कल रात .....
नदी कहती रही अपनी बात कलकल निनाद में बहुत कुछ बहाती गई
मैं सुनती गई
सोचा कहूँ नदी से -
एक तुम सी नदी मेरे भीतर है
जिसमें बहुत कुछ बहता है
पर कुछ है जो किनारे रह जाता है
करता है चीत्कार
लगाता है गुहार - यूँ हीं तो नहीं न !!!.................. कुछ गुहारें लेकर आई हूँ
आरूषि का खत…….माँ के नाम
लड़कियाँ-लड़कियाँ-लड़कियाँ... स्लट वॉक पर विशेष...
मेरा ख्याल है - अब आप गुम हो गए होंगे पढ़ने में ..... क्योंकि कोई कम नहीं है
18 टिप्पणियाँ:
bahut badhiya links..bahut khoob
वाह बेहद उम्दा लिंक्स ... अब चलते है सब पर एक एक कर के ... आभार दीदी !
बेहतरीन लिंकों की अच्छी प्रस्तुति,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
सच मे कोइ कम नहीं है ...बहुत सुंदर लिंक्स ...
लाजवाब अंक!
आम के पेड़ की मार्मिक कथा पढ़ी। मन दुखी हो गया। रश्मि जी की खोजी नज़र को सलाम। शेष फिर कभी...
सोचा कहूँ नदी से -
एक तुम सी नदी मेरे भीतर है
जिसमें बहुत कुछ बहता है
पर कुछ है जो किनारे रह जाता है
करता है चीत्कार ....marmik abhiwayakti......
बहुत-बहुत शुक्रिया रश्मि जी !
lajwab links abhivyakti
रश्मि जी उत्कृष्ट रचनाएँ हम तक पहुंचाने के लिए किया गया आपका ये प्रयास सराहनीय है...बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति... आभार
sundar links !
सुंदर लिंक्स!
..सभी लिंक्स बहुत सुन्दर है!
बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी जज़्बात की पोस्ट को यहाँ शामिल करने का.....सभी लिंक्स शानदार है ।
्बहुत बढिया लिंक संयोजन्।
सच में !
बहुत ही खूबसूरत बुलेटिन । सभी लिंक्स बेहद उम्दा पोस्टों तक ले कर जा रहे हैं । बहुत अच्छा बन पडा है आज का बुलेटिन ।
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