उम्मीद

बदलेगा दिन

बदलेगा समय

दोपहर की धुप हो पायेगी नरम

ठंडी गुनगुनाती हो पायेगी शाम

सुबह का सूरज

निकलेगा एक अलग अहसास के साथ

पर,

पता नहीं क्यूं

हर महीने

हर उस दिन

हर बार

कुछ नहीं बदलता

नहीं बदलती है

मुश्किलें

नहीं बदलती है

कमियां

बदलती है

तो जरूरतें

बदलती है

तो फरमाइश

बदलती है

तो एक और

नए महीने की

पहली तारिख

एक और तारिख.............!


एक और तारीख , बदलता दिन , महीने और साल .... उम्र दर उम्र बदलते ख्याल , 
खुद में ही चलता है मनन , मंथन और लगता है

पता नहीं क्यूं??
अपने बच्चो को
सिखाता हूँ सच कहना..
पर कल ही..
उनसे झूठ कहलवाया
कह दो अंकल को
पापा ! घर पर नहीं हैं.........

पता नहीं क्यूं??
पति - पत्नी के रिश्तो पर..
मैं उससे रखता हूँ
उम्मीद - विश्वास कि.....
पर उस दिन ही
मेरी खुद नजर
नहीं बद-नजर..
थी एक लावण्या पर ....

पता नहीं क्यूं??
माँ- पापा को रहती है
मुझ से उम्मीद..
और क्यूँ ना हो
मै हूँ उनका सपूत
पर कल ही मम्मी ने
फ़ोन पे कहा..कुछ ना उम्मीदी से
"भूल गया न तू!!"

पता नहीं क्यूं??
भ्रष्टाचार दूर करने के
मुद्दे पर, चढ़ जाती है
मेरी त्योरियां
पर पहचानता हूँ क्या
मैं खुद की ईमानदारी ?

पता नहीं क्यूं?
इतना सब हो कर भी
लगता है मुझे
एक आम इंसान
शायद होता है
मेरे जैसा ही ..
क्या ये सच है????

वक़्त के सांचे में
खुद को ढाल
अपनी ही कमजोरियों
के साथ
खुद को बेबस मान
हम को सबके साथ
बस यूँ ही जीना है ....."

राहों में कई एहसास हैं कवि के ... कुछ इस तरह

"क्वालिटी ऑफ़ लाइफ"

एक पुरानी संदुकची

इतिहास

प्यारी फुद्कियाँ

.............................................. जीवन की राहों में यात्रा जारी है , मिलेंगे अनुभवों के तासीर - जो एक नई सोच

देंगे , नया आधार देंगे . कवि लेता है और देता है

कभी कभी ....
सुबह की सतरंगी धुप भरी भोर..
दिखती है, एकदम अलग
एक अलग मायने के साथ
और जिंदगी
में कुछ खुबसूरत पल
खिल उठते हैं
कलियों से फूलो में बदलते हुए....
जिंदगी पाती है
एक नया खुबसूरत अर्थ
बदलता हुआ आयाम..
पाता है एक विस्तार जिंदगी में
कहीं दूर से आने वाली आवाज
...... की तरंगे
संगीतमय लगती है कानो को....
गुद-गुदा देती है ...
है ना............!"

आइये हम सब अपनी शुभकामनाओं के साथ मुकेश के जीवन की राहों पर खड़े हो जाएँ ...

23 टिप्‍पणियां:

  1. मुकेश सिन्हा जी को बहुत२ बधाई शुभकामनाए,,,,,

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  2. ढेर सारी बधाइयां मुकेश जी को.....
    शुक्रिया रश्मि दी....
    आप हम सभी की आदर्श हैं..

    सादर
    अनु

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  3. मुकेश जी को कोटिशः बधाई !!!
    आपका आभार दी !!!

    जवाब देंहटाएं
  4. मुकेश जी मेरे प्रिय कवियों में हैं .. उन्हें बधाई और शुभकामना.... वे वास्तविक हक़दार हैं इस पुरुस्कार के...

    जवाब देंहटाएं
  5. मुकेश जैसे लाजबाब इंसान को दिल से ढेरों बधाईयाँ...ढेरों शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  6. मुकेश भाई को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं ... आपका बहुत बहुत आभार रश्मि दीदी !

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  7. मुकेश भाई को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  8. मुकेश की हर कविता उसके अपने विचारों की परिपक्वता को और विश्लेष्ण क्षमता को बहुत ही सुरुचिपूर्ण तरीके से दर्शाती है , मुकेश को बुहत - बहुत शुभकामनाएं
    ........सादर !

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  9. एक ऐसे इंसान को जिसने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ नहीं पाया हो, उसको अगर जरा भी प्रतिष्ठा या प्यार मिलता है तो वो बहुत जायदा खुश हो जाता है ! ऐसा ही कुछ मेरे साथ है....
    tahe dil se dhanyawad!!

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  10. "पता नहीं क्यूँ?" अभिव्यक्ति के प्रति एक ईमानदार प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यह प्रतिबद्धता बनी रही ....शुभकामनायें।

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  11. मुकेश को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं .

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  12. bahut bahut badhaai mukesh ko ...unki likhi har kavita bahut sarthak hoti hai ...

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  13. बहुत बहुत हार्दिक बधाई मुकेश भाई !!

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  14. मुकेश सिन्हा को बहुत बहुत बधाई ... अच्छी प्रस्तुति

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  15. मुकेश जी को बहुत- बहुत बधाई आपका आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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