आइए आज के बुलेटिन में आपको कुछ पोस्टों के कतरे दिखाते हैं
"रियर व्यू मिरर ........."
'रियर व्यू मिरर' एक २ गुणे ४ इंच का अदना सा आईना , बस कार की छत में अटका हुआ | कीमत उसकी बमुश्किल १०० / १५०रुपये | कार चाहे ५ लाख की हो , दस लाख की हो ,पचास लाख की हो या हो नैनो एक लाख की , बिना इस १५० रुपये के आइटम के कार चला पाना ना-मुमकिन | रियर व्यू मिरर का इस्तेमाल यह है कि इससे पता चलता है कि आपके पीछे कौन है , कितना बड़ा है , आगे जाना चाहता है या पीछे पीछे ही चलना चाहता है | कहीं आपका कोई पीछा तो नहीं कर रहा है | अकस्मात ब्रेक लगाने से पीछे वाला टकरा तो नहीं जाएगा | दायें या बाएं मुड़ने में पीछे वाला अवरोध तो नहीं बन रहा | पीछे क्या क्या और कौन कौन छूटा जा रहा है ,वह भी दिखता है रियर व्यू मिरर में | किसी को ओवरटेक कर जब आगे बढ़ते हैं तब पीछे हो जाने वाली गाड़ी के चालक के चेहरे के भाव भी दिख जाते हैं उसमें |
अर्थात गाड़ी चलाने में आपसे आगे कौन है , इससे अधिक यह महत्वपूर्ण
है कि , आपके पीछे कौन है और इसमें मदद करता है एक अदना सा "रियर व्यू मिरर
"|
रिश्तों का निर्वहन कर लें ....
कुछ अक्षर जैसे शिरोरेखा में हो सिमटे
चंद आधे-अधूरे शब्द , जैसे हो मन्त्रों का शोर
कुछ रस्में ,कुछ कसमें ,जाने कैसी रवायतें
ज़िन्दगी शुरू करने से पहले ही लगा दीं गाँठे
सुनो मृगांका:14: मैं कभी न मुस्कुराता, जो मुझे ये इल्म होता...
सुबह जब उसकी नींद खुली तो गाड़ी जमुई पार कर चुकी थी। माटी का रंग धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था...भूरेपन से पीले पन की ओर और फिर मिट्टी का रंग खूनी लाल हो गया। अभिजीत ने आंखें मलते हुए देखा...किसके दिल का खून है ये।
झाझा स्टेशन से पहले से ही दुनिया की सबसे खराब चाय की रट लगाता हुआ वही चाय वाला आ गया। अभिजीत इस आवाज़ को बचपन से पहचानता है...अब उस चाय वाले की उमर भी ढल गई है। कहता है कि वह सबसे खराब चाय बेचता है लेकिन दरअस्ल उसकी चाय होती बेहतरीन है।
अब राम को कौन बताए कि वे कहां रहें? (मानस के रोचक प्रसंग -१)
मानस पारायण चल रहा है...राम वन गमन का प्रसंग पूरा होने का नाम ही नहीं ले
रहा। दुःख का समय कहां जल्दी बीतता है! सुख तो मानो पंख लगाकर उड़ चलता है
और दुःख अंगद का पांव बन टाले नहीं टलता। यह पूरी गर्मी मानस के वन गमन को
समर्पित हो गयी है। राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आ पहुंचे हैं। लम्बा
वनवास काटना है तो एक निरापद जगह की तलाश में हैं। वन गमन के पिता के आदेश
की पूरी कथा बताकर वे वाल्मीकि से सहसा ही पूछ बैठते हैं - मुनिवर वह जगह
बताइये जहां मैं सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय व्यतीत कर सकूं। वाल्मीकि
सुन कर मुस्करा पड़ते हैं। सकल ब्रह्माण्ड का स्वामी, सर्वव्यापी का यह
मासूम प्रश्न वाल्मीकि को मानो निःशब्द कर देता है - अब वे क्या उत्तर
दें? कौन सी जगह उन्हें बता दी जाये जहां वे न रहते हों - बहुत दुविधाजनक
जनक सवाल है। राम तो कण कण में व्याप्त हैं - कोई जगह उनसे अछूती रह गयी हो
तो न बताई जाये। वाल्मीकि साधु साधु कह पड़ते हैं - सहज सरल सुनि रघुबर
बानी साधु साधु बोले मुनि ग्यानी...
रात को सस्ते मे मिल गया शायद...
कुछ सुर्ख, कुछ काले कद्दूकस से...
उस एक पाव सूरज को घिसे जा रही है...
तारे भूखे हैं बहुत आज...
अमावस है न...
चाँद की बोरी कल चुक गयी थी...
पर लगता है...
आज रसोई महकेगी...
आज सूरज का हलवा बनेगा... पहाड़ों पर भी चलने लगे हैं ऐ सी -- वैभव सम्पन्नता या निर्धनता !
समय , साधन और शौक के साथ स्वास्थ्य भी :
पहाड़ों पर जाने से पहले अपना शारीरिक मुआयना ज़रूर कर लेना चाहिए . यदि आप हृदय रोग से पीड़ित हैं , या बी पी हाई रहता है , या दमा है, या फिर मोटापे से ग्रस्त हैं तो आपको सावधान रहना पड़ेगा .
क्योंकि भले ही आप गाड़ी से जाएँ लेकिन पहाड़ों के ऊंचे नीचे रास्तों पर तो पैदल ही चलना पड़ेगा . और यदि आप स्टर्लिंग रिजौर्ट्स जैसे किसी बड़े होटल / रिजॉर्ट में ठहरे तो समझिये आ गई शामत .
चलते चलो रे ४ (सॉल्ट लेक और मॉरमॉन टेबरनेकल (टेम्पल)
सुबह नही धो कर तैयार हुए और कॉम्प्लिमेन्ट्री कॉन्टिनेन्टल ब्रेकफास्ट
कर के वापसी के प्रवास पर चल दिये । वही रास्ता, पर, एक अलग नजरिये से देखा उल्टा
जो जा रहे थे । एक जगह बर्गरकिंग में रुक कर कॉफी और ओनियन रिंग्ज का समाचार पूछा
। रास्ते में फोटो शूट और
गप-शप चल ही रही थी । जब ४ घंटे बाद आयडाहो पहुँचे तो फिर से अरीमो गांव
में रुके । कार मे गैस भरवाई और फिर से
क्रॉस कट फ्राइज खाईं । फिर रुके यूटा के एन्टिलोप नामक गांव में जहां हमें सॉल्ट
लेक देखना था । यह स़ॉल्टलेक सिटि से कोई ३० मील दूर है ।नजरअंदाज होने की आदत पड़ गई थी- विनीत सिंह
गैंग्स ऑफ वासेपुर के दानिश खान उर्फ विनीत सिंह
बैग में कुछ कपडे और जेहन
में सपने लेकर मुंबई आ गया. न रहने का कोई खास जुगाड़ था न किसी को जानता
था. शुरूआत ऐसे ही होती है. पहले सपने होते हैं जिसे हम हर रोज़ देखते
है,फिर वही सपना हमसे कुछ करवाता है, इसलिए सपना देखना ज़रूरी है. लेकिन
सपना देखते वक़्त हम सिर्फ वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं और जो हमें
ख़ुशी देता है इसलिए सब कुछ बड़ा आसान लगता है. पर मुंबई जैसे शहर में जब
हकीकत से से दो-दो हाथ होता है तब काम आती है आपकी तयारी. क्यूंकि
यहाँ किसी डायरेक्टर या प्रोड्यूसर से मिलने में ही महीनो लग जाते हैं
काम मिलना तो बहुत बाद की बात है. बताने या कहने में दो-पांच साल एक वाक्य
में निकल जाता है लेकिन ज़िन्दगी में ऐसा नहीं होता भाईi, वहां
लम्हा-लम्हा करके जीना पड़ता है और मुझे बारह साल लग गए गैंग्स ऑफ़ वासेपुर
तक पहुँचते-पहुँचते. मेरी शुरुआत हुई एक टैलेंट हंट से जिसका नाम ही
सुपरस्टार था. मै उसके फायनल राउंड का विजेता हुआ तो लगा कि गुरु काम हो
गया.मंत्रालय में आग लगी या लगाई गई?
कहानी कहने की कला
- वाल्टर बेंजामिन
हर सुबह अपने साथ दुनिया भर की खबरें लेकर आती है। लेकिन फिर भी हमारे पास अच्छी कहानियों का दारिद्र्य बना रहता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी घटना स्पष्टीकरण के बारीक छिद्रों से गुजरे बगैर हम तक नहीं पहुंचती। या यूं कहें कि लगभग हर चीज हमारी जानकारी में इजाफा भर करती है, लेकिन कहानी के पक्ष को बढ़ावा देने वाला उसमें कुछ भी नहीं होता। कहानी कहने की आधी कला इसी में है कि सुनाते समय उसे तमाम स्पष्टीकरणों से मुक्त रखा जाए। इस दृष्टि से आदिकाल के लोग, और उनमें भी हेरोटोटस, इस हुनर में माहिर थे। अपनी किताब 'हिस्टरीज' के तीसरे खंड के चौदहवें अध्याय में वे सैमेनिटस की कहानी सुनाते हैं।
जिए मोरे राजा
सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोग जिसपे राज करते है जिनके बदौलत वे है | कभी भी नही चाहते की वे कही से सुखी रहे वे हर पल किल्लत की जिन्दगी जिए अभाव में रहे ताकि निरीह बनके सत्ता के आगे नतमस्तक रहे विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक '' जिए मोरे राजा '' जिसकी परिकल्पना और निर्देशन अभिषेक पंडित द्वारा स्मृति भवन के प्रागण में किया गया |
निर्देशक ने अपनी कल्पना शीलता से पूरी कहानी के धार को उसी तरह प्रस्तुत किया इस नाटक की यह सबसे ख़ास बात रही की किसी भी कहानी के अभिव्यक्ति पूरी इमानदारी से ज़िंदा रहे | नर्देशक ने यह कार्य बखूबी किया |
हम कबतक क़ानून और न्यायपालिका को पूजते रहेंगे ?
हमारे देश की न्याय पालिका कितनी
निकम्मी है वह हम सबको मालूम है. पैसा और ताकत के बलपर यहाँ कितने भी बड़े
जुर्म से बाहर निकला जा सकता है. बड़े से बड़ा जुर्म करके भी गुनहगार
आराम से बरी हो जाते हैं . वहीँ बिना किसी गुनाह के किसी को सज़ा मिल जाती
है. हमारा न्याय प्रणाली ऐसा है कि गुनहगार पैसे और शक्ति के बल पर या तो
बच निकलता है या साबित जबतक हो पाए उसके पहले ही वह मर जाता है।
हमारे यहाँ सरकारी नौकरी में
प्रावधान है कि सरकारी अधिकारी को चुनाव के समय निर्वाचन अधिकारी बना दिया
जाता है . कई ऐसे मामले होते हैं जब अधिकारियों को मांग पर तहकीकात के समय
भी जाना पड़ता है. यह भी सरकारी नौकरी का एक हिस्सा होता है . अधिकारी उस
समय मना नहीं कर सकते . यहाँ भी जिनकी पहुँच होती है वह तो इन सब झंझटों
में नहीं पड़ते क्यों कि झंझट सिर्फ जाने का नहीं है उसके बाद सालों साल
पिसते रहो बिना किसी गलती के गवाही देते रहो.
मिशनरी बनेगी राष्ट्रपति ???
पी.ए. संगमा , 13वें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार । संगमा एक निर्भिक छबी
वाले कद्दावर नेता हैं जो पार्टी के नामों से कम और व्यक्तिगत रूप से
ज्यादा जाने जाते हैं । मैने फेसबुक में कई बार इस बात का जिक्र किया था की
सोनिया गांधी चाहे जिसका नाम राष्ट्रपति के रूप में सामने लाए , बात एक
ईसाइ पर जरूर ठहरेगी । जी हां वह नाम है पी.ए. संगमा का ... और इस नाम को
लाने वाला कोई विदेशी नही स्वयं को हिंदुत्व का प्रबल समर्थक कहलाने वाली
भारतीय जनता पार्टी है । जैसा की मेरा मत था की किसी ईसाइ नाम को सामने
लाने वाली कांग्रेस पार्टी या सोनिया गांधी होंगी लेकिन अफसोस मेरी धारणा
चूर चूर हो गई और मैने पाया की भाजपा भ मिशनरी की चाल में आ गई है या फिर
कह सकते हैं की बिक गई है ( कई बार बिकने के प्रमाण हाजिर हैं कांधार से
लेकर संसद तक ) ।
विदेश में धन संचय !
माननीय मंत्री जी ये आप हमें बतलाइए कि विदेशों में सफेद धन जमा करवाने का औचित्य क्या है? काला धन तो मान सकते हैं कि दुनियां के नजर से बचाना ही पड़ता है और घर वालों से भी। फिर ये तो बड़े बड़े नौकरशाहों और माननीयों के ही वश की बात है कि वे अपने धन को कहाँ छुपा कर रखें? लेकिन ये काला धन सदैव काला ही रह जाता है क्योंकि उनके पास इतना सफेद धन होता है कि उसको ही खर्च नहीं कर पाते है, फिर काले धन की बात कौन करे?
सफेद धन के विदेश में संचित करने की बात पर कुछ सवाल तो पूछे ही जा सकते हैं --
-- क्या हमारे देश से अर्जित किया गया धन देश में संचित न करके विदेशों में संचयन देश के साथ गद्दारी नहीं है?
थप्पड़ की रसीद या रसद की ?
पा वती या ‘बिल’ के लिए एक आम शब्द है ‘रसीद’
। यह फारसी का है मगर हिन्दी में ‘पावती’ शब्द बहुत कम इस्तेमाल होता है
और ‘रसीद’ ज्यादा । हालाँकि रसीद में पावती का भाव अधिक है । पावती यानी
प्राप्ति अर्थात जिसे पा लिया जाए । पावती का बिल के अर्थ में भाव है
भुगतान मिलने की सूचना । यह सूचना बिल की शक्ल में आपको सौंपी जाती है ।
मूलतः रसीद इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और इसकी व्याप्ति भारोपीय
भाषा परिवार की कई भाषाओं में देखी जा सकती है । रसीद में
मूलतः पहुँचने या प्राप्त होने की क्रिया निहित है । ‘रसीद’ बना है फ़ारसी
की क्रिया ‘रसीदन’ से जिसमें पाने, पहुँचने का भाव है । गए बिना कहीं भी
कैसे पहुँचा जा सकता है? पहुँचना और पाना गतिवाचक क्रियाएँ हैं और रसीदन में गति का भाव ही खास है ।
प्रधानमंत्री और सरकार बनाना बिगाडना छोडो,समाचार दिखाओ समाचार.आप लोगो के एक्ज़िट पोल का हाल जनता कई बार देख चुकीहै.
कलेक्टर ने जगदीश जांदू को आगे बढ़ाया
श्रीगंगानगर-अब इसमे कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस के बड़े नेताओं की या तो जिला कलेक्टर अंबरीष कुमार से कोई ताल मेल नहीं है या फिर जिला कलेक्टर इन नेताओं की परवाह नहीं करते। उनकी किसी से ट्यूनिंग है तो वो है नगर परिषद सभापति जगदीश जांदू। इसका सबूत है जिला कलेक्टर की प्रेस कोन्फ्रेंस। ओवर ब्रिज इस शहर के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है। यह कहां बनेगा?कब शुरू होगा?बनेगा या नहीं?कौन इसके लिए प्रयास कर रहा है?ये सब बातें टॉक ऑफ टाउन हैं। कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके राज कुमार गौड़ के लिए भी यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात है। जिस मुद्दे पर इतनी भ्रांतियां,शंका हो....वह सब निपट जाएं........ओवरब्रिज की जगह निश्चित हो जाए....मंजूरी हाथ में हो और कांग्रेस का कोई नेता इसकी घोषणा करे तो उसकी बल्ले बल्ले होना स्वाभाविक है।
इत्तफाक ...
एक तरफ
भूख से मर रहे हैं गरीब !
और दूसरी तरफ
गोदामों में
सड़ रहे हैं अनाज !!
बोलिए हुजूर ...
ये कैसी, कौनसी -
नीति है तुम्हारी ?
या
ये भी एक ... इत्तफाक है
तुम्हारी नजर में घिर आए बदरा
इसके दूसरे पक्ष
की बात
आज नहीं
क्योंकि वैसे
भी इसमें
इसका दोष
नहीं होता। हमारी धन-लोलूपता, लिप्सा
और बेवकूफियों
की वजह
से इसे
मजबूरीवश रौद्र-रूप धारण
कर हमें
बार-बार
सचेत करना
पडता है।
जब भयंकर गर्मी
अपने रौद्र
रूप से
सारे इलाके
को त्रस्त
कर रख
देती है, जिसके फलस्वरूप जल
का गहराता
संकट, निर्जीव
पादप, बेचैन
प्राणी जगत
के साथ
दिनकर के
प्रकोप से
सारी धरा
व्याकुल हो
उठती है
तब प्रकृति
फिर करवट
बदलती है
और आ
पहुंचती है
पावन पावस
की ऋतु।
सारी कायनात जैसे
इसी परिवर्तन
की राह
देख रही
होती है।
मौसम की
यह खुशनुमा हरित क्रांति
सबके अंतरमन
को अभिभूत
कर देती
है। सतरंगी
फूलों से
श्रृंगार किए,
धानी चुनरी
ओढे, दूब
के मुलायम
गलीचे पर
जब प्रकृति
हौले से
पग रखती
है, आकाश
में जहां
सूर्य का
एकछत्र राज
होता था
वहां अब
जल से
भरे मेघ
अपना अधिकार
जमा लेते
हैं। कारे-कजरारे मेघों
से झरने
लगती हैं
नन्हीं-नन्हीं
बूंदें, जो
नन्हीं ही
सही पर
बडी राहत
प्रदान करती
हैं। कभी
इनकी ओर
ध्यान दें
तो इनके
झरने में
एक अलौकिक
संगीत का
आभास होगा।
वर्षा ऋतु
मनभावन ऋतु
तो है
ही, मादकता
की संवाहक
भी है।
आत्मीयता के
तार जुडने
लगते हैं
इस वक्त।
धरा आकाश
जैसे एक
हो जाते
हैं। इंद्रधनुष
की किरणों
के साथ-साथ नभकी
अलौकिकता भी
धरा पर
आ उतरती
है। नभ
के अमृत
से वसुधा
सराबोर हो
उठती है।
वर्षा में
भीगने के
बाद सारी
प्रकृति को
जैसे नया
रूप। नया
जीवन मिल
जाता है।
वन-बाग,
खेत-खलिहान,
नर-नारी,
पशु-पक्षी,
पेड-पौधे
यानि पृथ्वी
के कण-कण का
मन-मयूर
नाचने-गाने
को आतुर
हो उठता
है।
अन्ना का यू-टर्न
राजीव खण्डेलवाल:
राजनीति में बयान देना, उससे पलटना और उससे फिर पलट जाना ये ‘आम’ बात है। वैसे तो राजनेताओं में यह बीमारी ‘आम’ है, लेकिन इस बीमारी की छूत आजकल सामाजिक, व धार्मिंक नेताओं में भी लग गई है। खासकर आज की स्थिति में तो भारतीय राजनीति में यह बात तो और भी ‘आम’ है, जैसे यहां हर ‘आम’ आदमी ‘आम’ है। भारत का का ‘आम’ भी बहुत प्रसिद्ध है। अर्थात यहां हर चीज ‘आम’ है। आम घटनाओं का ‘आम’ होने के कारण ‘आम’ प्रतिक्रिया के कारण ‘आम’ लोगो का ध्यान इस तरफ केंद्रित नहीं होता है। लेकिन बात जब अन्ना की हो तो वह ‘आम’ नहीं बल्कि खास हो जाती है। उसकी प्रतिक्रियाएं हल्के में नही ली जा सकती। अन्ना यद्यपि अपने आपको एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते है, राजनीति से दूर मानते है और वास्तव में वे आज के राजनीतिक माहौल के राजनैतिक है भी नहीं। फिर भी वे आज देश की सम्पूर्ण राजनीति के धूरी के केंद्र बिंदु है। पिछले दो वर्षो से देश की राजनीति की दिशा-दशा को वे प्रभावित कर रहे है। इतिहास की सैकड़ो पुस्तकें ऐसे महानायकों की गाथाओं से भरी पड़ी है जिन्होने कभी कुछ कह दिया तो आजीवन उन शब्दों पर अडिग रहे। अपनी परम्परा, आन-बान और शान को बनाए रखने के लिए ‘‘रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाही पर वचन न जाही’’ के कथन को सार्थक किया। परन्तु समय के साथ ही मानव जीवन के मूल्यों का धीरे-धीरे इस तरह क्षरण हुआ कि आज महापुरूषों के कथन भी ‘आम’ लोगो की तरह ही ‘आम’ होने लगे है।
क्योंकि वो ताजमहल नहीं था...
एक बार फिर रोई
अमृता, फूट फूट कर रोई । इमरोज़ के कुर्ते को दोनों हाथों से पकड़ कर
झिंझोड कर पूछा ''क्यों नहीं बचाए मेरा घर? क्यों नहीं लड़ सके तुम मेरे
लिए?'' ''बोलो इमा, क्यों नहीं रोका तुमने उन लोगों को, जो मेरी ख्वाहिशों
को उजाड़ रहे थे, हमारे प्रेम के महल को ध्वस्त कर रहे थे? हर एक कोने में
मैं जीवित थी तुम्हारे साथ, क्यों छीन लेने दिया मेरा संसार?''
अमृतसर यात्रा - १ - जलियाँवाला बाग और स्वर्ण मंदिर
उन
दिनों मैं दसवीं कक्षा में था.करीब दो महीने
मेरी तबियत खराब थी और मैं घर से बाहर निकलता नहीं था.मेरे एक दो मित्र
लगभग हर शाम
मुझसे मिलने आते थे.एक मित्र ने एक दफे एक इतिहास की किताब मुझे लाकर दी,
और बोला इस किताब को जरूर पढ़ना...वो किताब हमारे पाठ्यक्रम में था नहीं
बल्कि विशेष रूप से भारतीय क्रांतिकारियों के ऊपर लिखी गयी थी.मैंने वो
किताब लगभग पूरी पढ़ डाली थी.मुझे किताब या लेखक
का नाम तो याद नहीं, कुछ याद है तो वो ये की किताब पर
पुराने अखबार का जिल्द चढ़ा हुआ था और किताब बहुत ही मोटी और पुरानी जान पड़ती थी..जिसके पन्ने कहीं कहीं से फटे हुए थे.मैंने स्कूल की
किताबों में भारतीय क्रान्ति और क्रांतिकारियों के बारे में पढ़ा तो जरूर था लेकिन इतने
विस्तार से भारतीय क्रान्ति के बारे में पढ़ने का वह मेरा पहला अवसर था.सरदार भगत
सिंह के बारे में भी मैं पहले स्कूल के इतिहास के किताबों में पढ़ चूका था, कई लेख
भी लिख चूका था, लेकिन उस किताब के माध्यम से मुझे उनके बारे में
बहुत सी बातें मालुम चली, जो स्कूल के किताबों से कभी मालुम ना
चलती.किताब में जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर भी काफी
विस्तार से लिखा गया था.उन दिनों घर में बैठे मैं अक्सर सोचा
करता था की कैसा होगा वो हैवानियत भरा हत्याकाण्ड जिसने पुरे हिन्दुस्तानी
क्रान्ति का रुख ही बदल दिया..कितना क्रूर और दिल दहला देने वाला वो हत्याकांड
होगा जिसने एक बारह साल के बच्चे को शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह बना दिया और जिसे महज तेईस साल
की उम्र में फांसी दे दी गयी थी.
आशंका
शीर्षक :- गीत ख़ुशी के
वो ज़मी वो आशियाना....
हमें भी मिलना चाहिए,
अब इस कीचड़ और टीन छत....
से अब हमें निकलना चाहिए,
आखिर कब तक हम....
देख-देख यूँ तरसते रहेंगे,
वो ज़मी वो आशियाना....
हमें भी मिलना चाहिए,
अब इस कीचड़ और टीन छत....
से अब हमें निकलना चाहिए,
आखिर कब तक हम....
देख-देख यूँ तरसते रहेंगे,
अब नए जीमेल में लगाइए अपनी पसंद का बैकग्राउंड
अब आप सीमित जीमेल थीम से आगे जाकर अपनी पसंद की तस्वीर लगाकर जीमेल को मनचाही थीम दे सकते हैं क्यूंकि गूगल ने जीमेल पर अपनी नयी Custom Themes सुविधा के जरिये ये मुमकिन कर दिया है ।
इस सुविधा का उपयोग करने अपने जीमेल अकाउंट में लोगिन करके "settings" बटन पर क्लिक कीजिये फिर "themes" विकल्प पर क्लिक कीजिये ।
अब आप जीमेल थीम सेटिंग के पेज पर होंगे अगर आप जीमेल पर लोगिन पहले ही कर चुके हैं तो
https://mail.google.com/mail/ca/u/0/#settings/themes
इस लिंक पर क्लिक करके भी थीम सेटिंग पेज पर पहुँच सकते हैं ।
जेद्दाह में सप्ताहांत, टैक्सीवाले की बातें, निराला में भोजन, मुशर्रफ़ और एमग्रांड कार (Weekend in Jeddah, Taxiwala, Lunch In Nirala, Musharraf and Emgrand Car)
जेद्दाह में अभी लगभग ५० डिग्री तापमान चल रहा है
कहने के लिये केवल ५० डिग्री है परंतु रेगिस्तान होने के कारण ये बहुत ही
भयंकर वाली गर्मी पैदा होती है, ऊपर से हरियाली नहीं है। कहीं भी जाना हो
टैक्सी में ही जाना पड़ता है, आज फ़िर टैक्सी करके निराला रेस्टोरेंट जाना तय
किया।
होटल से निकल लिये और टैक्सी रोकी,
निराला रेस्टोरेंट का बताया और चल दिये मात्र १० रियाल, निराला रेस्टोरेंट
यहाँ जेद्दाह में बहुत प्रसिद्ध है और अपने बेहतरीन स्वाद के लिये जाना
जाता है। जैसे ही टैक्सी में बैठे आगे पेट्रोल पंप पर उसने अपनी टैक्सी
रोकी और कहा पेट्रोल लेना है, पेट्रोल ना होने की लाल बत्ती बार बार दिख
रही थी, १८ रियाल दिये पेट्रोल पंप कर्मचारी को और ४० लीटर पेट्रोल डाल
दिया गया, टैक्सीवाले का नाम सैफ़ुल्ला था और बंदा पाकिस्तान से था, कहने
लगा कि यहाँ देखिये ४१ हलाला का एक लीटर पेट्रोल मिलता है और १८ रियाल में
टैंक फ़ुल हो गया। साथ में १.५ लीटर पानी की बोतल और पसीना पोंछने के लिये
टिश्यु पेपर का १ बॉक्स फ़्री। इतने में ही उसके पास फ़ोन आ गया (जी हाँ यहाँ
पेट्रोल पंपों पर मोबाईल फ़ोन पर बात करने की पाबंदी नहीं है, पता नहीं
भारत में किसने लगाई), पंजाबी भाषा में बात करने लगा, इतना समझ में आया कि
किसी ने मुर्गी पकाई है और वह पंद्रह बीस मिनिट में खाने पहुँच जायेगा।
थैंकू भिया ;)
जवाब देंहटाएंवाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंई तो गागर में सागर हुयी गवा है ..आया अपना देखने और मिल गया खजाना -आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंअच्छे कतरें समेट कर गागर भर दी ,है अपनी बूंद देख कर खुशी हुई धन्यवाद अजय जी । कुछ बूंदों को पिया है कुछ को पीना बाकी है ।
जवाब देंहटाएंमेरी लेखनी 'क्योंकि वो ताजमहल नहीं था' को यहाँ शामिल करने के लिए बहुत शुक्रिया. बुलेटिन में विभिन्न विषयों पर बहुत अच्छे अच्छे लिंक्स है, पढ़ना सुखद होगा. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबढ़िया मनपसंद .... व्यू मिरर की खासियत और ख़ास लिंक्स
जवाब देंहटाएंमेरी लेखनी 'क्योंकि वो ताजमहल नहीं था' को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत शुक्रिया. बुलेटिन में विभिन्न विषयों पर बहुत अच्छे अच्छे लिंक्स है, पढ़ना सुखद होगा. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवाह वाह, अच्छे लिंक हैं, और हमारा पोस्ट भी आपने शामिल किया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंडॉ. जेन्नी शबनम ने आपकी पोस्ट " कुछ पोस्ट कतरे ...ब्लॉग बुलेटिन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंमेरी लेखनी 'क्योंकि वो ताजमहल नहीं था' को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत शुक्रिया. बुलेटिन में विभिन्न विषयों पर बहुत अच्छे अच्छे लिंक्स है, पढ़ना सुखद होगा. शुभकामनाएँ.
अजय जी , हम तो अपना एक कतरा ..."रिश्तों का निर्वहन" .....ही देखने आये थे पर यहाँ तो पूरा का पूरा सागर ही मिल गया .....-:)
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
Bahut hi achha prayas,
जवाब देंहटाएंmeri post shamil karne ke liye dhanyawad
bahut badhiya sanyojan... shubhkaamnayen
जवाब देंहटाएंbahut sundar ... jay ho ! vijay ho !!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन छापा है .
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन प्रकाशित कर रहे हें, ये कतरे वैसे ही लगे जैसे कि मोती चुन कर टांक दिए हों. बहुत कुछ पढ़ाने को मिला.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद !
नायाब कतरे |
जवाब देंहटाएंमैं तो कतरन लिए कतरा रहा था जमाने से ,
पहचाना जब से आपने ,रूबरू हो गए जमाने से |
शुक्रिया अजय जी, और बधाई भी। क़तरा-क़तरा चुनकर एक झरना तैयार करने के लिए।
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन है - बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंवाह अजय भाई मान गए आपको जय हो ... वैसे भी पूरे 48 घंटे बाद नेट पर आया हूँ ... ऊपर से आपकी यह मारक ब्लॉग बुलेटिन ... बच्चे की जान लोगे क्या ???
जवाब देंहटाएंजाता हूँ सब जगह धीरे धीरे ... ;-)