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गुरुवार, 28 जून 2012

कोई कम नहीं है ... ब्लॉग बुलेटिन



कल रात .....
नदी कहती रही अपनी बात
कलकल निनाद में बहुत कुछ बहाती गई
मैं सुनती गई
सोचा कहूँ नदी से -
एक तुम सी नदी मेरे भीतर है
जिसमें बहुत कुछ बहता है
पर कुछ है जो किनारे रह जाता है
करता है चीत्कार
लगाता है गुहार - यूँ हीं तो नहीं न !!!.................. कुछ गुहारें लेकर आई हूँ



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18 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बेहद उम्दा लिंक्स ... अब चलते है सब पर एक एक कर के ... आभार दीदी !

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  2. सच मे कोइ कम नहीं है ...बहुत सुंदर लिंक्स ...

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  3. आम के पेड़ की मार्मिक कथा पढ़ी। मन दुखी हो गया। रश्मि जी की खोजी नज़र को सलाम। शेष फिर कभी...

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  4. सोचा कहूँ नदी से -
    एक तुम सी नदी मेरे भीतर है
    जिसमें बहुत कुछ बहता है
    पर कुछ है जो किनारे रह जाता है
    करता है चीत्कार ....marmik abhiwayakti......

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  5. बहुत-बहुत शुक्रिया रश्मि जी !

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  6. रश्मि जी उत्कृष्ट रचनाएँ हम तक पहुंचाने के लिए किया गया आपका ये प्रयास सराहनीय है...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  7. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति... आभार

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  8. ..सभी लिंक्स बहुत सुन्दर है!

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  9. बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी जज़्बात की पोस्ट को यहाँ शामिल करने का.....सभी लिंक्स शानदार है ।

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  10. ्बहुत बढिया लिंक संयोजन्।

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  11. बहुत ही खूबसूरत बुलेटिन । सभी लिंक्स बेहद उम्दा पोस्टों तक ले कर जा रहे हैं । बहुत अच्छा बन पडा है आज का बुलेटिन ।

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