पच्चीस जून... हिंदुस्तान के लोक-तंत्र का काला अध्याय... एक ऐसा दिन जिसने लोक तंत्र को हिला के रख दिया... आखिर क्यों हुआ ऐसा? कैसे पहली बार कांग्रेसी सत्ता हिली और देश में परिवर्तन की लहर चल निकली.... आखिर ऐसा क्या हुआ कि इंदिरा गाँधी की जिस सरकार ने आपातकाल थोपा... उसके परिणाम स्वरूप देश ने १९७७ में विपक्ष का रास्ता दिखाया उसी इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद हुए आम-चुनाव १९८४ में कांग्रेस को ऐतेहासिक विजय दिलाई... आखिर इस शह और मात के खेल में देश की जनता कितनी बदली... हमारा लोक तंत्र कितना परिपक्व हुआ... हम कितने सुधरे और कितने बिगड़े....
आईए थोडा इतिहास के आईनें में चलते हैं..... सन सैतालीस को याद करते हैं.... जब हम आज़ाद हुए थे.... या यूं कहें कि अग्रेजों से सत्ता हस्तांरण की प्रक्रिया पूरी हुई थी... जुलाई १९४७ को ब्रिटिश संसद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ पास करती है और उसी के तहत भारत को दो भागों में विभाजित करनें की प्रक्रिया शुरु होती है। भारत और पाकिस्तान दो देश बनते हैं और दोनों को विरासत में एक दूसरे के साथ उलझे रहनें और दुश्मन समझनें की मानसिकता बल लेती है। आखिर ब्रिटिश राज के जानें और भारत के एक लोकतंत्र बननें की प्रक्रिया पूरी होनें के बाद क्या भारत वाकई में स्वतंत्र हो गया ? दर-असल सत्ता हस्तांतरित ज़रूर हुई लेकिन सभी प्रक्रियाएं उसी प्रकार से चली जैसी अंग्रेज चलाते आए थे... अंग्रेज राज गया और कांग्रेस राज शुरु हुआ। निर्बाध सत्ता.... कोई रोक टोक नहीं... कोई प्रतिबन्ध नहीं.... कांग्रेसी राज चलता रहा क्योंकि विपक्ष के नाम पर कोई था ही नहीं.... समाजवाद की हवा धीरे धीरे चलती रही लेकिन कांग्रेस को कभी कोई गतिरोध का अनुभव नहीं हुआ।
आईए थोडा इतिहास के आईनें में चलते हैं..... सन सैतालीस को याद करते हैं.... जब हम आज़ाद हुए थे.... या यूं कहें कि अग्रेजों से सत्ता हस्तांरण की प्रक्रिया पूरी हुई थी... जुलाई १९४७ को ब्रिटिश संसद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ पास करती है और उसी के तहत भारत को दो भागों में विभाजित करनें की प्रक्रिया शुरु होती है। भारत और पाकिस्तान दो देश बनते हैं और दोनों को विरासत में एक दूसरे के साथ उलझे रहनें और दुश्मन समझनें की मानसिकता बल लेती है। आखिर ब्रिटिश राज के जानें और भारत के एक लोकतंत्र बननें की प्रक्रिया पूरी होनें के बाद क्या भारत वाकई में स्वतंत्र हो गया ? दर-असल सत्ता हस्तांतरित ज़रूर हुई लेकिन सभी प्रक्रियाएं उसी प्रकार से चली जैसी अंग्रेज चलाते आए थे... अंग्रेज राज गया और कांग्रेस राज शुरु हुआ। निर्बाध सत्ता.... कोई रोक टोक नहीं... कोई प्रतिबन्ध नहीं.... कांग्रेसी राज चलता रहा क्योंकि विपक्ष के नाम पर कोई था ही नहीं.... समाजवाद की हवा धीरे धीरे चलती रही लेकिन कांग्रेस को कभी कोई गतिरोध का अनुभव नहीं हुआ।
आपातकाल
१९७५ के जून में जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय नें इन्दिरा गान्धी के चुनाव को खारिज़ किया और अपनें मद में चूर कांग्रेस किसी भी तरह से सत्ता छोडनें के पक्ष में नहीं थी.... सो देश पर आपातकाल थोप दिया गया... पत्रकारिता प्रतिबन्धित... सभी समाजवादी नेता या तो भूमिगत या फिर जेल में... इंदिरा इंडिया पर पूरी तरह से हावी और अजीब से हालत में देश... संघ को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया गया और एक लाख लोगों को बिना किसी ट्रायल के जेल में ठूस दिया गया.. फिर अगले साल तस्वीर आई जंजीरों में जकड़े जार्ज फर्नांडिस की....
इस तस्वीर नें उस समय की कांग्रेसी ज़्यादतियों से परेशान जनता के लिए आग में घी का काम किया... वहीं जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी भाग कर अमेरिका जा पहुंचे... इन घटनाओं नें स्वामी और जार्ज फ़र्नाडिस को सरकार के विरोध में एक हीरो के रूप में खडा कर दिया। उधर संघ का भूमिगत आन्दोलन जारी था और समाज़वादी और कांग्रेस विरोधी नेताओं की लामबन्दी शुरु हो चुकी थी।
जनता सरकार
जब १९७७ में आम चुनाव हुए, जनता नें पूरा ज़वाब दिया और जयप्रकाश के आन्दोलन की आंधी एक लहर का रूप लेकर कांग्रेसी सरकार का सफ़ाया कर चुकी थी.... खुद इन्दिरा हारीं, संजय हारे और कांग्रेस का बुरा हाल हो गया ।
जनता सरकार का पतन
पहली बार सत्ता गैर कांग्रेसी हाथ में आई, यह दौर देश नें कभी नहीं देखा था, परिवर्तन की इस बयार को जनता पार्टी संभाल न सकी और कुछ ऐसी गलतियां कर बैठी जिसका इन्दिरा ने अपनी कुशल राजनीतिक समझ से पूरा फ़ायदा उठाया.... मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व के आरम्भिक काल में, देश के जिन नौ राज्यों में कांग्रेस का शासन था, वहाँ की सरकारों को भंग कर दिया गया और राज्यों में नए चुनाव कराये जाने की घोषणा भी करा दी गई। यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक कार्य था। जनता पार्टी, इंदिरा गांधी और उनकी समर्थित कांग्रेस का देश से सफ़ाया करने को कृतसंकल्प नज़र आई। लेकिन इस कृत्य को बुद्धिजीवियों द्वारा सराहना प्राप्त नहीं हुई। इन्दिरा गान्धी की गिरफ़्तारी की कोशिश और उसके बाद हुए ट्रायल नें जनता की सरकार के लिए बैक-फ़ायर का काम किया और इन्दिरा गान्धी जनता की सहानुभुति पानें में कुछ हद तक कामयाब हो रही थी। १९७९ में जेपी के निधन के बाद सरकार के घटकों की एकता ही खतरे में आ गई... व्यक्तिगत महत्वकांक्षा सरकार चलानें में मुश्किल कर रही थी... कांग्रेस नें अंग्रेजों से विरासत में मिले डिवाईड एंड रूल की प्रक्रिया का पालन किया और जनता सरकार को गिरा दिया। चरण सिंह का प्रधानमंत्री बनाना कांग्रेस की एक गहरी चाल थी, जिसे कोई समझ नहीं पाया। आज़ाद भारत के इतिहास में सरकार को गिरानें की यह पहली साजिश थी, जिसे इन्दिरा नें बखूबी अंजाम दिया।
उसके बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस को अप्रत्याशित सफ़लता मिली, क्योंकि समाजवादी अपनें परस्पर विरोध और मतभेदों पर नियंत्रण करनें में असफ़ल रहे। कई धडे मिलकर आपस में ही लडनें लगे और जनता के पास कोई अन्य विकल्प न था... सो कांग्रेस सफ़ल रही। मेरा अपना मानना है कि आज कल के तथाकथित समाजवादी नेता आपातकाल की नाजायज औलादें थे.... जो जेपी के आन्दोलन के रथ पर सवार होकर न जानें कैसे सत्ता के गलियारों तक पहुंच गये.... जो किसी लायक न थे वह आज नेता बने हुए हैं....
आखिर भारत पर कांग्रेसी राज क्यों कायम है?
इसका उत्तर है, अंग्रेजों की विरासत का पूरी तन्मयता से पालन करना, हिन्दुस्तान को बांटे रखना और हिन्दुस्तानियों को कभी एकजुट न होनें देना.... विपक्षी नेताओं की अक्षमता और पारस्परिक मतभेद, व्यक्तिगत महत्वकांक्षा इसमें कांग्रेस का सहयोग करती है। कांग्रेस देश पर राज करती रहेगी अगर विपक्ष एक जुट न हुआ तो..... जनता जब वोट देनें जाती है तो फ़िर वह क्या सोचकर वोट करती है? आन्तरिक मतभेदों से उलझे हुए दलों और कांग्रेस के बीच उसे कांग्रेस ही अच्छा विकल्प नज़र आता है.... एक बडा कारण देश के एक बडे वर्ग का चुनावी प्रणाली और वोटिंग से उदासीन हो जाना भी है... महज़ ५० फ़ीसदी वोट परिपक्व लोकतंत्र की निशानी नहीं है.... लेकिन क्या कहिएगा हम अपनें आप में ही इतने उलझे हैं कि हमें देश के बारे में सोचनें की फ़ुरसत ही किधर है? ज़रा सोचिए.......
------------------------------------------------------------
लोकतंत्र ...
बीते हुए लम्हों की कसक...
चमन बेचने को माली तैयार खड़े हैं
होने अथवा ना होने के बीच का एक सिनेमा
इमरजेंसी के ३७ साल
कार्टून:- पॉज़िटिव थिंकिंग की इन्तेहा
आभासी सम्बन्ध और ब्लॉगिंग
लखनऊ नवाबों से पहले -भाग 2 (आईये जाने एक इतिहास..लखनऊ जनपद के प्राचीन नगर और बस्तियाँ.....): महफूज़
आज मुझसे बोल, बादल
हाय किताबों से इश्क कर बैठा ...........
बूंद बूंद स्वाति बरस... .. क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
वो वक़्त भी आएगा..
गुलदस्ते में राष्ट्रपति..
फ्लाइंग किस और इक ख़याल
आरएसएस मुखौटा नोंच फेंकेगे
हगने-हगने में अंतर
खुमार सावन का
बापू मल त्याग केंद्र - एक मनुवादी सोच
चोका
परायों के घर
बगल के मैदान में........
फिर से जिंदगी
हाल सिरोविट्ज़ की कविता
एक लाख ब्लाग पेज हिट्स का आज आनंद उत्सव मनाया जाये । ये ब्लाग एक साझा मंच है इसलिये ये उत्सव सभी का है । तो आइये आज केवल उत्सव का आनंद लिया जाये ।
Catharsis...
सनस्क्रीन : मिथ और सच्चाई
यादों में परसाई जी: ‘व्यंग्य यात्रा’
निजी स्कूलों का मोह और सरकारी स्कूल ........... ललित शर्मा
कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर
मुनव्वर राना की शायरी और हम लोग !
ऐसे कुछ पल...
मुनव्वर राना साहब से ख़ुसूसी मुलाक़ात
माही और मानसिकता !
अपेक्षा (Expectation)
आप मुड़ कर न देखते
फ़िर से दीप जला आना है
भारत वर्ष को कट्टरवाद से बचाओ
------------------------------------------------------------
बीते हुए लम्हों की कसक...
चमन बेचने को माली तैयार खड़े हैं
होने अथवा ना होने के बीच का एक सिनेमा
इमरजेंसी के ३७ साल
कार्टून:- पॉज़िटिव थिंकिंग की इन्तेहा
आभासी सम्बन्ध और ब्लॉगिंग
लखनऊ नवाबों से पहले -भाग 2 (आईये जाने एक इतिहास..लखनऊ जनपद के प्राचीन नगर और बस्तियाँ.....): महफूज़
आज मुझसे बोल, बादल
हाय किताबों से इश्क कर बैठा ...........
बूंद बूंद स्वाति बरस... .. क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
वो वक़्त भी आएगा..
गुलदस्ते में राष्ट्रपति..
फ्लाइंग किस और इक ख़याल
आरएसएस मुखौटा नोंच फेंकेगे
हगने-हगने में अंतर
खुमार सावन का
बापू मल त्याग केंद्र - एक मनुवादी सोच
चोका
परायों के घर
बगल के मैदान में........
फिर से जिंदगी
हाल सिरोविट्ज़ की कविता
एक लाख ब्लाग पेज हिट्स का आज आनंद उत्सव मनाया जाये । ये ब्लाग एक साझा मंच है इसलिये ये उत्सव सभी का है । तो आइये आज केवल उत्सव का आनंद लिया जाये ।
Catharsis...
सनस्क्रीन : मिथ और सच्चाई
यादों में परसाई जी: ‘व्यंग्य यात्रा’
निजी स्कूलों का मोह और सरकारी स्कूल ........... ललित शर्मा
कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर
मुनव्वर राना की शायरी और हम लोग !
ऐसे कुछ पल...
मुनव्वर राना साहब से ख़ुसूसी मुलाक़ात
माही और मानसिकता !
अपेक्षा (Expectation)
आप मुड़ कर न देखते
फ़िर से दीप जला आना है
भारत वर्ष को कट्टरवाद से बचाओ
------------------------------------------------------------
बुलेटिन में कार्टून भी चस्पा करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंBadhiya Buletin.....
जवाब देंहटाएंshukriya mitr . meri kavita ko shaamilkarne ke liye.
जवाब देंहटाएंaapka
vijay
जिय हो बनारस के लाला ....जियह्ह तू हज़ार साला ....गजब । गजब बोले तो एकदम कमाल । जितनी उम्दा प्रस्तावना उतने ही उम्दा लिंक्स । देव बाबा , बहुत ही खूबसूरत बन पडा है आज का बुलेटिन । जांचते हैं , बांचते हैं । टनटनाए रहिए ...जय हो जय जय हो ।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंshaandaar-jaandaar ...
जवाब देंहटाएंआपातकाल के बारे में आपके द्वारा दी गयी जानकारी अच्छी है, देश को वाकई में सोचने की ज़रुरत है !!!
जवाब देंहटाएंहमारी पोस्ट लिंक करने का शुक्रिया है जी !!!!
shaandaar links aaur usse bhee kahin jyada damdaar prastavana....meri rachna ko blog buletin ka hissa banane ke liye hardik dhnywad..sadar
जवाब देंहटाएंइस शानदार प्रस्तुति के लिए आभार देव जी !
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
जानकारी और लिंक्स के खूबसूरत रास्ते
जवाब देंहटाएंहमारी पोस्ट लिंक करने का शुक्रिया .... उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन और प्रस्तुति .. धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएं३७ साल पहले एक इमरजेंसी लगी थी देश में और एक इमरजेंसी अब लगी है देश की जनता के बजट में ... सरकार तब भी काँग्रेस की थी ... सरकार अब भी काँग्रेस की है ... सरकार तब भी एक महिला चलती थी ... सरकार अब भी एक महिला ही चलती है ... विपक्ष तब भी होते हुये नहीं सा था ... विपक्ष अब भी होते हुये नहीं सा है ... जनता तब भी मजबूर थी ... जनता अब भी मजबूर है ... कोई बताएगा इन ३७ सालों मे भला क्या बदला ... सिवाए ब्लोगिंग, फेसबूक, ट्वीटर, गूगल +, ऑर्कुट के ???
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तावना के साथ साथ बेहद उम्दा लिंक्स के लिए आपका हार्दिक आभार देव बाबू !
बेहतरीन लिंक्स संयोजन ... आभार
जवाब देंहटाएंइतिहास के पन्नों से रूबरू होकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंmaza aa gaya.....saath hi mujhe shamil karne ke liye aabhari hoon.
जवाब देंहटाएंइतिहास से आपातकाल और आपात काल से ब्लॉग लिंक...बढ़िया सफर रहा जानकारी से परिपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन है आज ...बहुत आभार मेरी रचना को आपने यहाँ स्थान दिया .....!!
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिये और आपके प्रयास के लिये हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंचुन चुन कर मोती लाये हैं आप। इन बेहतरीन लिंक्स तक पहुँचाने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र..
जवाब देंहटाएंआभार देव जी!!
जवाब देंहटाएं