1.सारी दुनिया में हाहाकर , इंटरनेट की प्रलय होगी
परसों रात लेखनी वाले महफूज़ अली ने एक समाचार की ओर ध्यान दिलाया तो मेरा ज़वाब था कि इस विषय पर लिख चुका हूँ लेकिन वह लेख प्रकाशित करूंगा अपनी वेबसाईट पर 8 जुलाई को. कल उस लेख में कुछ संशोधन के इरादे से बैठा तो वह लिखा हुआ गायब!. याद आया कि लिख तो चुका हूँ लेकिन वो है किधर?
तलाशने चला तो कुछ मिला ही नहीं. कंप्यूटर पर सहेजी फाइल्स देख लीं, ड्रॉप बॉक्स, गूगल ड्राईव देख लीं, अपनी वेबसाईट के लेख छान मारे, ड्राफ्ट तक देख लिए लेकिन उस लेख को नहीं मिलना था नहीं मिला.
हालांकि मुझे सब याद था कि लिखा क्या क्या गया था! एक उम्मीद पर चंद शब्दों के सहारे इंटरनेट पर सर्च किया गया तो सारा कुछ लिखा दिख गया ब्लॉग बुलेटिन पर
2.
कार्टून:-बत्ती आई है, आई है, बत्ती आई है...
3.
सुनो! मृगांका:16: मुसाफिर
खजौली बेहद छोटा स्टेशन है। महज दो प्लेटफॉर्म वाला स्टेशन। पहले यहां से छोटी लाईन गुजरती थी। दुनिया की रफ्तार से बेखबर जानकी एक्सप्रैस अपने नाम और गति के विरोधाभास को सच साबित करती चलती। जानकी वगैरह गाड़ियों में डीजल इंजन तो बहुत बाद में लगे। पहले तो काले-काले भीमकाय भाप के इंजन चला करते थे।
4.
फोटो खींचना ही नहीं , खिंचवाना भी एक कला है ---
शायद
ऐसा इसलिए है , हमारे यहाँ कुछ वर्ष पहले तक कैमरा रखना एक लग्जरी होता था
. कभी कोई फॉर्म भरते वक्त स्टूडियो में जाकर फोटो खिंचवाते थे , जहाँ
खींचे गए फोटो में चेहरे भावहीन दिखाई देते थे . इसीलिए अक्सर लोगों को
फोटो खिंचवाने का अनुभव बहुत कम ही होता था . यदि गौर से देखें तो , उस समय
के क्रिकेटर्स भी अधिकतर शर्मीले ही नज़र आते थे . मोहम्मद अजहरुद्दीन
जब तक क्रिकेट खेलते रहे , कैमरा कौन्सियस ही रहे . अब एम् पी बनकर थोडा
सुधार हुआ है . हालाँकि , अब कुछ वर्षों से मोबाइल कैमरे आने से युवा पीढ़ी
के लोग सहज रूप से फोटो खिंचवाते हैं , जबकि पुरानी पीढ़ी के लोग अभी भी
कैमरे के सामने तनावग्रस्त हो जाते हैं .
5.
बेच रहे तरकारी लोग
प्रायः जो सरकारी लोगआज बने व्यापारी लोग
लोकतंत्र में बढ़ा रहे हैं
प्रतिदिन ये बीमारी लोग
आमलोग के अधिकारों को
छीन रहे अधिकारी लोग
राजनीति में जमकर बैठे
आज कई परिवारी लोग
6.
काग़ज़ों में आज कुछ नमी सी है...
Author: दिलीप /
ज़िंदगी अब भी उस किताब में मिलती है मुझे...
थोड़ी सूखी हुई, थोड़ी सी महकती सी है...
छुओ किताब तो इक नब्ज़ का एहसास मिले...
वो कली दफ़्न सही, फिर भी धड़कती सी है...
कभी कभी जो रिवाजों की भीड़ में हांफा...
उसी को चूम कर थोड़ी सी ज़िंदगी ली है...
7.
चेंपा
वे जब आएंगे
तो ऐसे ही आएंगे
वे जब छाएंगे
तो ऐसे ही छाएंगे
वे जब-जब आए हैं
ऐसे ही आए हैं
वे जब-जब छाए हैं
ऐसे ही छाए हैं
8.
गैंग्स आफ वासेपुर देखने जाना हो या न जाना हो, यह पढ़ जरुर लीजिये!
हिन्दी
फिल्मों में एक ट्रेंड तेजी से अब स्थायी रूप लेता जा रहा है -वह है
गालियों का खुल्लमखुला प्रयोग ,तेरी माँ की.....
,बहन**,मादर**.भोसड़ी***,गाँ* ला* सारी पूर्वी गालियाँ अब बालीवुड के जरिये
जगजाहिर हो रही हैं! मगर जब अनावश्यक रूप से इन भदेस गालियों का बात बात
पर बिना बात के भी इस्तेमाल होगा तो वे वैसी सम्प्रेषणीयता या
हास्य मूलकता खो देगीं जैसा कि पीपली लाईव की कुल जमा एक दो गालियों की
थी.या नो वन किल्ड जेसिका की माहिला पात्रों से दिलवाई बेलौस गालियाँ . .
तबसे तो मानो फिल्मों में गालियों का एक धडल्ला प्रचलन ही चल चुका है.
गैंग्स आफ वासेपुर अपनी मौके बेमौके की गालियों के चलते सन्नाम हो रही
है..यह सही है कि कभी कभार तो रियल ज़िंदगी के पात्र भी गालियाँ बूकते हैं
मगर इतना नहीं जितना निर्देशक अनुराग कश्यप इस फिल्म में हर रहीम शहीम
पात्र से बोलवाते चलते हैं..इस फिल्म में गालियाँ मानो पात्रों की संवाद
अदायगी की टेक सी बन गयी हों -हाँ कहीं कहीं पर वे सहज भी लगी है और वहां
दर्शकों के ठहाके भी गूजे हैं!
9.
आईए! एक उठावना आयोजित कर लेते हैं
उठावने के लिए जुटे, हम ढाई-तीन सौ लोगों
को जमावड़ा, कुल जमा तीन-चार मिनिटों मे ही मन्दिर से शोकग्रस्त घर पहुँच
गया तो मुझे हैरत हुई। इसी घर से, इसी मन्दिर तक पहुँचने के लिए हम ढाई-तीन
सौ लोगों को पूरे कस्बे में घूम कर, कोई डेड़ किलोमीटर चलना पड़ा था।
वापसी में यह दूरी मुश्किल से सौ मीटर रह गई थी। मैंने पूछताछ की तो
शोकग्रस्त परिवार के एक शुभचिन्तक ने कहा - ‘हमारा दुःख कम करने के लिए आप
हमारे यहाँ पधारे हैं, यह हमें तो मालूम है लेकिन गाँववालों को तो मालूम
नहीं! उन्हें भी तो हमार व्यवहार मालूम होना चाहिए! इसीलिए ऐसा करना पड़ा।’
गोया, उठावना, मृत्योपरान्त की महत्वपूर्ण उत्तरक्रिया से अलग हटकर, आगे
बढ़कर, ‘कुछ और’ भी है जो ‘शोक भाव’ को परे धकेल कर ‘कुछ और’ करने को
उकसाता है। यह जानकारी मेरे लिए यह ‘ज्ञान प्राप्ति’ से कम नहीं थी।
10.
जबकि न था, कभी कोई वादा
11.
हमारी केक क्वीन 'तंगम'
आप लोगों ने सब्जी काटना.. फल काटना सुना
होगा और काटे भी होंगे. पर कभी किसी को किशमिश काटते सुना है ??.हमने भी
नहीं सुना था, जबतक 'तंगम ' से दोस्ती नहीं हुई थी. क्रिसमस के समय 'तंगम'
को बहुत सारे केक के ऑर्डर मिलते हैं और 'तंगम' केक में बाकी मेवों के
साथ किशमिश भी काट कर ही डालती है तो हम सब सहेलियाँ एक महीने पहले से
बारी-बारी से उसके घर जाकर मेवे काटने में उसकी मदद करते हैं. उसके पतिदेव
हम सबको उकसाते रहते हैं कि तंगम से हम इन मेवों को काटने का मेहनताना
लिया करें. पर तंगम तो हमारी मेहनत का मोल चुका देगी...लेकिन सालो भर जो
इतने प्यार से हमें केक-पेस्ट्री-बिस्किट्स खिलाती है...उस प्यार का मोल हम
कहाँ से चुकायेंगे?? बल्कि यही वजह है कि इतना वॉक और योगा करने के बाद भी
'वेइंग स्केल' की सूई टस से मस नहीं होती :):)
12.
गणित को जानकर गणित से बाहर हो जाने की सामर्थ्य - उस्ताद अमीर खां का संस्मरण - १
प्रभु जोशी का लिखा यह संस्मरण "अभिव्यक्ति" से साभार लिया गया है-
महान गायक उस्ताद अमीर खाँ - १
13.
अन्य पुरूष, मध्यम पुरूष
वह बहुत देर से फोन पर अपनी पत्नी या प्रेमिका से लड़ रहा था। पत्नी या प्रेमिका होने का अनुमान मैंने इसलिये लगाया क्योंकि वह बहुत देर से फोन पर था। मैंने उसकी बातें सुन लीं। बस में वह मेरे बगल की सीट पर बैठा था। दो लोगों की सीट में बगलवाले की बात सुन लेना कोइ असभ्यता नहीं मजबूरी है। मैं सोचने लगा कि उसकी पत्नी या प्रेमिका क्या जवाब दे रही होगी इस पर। शायद कह रही हो “देखो तुम मुझे चाहे जो कह लो, लेकिन किसी तीसरे के सामने नहीं। जो मेरे-तुम्हारे बीच है वह किसी थर्ड पर्सन के सामने कहोगे तो सोचो मेरा अपमान नहीं होगा?” हाँ, यही कह रही होगी।
14.
नाम रह जाएगा ..........
15.
परदादा को याद करते हुए
16.
फिल्म समीक्षा : बोल बच्चन
एक्शन की गुदगुदी, कामेडी का रोमांच
पॉपुलर सिनेमा प्रचलित मुहावरों का अर्थ और रूप बदल सकते हैं। कल से बोल
वचन की जगह हम बोल बच्चन झूठ और शेखी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। वचन
बिगड़ कर बचन बना और रोहित शेट्टी और उनकी टीम ने इसे अपनी सुविधा के लिए
बच्चन कर दिया। वे साक्षात अमिताभ बच्चन को फिल्म की एंट्री और इंट्रो में
ले आए। माहौल तैयार हुआ और अतार्किक एक्शन की गुदगुदी और कामेडी का रोमांच
आरंभ हो गया। रोहित शेट्टी की फिल्म बोल बच्चन उनकी पुरानी हास्य प्रधान
फिल्मों की कड़ी में हैं। इस बार उन्होंने गोलमाल का नमक डालकर इसे और अधिक
हंसीदार बना दिया है।
17.
जल चुका दलित हॉस्टल और 'इंट्रोडक्शन ऑफ द कांस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया'
-सुधीर सुमन
फोटो : सरोज कुमार |
18.
असुरक्षात्मक मौन का दौर
एक
लंबी ख़ामोशी । घनघोर चुप। सन्नाटे की इस लकीर को थोड़ी बहुत
तोड़ती-छेड़ती कुछ एक घटनात्मक ख़बरें । नक्सलियों ने पुलिसवालों को मार
दिया या पुलिस वालों ने
नक्सलियों को मार दिया। प्रणब,
पानी, नदी बरसात तक सिमटी, मैली कुचली भारतीय पत्रकारिता। सुबह सोकर उठने
से लेकर प्लान बनाने की सोच तक सिमटी पत्रकारिता। शाम को सीट पर पहुंचकर
विज्ञप्तियां निपटाने की पत्रकारिता। कुछ लोग कहते हैं कि यह पत्रकारिता का
संक्रमण काल है। मुझे तो इस बाबूगिरी में किसी ओर से ऐसी छटपटाहट नजर नहीं
आ रही है। संक्रमण काल की छटपटाहट, कुछ कर गुजर जाने की चाहत अगर थोड़ी
बहुत कहीं नजर आती भी है तो इंटरनेट पर। असहमतियों का स्वागत है।
19.
"गरजत बरसत सावन आयो रे"
अभी आँखों से नींद की खुमारी भी नहीं उतरी थी कि बहुत इंतज़ार कराने के बाद रिमझिम पड़ती फुहारों की बढ़ती तीव्रता ने एहसास दिला ही दिया कि "गरजत बरसत सावन आयो रे" .......... मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू अभी साँसों में बस भी न पायी थी कि इस वर्ष की पहली बरसात की पकौड़ियों के लिए लहराए जाने वाले इंकलाबी परचम की आहट भी मिल गयी !
20.
ज़िदगी मानसिक प्रलापों से नहीं चला करती
हे मानवश्रेष्ठों,
कुछ समय पहले एक मानवश्रेष्ठ से उनकी कुछ समस्याओं पर एक संवाद स्थापित हुआ था। कुछ बिंदुओं पर अन्य मानवश्रेष्ठों का भी ध्यानाकर्षण करने के उद्देश्य से, पिछली बार संवाद के कुछ अंश प्रस्तुत किए गए थे। इस बार भी उसी संवाद से कुछ और सामान्य अंश यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
आप भी इन अंशों से कुछ गंभीर इशारे पा सकते हैं, अपनी सोच, अपने दिमाग़ के गहरे अनुकूलन में हलचल पैदा कर सकते हैं और अपनी समझ में कुछ जोड़-घटा सकते हैं। संवाद को बढ़ाने की प्रेरणा पा सकते हैं और एक दूसरे के जरिए, सीखने की प्रक्रिया से गुजर सकते हैं।
कुछ समय पहले एक मानवश्रेष्ठ से उनकी कुछ समस्याओं पर एक संवाद स्थापित हुआ था। कुछ बिंदुओं पर अन्य मानवश्रेष्ठों का भी ध्यानाकर्षण करने के उद्देश्य से, पिछली बार संवाद के कुछ अंश प्रस्तुत किए गए थे। इस बार भी उसी संवाद से कुछ और सामान्य अंश यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
आप भी इन अंशों से कुछ गंभीर इशारे पा सकते हैं, अपनी सोच, अपने दिमाग़ के गहरे अनुकूलन में हलचल पैदा कर सकते हैं और अपनी समझ में कुछ जोड़-घटा सकते हैं। संवाद को बढ़ाने की प्रेरणा पा सकते हैं और एक दूसरे के जरिए, सीखने की प्रक्रिया से गुजर सकते हैं।
21.
राज़ खुलते हैं हैं बारिश में पर्त दर पर्त
इस बीच कितने - कितने काम रहे।
अब भी हैं। लिखत - पढ़त की कई चीजें पूरी करनी हैं। वह सब आधी - अधूरी पड़ी
हैं। पहाड़ की यात्रा से लौटकर खूब - खूब गर्मी झेली । इतनी गर्मी कि
जिसकी उम्मीद तक नहीं थी। बारिश के वास्ते तन - मन बेतरह तरसता -
कलपता रहा। ऐसी ही तपन व उमस में ०२ जुलाई को कविताओं में डूबते -
उतराते लैंगस्टन ह्यूज की एक छोटी - सी कविता 'अप्रेल की बारिश का गीत'
का अनुवाद कर उसे फेसबुक पर कविता प्रेमियों के संग साझा करते हुए बस एक
दुआ की थी कि 'आए बारिश' ....
अप्रेल की बारिश का गीत
( लैंगस्टन ह्यूज की कविता)
आए बारिश और सहसा चूम ले तुम्हें
आए बारिश और तुम्हारे शीश पर
दस्तक दें चाँदी की तरल बूँदें।
आए बारिश और गाए तुम्हारे लिए लोरी
आए बारिश और रास्तों पर निर्मित कर दे
ठहरे हुए जलकुंड
आए बारिश और नाबदानों में बहा दे
सतत प्रवहमान सरोवर
आए बारिश और हमारी छत पर
गाए निद्रा का अविरल गान।
22.
ये पोस्ट मै जन हित मे जारी कर रही हूँ .
ये पोस्ट मै जन हित मे जारी कर रही हूँ .
एक संझा ब्लॉग पर महिला ब्लॉगर के चित्र पोस्ट में डाले जाते हैं और फिर उस पोस्ट को बार बार क्लिक करके "ज्यादा पढ़ा हुआ " वाले विजेट के जरिये टेम्पलेट पर साइड बार मे दिखाया जाता हैं . चित्र के साथ सेक्स , यौन , सम्भोग , इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जा रहा हैं .
ब्लॉग एक इस्लाम धर्म के अनुयायी का हैं और चित्र केवल और केवल हिन्दू धर्म की अनुयायी महिला ब्लोगर्स के हैं .
इस साँझा ब्लॉग के कुछ सदस्यों से बात की तो उन्होने विरोध दर्ज करते हुए अपनी सदस्यता उस ब्लॉग से ख़तम कर दी हैं
वहाँ जो भी विरोध का कमेन्ट कर रहा हैं उसको अपशब्द कहे जा रहे हैं और धमकी भी दी जा रही हैं . बार बार कहने पर भी ब्लॉगर चित्र हटाने को तैयार नहीं हैं
23.
संविधान जला दीजिए, जनता को गोली मार दीजिए!
क्या आपको ऊपर दी गई तस्वीर में दिख रहा शख्स याद है? दिमाग पर ज़ोर डालिए, याद आ जाएगा। पिछले साल जून में अखबारों में छपी यह तस्वीर है रायगढ़, छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और आरटीआई कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल की। शुक्रवार की सुबह इन्हें धमकी देकर दो लोगों ने गोली मार दी। फिलहाल रमेश अग्रवाल की जान बच गई है और जांघ में लगी गोली निकाल दी गई है।
24.
क्या वो आपको मंजूर होगा ??
सच पूछा जाए तो, ब्लॉग लिखना आत्मसंतुष्टि का परिचायक है, हम आत्मिक ख़ुशी
के लिए ब्लॉग लिखते हैं, कुछ हद तक, ये हमारे अहम् को भी तुष्ट करता है,
कुछ अलग सा करने की प्रेरणा भी देता है, जैसा हर जगह देखने को मिलता और
अब तो हम सभी जानते हैं, ब्लॉगिंग, 'आत्माभिव्यक्ति' का एक सशक्त साधन है
..लेकिन कभी-कभी हमारी ये 'आत्माभिव्यक्ति' हमें ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा
कर देती है, कि आप अपनी 'आत्माभिव्यक्ति' पर पछता कर रह जाते हैं, और आप
खुद को मुश्किल में पाते हैं....
ब्लॉगिंग की दुनिया में आये हुए, मुझे कुछ वर्ष हो ही चुके हैं, और इन सालों में, जो मैंने देखा, समझा, जो गलतियाँ मुझसे हुई, और जो अनुभव मेरा रहा, उसके आधार पर आज मैं कह सकती हूँ, कि मैं सचमुच बहुत चिंतित हूँ...इस अंतरजाल के दुरूपयोग से...हमें यह मान कर चलना चाहिए कि, यहाँ सभी प्रबुद्ध नहीं हैं, सब आपका भला चाहने वाले नहीं हैं, सभी यहाँ वो नहीं हैं, जो नज़र आते हैं, इसलिए महिलाओं को ख़ास करके सतर्क रहने की, बहुत आवश्यकता है...हम यह न भूलें, अंतरजाल में लिखा गया सबकुछ, तारीख़ बन जाता है...
25.
संस्कृति की अलगनी पर यह जो टंगा है, क्या अश्लील है?
26.
बहुत दिनों से इस पोस्ट को लिखने का मन था किसी न किसी कारणवश देर हो रही थी.
आज यह अवसर आया है कि मैं एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार आप के साथ साझा करूँ जो न केवल अनुकरणीय है बल्कि वन्दनीय भी है.
आज यह अवसर आया है कि मैं एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार आप के साथ साझा करूँ जो न केवल अनुकरणीय है बल्कि वन्दनीय भी है.
गुरु कैसा हो जब कभी यह प्रश्न आता है तो मेरे दिमाग में एक नाम ज़रूर आता
है वह है 'श्रीमति सरस्वती नारायणन 'का ..गुरु हो तो ऐसा हो!
आईये,उनसे आप का परिचय करा दूँ .
श्रीमती सरस्वती नारायणन , जिन्होंने ३२ साल पहले इस देश की धरती पर कदम रखा और साथ ही एक ऐसे स्कूल में उनकी नियुक्ति हुई जिस अभी-अभी शुरू किया गया था ..मात्र ५ छात्रों की भर्ती के साथ!
आईये,उनसे आप का परिचय करा दूँ .
श्रीमती सरस्वती नारायणन , जिन्होंने ३२ साल पहले इस देश की धरती पर कदम रखा और साथ ही एक ऐसे स्कूल में उनकी नियुक्ति हुई जिस अभी-अभी शुरू किया गया था ..मात्र ५ छात्रों की भर्ती के साथ!
वे तमिलनाडु के त्रिचरापल्ली शहर में कोलेज में अंग्रेज़ी की प्रोफ़ेसर थीं ,यहाँ आते ही एक बहुत ही छोटे से शहर में शुरू हुए प्रवासियों के इस छोटे से स्कूल के आरम्भिक दौर में हर विषय को पढ़ा सकने वाली अध्यापिका के रूप में नौकरी करना एक चुनौती ही था.
पूरे ३२ साल बाद उसी स्कूल से उपप्रधानाचार्या के पद से सेवानिवृत होना कितने गौरव की बात है इस का अंदाज़ा इसी बातसे लग सकता है कि आज इस शहर में प्रतिष्ठित इसी स्कूल में एक हज़ार से अधिक छात्र हैं ! स्कूल की इस प्रगति और
उन्नति का श्रेय स्वयं 'गवर्निंग कोंसिल' सरस्वती Madam को भी देती है .
27.
सत्यमेव जयते का दलित उत्पीड़न! सिक्के का दूसरा पहलू भी है..
सत्यमेव जयते में आज दलितो के
उत्पीड़न की कहानी दिखाई गई, इसे सिरे से नकारा नहीं जा सकता, पर इनती
बुराईओं के बाद भी इसी समाज में अच्छाई भी है जिसको सामने आना चाहिए।
बात बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह से शुरू करना चाहूंगा।
श्रीबाबू (पुकारू नाम) ने 1961 में बिहार के देवघर मंदिर में दलितों के साथ
मुख्यमंत्री होते हुए प्रवेश किया। भेदभाव और छूआछूत निश्चित ही निंदनीय
है पर इसको तोड़ने के लिए भी बहुत लोगो ंने सराहनीय योगदान दिया है। बाबा
साहेब अंबेदकर से लेकर अपने गांव तक यह नजारा मुझे दिख जाता है। बाबा साहेब
के कार्टून को लेकर भले ही बबेला मचा हो पर उनको अंबेदकर बनाने मंे एक
पंडित शिक्षक का ही हाथ रहा है।
28.
श्री ओम व्यास जी को तीसरी बरसी पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
८ जून'०९ से जिंदगी से संघर्ष कर रहे मशहूर हास्य कवि ओम व्यास का ०८ जुलाई'०९ की सुबह दिल्ली में निधन हो गया।
ज्ञात हो ओम व्यास ०८ जून'०९ को एक सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनका दिल्ली के अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था।
उल्लेखनीय है कि विदिशा में आयोजित बेतवा महोत्सव से भोपाल लौट रहे कवियों का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
29.
उस जुनूंको...
बस दीखता है आर पार हर लम्हा पर छू नहीं पाते ...!!!!
कुछ खलिशसे भर गयी है जिंदगी खारेसे पानीसे ,
प्यास तो है मगर एक घूंट उसका भर नहीं पाते ...!!!!
न जाने कौनसी यादोंमें तड़प तड़प जीना पड़ेगा ,
ये तो कभी जानने को कोशिश नहीं की हमने ,
मगर उससे बिछड़कर यूँ तनहा तनहासे
सिर्फ यादोंसे मुखातिब होकर हम जी नहीं पाते !!!!!
30.
आज ज्योति बसु का जन्मदिन है-
31.
बीमारी
मरीज़ हक़ीम से : मुझे अजीब सी बीमारी हो गए है। जब मेरी बीवी बोलती है, तो मुझे कुछ सुनाई नही देता।”
हक़ीम मरीज़ से : यह बीमारी नहीं है, यह तो तुम पर अल्लाह की रहमत है।
32.
क्रिकेट का एक बेहतरीन गेम डाउनलोड करे
33.
आज की हलचल .... आपातकालीन हलचल
सावन का महिना आया .... सब झूम उठे .... लेकिन बारिश जहां सुख की अनुभूति देती है और वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा झूम उठती है वहीं कभी आपातकालीन स्थिति भी पैदा कर देती है ...अब यशवंत जी के शहर में 12 घंटे से बिजली नहीं है... काम सारे रुक गए खैर हम बढ़ाते हैं चर्चा आगे ...अपनी बात को अभिव्यक्त करना कितना ज़रूरी है इस पर अजीत जी कहती हैं कि ऐसा न हुआ तो विस्फोट होने की संभावना बढ़ जाती है .... इस स्थिति से बचना है तो प्यार का सहारा ज़रूरी है । वैसे तो लोग ख्वाबों की दुनिया में भी जी लेते हैं लेकिन ज़िंदगी की हकीकत कहीं त्याग भोग के बीच है ..... और इस भोग की दुनिया में माँ के प्रति आस्था का एक नज़ारा यह भी देखिये ।34.
"बड़े अच्छे लगतें हैं.......!"
ददिहाल की मै आख़िरी विकेट थी, और ननिहाल की सेकिंड लास्ट. मारिया सबसे बड़ी ख़ाला, जिन्हें हम ख़ाला अम्मा कहते थे की नातिन. उम्र में मुझसे आठ नौ साल छोटी, लिहाजा उसका बचपन मुझे कुछ ऐसे हिफ्ज़ था जैसे हिस्ट्री के लेसन. मारिया उसके खानदान की सबसे बड़ी बेटी और उससे छोटा उसका चचाज़ाद उर्फी. पहली दफे मारिया के ददिहाल गयी तो ( वह छः एक बरस की और मै चौदह पंद्रह की) मारिया हाथ में "चम्पक" लिए उर्फ़ी से बतिया रही थी, "भैया! आओ हम आपको एक कहानी पढ़ कर सुनाये- चुत्रू मुत्रू की कहानी." चुत्रू मुत्रू! ये कौनसा लफ्ज़ है?
35.
इस मानवीयता ने दिल को छू लिया
आज की आधुनिकता से परिपूर्ण जीवनशैली में यदि कोई छोटी से छोटी घटना इस तरह की दिख जाती है जिसमें संवेदना, मानवीयता
का एहसास होता है तो मन प्रसन्न हो जाता है। इस तरह की घटनाओं को देखकर
लगता है कि अभी भी संसार से पूरी तरह से भलाई का अंत नहीं हुआ है। इस तरह
की दिल को छू लेने वाली घटना से हमें रू-ब-रू होने का अवसर उस समय मिला
जबकि हम अपनी एक पारिवारिक यात्रा के दौरान अपनी भांजी के घर से वापस लौटते
हुए बरेली रेलवे स्टेशन पहुँचे। बरेली रेलवे स्टेशन के बाहर आम रेलवे
स्टेशनों जैसा ही माहौल दिखाई दे रहा था। कुछ टैम्पो वाले, कुछ बेचने वाले, कुछ गाड़ियों वाले, कुछ अपने रिश्तेदारों को छोड़ने वाले, कुछ अपने अपनों को ले जाने वाले। इन्हीं सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी थे जो भीख माँगने का काम भी कर रहे थे।
अपनी
आदत के अनुसार नई जगह को देखना-परखना शुरू किया और रेलवे स्टेशन के लिए भी
चलते जा रहे थे। चूँकि ट्रेन के आने में अभी पर्याप्त समय था इस कारण से
आसपास के वातावरण को, लोगों
को पढ़ने का प्रयास भी करने लगे। इस दौरान एक बुढ़िया को भी वहाँ लोगों से
कुछ न कुछ माँगते देखा। किसी के उसको कुछ दिया तो किसी ने उसे वापस लौटा
दिया। किसी के सामने वाह कुछ पल को रुकती तो किसी के सामने पहुँचने का साहस
भी नहीं जुटा पाती। उसको इस देने और न देने के बीच एक व्यक्ति ने आकर उसे
एक आम दिया, जिसे उस बुढ़िया ने अपने हाथों में लटके एक स्टील के बर्तन में डाल दिया। इस घटना को देखते-देखते हम प्लेटफॉर्म की ओर भी बढ़ गये। 36.
फिडेल का फरेब ?
37.
तुम्ही सो गयीं, दास्ताँ सुनते सुनते - सतीश सक्सेना
आज रश्मिप्रभा जी की एक रचना अभिमन्यु पढकर अनायास अभिमन्यु की पीड़ा याद आ गयी ! वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चे गर्भ से ही शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं ! महाभारत काल की यह घटना बहुत मार्मिक है , काश उस दिन सुभद्रा को नींद न आयी होती तो शायद कथाक्रम कुछ और ही लिखा जाता !अभिमन्यु ,माँ के गर्भ में, पिता को सुनते हुए,चक्रव्यूह भेदना समझ चुके थे मगर इससे पहले कि अर्जुन पुत्र को बाहर निकलने का रास्ता बताते, माँ सुभद्रा को नींद आ चुकी थी !पिता के अधूरे रहते पाठ के कारण, अभिमन्यु चक्रव्यूह से कभी बाहर न निकल सके !
पांडवों को, कृष्णा की वह नींद बहुत भारी पड़ी थी ! एक पुत्र का व्यथा चित्रण इस रचना द्वारा महसूस करें !
पिता ने कहा था !
कि जगती रहें !
आप भी पुत्र से ,
बात सुनती रहें !
काश कुछ देर भी , ध्यान देतीं अगर !
तब न खोती मुझे नींद में, सुनते सुनते !
38.
श्री निवासपुरी,दिल्ली में दिनाँक- 30.06.2012 कोआयोजित एक कार्यक्रम में युवा कवि, लघुकथाकार, व्यंग्यकार व दिल्ली गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह को आर्य ट्रस्ट ने आर्य रत्न सम्मान-2012 से सम्मानित किया. इस अवसर पर सुमित प्रताप सिंह ने अपनी व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया व दिल्ली गान सुनाकर वहाँ उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया.
39.
वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं-इरशाद ख़ान सिकंदर
बहुत चुप हूँ कि हूँ चौंका हुआ मैंज़मीं पर आ गिरा उड़ता हुआ मैं
बदन से जान तो जा ही चुकी थी
किसी ने छू लिया ज़िंदा हुआ मैं
न जाने लफ़्ज़ किस दुनिया में खो गय
40.
आने को हैं साँसें नई
हवा थी तेज़ बहुत, और बेचैन था वृक्ष
करवट ली मौसम ने और वो हिल गया ।
थे परेशां सब,खुशनुमा पवन के लिए जब
हुआ ऐसा क्या,पत्ता शाख से चिपक गया ।
दो बड़ी शाखों के ठीक जुड़ने के बीचोंबीच
था किसी पक्षी ने घोसले को जन्म दिया ।
41.
हज़रतबल (श्रीनगर)
खाना वाना खा कर झील के किनारे कुछ मटरगश्ती हुई.
पान वान के चक्कर में कुछ लोग भटकते रहे परन्तु उसे तो मिलना ही नहीं था.
यहाँ के लोगों में यह गन्दी आदत नहीं है. गिने चुने दूकानों में गुटका
अलबत्ता जरूर मिल रहा था. शायद सैलानियों के खातिर. खैर काफिला आगे बढ़ा.
श्रीनगर में निशात बाग़ के करीब ही एक मशहूर जगह है
हज़रत बल. यह एक गाँव था जो अब श्रीनगर का एक मोहल्ला बन गया है. बल का
मतलब स्थल से है न की बाल से. लेकिन यह जगह मशहूर इसलिए है कि कश्मीर के
मुस्लिम सम्प्रदाय के विश्वास के अनुसार यहाँ पर हज़रत मोहम्मद के दाढ़ी
के पवित्र बाल को बड़े जतन से रक्खा गया है. आतंकवादियोंने इस दरगाह में
प्रवेश कर पवित्र बाल को चुरा ले जाने का भी प्रयास किया था और उस समय हुई
गोली बारी में लगभग दो दर्ज़न आतंकवादी मारे गए थे. बाद में भी छुटपुट
घटनाएं होती रही हैं. परन्तु अब लगता है अंततोगत्वा शांति स्थापित हो रही
है. यहाँ कबूतरों की भारी तादाद है और लोगों का कहना है कि इनमें शान्ति के
प्रतीक सफ़ेद कबूतरों की संख्या काफी बढ़ गयी है. संवेदनशील होने के
कारण यहाँ सुरक्षा बल तैनात हैं.
42.
हिग्स बोसान मिल ही गया !
जिनीवा
में CERN के भौतिक विज्ञानीयों ने बुधवार 4 जुलाई 2012 को एक प्रेस
कांफ्रेंस में दावा किया कि उन्हें प्रयोग के दौरान नए कण मिले, जिसके
गुणधर्म हिग्स बोसोन से मिलते हैं। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक नए कणों
के आंकड़ो के विश्लेषण में जुटे हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इन
नए कणों के कई गुण हिग्स बोसोन सिद्धांत से मेल नहीं खाते हैं। फिर भी इसे
ब्रह्मांड की उत्त्पत्ती के रहस्य खोलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण
कदम माना जा रहा है।
वैज्ञानिक हिग्स कण की मौजूदगी के बारे में ठोस सबूतों की खोज कर रहे
थे। बुधवार को घोषणा की गई है कि खोज प्रारंभिक है लेकिन इसके ठोस सबूत
मिले हैं। इस घोषणा से पहले अफवाहों का बाज़ार गर्म था। हिग्स बॉसन या God
Particle विज्ञान की एक ऐसी अवधारणा रही है जिसे अभी तक प्रयोग के ज़रिए
साबित नहीं किया जा सका था।
वैज्ञानिकों की अब ये कोशिश होगी कि वे पता करें कि ब्रह्रांड की
स्थापना कैसे हुई होगी। हिग्स बॉसन के बारे में पता लगाना भौतिक विज्ञान की
सबसे बड़ी पहेली माना जाता रहा है। लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर नामक परियोजना
में दस अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं। इस परियोजना के तहत दुनिया के दो सबसे
तेज़ कण त्वरक बनाए गए हैं जो प्रोटानो को प्रकाश गति के समीप
गति से टकरायेंगे। इसके बाद जो होगा उससे ब्रह्रांड के उत्पत्ति के कई राज
खुल सकेंगे।
43.
मेहनत करने वालों की लगातार उपेक्षा
किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था में पुराने उद्योगों का बन्द होना और नए उद्योगों की स्थापना एक सतत प्रक्रिया है। कोई भी उद्योग ऐसा नहीं जो हमेशा चलता रह सके। समय के साथ साथ हर उद्योग की प्रोद्योगिकी पुरानी होती जाती है। उस से प्रतियोगिता करने वाली नयी प्रोद्योगिकी आती रहती है। पुराने उद्योग इन नए उद्योगों से प्रतियागिता नहीं कर पाते। समय समय पर पुराने उद्योगों में नई प्रोद्योगिकी का प्रयोग कर उनकी उम्र बढ़ाई जाती रहती है। लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब उद्योग में नयी प्रोद्योगिकी का प्रयोग संभव नहीं रह जाता है। तब उसे बन्द करना पड़ता है। समय के साथ कुछ उत्पादनों का सामाजिक उपयोग लगभग समाप्त प्रायः हो जाता है। एक समय था जब देश के पिक्चर ट्यूब उद्योग श्वेत-श्याम पिक्चर ट्यूबें बनाया करते थे। लेकिन धीरे धीरे इन का उपयोग लगभग समाप्त हो गया। उन का स्थान रंगीन पिक्चर ट्यूबों ने ले लिया। श्वेत श्याम पिक्चर ट्यूबें बनाने के कारखानों ने अपनी प्रोद्योगिकी में परिवर्तन किया और रंगीन पिक्चर ट्यूबें बनाना आरंभ कर दिया। लेकिन प्रोद्योगिकी लगातार विकसित होती है। पिक्चर ट्यूब का स्थान एलसीडी, एलईडी, और अब प्लाज्मा डिस्प्ले ले रहे हैं। जल्दी ही वह समय आएगा जब भारी भरकम पिक्चर ट्यूबें इतिहास का हिस्सा हो कर संग्रहालयों मे सिमट जाएंगी। इस तरह पिक्चर ट्यूबें बनाने वाले वर्तमान उद्योग भी गायब हो लेंगे।44.
आत्मा के जख्म धोती बारिश
अहा! बाहर झमाझम पानी बरस रहा है, सांय-सांय हवा चल रही है, पेड़ झूम रहे हैं, दूर उफक पर बादल जमीन को चूमने उतर आए हैं और हम शयनकक्ष की शीशे वाली खिड़की से बाहर का नजारा देख रहे हैं। मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है कि बाहर बारिश होने का अहसास ही मुझे चिंताओं से मुक्त कर देता है। अचेतन में एक अजब प्रसन्नता समा जाती है। एक बचकानी उत्फुल्लता मुझ पर हावी होने लगती है। ये बात दीगर है कि मुंबई में इस तरह घर के भीतर होने के सुखद अहसास के साथ बाहर गिरती बारिश का लुत्फ ले पाना बहुत कम लोगों के नसीब में है।
45.सावन आया घूम के
पुराने से दिन नहीं हैं, जब 25 जून के आसपास दिल्ली में सावन झूम के आ जाता था। अब तो पता नहीं कहां-कहां से घूमकर आता है सावन। कोई बताता है कि जयपुर की तरफ से आ रहा है। कोई बताता है नहीं जी इलाहाबाद, कानपुर का रूट पकड़ा है मॉनसून ने। वाया दादरी आएगा।
और जी मैं इस डिबेट के कतई खिलाफ हूं कि ये जो बारिश हुई है, ये प्री मॉनसून शावर हैं या इस बारिश को सच्ची में मॉनसून का आना घोषित कर दिया जाए। कुछ महीन किस्म की वैज्ञानिक चेतना से संपन्न लोग इस तरह की डिबेट खड़ी करते रहते हैं।
46.स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
एक बार भगवान विष्णु,
अपने वहां गरुड़ पर बैठ कर,
शिवजी से मिलने,
पहुंचे पर्वत कैलाश पर
शिवजी के गले में पड़ा सर्प,
गरुड़ को देख कर,गर्व से फुंकार मारता रहा
तो मन मसोस कर गरुड़ ने कहा
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
तेरा मेरा बैर हर कोई जानता है
पर इस समय तू शिवजी के गले में है,
इसलिए फुफकार मार रहा है,
ये तेरे बल की नहीं,स्थान की प्रधानता है
आदमी की पोजीशन,
उसके व्यवहार में,स्पष्ट दिखलाती है
सुहागरात को दुल्हन बनी गधी भी इतराती है
47.क्या दुख सहने से नारी महान बनती है ?
बंगला साहित्य के महान कथाकार शरतचंद्र का बचपन मेरे शहर में बीता। उनके मामा का घर भागलपुर में है। उन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यास लिखे जिनमें 'देवदास' सबसे ज्यादा चर्चित है और जिस पर कई फिल्में बन चुकी हैं। लेटेस्ट फिल्म शाहरुख-ऐश्वर्या-माधुरी दीक्षित वाली थी जो आपमें से ज्यादातर ने देखी होगी। सैफ अली और विद्या बालन की 'परिणीता' भी उन्हीं के उपन्यास पर आधारित थी।
लेकिन मैं यहां 'देवदास' या 'परिणीता' पर बात नहीं कर रहा। मैं बात करूंगा 'श्रीकांत' की। इस पर भी सालों पहले एक टीवी सीरियल बना था, शायद आपमें से कुछ को याद हो। वैसे 'देवदास' हो या 'श्रीकांत', शरत बाबू नारियों का बहुत सम्मान करते थे। नारियों का सम्मान करते हुए वह बहुत सम्मानित भी हुए। एक दिन मेने मेरे मन में यह ख्याल आया कि शरत बाबू के दिल में किस प्रकार की नारियां ऊंचा स्थान और सम्मान पा सकीं?
48.
धारा-24 हिन्दू विवाह अधिनियम के आदेश के निष्पादन के लिए सीपीसी के आदेश 21 नियम 11(2) अंतर्गत लिखित आवेदन करें
समस्या-
पति
ने झूठे आरोप लगा कर न्यायालय में तलाक की अर्जी लगा रखी थी। पति एक वर्ष
में एक बार भी पेशी पर न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ। पत्नी तलाक नहीं
देना चाहती है। पत्नी ने धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन
किया जिस में न्यायालय ने पत्नी और दो बच्चों के लिए 5000 रुपए प्रतिमाह
भरण-पोषण देने का निर्णय प्रदान किया। उस के बाद अंत में पति का तलाक का
मुकदमा खारिज कर दिया। क्या पत्नी को तलाक का मुकदमा खारिज होने के दिन तक
का खर्चा मिलेगा? अगर पति तब भी नहीं दे तो पत्नी क्या कर सकती है? यदि पति
लापता हो तो क्या पत्नी अपने सास ससुर से खर्चा ले सकती है?
- रानी आहूजा, लोहाघाट, उत्तराखण्ड
49.
मैं बदलते युग का उत्थान हूं
खुद पर ही करता मैं अभिमान हूं
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान . हूं
सपन्न सभी जो बह चुके हैं नयन-नीर से
अपने ह्रदय पर वार किये अपने ही तीर से
पत्थरों में हाँ तराशा हूं खुद को
बन रहा पत्थर या मैं भगवान् हूं
खुद पर ही करता मैं अभिमान हूं
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान . हूं
50.आरटीआई कानून से कैसे मिले दाखिला
जब इस साल से शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू करने की घोषणा की गयी थी, तो उसका बहुत स्वागत हुआ था। सबको लगा था कि बस अब देश का हर गरीब बच्चा पढ़ाई कर सकेगा, हर वंचित बच्चा स्कूल जा सकेगा और देखते ही देखते पूरा देश पूर्ण साक्षर बन जायेगा। यह हमारा विशिष्ट स्वभाव है कि हम कुछ अच्छे की संभावना नजर आते ही बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं और कुछ बुरे की आशंका से उससे भी जल्दी मायूस हो जाते हैं। आम आदमी, जिसके लिए यह कानून लागू किया गया है, तर्क के आधार पर बहुत कम सोचता है। उसे आशा भी बहुत जल्दी होती है, निराशा भी। वह व्यावहारिकता को नहीं देखता। अगर उसे व्यावहारिकता का बोध होता भी है, तो भी वह आशा-निराशा के सागर में आकंठ डूब होता है। उसे लगता है कि जैसा वह सोच-समझ रहा है, वैसा ही होगा। मगर वैसा अक्सर होता नहीं है। हमारे देश में बहुत से ऐसे कारक हैं, जो चीजों को स्वाभाविक तरीके से होने नहीं देते।
आरटीई के साथ भी ऐसा ही हुआ है!
51.ये ’गॉड पार्टिकल’ क्या बला है ?
नुक्कड़ पर, गॉड पार्टिकल पर चर्चा में कालू गरीब ने दखल दिया - 'इसको हिंदी में क्या बोलते हैं, गुरू।' हमने कहा - 'यार जब तक हिंदी भवन के बड़ी बुद्धि वाले अफ़सर, इसके लिए कठिन, भारी भरकम हिंदी शब्द न खोज लें, तब तक बताया नही जा सकता। अभी हम सरल सा कुछ नाम दे देंगे, तो उ लोग बौरायेंगे कि देखो दवे जी ने हिंदी को पतित कर दिया।' कालू गरीब ने राय दी - 'गुरू कुछ सुझाव टाइप नाम दे दो। बहुत कुलबुलाहट हो रहा है। हमने कहा- 'देख भाई, ऐसे तो इसका नाम 'भगवान कण’ होना चाहिये।' इतना सुनते ही कालू हंस हंस के लोट-पोट हो गया, बोला- 'तुमाये जैसे बामन, यहां वहां की फ़ेंकते थे। मेरे जैसे दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक फ़ोकट अपना शोषण करवाये इत्ते साल।' हमारा माथा घूमा, हमने पूछा- 'क्यों बे, इसमें बामन किधर से बीच में आ गया?'
52. ऐसे तो आपका बच्चा पोंगा बनेगा !
देश भयानक गर्मी से जल रहा है। चेहरे झुलस रहे हैं। बदन भीग रहे हैं। और सबसे ज्यादा असर हो रहा है बच्चों पर। इसलिए दिल्ली, हरियाणा और उड़ीसा समेत कई राज्यों ने स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों को बढ़ा दिया है। गर्मी की मार और ज्यादा भयानक बना रही है बिजली और पानी की भयंकर कमी। इसलिए राज्य सरकारों को छुट्टियां बढ़ाने का फैसला ठीक ही लगता है। देश के आम लोग या फिर आरामपरस्त जिंदगी के आदी लोग इस फैसले से सहमत होंगे। उन्हें लगता होगा कि जैसे उन्हें आराम की जिंदगी जीने का हक है, वैसे ही दूसरों को भी होगा। लेकिन मैं इस फैसले से पूरी तरह असहमत हूं।
53.
मेरे खामोश दिल में
मेरे ख़ामोश दिल में फिर से ये आवाज़ कैसी है
ज़ेहन के बंद दरवाज़े पे दस्तक तेरे जैसी है
दरारों से ख्यालों में, है कबसे झांकता कोई
पुकारा था भी लेकिन सामने आता नहीं कोई
एक अहसास है जिसकी झलक कुछ तेरे जैसी है
हवाएं बेवजह रह रह मुझे हैरान करती हैं
परेशां हूँ, मुझे वो और परेशान करती हैं
क्यों सरगोशी मेरे कानों पे उनकी, तेरे जैसी है
54.प्रजातंत्र
प्रजातंत्र अब थक गया है,
हार गया है,
अपनो से, अपनानेवालो से I
आज ठगा सा दो रहे पर
चिंतित सा खड़ा है,
देश की स्थिति देख
अब डर सा गया है !
55.क्यों बनाया हमने ऐसा समाज....... ?
कहते हैं “आज सुखी वही है जो कुछ नहीं करता,जो कुछ भी करेगा, समाज उसमे दोष खोजने लगेगा उसके गुण भुला दिए जायेंगे और दोषों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जायेगा……प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में दोषी है दोष किसमे नहीं होते……आज यही कारण है कि हर कोई दोषी अधिक दिख रहा है गुणी या ज्ञानी किंचित ही दिखाई पड़ते हैं……….”
परिणाम यह है कि हमारे भारतवर्ष में यदि कोई कुछ अच्छा करे तो इतना नाम नहीं पा सकता जितना कोई अनुचित कार्य कर पा सकता है……वातावरण विभिन्न दोषों कि अशुद्धियों से बीमार है………..हमने दोषों में आनंद लेना प्रारंभ किया है……आदर्शों का मजाक बनाने में हम तत्पर हैं……हम विलाशिता के जीवन की ओर अग्रसर हैं….दोष निकालने में व्यस्त हैं…..मोह, माया, काम, क्रोध, झूठ जैसे बुराइयों की वृद्धि हुई हैं…………दोष ओर बुराई के सजग वायरस ने हमें अँधा कर दिया है……….अच्छाई कहीं दिखाई ही नहीं पड़ती……..सच्चाई एक संघर्ष बनी हुई है……….
56.मेरा कालेज का पहला दिन
नव सत्र सुधामय वह आया
प्रफुल्ल मुदित मनभावन
दिवस वो लाया
मनस पटल अंकित छवि
‘कालेज’ की
जीवंत देखने का दिन आया
व्याकुलता के पल काट काट
पहुंचा मै कालेज के द्वार
प्रथम दृश्य दिख गया मुझे
होता एक विचित्र सत्कार
57.हल्ला बोल
कब तलक कुवें के मेंढक, बन के दिन गुजारेंगे …
कब तलक गिरती लाशों पर, आंसू हम बहायेंगे ?
कब तलक कहेंगे यूँ, कि देश ने क्या दिया है हमें ?
कब तलक कसाब जैसों को पाल कर साँप को दूध पिलायेंगे ?
कब तलक देंगे रिश्वत हम ?
कब तलक मंहगाई सह पाएंगे ?
कब तलक होंगे पैदा होंगे कलमाड़ी ?
कब नींदों से हम जाग पाएंगे ?
कब तलक सही लोकपाल बनेगा ?
58.भारतीय मीडिया की कूपमंडूकता
भारत मे मीडिया का स्थान लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप मे दिया गया है।यहा चौथे का मतलब ये बिलकुल नहीं है की मीडिया का नंबर चौथा आता है लोकतन्त्र को मजबूत करने में।लोकतन्त्र के चारो खंभो मे अगर एक भी खंभा कमजोर निकला तो हमारा ये नया नवेला लोकतन्त्र औंधे मुंह गिर जाएगा।
हमारे संविधान मे कुछ ऐसी धाराएँ है जिनमे मीडिया के कर्तव्यो के बारे में बताया गया है।लेकिन हमारे देश की मीडिया को सिर्फ अपने अधिकारों के बारे मे पता है।पर अपना वो कर्तव्य भूल गए।
हमें पता है की हमारे देश भारत मे आस्था और अंधविश्वास के बीच की पतली लकीर है।और मीडिया की जिम्मेवारी बनती है की देश के लोगो के बीच वैज्ञानिक सोच पैदा की जाए।
59.
अभिव्यक्ति को मार्ग दो, नहीं तो वह विस्फोट में बदल जाएगी
कहते हैं कि बादल धरती की अभिव्यक्ति को अपने में समेट लेता है। धरती अपनी पीड़ा को शब्द नहीं देती अपितु नि:श्वास बनाकर उष्मा के सहारे बादलों को समर्पित कर देती है। बादल एकत्र करते रहते हैं, धरती की वेदना। वेदना रूपी उष्मा के एकत्रीकरण की जब प्रचुरता हो जाती है तब बादल कभी झरने लगते हैं तो कभी फट जाते हैं। बादल अपनी अभिव्यक्ति वर्षा के रूप में करते हैं। लेकिन आजकल लगता है बादल भी इंसानों की तरह अभिव्यक्ति करना भूलता जा रहा है। वह भी अधिक सहिष्णु हो गया है या अभिव्यक्ति का मार्ग बिसरा बैठा है। लेकिन जब धरती की पीड़ा को समेटा है तो एक न एक दिन तो इसका निस्तारण अवश्य ही होगा। आखिर कब तक बादल धैर्य रखेगा? बादल बहुत सोचता है कि ना करूँ अभिव्यक्त लेकिन एक दिन अचानक ही उसका धैर्य जवाब दे जाता है और वह फट पड़ता है। धरती पर सैलाब आ जाता है, उथल-पुथल मच जाती है।
60.मुझे यह समझ में नहीं आता
अपने आप को जीनियस नहीं कह सकता क्योकि वास्तव में मै नहीं हूँ परन्तु हमारे तमाम नीति नियंता और उनके तमाम थिंक टेंक सलाहकारों में एक अति विचार शून्यता को स्पष्ट रूप से अवश्य महसूस करता हूँ और संदेह यह भी होता है कि कोई इतना अहमक कैसे हो सकता है अर्थात इस विचार शून्यता में कुछ बनावट का अंश भी महसूस होता है और जो भी हो इस सब का कुल जमा नतीजा यह निकलता है कि देश कि जनता हलकान है परेशान है बेहद दुखी है और परिणाम स्वरूप प्रतिदिन हजारो कि संख्या में लोग आत्महत्याए कर रहे है या छोटी मोटी बातो के लिए एक दुसरे की जान भी ले रहे है .
61.सारी बीच नारी
आज भारत के शहरों एवं गाँवों में जिनके पास खाली समय है ज्यादा से ज्यादा टी.वी. देखने में ब्यतीत करते हैं। कारण भी सीधा-सपाट है कि समाचार, मनोरंजन, खेल-कूद, ब्यवसाय एवं भक्तिजगत की जानकारी सिंगल विंडो सिस्टम (एकल खिड़की ब्यवस्था ) से होती रहती है बशर्ते बिजली आती हो और चैनेल वाले विज्ञापन प्रसारण से खाली हों। आज से साढ़े पाँच हज़ार वर्ष पहले मिस्टर संजय के पास आँखो देखा हाल( टी.वी ) प्रसारण का लाइसेंस था और वे महाराज धृतराष्ट्र के लिए प्रसारण का कार्य करते थे । क्यों कि महाराज अंधे थे, वे महाराज के सारथी का दायित्व भी संभालते थे । संजय ने महाभारत का आँखों देखा हाल इतना सटीक प्रसारित किया था कि पूरी दुनिया आज भी पवित्र श्री मदभगवदगीता को सर्वश्रेष्ठ जीवन दर्शन मानती है ।
62.कैसे प्रमाणित हो …..!
—-
चेतना के ……..
स्तर पे …….
जब – मैं …….
परिभ्रमर -करती हूँ …..
तब ….
१— देह के सब -प्रमाण ….
सबूत,दलीलें …..
भार और अर्थहीन से ….
जान -पड़ते हैं…….?
इन्द्रियों के ………
सातो-धरातल ……
और -शब्दों के करोड़ों -जोड़ से …
63.डॉक्टर -डॉक्टर ,द्वारे द्वारे
जब मैं छोटो था, तब मेरे मोहल्ले में एक लोक कलाकार रहता था। रामप्रकाश बगछट नाम का यह कलाकार अपनी नौकरी की तलाश में बेले गए पापड़ को एक गीत के रूप में सुनाता था। मदर इंडिया के गीत- नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे, ढूंढू मैं सांवरिया, की तर्ज पर वह डॉक्टर-डॉक्टर द्वारे-द्वारे, ढूंढू मैं नौकरिया, गाया करता था। जब नजीबाबाद में आकाशवाणी केंद्र खुला तो इस कलाकार के गढ़वाली गीत रेडियो में सुनाई देने लगे, तब जाकर मोहल्ले के लोगों को उसकी अहमियत पता चली। खैर रामप्रकाश ने नौकरी की तलाश में कुछएक डॉक्टर व दृष्टिहीन व्यक्तियों के द्वार खटखटाए, लेकिन आज तो व्यक्ति कमाने के लिए नहीं, बल्कि जेब ढीली करने के लिए ही डॉक्टर के द्वारे जाता है।
64.आंखों से नींद बहे रे
आँखों से नींदे बहे रे
सपने सजन के कहे रे
महल सुनहरे ख्वाब का
बना ले नींद-ए-जहां में
.
हवा में उड़े है वो सारे
नींदों में बसा जो सपना
क़ैद ख्वाबगाह में कर ले
हो जायेगा वो अपना
65.चाह ......
चाह नहीं कुछ पाने की अब,
चाह नहीं रुक जाने की अब .
भले तूफ़ान क्यूँ न रास्ता रोके ,
भले घटा क्यूँ न राह मे टोके ………..
मन कभी किसी से डरे भी तो क्या -
कदम खुद आगे बढ़ जाते हैं ,
जहाँ रास्ते ना भी हो तो
वहां रास्ते खुद बन जाते हैं ……..
66.
कुछ कच्ची पक्की
(मेरी कुछ कच्ची पक्की रचनाएँ जो अलग अलग समय में लिखी हुई हैं आपके सामने रख रहा हूँ.)
गिरधारी लाल आदमल किराना व्यापारी
भर गर्मी के भारी चिपचिपे अहसास में
महज हाथ पंखे की ठंडी हवा के
वहम से संतुष्ट
खाने पीने की तमाम चीज़ों की
उपस्थिति से भरा भरा
बैठा है व्यापारी
चूहों की अहर्निश आवाजाही के बीच.
67.
गंगा-जमुनी तहजीब का हिस्सा है आजमगढ़ का निज़ामाबाद
‘यह मस्जिद है, वह बुतखाना’ का फलसफा हमारी गंगा-जमुनी तहजीब का हिस्सा है और निजामाबाद में एक ही स्थान पर दो मस्जिदें, कई मंदिर और गुरूनानक की तपोस्थली साम्प्रदायिक एकता का सन्देश दूर तलक फैलाती है।
68.बदलते मौसम
बदलते मौसम
जब ज्यादा गर्मी पड़ती है
तो कितनी मुश्किल बढती है
बार बार बिजली जाती है
पानी की दिक्कत आती है
और जब आती बारिश ज्यादा
वो भी हमको नहीं सुहाता
सीलन,गीले कपडे, कीचड
और जाने कितनी ही गड़बड़
और जब पड़ती ज्यादा सर्दी
तो मौसम लगता बेदर्दी
69.
गुड फ्राइडे
उसके सारे दांत बाहर आ गए थे। वो मुंह के बल ज़मीन पर गिरा था। उसका मुंह खेत में पड़े किसी मिट्टी के ढेले की तरह भसक गया था। आसपास बहुत ख़ून बह रहा था। मगर उसके मरने की जगह इतनी साफ थी कि मक्खियां अब तक वहां पहुंच नहीं सकी थीं। ख़ून साफ करने के लिए एक रेस्क्यू टीम मिनटों में वहां घेरा बना चुकी थी। पांच से दस मिनट के भीतर सब कुछ सामान्य था। अगर कोई आदमी अब इस उद्घाटन समारोह में पहुंचता तो उसे बिल्कुल ही पता नहीं चलता कि अभी-अभी एक स्टंटमैन यहां ख़ून की उल्टियां कर मर गया है। स्पॉट डेड।
70.
गैब्रियल गर्सिया मार्केस की लम्बी कहानी - कर्नल को कोई ख़त नहीं लिखता
यह प्रस्तुति
कभी तोलस्तोय की मृत्यु की कल्पना-मात्र से अन्तोन चेख़व आहत हो उठे थे और उन्होंने कहा था कि तोलस्तोय की मृत्यु से हमारा समाज बिना चरवाहे के रेवड़ जैसा हो जाएगा... तकरीबन ऐसे ही उद्गार कोलम्बिया के ही नहीं, वरन् विश्व के महान रचनाकार गैब्रियल गर्सिया मार्केस की बीमारी की ख़बर से कोलम्बिया के एक शीर्ष नेता ने हाल ही में कहा कि मार्केस को खो देने का सदमा झेलने के लिए अभी हमारा देश तैयार नहीं है... लेखक के प्रति एक राजनेता का उद्गार कितना भाव-विभोर करने वाला है।
कभी तोलस्तोय की मृत्यु की कल्पना-मात्र से अन्तोन चेख़व आहत हो उठे थे और उन्होंने कहा था कि तोलस्तोय की मृत्यु से हमारा समाज बिना चरवाहे के रेवड़ जैसा हो जाएगा... तकरीबन ऐसे ही उद्गार कोलम्बिया के ही नहीं, वरन् विश्व के महान रचनाकार गैब्रियल गर्सिया मार्केस की बीमारी की ख़बर से कोलम्बिया के एक शीर्ष नेता ने हाल ही में कहा कि मार्केस को खो देने का सदमा झेलने के लिए अभी हमारा देश तैयार नहीं है... लेखक के प्रति एक राजनेता का उद्गार कितना भाव-विभोर करने वाला है।
71.शीर्षक :- भट्टा
भट्टों में जीवन जलता है....
उस आग में ईंटा पकता है,
कामों के बोझ तले दबकर....
बच्चों का बचपन मरता है,
पढ़ना लिखाना दूर की बातें....
काम करना दिन और रातें,
थककर जब आराम करूँ तो....
पेट की भूख जगाता है,
रंग बिरंगे खेल-खिलौने....
बिस्तर नरम और झूले पलने,
राजा रानी परी कहानी....
क्या ये सच में होते हैं,
72.
बोल बच्चन उर्फ बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातें
हरफनमौला क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की सुनिये ‘विश्वकप अकेले धौनी के खेलने से हासिल नहीं हुआ, इसमें पूरी टीम का योगदान है.’ अब भला इस हरियाणवी छोरे से कोई यह पूछे कि यह भी कोई कहने व बताने की बात है. यह तो सब जाने हैं.
बांग्लादेश की चर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन की खुशी थोड़ी प्राइवेट किस्म की है ट्विट किया ‘अभी-अभी एक उपन्यास खत्म किया है. ऐसा महसूस हो रहा है, जैसा जी-स्पॉट आर्गेज्म हासिल करने पर होता है.’
73.
बिगड़े बिगड़े हाल, केमिकल जहरीला था
आम पाल के खा चुके , जिसमें भरे बवाल |
पका केमिकल से मगर, बिगड़े बिगड़े हाल |
बिगड़े बिगड़े हाल, केमिकल जहरीला था |
नहीं रहा स्वादिष्ट, दीखता बस पीला था |
प्राकृतिक सुस्वाद , खाइए आम डाल के |
रखो स्वजन का ख्याल, छोडिये आम पाल के ||
74.
सावन की पहली झमाझम मानसूनी वर्षा
75.
पहली वारिश
मैं
अकेले
छत पर
तन्हाई के साथ खड़ा हूँ ।
बारिश की बूंदें
धीरे धीरे धरती के
आगोश में समा रही हैं ।
बादलों की गडगडाहट
बिजली की चमक
मनो ख़ुशी से नाच रहे हैं ।
76.
आ फिर मुझे छोड़के जाने के लिए आ !
77.
दिन के उजाले पर रात की स्याही कैसी
हँसते हुए चेहरे पर आज ये उदासी कैसी
महकाती थी ज़माने को खुशबू जिनकी
आज उन बहारों में ये खिजा की बू कैसी
दिल डूबता है देख कर ये खौफ का मंज़र
शहनाइयों के बीच ये मातमी धुन कैसी78.चलो दिलदार चलो ......चांद के पार चलो
प्राचीन काल में प्रेमी अपनी प्रेमिका की तुलना चाँद से करता था ....हर शायर ने
भी अपनी शायरी में प्रेम रस उत्पन करने के लिये चाँद और चांदनी का सहारा
लिया हे ,लेकिन ज्यूँ -ज्यूँ विज्ञानं ने खोज की और पता चला की चाँद में गड्ढे हे और तो और चाँद की
चांदनी भी उसकी खुद की चमक नहीं अपितु सूर्य की चमक हे तब से ही कुछ
प्रेमियों ने अपनी प्रेमिकावो की तुलना चाँद से
करना बंद कर दिया
लेकिन कुछ प्रेमी ऐसे भी हे जो आज भी इस युग में अपनी "प्रेमिकावो" की तुलना "चाँद" से करते नहीं थकते,ऐसे प्रेमी अपनी प्रेमिकावो के लिये चाँद-तारे तोड़ लाने के लिये तेयार रहेते हे! कुछ तो "चाँद" के पार चलने की बाते करते हे !परन्तु इस महंगाई के दोर में जब लोग एक गाँव से दुसरे गाँव जाने तक में परहेज कर रहे हे तो सोचिये चाँद पर जाने का खर्चा कितना आयेगा ?
लेकिन कुछ प्रेमी ऐसे भी हे जो आज भी इस युग में अपनी "प्रेमिकावो" की तुलना "चाँद" से करते नहीं थकते,ऐसे प्रेमी अपनी प्रेमिकावो के लिये चाँद-तारे तोड़ लाने के लिये तेयार रहेते हे! कुछ तो "चाँद" के पार चलने की बाते करते हे !परन्तु इस महंगाई के दोर में जब लोग एक गाँव से दुसरे गाँव जाने तक में परहेज कर रहे हे तो सोचिये चाँद पर जाने का खर्चा कितना आयेगा ?
79.
क्या हिंदी एक निकृष्ट भाषा है ?
फेसबुक पर श्रीमान महफूज़ अली जी की एक बात
पढकर मेरा मन सोचने पर विवश हो गया | महफूज़ ने लिखा है कि वो हवाई जहाज से यात्रा
करते समय हिंदी ब्लॉग खोलने पर लोग उन्हें हिकारत की नज़र से देखने लगे | इससे
उन्हें दुःख हुआ एवं वो इस बात पे सबकी दृष्टि आकर्षित करने के लिए फेसबुक पे इसका
ज़िक्र किया | उनकी यह पोस्ट पढकर मैं भी यह सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्यूँ है |
बहुत सोचने पर पाया कि जो भारतीय लोग हिंदी
या अन्य भारतीय भाषाओँ को निम्न कोटि के मानते हैं यह दरअसल उनकी गलती नहीं है | २००
साल अंग्रेजों की गुलामी के बाद यह स्वाभाविक है कि प्रभु की भाषा को प्राधान्य दी
जाय और उसे ही श्रेष्ठ समझा जाय और खुद की भाषा को निकृष्ट | और फिर हिंदी के
प्रचार प्रसार और उन्नति के लिए कोई काम हुआ भी तो नहीं है | जहाँ अंगरेजी में निरंतर
उन्नति और बदलाव आते गए, वहीँ हिंदी एक ठहराव में फंसकर रह गई | आज ज़रूरी हो गया
है कि हम भारतीय भाषाओँ में उन्नति लायें | और यह तभी संभव होगा जब हम 80.
गब्बर ही गब्बर हैं, ठाकुर साहब!
कनक तिवारी
‘कितने आदमी थे?‘
‘हुजूर, केवल एक.‘
‘वह एक और तुम दो. फिर भी उसे जान से नहीं मारा. जांघ पर गोली मारकर आ गए. सोचा गब्बर बहुत खुश होगा. सबासी देगा. हमारा नाम मटियामेट कर दिए.‘
यह फिल्मी डायलॉग छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में ठीक उस वक्त बोला जा रहा था, जब राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री कलेक्टरों और जिला पुलिस अधीक्षकों को फिल्म ‘शोले‘ के नायकों वीरू और जय की तरह जोड़ी बनाकर भ्रष्टाचाररहित प्रशासन के गुर बता रहे थे. रायगढ़ में हरियाणा निवासी तेज़ तर्रार कलेक्टर हैं और हरियाणा के ही अरबपति उद्योगपति. ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल को दिन दहाड़े गोली मारी गई और प्रशासन में अब भी जय और वीरू की जोड़ी कम से कम रायगढ़ में तो बन नहीं पाई.
81.
इस पितृ पक्ष पर...!
इस पितृ पक्ष पर
हे मेरे सभी पितर!
मेरा नमन आप सभी को,
मेरे दादा, जिनको कभी लाठी की टेक नही दी मैंने
लड़खड़कर जब वे गिरते,
मैं बाउजी से कहता, ये बुड्ढे लोग जल्दी मरते क्यों नही?
दादी, जिसके हुक्के की बदबूदार नली
और उसकी गुड़गुड़ी से मैं बेचैन हो उसे गरियाने लगता,
हुक्के की पीनी भी मैं फेक आया करता
पिछवाड़े की गलियों में।82.
सावन हे सखी सगरो सुहावन
83.
अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का गठन
ताशकंद। सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ और प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में (सृजनगाथा डॉट कॉम, निराला शिक्षण समिति, नागपुर और ओनजीसी के सहयोग से) पांचवा अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 24 जून से 1 जूलाई तक सपलतापूर्वक संपन्न हुआ । मुख्य आयोजन उज़्बेकिस्तान की राजधानी ऐतिहासिक शहर ताशकंद के होटल पार्क तूरियान के भव्य सभागार में 26 जून, 2012 के दिन हुआ । यह उद्घाटन सत्र बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून के मुख्य आतिथ्य एवं प्रवासी साहित्यकार डॉ. रेशमी रामधोनी, मारीशस की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री हरिसुमन बिष्ट, सचिव, हिंदी अकादमी,दिल्ली, डॉ. शभु बादल, सदस्य, साहित्य अकादमी, डॉ. पीयुष गुलेरी, पूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी, कादम्बिनी से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार-सम्पादक डॉ. धनंजय सिंह, वागर्थ के सम्पादक व प्रतिभाशाली युवा कवि श्री एकांत श्रीवास्तव एवं निराला शिक्षण समिति, नागपुर के निदेशक डॉ. सूर्यकान्त ठाकुर,
84.
सबकी अपनी मर्जी...
सबकी अपनी मर्जी
सबका अपना ढंग
कोई मारे सीटी
कोई फोड़े मृदंग
बेसुरा छेड़े सुर
बेताल देवे संग
लकवा मारा नाच
फड़के अंग - अंग
85.
नेकी अभी ज़िंदा है
86.दो जून की रोटी जो मयस्सर न हुई
दो जून की रोटी जो मयस्सर न हुई
तो खुदखुशी कर छोड़ दी दुनिया उसने
उसको क्या पता था कही पर बोरियों में
सड़ते पड़े हैं उसके उगाये गेंहू
तो खुदखुशी कर छोड़ दी दुनिया उसने
उसको क्या पता था कही पर बोरियों में
सड़ते पड़े हैं उसके उगाये गेंहू
87.
न जाने वो क्या है?
क्या कहूं मैं उससे की वो क्या है...
वो झूमती हवा है
या कोई छाई हुई घटा है...
वो फूलों सी कोमल है
या शांत पानी में कोई हल-चल है...
वो जीने की एक उम्मीद है
या मेरे दिल के बहुत करीब है...
वो चेहरे की मुस्कान है
या मेरे मन का कोई अरमान है
वो हाथों की लकीर है...
या मेरे माथे पे लिखी तकदीर है
88.
ई रीडर्स मांगे मोर
89.
" गर्जत बरसत साहब आयो रे "
सावन का महीना मुझे तो बहुत अच्छा लगता है | कभी तेज़ तो कभी धीमी पडती बौछारें लगता है किसी सखी ने राहें रोक कुछ प्यारा सा गुनगुना दिया हो | इधर दो - तीन दिनों से अनवरत पड़ने वाली फुहारें ही एक नया उत्साह सा जगा रही हैं | जाने कितने भूले - बिसरे गीत यादों में दस्तक दे रहें हैं | सावन की सबसे बड़ी खासियत इसका संगीतमय रूप है ... इसमें फ़िल्मी गीत तो है ही कजली भी खूब याद आती है |
90.
कोणार्क सूर्यमन्दिर : अपरा इतिहास
परा
इतिहास से अब हम अपरा इतिहास की ओर चलते हैं। नरसिंह से मिलते जुलते रूप
में सूर्य का उकेरण मेक्सिको की एज़्टेक सभ्यता में भी मिलता है। अपनी तीखी
ताप के कारण वहाँ भी सूर्य उग्र रूप में चित्रित है और उसका एक प्रकार सिंह
जाति का प्राणी जगुआर है।
इन्द्रद्युम्न
की पहचान दसवीं-ग्यारहवीं सदी के राजा इन्द्ररथ से की गई है। उड़ीसा में यह
समय आदिम सूर्यपूजा, बौद्ध, जैन, शैव, शाक्त, वैष्णव आदि के समन्वय का था।
इन्द्ररथ से पहले के सैलोद्भव राजाओं ने माधव आराधना को प्रसार दिया था और
नियाली माधव, कंटिलो आदि की स्थापना उनके समय में हुई थी
91.नैनों के अनोखे रूप : सब एक से बढके एक
92.दिन का बुलावा : दिन में ही आ जाए तो ठीक
93.तुम और मैं मिल कर कायनात सजाते हैं
94.का भाई अखिलेश , पिताजी से आगे नहीं बढोगे हां काहे नहीं , लेकिन हौले हौले
95.आशा का बसन्त बस आ ही पहुंचा है
96. बंगलौर बस में : दो फ़टाफ़ट पोस्ट पढ लो
97. कृष्ण लीला -भाग 55 जारी रखिए
98.चार्ल्स सिमिक की कविता : कमाल बेमिसाल है
99.बोल बम : बोल बम
100.वहां मेरी कविता को नई जिंदगी मिलती है : और पढने वाले को भी
101.
तो अब मुझे दीजीए इज़ाज़त । आज की राम राम आपको । मिलते हैं फ़िर अगले रविवार साप्ताहिक महाबुलेटिन के साथ
वाह भिया...एक्के पोस्ट में आप तो शतक ठोक दिए :P
जवाब देंहटाएंकैसे कर पाते हैं यह दिव्य आयोजन -हिट्स और हैट्स आफ भी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सार्थक और श्रमसाध्य कार्य जिसकी प्रशंसा करता हूँ
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स...
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति.....
वाह भाई अजय जी,
जवाब देंहटाएंकमाल की जिजीविषा है आपमें. आपका काम काबिलेतारीफ है. इतने सारे ब्लोग्स के लिंक एक साथ. मजा आ गया. बहुत-बहुत बधाई.
जी |
जवाब देंहटाएंसादर |
कमाल की लगन और मेहनत का नमूना है यह बुलेटिन। इतने सारे स्तरईय लिंक्स और जो सबसे ज़्यादा ग़ौर करने वाली बात यहां है वह यह कि आप दूसरे मंच की चर्चा के भी लिंक्स देते हैं।
जवाब देंहटाएंGood!101 links....
जवाब देंहटाएंitne links.. matlab itne blogs par aap ho aaye!
thanks for adding my post here.
फुरसत से देखने होंगे ये लिंक्स. इस श्रमसाध्य संयोजन के लिए आपका आभार!!
जवाब देंहटाएंजय हो महाराज ... अब तो हर रविवार का इंतज़ार रहता है ... आपकी की इस खास पेशकश के लिए ... यह सिलसिला चलता रहे ... जमाये रहिए झा जी ... जय हो !
जवाब देंहटाएंकमाल की मेराथन बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंहफ्ते भर के लिए सामग्री जुटा दी आपने .
आभार .
ज़बरदस्त एक्स्प्रेस .....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
जवाब देंहटाएंउच्छलत-कूदत बुलेटिन आयो रे...
जवाब देंहटाएंआभार..
jha ji ka dimag to chacha chaudhri se bhi tej chalta hai !
जवाब देंहटाएंsundar !
कार्टून को भी पिरोने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंEffort well appreciated...
जवाब देंहटाएंचकित हूँ आपका परिश्रम देखकर। देखकर। कैसे कर पाते हैं आप यह सब? आपके परिश्रम से मुझ जैसों को बडी सुविधाहो जाती है - यह तय करने की कि क्या पढा जाए और क्या नहीं।
जवाब देंहटाएंमुझे और मेरे ब्लॉग को शामलि कर आपने जो सम्मान दिया, उसके लिए अन्तर्मन से आभारी हूँ।
बहुत बढ़िया सर। आपकी मेहनत, रुचि व चयन के प्रति साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ब्लॉग तक जाने के बाद भी बहुत ब्लॉग छुट ही जाता है . अभी इस महाबुलेटिन को देख कर मन मचल गया एक बार में सब पढ़ जाने के लिए..आपको हार्दिक आभार इस कार्य के लिए..
जवाब देंहटाएंआभार इतने लिंक्स उपलब्ध कराने के लिए। मेरी पोस्ट भी आपने लगायी है जिसका शीर्षक है - अभिव्यक्ति को मार्ग दो ---- लेकिन आपकी पोस्ट पर वह ढंग से अभिव्यक्त नहीं हो पा रही है। जरा उसे मार्ग देने की कृपा करें।
जवाब देंहटाएंsundar sanklan
जवाब देंहटाएंडॉ. अजित गुप्ता जी ,
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार । मैं आपका ईशारा समझ गया , किंतु ये शायद इसलिए हुआ है क्योंकि आपकी साइट को लिंक किया गया है , यानि बाय डिफ़ॉल्ट है इसलिए ऐसा हुआ है , अन्य कुछ लिंक भी इसी तरह से लगे हैं ऊपर । भविष्य के लिए कुछ उपाय करता हूं ताकि शीर्षक को कुछ अलग रंग दिया जा सके । शुक्रिया
बहुत सुन्दर रविवासरीय चर्चा ... कई अच्छे लिंक मिले ... कई सुन्दर रचनाओं से रूबरू हुआ ...
जवाब देंहटाएंमेरा आलेख का लिंक देने के लिए शुक्रिया ...
बहुरंगी लिंक्स की छटा बिखेरता बेहतरीन बुलेटिन ! आपके असाध्य श्रम को नमन !
जवाब देंहटाएंnice links, thanks
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंफिर कमाल , धमाल और सब अपनी अपनी पसंद में व्यस्त .......
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सार्थक और श्रमसाध्य...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आकर के बहुत ही अच्छे लिंक्स देखने को मिले वास्तव में लिंक का शतक एक जगह एक पोस्ट में डालना बहुत ही समय और मेहनत का कार्य इसके लिये आपको बहुत बहुत बधाई बहुत खुबसूरत प्रस्तुति एक साथ एक ही पौस्ट में कई सारी खबरे सुचनाऐ कविताये आदि पढ़ने को मिली
जवाब देंहटाएंvery nice.........
जवाब देंहटाएंthanks for add to we all
अच्छे लिंक हैं। मेरी खुशकिस्मती है कि अधिकांश पहले से पढ़े हुए भी। फिर भी कुछ लिंक पढने लायक निकल ही आए।
जवाब देंहटाएंअजय जी,
जवाब देंहटाएंआपके परिश्रम का लाभ तो हम जैसे लोगों को ही मिलता है, जो अधिक समय न देकर भी बहुत कुछ पढ़ाने के लिए पा लेते हें . इस के लिए हार्दिक धन्यवाद .
धन्यवाद अजय जी...
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि यह एक्सप्रेस अब तक सबसे शानदार लिंक्स यात्राओं में से एक है !
जवाब देंहटाएंबधाई अजय भाई !
आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार इस प्रयास को सराहने के लिए । आपकी टिप्पणियां हमें प्रोत्साहित करती हैं और हमारा उत्साह बढाती हैं । स्नेह और विश्वास बनाए रखें
जवाब देंहटाएंकठिन श्रम।
जवाब देंहटाएंअजय जी ,बहुत मुश्किलों के बाद इस ट्रेन का टिकट आज मिल पाया है ....बस अब कोशिश करती हूँ हर डिब्बे पर पहुँचने की ....-:)
जवाब देंहटाएंthank for starting such a nice train . eske sath yarta karne mai jeewan k har rang ka anand aa jay , sab to nhi haan 8-9 dibbon tk to dekh liya. poore haphte ka ture ban gaya hai
जवाब देंहटाएंआपने काफी बढ़िया पोस्ट लिखी है आप एक बार हमारे ब्लॉग पर भी विजिट करें online hindi book
जवाब देंहटाएंKya Hai Kaise