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बुधवार, 11 जुलाई 2012

पढ़ पढ़ के ही तो शख्श वो बेकार हुआ है.......ब्लॉग बुलेटिन



सच कहा है किसी ने अगर आपको लिखने पढने का नशा हो जाए तो फ़िर वो छूटे नहीं छूटता और कमाल की बात ये है कि दुनिया में किसी की हिम्मत नहीं है जो आपसे इस नशे को छोडने के लिए खुल्लम खुल्ला कह सके । अलबत्ता पीछे से आपको यार दोस्तों की गालियां जरूर मिलती होंगे जब भी वे आपकी इस किताबचिपकू आदत से परेशान हो जाते होंगे । ऐसा मैंने भी महसूस किया है कि लोग अब पढने में कम रुचि ले रहे हैं शायद । जब भी ब्लॉग पोस्टों पर टहलने निकलता हूं , देखिए जी मैं तो आदत से मजबूर हूं और इसलिए मैं पोस्टों के बीच टहलता ही रहता हूं सच कहूं तो लिखने का तो है ही आप सबको पढने का कुछ और मज़ा है । और ये मज़ा उन तमाम पत्र पत्रिकाओं में लिखे पढे से अलग होता है ।

कभी यकायक ही कोई पोस्ट , कुछ शब्द , कुछ पंक्तियां , और उनके निकले निकाले और निकलवाए गए निहातार्थों से ब्लॉगिंग की लय जरूर कुछ गडबडाती है । कमाल ये है कि ऐसा करने वालों की एक पूरी फ़ौज़ इस दिशा में लगातार पूरे मनोयोग से लगी हुई है और बीच बीच में उन्हें मौका मिलता है तो वे इसका भरपूर लाभ उठाते हैं । पिछले दिनों देखा गया कि कुछ एसोसिएशननुमा सामूहिक ब्लॉग्स में कुछ पोस्टें ऐसी लगाई गईं जिनका यकीनन ही खुद उस ब्लॉग के सहयोगियों ने भी विरोध किया और फ़िर उन पोस्टों टिप्पणियों का जैसा दुरूपयोग और इस सारे प्रकरण को मुद्दा बना कर पेश किया गया , उसने मुझे फ़िर एक बार आश्वस्त कर दिया कि देर सवेर यहां ब्लॉगर्स अपनी इसी मानसिकता , भाषा और शब्दों का दुरूपयोग एवं अपनी गैरजिम्मेदाराना पोस्ट , टिप्पणियों आदि के कारण विधिक हस्तक्षेप आमंत्रित कर रहे हैं ।

"छोटे में समझा जाए तो जो लोग किसी भी अन्य व्यक्ति के अपमान , उपहास , मानसिक यंत्रणा एवं दुर्व्यवहार करने में शेखी बघारते नज़र आ रहे हैं , उनकी खुशकिस्मती है कि अब तक हिंदी ब्लॉगिंग में कोई रसूखदार , बडा ओहदेदार , राजनीतिज्ञ, अभिनेता , खिलाडी आदि उस रूप में नहीं सक्रिय हैं और जो हैं उनकी पोस्ट पर ये करतबबाजी दिखाने की जुर्रत अभी किसी नहीं की , कोशिश करके देखना चाहिए उनको , परणाम सब कुछ स्व्यं कह देगा । मेरे ख्याल से गलत को गलत और सही को सही कहना बहुत जरूरी है , न सिर्फ़ दूसरे के लिए बल्कि स्व्यं के लिए भी , चलिए देखें आज की पोस्टें क्या कह रही हैं । "




देश से बाहर रह रहे हमारे कुछ साथी अपने हिंदी प्रेम को जिस ज़ज़्बे के साथ बरकरार रखे हुए हैं उसे देख कर कभी कभी ये कहने को मन करता है कि कहें उन नेता अभिनेताओं से और उन कुछ देशी ब्लॉगर्स से भी कि इज़्ज़त जो करनी हो अपनी भाषा से और प्यार जो हुआ हो अपनी मिट्टी से तो फ़िर वो यूं ही बयां होता है । शिखा वार्षेणेय मेरे प्रिय लेखकों में से एक हैं । विषयों की विविधता उनकी खासियत है , आज अपनी पोस्ट में वे रिश्तों का गुणाभाग करते हुए समलैंगिकता पर कहती हैं ,


"यूँ किसी भी इंसान का  अपनी रूचि अनुसार जीवन जीने के अधिकार को लेकर मेरे मन में कोई शंका नहीं है. हर इंसान को अपने मनपसंद साथी के साथ रहने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए.परन्तु इस खबर ने मेरे मन में अजीब सी उथल पुथल मचा दी है  कि आखिर क्यों जो लोग एक विपरीत सामाजिक परिवेश में एक अप्राकृतिक कहा जाने वाला जीवन अपनी रूचि से स्वीकारते हैं, यह कहते हुए कि वह सामाजिक बन्धनों को नहीं मानते, उनकी जरूरतें और रुचियाँ अलग हैं, और उन्हें उनके अनुसार ही जीवन जीने दिया जाना चाहिए, वैसे ही स्वीकार किया जाना चाहिए . फिर वही लोग शिशु जन्म और बच्चे की चाह को लेकर वही सामान्य इच्छा रखते हैं और वो भी उस हद  तक कि उसके लिए कोई भी अप्राकृतिक तरीका अपनाते हैं. इस बारे में मैंने जब कुछ जानने की कोशिश की तो ना जाने कितने ही तरह के तथ्य सामने आये, कितने ही सवाल मैंने नेट पर देखे यह जानने के लिए, कि कैसे  लिस्बियन अपने साथी को गर्भधारण करा के बच्चा पा सकते हैं ? और मुझे आश्चर्य हुआ यह जानकार कि मेडिकल साइंस इतनी आगे बढ़ गई है कि उसके लिए कितने आसान तरीके बताये और अपनाये जाते हैं. "




इस पोस्ट पर पाठकों की बेबाक राय आनी शुरू हो गई है देखिए ,


  1. बहुत लम्बे समय से यह विषय मेरे भी दिमाग को मथ रहा है..आज की किशोर और युवा पीढी के बच्चों से इस विषय में खुलकर बातें और बहस की है और अंततः अभी जिस निष्कर्ष पर खड़ी हूँ,उसमे यही समझ में आया है कि कुछ हटके/विशेष /रोमांचक कर गुजरने की लालसा खींचकर लोगों को इस ओर लिए जा रही है..लोग जा तो रहे हैं,पर चूँकि यह प्रकृति के विपरीत है, तो नेचुरल उन आवश्यकताओं की ओर भी एक समय के बाद सहज ही इनका झुकाव हो जाता है..
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  2. दुनिया के आधुनिक कहे जाने वाले लोग कितनी भी उत्श्रृंखलता कर लें। आखिर प्रकृति के नियमों को तोड़ने की सजा भुगतनी ही पड़ेगी। ईश्वर ने प्रकृति को स्त्री-पुरुष के रुप में सृजनकर्ता दिया है। इससे इतर सब हा हा कारी ही होगा।
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  3. मेरी चिन्ता तो उस बच्चे के साथ ही है शिखा, जिसे आगे जाकर सामाजिक मखौल और तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा. कम से कम बच्चे की चाह ऐसे जोड़ों को नहीं करनी चाहिये, ऐसा करके वे एक बच्चे की ज़िन्दगी से खिलवाड़ करते हैं.

और ,


  1. शिखा जी,
    आपने एक अच्छा प्रश्न उठाया है.जहाँ तक बच्चों की बात है तो माना यही जाता है कि एक बच्चे का मानसिक विकास तभी अच्छी तरह हो पाता है जब उसे माता और पिता दोनों का साथ मिले.लेकिन अब तो समाज बदल रहा है.अविवाहित रहकर भी लोग बच्चे गोद ले रहे हैं.दुनियाभर में एकल माताओं और पिताओं की संख्या बढती जा रही हैं.समाज ने भी इन्हें स्वीकारना शुरू कर दिया है भारत में भले ही ये चलन थोडा कम हैं.तो यदि समलैंगिक जोडे भी बच्चे पालना चाहें तो उन्हें रोका तो नहीं जा सकता यदि समाज ऐसे संबंधों को स्वीकारना शुरू कर देगा तो इनके बच्चों को कोई समस्या नहीं आएगी.लेकिन पहले दुविधा तो इस बात की है कि ऐसे संबंध प्राकृतिक और स्वाभाविक भी होते हैं या नही? पहले यह तो तय हो जाए लेकिन इस बारे में ही कोई एकमत नहीं है.खुद दुनियाभर के विशेषज्ञों में ही गंभीर मतभेद है कुछ इसे प्राकृतिक मानते है तो कुछ इसे बीमारी बताते है.ऐसे में आम आदमी तो कनफ्यूज़ होगा ही.
    हाँ यदि यह प्राकृतिक हैं तो फिर देर सवेर ऐसे संबंधों को स्वीकारना ही पडेगा.क्योंकि हम पारंपरिक नजरिये को ही देखेंगे तब तो किसी व्यक्ति का अविवाहित रहना भी अप्राकृतिक और समाज के खिलाफ माना जाएगा.


  1. आप लन्दन में हैं तो इस विषय को थोड़ी असहजता से ही सही यहाँ प्रस्तुत कर तो ले रही हैं -
    अपने यहाँ की देवियों के लिए यह वर्जित अलेर्जिक विषय है -
    मानव व्यवहार एक ऐसी देहरी पर आ खड़ा है कि न जाने ऐसे कितने अकल्पित घटनाएं -बात व्यवहार आये दिन सामने आयेगें
    पश्चिमी देशों में कृत्रिम गुड्डे गुड्डियों को पालना ,पूरा ध्यान रखना ,वात्सल्य भाव का पूरा शमन करना सहज घटना बनती जा रही है... ....
    एक आंख खोलने वाला और विचारणीय लेख !
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  2. भले ही परम्पराएँ बदलती हैं .... बदलाव आवश्यक भी है .... अप्राकृतिक सम्बन्धों को जहां कानूनी मानिता मिलती जा रही है ... हो सकता है समाज भी इसे धीरे धीरे स्वीकार कर ले .....हो सकता है आने वाले समय में इन बच्चों को कोई कठिनाई न हो .... लेकिन फिर भी मासूम बच्चों की ज़िंदगी से या उनकी भावनाओं से खेलने का तो अधिकार किसी को नहीं है .... ज्वलंत विषय पर अच्छा और सार्थक लेख .... विचार विनिमय भी अच्छा चल रहा है ...



वाकई, है तो यह सब बड़ा confusing इसमें कोई संदेह नहीं है। सब की अपनी-अपनी मांससिकता है और सबको अपनी मर्जी से अपना जीवन जीने का सम्पूर्ण अधिकार भी, लेकिन यहाँ अंत में उठाया गया बच्चों की ज़िम्मेदारी और परवरिश से जुड़ा सवाल सोचने पर मजबूर कर रहा है। बाकी तो रंजना जी की बात से सहमत हूँ परंतु दूसरी बात जो लोग भारतीय-भारतीय कर रहे हैं..।तो क्या अपने यहाँ ऐसा नहीं होता है? ऐसा नहीं है अपने हाँ भी यह सब होता है या यूँ कहें की अब तो अपने हाँ भी यह संस्कृती पनप रही है अब यह अच्छी है या बुरी यह अलग बात है।

मुझे ताज्जुब होता जब अंतर्जाल के विश्लेषक कैसे इन बातों को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं कि ऐसे विषयों पर ऐसी बेबाक और जीवंत बहस सिर्फ़ अंतर्जाल पर ही संभव हो सकती है ।


आखिरकार मिसर जी पांडेय जी के ज्वाइंट वेंचर ब्लॉग पर प्रधान जी की रिपोर्टकार्ड ने शिव जी क लिए उत्प्रेरक का काम कर ही दिया और उन्होंने प्रधान जी के लिए एक ओवर एचीवर यंत्र की जानकारी देते हुए कहते हैं कि ,

"श्री चन्दन सिंह हाटी, मैनेजर हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान; "क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से परेशान रहते हैं? क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से दुखी रहते हैं? क्या आप ओवर-अचीव करते हैं और फिर भी लोग़ आपको अंडर-अचीवर कहते हैं? क्या इसकी वजह से आपका दिन का चैन और रात की नींद गायब हो जाती है? तो फिर खुश हो जाइए क्योंकि हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान पहली बार लेकर आया है ओवर-अचीवर यन्त्र. जी हाँ, यह ओवर-अचीवर यन्त्र वैदिक मन्त्रों के जाप और उनकी शक्ति से परिपूर्ण है. आपको ओवर-अचीवर कहलाने के लिए अब मेहनत करने की जरूरत नहीं है. आपको बस यह यन्त्र हमारे द्वारा बताये गए विधि के अनुसार अपने कार्यालय में पूजा के बाद लगा लेना है. फिर देखिएगा कि दुनियाँ कैसे आपको न सिर्फ ओवर-अचीवर मानने लगेगी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाएँ आपकी तस्वीर कवर-पेज पर छापकर नीचे बड़े-बड़े अक्षरों में लिखकर आपको ओवर-अचीवर बतायेंगी. जी हाँ, भारतवर्ष में पहली बार....."

देखते हैं कि अगले दो बरस इस यंत्र के प्रधान जी को कित्ते नफ़े नुकसान में आना पडता है । ब्लॉगजगत में अपने बमचक सुर के लिए प्रसिद्ध हो चुके और हिंदी ब्लॉग जगत के एकमात्र व्हाइट हाउस के बाशिंदे सतीश दा कब किसको धर के बमचक से चमचक तक पहुंचा दें कह नहीं सकते आप । कभी नौटंकी के छोरों की फ़ोटो खींच लाएंगे तो कभी आम के बगिया के बीच , कभी मुंबई के किसी लोकल स्टेशन से तो कभी किसी शताबुद्दीन का साक्षात्कार ले डालने में महारथी 
"
"तुम्हारा नाम क्या है" ?

"शताबुद्दीन"


"तो इतने दूर आने का कुछ खास कारण" ?


"थोड़ा कमजोरी था...."


"क्या" ?


"कमजोरी था अभी हो गया सब"

"हम्म....तो वापस जाओगे" ?"


पूरा साक्षात्कार आप व्हाइट हाउस  पर पढ सकते हैं । लुप बाजपेयी जी भी प्रधान जी के रिपोर्टकार्ड का विश्लेषण कर रहे हैं ..अरे बाजपेयी जी बोले तो पुण्य प्रसून बाजपेयी , वे टाइम के आलेख पर कहते हैं ,

"कटघरे में मनमोहन सरकार ही खडी हुई । और उसके छिंटे कही ना कही उन संस्थानो पर भी पडे जिनकी भूमिका लोकतंत्र के लिहाज से चैक एंड बैलेस बनाने वाली होनी चाहिये थी । पूर्व चीफ जस्टिस बालाकृष्णन से लेकर सेना के पूर्व चीफ तक के नाम घोटालो से जुडे । राडिया टेप ने तो दिग्गज मिडिया घरानो के दिग्गज पत्रकारो को कटघरे में खडा कर दिया । संसद के भीतर हवा में लहराये नोटो के पीछे का खेल जो स्टिग आपरेशन के जरीये कैमरे में कैद हुआ उसे भी उसी सार्वजनिक नहीं किया गया । जबकि इस दौर में लगातार विपक्ष सरकार पर हमले भी करते रहा और सौदेबाजी से मुंह भी नहीं मोडा । सीपीएम ने मनमोहन सरकार को गिराना चाहा तो मुलायम-अमर की जोडी ने बचा लिया । भाजपा ने नोट के बदले वोट का खेल बताना चाहा तो संसदीय व्यवस्था ने सत्ता की व्यवस्था का खेल दिखलाकर व्हीसिल ब्लोअर को ही कटघरे में खडा कर दिया । इस पूरी प्रक्रिया में ऐसा क्या है जिसे टाईम पत्रिका ने समझा लेकिन भारत की मिडिया ने नहीं समझा । अगर बारिकी से हर परिस्थिति को देखे तो सत्ता के साथ मिडिया की जुगलबंदी का खेल पहली बार टाईम पत्रिका ही सामने लाती है । क्योकि मनमोहन सिंह को लेकर लगातार मिडिया की भूमिका एक ईमानदार प्रधानमंत्री वाली ही रखी गई ।" 



विभा श्रीवास्तव दीदी आज अपने ब्लॉग छम्मकछल्लो कहिस पर एक  पापा को कुछ खास लिखते हुए कह रही हैं ,

"किन मेरी समझ में नहीं आया पापा कि आपने हमारी जान क्यों ली? मैं इतनी नन्हीं! आँखें तक खोलना नहीं आया था मुझे। आपको पहचानना भी नहीं। आप तो साइंस को जानते -मानते होंगे पापा। बाकी में भले न मानें, इलाज- बीमारी में तो मानना ही पड़ता है। तो आप यह भी जानते होंगे कि किसी बच्चे का जन्म भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया ही है। विज्ञान ने साबित कर दिया है कि हम बेटियों का जन्म आपके ही एक्स-एक्स से होता है। अब जब आपने ही हमें एक्स-वाई नहीं दिया तो हम खुद से अपने एक्स को वाई में कैसे बदल लेते? काश, साइंस इतनी तरक्की कर गया होता कि आप खुद ही मेरी माँ को एक्स-वाई दे देते या मैं ही उसे एक्स-वाई में तब्दील कर के आपकी बेटी के बदले बेटा बनकर जनमती और आपकी मुराद पूरी कर देती।  "





आजकल अपने लंठ बाबू , देवताओं से ही दो दो हाथ करने में भिडे हुए हैं , बता रहे  हैं कि देवता नाराज़ नहीं पगला गए हैं   ,


"Boys! अभी अभी The Gods Must be Crazy देखनी खत्म की है। देवता सचमुच में पगला गये हैं। पिछ्ले दिनों में ऐसा बहुत बार हुआ है कि मैंने जो कहा है उसे कुछ और ही समझा गया है। :) फिल्म वाकई देखने लायक है - हल्के फुल्के हास्य से भरी। कुछ नमूने"


माना कि जिंदगी आपाधापी भरी और मशीननुमा हो गई है इसलिए फ़ुर्सत भी जरूरी है लेकिन सर्टिफ़ाइड फ़ुरसतिया होने का खतरा ई भी है कि आपको फ़िर सूरज चचा अपना सौर टेलिफ़ोन से मिस्ड कॉल करने लगते हैं ,देखिए अनूप शुक्ल जी क्या कह रहे हैं ,

                                                                        " भर में खिलखिलाहट को इंद्रधनुष के नाम से पेटेंन्ट करा लिया।
सूरज ने शायद मुझे आनलाइन देख लिया होगा ऊपर से। उसका मेसेज आया -भाई साहब ये आपके मोहल्ले की बारिश की बूंदे हमारी किरणों को भिगो के गीला कर रही हैं। आप इनको मना कर दो वर्ना मैं सागर मियां को उबाल के धर दूंगा।
मैंने तीन ठो इस्माइली भेज के सूरज को समझाया -अरे खेलने-कूदने दो किरणों और बूंदों को आपस में यार तुम काहे के लिये हलकान हो रहे हो। उमर हो गयी लेकिन जरा-जरा सी बात पर उबलना अभी तक छोड़ा नहीं।
इस बीच एक बूंद अचानक उछली। लगा कि वापस गिरेगी तो हड्डी-पसली का तो प्रमुख समाचार हो के ही रहेगा। लेकिन उसके नीचे गिरने के पहले ही तमाम बूंदे चादर की तरह खड़ीं हो गयीं। उसको गोद में लेकर गुदगुदी करने लगीं। किरणें भी बूंद के गाल पर गुदगुदी करने लगीं। सब खिलखिलाने लगीं।"
 


अब जब सूरज भी मिस्ड कॉल कर देता है तो फ़िर भला हमारे ब्लॉगर काहे पीछे रहते , उन्होंने भी द्न्न टीप कर बताया ,

  1. देवांशु निगम
    ये तो चीटिंग है, कल हम फोन कर रहे थे तो सूरज चाचू का फोन बिजी आ रहा था, बाद में सेक्रेटरी ने कॉल बैक किया और बोलीं कि सूरज चाचू को बादल ने अपने घर में नज़रबंद कर दिया है….पर आप से तो वो बात कर लिए …ये गलत बात है…अब हम बादलों की साइड में आ गए हैं :) :) :)
    अब हम उनका फोन-फान नहीं उठाएंगे :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..ना जीना ना मरना
  2. Swapna Manjusha 'ada'
    अच्छा..!!
    एक ज़माना से लोग चाँद को फोन मिलाता है, रोमिंग कटता है तैयो, और आप सूरज से बतिया रहे हैं…
    हाँ बाबा, वड्डे लोग, वड्डी बातें…टोप किलास का आदमी टोपे किलास से न बात करेगा..रेजगारी लोगन को थोड़े पूछेगा..
    अब मजाक से अलग की बात, बिंबों का बहुत ही उत्तम प्रयोग..मान गए आपको..
    थान्कू
    Swapna Manjusha ‘ada’ की हालिया प्रविष्टी..हम होंगे क़ामयाब…
  3. shikha varshney
    ये बूंदों के चक्कर में सूरज को इग्नोरे करना ठीक नहीं हाँ…वो तो बेटियों की याद में उसने फोन फिर से कर लिया,कहीं ज्यादा गुस्से में आ गया तो ठंडा करना मुश्किल होगा.:):)
    जोक्स अपार्ट ..इतने खतरनाक टाइप के आइडियाज आपको आते कैसे हैं?

जब हम घूम घूम के पोस्ट तलाश रहे थे तो देखा कि रेखा श्रीवास्तव भी किसी को तलाश रही थीं , अच्छा अच्छा लुंगी मंत्री जी के आम आदमी को , जो पंद्रह रुपये की आइसक्रीम खाकर दाल चावल पर बढे  एक रुपए के लिए लडता है ,रेखा जी ने सही लताडते हुए कहा है ,

"महोदय आप अपने मंत्रित्व के चश्में को  उतारिये और आम आदमी के बीच में आइये  तब आपको पता चलेगा कि  -- वो हजारों किसान जो ख़ुदकुशी कर रहे हैं और कर चुके हैं , वे अगर आइसक्रीम खाने की हालत में होते  तो अपने परिवार को अनाथ छोड़ कर ख़ुदकुशी करने पर मजबूर न होते। आप संसद में बैठ कर लाखों रूपये हर महीने लेकर ऐसा बयान  दे सकते हैं लेकिन अगर आपसे   पूछा जाय कि  आम आदमी लौकी और तरोई जैसी  सब्जियां किस भाव खरीद कर खा रहा है? ये आपको पता नहीं होगा। कितने लोग सिर्फ एक वक़्त खाकर सोते हैं इसके आंकड़े आपके पास नहीं होंगे .  सड़क के किनारे लगे सरकारी नलों से बदबूदार पानी भर कर पीने वालों की संख्या आप तो क्या आपका मंत्रालय भी नहीं बता सकेगा.  दिन 12 से 14 घंटे काम करके रोटी जुटाने वाला आइसक्रीम नहीं खा सकता  . आपको पता भी है कि  कितने साठ  साल के ऊपर के व्यक्ति  श्रम करके अपने परिवार को पाल रहे हैं - नहीं और बिलकुल भी नहीं।"



आज अमित भाई ने भारीभरकम खुलासा करते हुए साबित कर दिया है कि "नेट लैग "..."असल में "जेट लैग "का बाप है ,

"
थोड़ी देर बाद गर्म चाय आएगी , मुझे कई बार फब्तियां सुनने को मिलेंगी , रात भर नेट पर करते क्या रहते हैं , अरे ब्लॉग व्लाग तो हम भी लिखते हैं , दिन में एक दो घंटे नेट पर बैठे ,हो गया , आप रात भर क्या करते हैं | 'फेस बुक' पर सबको घूम घूम कर 'लाइक' करते रहेंगे बस | अरे कभी हिसाब लगाया , कितने 'लाइक' आपने किये और कितनों ने आपको किया | ( मै मन ही मन सोचता हूँ , चाहने में भी गणित और हिसाब किताब , यह मुझसे नहीं होने वाला ) |  मैं चुप चाप चाय उठाउंगा , जो ( चाय ) अब तक मलाई के नीचे अपना यौवन छुपा चुकी होगी , उसके यौवन को उद्घाटित करता हुआ एक ही घूँट में निपटा दूँगा  | अब काम तो सारे दिनचर्या वाले करने ही होते हैं, पर वो सारे काम डाँट डपट के बैक ग्राउंड म्युज़िक के साथ ही होंगे |

बारिश के मौसम में बिजली कुछ ज्यादा ही आती जाती रहती है , उस पर कमेन्ट मिलते हैं कि जब सारी रात नेट पर रहेंगे, फिर तो आफिस में सोते होंगे | काम धाम वहां कुछ करते नहीं होंगे, तब बिजली क्या ख़ाक आएगी | अब कौन समझाए, बिजली का आना जाना हमारे काम करने या न करने से बिलकुल जुदा है | अरे ! बिजली की अपनी मर्जी , आये न आये | ( बिजली जितनी देर बंद रहती है , विभाग को फायदा ही होता है , दस रुपये का माल हम लोग तीन रुपये में बेचते हैं , उसमे से भी ६०   प्रतिशत चोरी में जाती है , अरे न रहे बिजली न हो चोरी ) | "

इस पोसट पर  आई एक टीप भी देखिए जरा ,
"नेट लैग " ...यह "जेट लैग" का बाप है .......|
ये तो उसी तरह का बयान है जैसे कोई कवि कहे कविता लिखना प्रसव वेदना से गुजरने के समान है। अरे जब अभी तक जेट लैग झेला नहीं तो उसको नेट लैग का बच्चा कैसे बता रहे हो!

लाइक करने का तो जैसा बताया कि-कुछ लोग फ़ेसबुक पर अपने दोस्तों के स्टेटस इतनी तेजी से ’लाइक’ करते हैं मानों बिजली वाले रैकेट से पटापट मच्छर मार रहे हों। :)

बाकी ये अलग-अलग जागना ये क्या लफ़ड़ा है भाई! :)


उत्तर
  1. भावनाओं को समझिये | 'भावना' स्त्रीलिंग होती है , उसका सम्मान करना चाहिए , पर आप तो ठहरे पुराने बलात्कारी ..|



आइए कुछ एकलाइना हो जाए ,वो होता है न रैपिड फ़ायर राउंड ,

नाखून बढ गए हैं तो काटते क्यों नहीं ;     आप एक मुफ़्स नेलकटर बांटते क्यों नहीं ।


पानी का व्यापार :सऊदी अरब वालों से कराना चाहिए , उन्हें असली महत्व पता है इसका


स्वर्ग और नर्क :   दोनों ही सिचुएशन में बीमा पॉलिसी वैलिड रहती है


रविकर करे ठिठोलियां , खाय गालियां खूब :     सींच सींच कर रोज़ उगाए , हथेलियों पे दूब


ब्लॉग पहेली ३२ :  हल करिए फ़टाफ़ट


दिल लगाने को तुला है :  तो फ़िर दे दे न तू ही क्यों इत्ता अडा है


धीमी इंटरनेट स्पीड पर ब्लॉगिंग (मोबाइल ब्लॉगिंग ) :   भी कर रहे हैं भाई लोग


क्योंकि जिंदा बुतों के ताज़महल नहीं बना करते :   आजकल के शाहज़हां इत्ते मोटे असामी नहीं हुआ करते


क्यों मुझे गांधी पसंद नहीं है :    लेकिन करें क्या हर नोट पे वही और वही हैं


क्या बेटियां पराई होती हैं :    पता नहीं किसने ये बातें फ़ैलाई होती हैं


गाड पार्टिकल का सत्य :खुद अभी गॉड को भी नहीं पता है


क्या आपको भी है भूलने की आदत :      इतनी नहीं कि स्वास्थ्य टिप्स भी न पढ सकें


कुमार अंबुज : की कविताएं यहां पढें


रंगमंच के जनक्षेत्र में एक दर्शक का खुला पत्र :   जाकर अभी पढें , आपके ही नाम है 



बरसात के रंग , देखो मेरे संग :हाय हाय हम यहां हैं , गर्मी से तंग



क्राकोव डायरीज़-२ , गायब हुए देश की कहानियां :      देश गायब हो गया , मगर कहानियां ढीठ निकलीं , गायब न हुईं



बींग सिंगल :     वांट टू मिंगल


करूणामय हे रूद्र महेश्वर : दया दया प्रभु परमेश्वर


सत्यमेव जयते :     हर रविवार सुबह 11 बजे इश्टार पिलस पे


शुक्तिका का वार : डोलची में तैयार


प्रतिबंधों के बाद आज़ाद जिंदगी जीने का मज़ा :     पोस्ट बहुत चकाचक लिखे हो रज्जा ।


अपने काजल कुमार जी की तूलिका हर वक्त वार मोड में ही रहती है , इधर हलचल हुई और उधर तूलिका चल निकलती है , फ़िर तो जहां जहां लगती है बस पूछिए मत , देखिए ,

जिन्हें ये शाम गज़लों से खूबसूरत बनानी है उनके लिए आज रचनाकार पर बहुत माल मसाला उपलब्ध है , वहां आज हीरालाल प्रजापति की गज़लें रौशनी बिखेर रही हैं , मुझे जो सबसे ज्यादा पसंद आई वो है


नुकसान कुछ न कुछ हरेक बार हुआ है II
दिल जब भी  मुहब्बत में गिरफ्तार हुआ है II
इतने से गम हाल जो बेहाल है उसका ,
दुःख दर्द से वो आज ही दो चार हुआ है  II
सच क्या है इसी की तलाश में वो पस्त है ,
पढ़ पढ़ के ही तो शख्श वो बेकार हुआ है II
करते हैं मुहब्बत मगर वो मिल नहीं सकते ,
मजहब जो उनके बीच में दीवार हुआ है II
इक वो ही अकेला यहाँ खुदगर्ज़ नहीं है ,
मतलब परस्त सारा ही संसार हुआ है II
मंदिर में मस्जिदों में नहीं वो तलाशता ,
जिसको खुदा का खुद में ही दीदार हुआ है II
बुजदिल न थे न भागे थे मैदाने जंग से ,
दुश्मन का छुप के पीठ पे ये वार हुआ है II


21 टिप्‍पणियां:

  1. इतने लिंक्स में दो पोस्ट मैने भी पढ़ी है। शिखा जी की और अनूप जी की। दोनो बढ़िया है।

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  2. मैं भी आ गया पाण्डेय जी के पीछे पीछे । अभी करता हूँ पढ़ना शुरु ।

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  3. गज़ब टहलते हैं आप ब्लोग्स पर,पूरा एरिया कवर लेते हैं:).
    हम तो शुक्रिया ही कहेंगे और निकलेंगे आपके दिए लिंक्स पर टहलने.

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  4. असली एग्रीगेटर तो आप हो | यह जूनून है आपका,जो हम लोगों को स्नेह के रूप में मिलता है | बहुत बहुत आभार |

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  5. बहुत बढ़िया बुलेटिन ... एक दो जगह टहल आए हैं ...

    जिन्हें ये शाम गज़लों से खूबसूरत बनानी है उनके लिए आज रचनाकार पर बहुत माल मसाला उपलब्ध है ,

    यह माल शब्द बहुत खतरनाक है ज़रा सोच कर प्रयोग किया कीजिये :)

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  6. बहुत-बहुत धन्यवाद भाई अजय जी. वाकई आपका यह प्रयास सराहनीय है. कई लिंक्स बेजोड़ हैं.

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  7. बहुत परिश्रम का काम है -
    बड़ी कुशलता से कर रहे हैं आप |
    बधाई और आभार भी |

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  8. उल जुलूल लिखने वालों को सही ढंग से खूब उकसाया आपने ...सच ही थप्पड़ मारना है तो किसी दारासिंह जैसे को मार कर देखें , कमजोर को मारने में क्या साहस है !
    स्टायलिश चर्चा में अच्छे लिंक्स मिले !

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  9. आप पढ़ने में रुचि कम होने की बात करते हैं! मैंने तो देखा है,लोगबाग सोते समय इसलिए किताब लेकर लेटते हैं कि दो-चार लाइनें पढ़ते ही अच्छी नींद आ जाती है!

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  10. अजय भाई आपका अंदाज़ ही अलग है सब से ... लगे रहिए ... जय हो !

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  11. बहुत सी लिंक बाकी है अभी पढ़ना...एक्सप्रेस भी आती ही होगी...

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  12. पढ़ते रहना मजबूरी है मन को भी नया आहार चाहिये।

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  13. ब्लॉग बुलेटिन तो ब्लॉगों का पेड़ है...

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