कल रात .....
नदी कहती रही अपनी बात कलकल निनाद में बहुत कुछ बहाती गई
मैं सुनती गई
सोचा कहूँ नदी से -
एक तुम सी नदी मेरे भीतर है
जिसमें बहुत कुछ बहता है
पर कुछ है जो किनारे रह जाता है
करता है चीत्कार
लगाता है गुहार - यूँ हीं तो नहीं न !!!.................. कुछ गुहारें लेकर आई हूँ
आरूषि का खत…….माँ के नाम
लड़कियाँ-लड़कियाँ-लड़कियाँ... स्लट वॉक पर विशेष...
मेरा ख्याल है - अब आप गुम हो गए होंगे पढ़ने में ..... क्योंकि कोई कम नहीं है
bahut badhiya links..bahut khoob
जवाब देंहटाएंवाह बेहद उम्दा लिंक्स ... अब चलते है सब पर एक एक कर के ... आभार दीदी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों की अच्छी प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
सच मे कोइ कम नहीं है ...बहुत सुंदर लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंक!
जवाब देंहटाएंआम के पेड़ की मार्मिक कथा पढ़ी। मन दुखी हो गया। रश्मि जी की खोजी नज़र को सलाम। शेष फिर कभी...
जवाब देंहटाएंसोचा कहूँ नदी से -
जवाब देंहटाएंएक तुम सी नदी मेरे भीतर है
जिसमें बहुत कुछ बहता है
पर कुछ है जो किनारे रह जाता है
करता है चीत्कार ....marmik abhiwayakti......
बहुत-बहुत शुक्रिया रश्मि जी !
जवाब देंहटाएंlajwab links abhivyakti
जवाब देंहटाएंरश्मि जी उत्कृष्ट रचनाएँ हम तक पहुंचाने के लिए किया गया आपका ये प्रयास सराहनीय है...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति... आभार
जवाब देंहटाएंsundar links !
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स!
जवाब देंहटाएं..सभी लिंक्स बहुत सुन्दर है!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी जज़्बात की पोस्ट को यहाँ शामिल करने का.....सभी लिंक्स शानदार है ।
जवाब देंहटाएं्बहुत बढिया लिंक संयोजन्।
जवाब देंहटाएंसच में !
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत बुलेटिन । सभी लिंक्स बेहद उम्दा पोस्टों तक ले कर जा रहे हैं । बहुत अच्छा बन पडा है आज का बुलेटिन ।
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