रुको भी .... लिंक्स तो हैं ही , उससे पहले जो लिख रही हूँ , उसे पढ़ते हुए आगे जाएँ - रुकावट के लिए कोई खेद नहीं है , क्योंकि जो भी लिखा है वह आपके ही लिए है . कुछ प्रश्न हैं , देने हैं जवाब सच सच
१. क्या आप बड़े हो गए हैं ?
२. समझदारी आ गई ?
३. क्या अब गुब्बारे देख आपका मन नहीं ललचता ?
४. क्या मनपसंद चीज बांटने में आज भी बेईमानी नहीं होती ?
५. क्या आप हर दिन अपना लिंक्स यहाँ नहीं चाहते ?
पता है , पता है - सब मेरा जवाब चाहते हैं .... तो थोड़ी सी इमानदारी , थोड़ी सी बेईमानी लेकर देती हूँ जवाब -
बड़ी क्या बहुत बड़ी हो गई हूँ , पर मन नहीं होता बड़ी कहे जाने का ..... :)
समझदारी :) भला अपने को कोई बुद्धू कहता है ...
किसी के हाथ में गुब्बारे , खिलौने देख मुझे बहुत ईर्ष्या होती है , यानि जबरस्त लालच है .... :)
बच्चों के साथ कोई बेईमानी नहीं , .... बाकी कहना ज़रूरी है क्या ? :)
जिस दिन अपना लिंक नहीं होता बहुत दुःख होता है :) ......... तो आज की शुरुआत अपने ही लिंक से
डायरी के पन्नों से: लगन लगायी जिसने उससे
लम्हों का सफ़र: पंचों का फैसला...
मनोज: स्मृति शिखर से – 16 : बदरा
हरिप्रिया............: तुम्हें तो , कुंदन पसंद है ना................!!!!!
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बदनामियों की गठरी
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SADA: अब शेष नहीं कुछ कहने को .... !!!
ये मत कहियेगा कि लिंक्स कम हैं .... पहले पढ़िए तो ....
अरे बहुत हैं ..जाते हैं पढ़ने :)
जवाब देंहटाएंथोड़ी बहुत बेईमानी हम सबमे हैं ...
जवाब देंहटाएंबड़े और हम , कब हुए ?
जन्मे ही समझदार थे .
गुब्बारे से नहीं , चॉकलेट से जरुर ललचाता है .
देखना चाह्ते हैं हर दिन यहाँ ...आज क्यों नहीं है मेरे पोस्ट :(
चलिए , कोई गल नहीं , आज दूसरों की ही पहले से पढ़ी हुई भी पढ़ लेते हैं !
थोड़ी शरारत न हो ... तो पढ़ने में क्या मज़ा :)
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंन चाहते हुए भी बड़े हुए जा रहे हैं......
चाहते हुए भी समझदारी आती नहीं......
:-(
जाआआआ
जवाब देंहटाएंछोटा और प्यारा बुलेटिन..
जवाब देंहटाएंआभार रश्मि दी :-)
जवाब देंहटाएंहम तो नहीं कह रहे लिंक्स कम है ... किसने कहा ... पहले सब पढ़ तो लें ... बाकी बातें बाद मे !
जवाब देंहटाएंप्रश्नोत्तर ? भाई लोग :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स संजोये हैं...
जवाब देंहटाएंबहुते बढियां दीदी ..
जवाब देंहटाएंथोडा रुके ,फ़िर पढे , फ़िर पढने के लिए चले । एकदम चकाचक बुलेटिन आ सुंदर लिंक्स
मन बड़ा होना ही नहीं चाह्ता और इच्छाओं की कोई सीमा नहीं। खुद को यहाँ देखने की भी चाह कम नहीं!
जवाब देंहटाएंकुछ पढ़े, बहुत अच्छे लगे बाकी रूक कर....:)
सबके मन मे है वो बात...जो आपने कही...लिंक्स पढ़ने योग्य...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसतसैया के दोहरे ज्यो नाविक के तीर
जवाब देंहटाएंदेखन में छोटे लगे , घाव करे गंभीर
रश्मि जी , सुन्दर लिंक्स तो है ही , पर बातें बड़ी मासूम है !
भोत प्याली !!
सुंदर संतुलित बेहतरीन लिंक्स,,,,,
जवाब देंहटाएंबढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंआपके उत्तर में मैं भी शामिल हूँ. ''उम्र भले बढ़े पर...दिल तो बच्चा है जी'' मन खुश हो गया मेरा लिंक देखकर और आपका ये अनोखा अंदाज़ देखकर. धन्यवाद. शुभकामनाएँ.
काश ! बचपन वही ठहर जाता ,भगवान तेरा क्या जाता..पर हम तो खुश होते न....जैसे कि आज मैं बहुत खुश हूँ..यहाँ लिंक देख कर...आभार....
जवाब देंहटाएंजवाब तो यही बनते हैं :N ,N ,Y ,Y ,Y
जवाब देंहटाएंपहली बार ब्लॉग बुलेटिन में स्थान मिला, आपका आभार.
बड़ा वक़्त ने कर दिया, मन है अब तक बाल
समझदार अब तक नहीं , श्वेत हो रहे बाल
श्वेत हो रहे बाल , ललचते गुब्बारे को
थोड़ा बट्टा मार , बाँट देते सारे को
कौन न चाहे लिंक , यहाँ पर नित जुड़वाना
इसकी खातिर हमें , पड़ेगा किसे मनाना
जिन लोगों ने जवाब दिया है , वो एक ही नाव के सवारी हैं और बाकी तो लिंक्स पढ़ने में परीक्षा देने से भाग गए - भागनेवाले एक क्लास पीछे
जवाब देंहटाएंkhubsurat link....
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति और अंदाज हमेशा की तरह लाजवाब करता हुआ ...समझदारी का तो आपको पता ही है ... अब शेष नहीं कुछ कहने को .. आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंशानदार ब्लॉग जानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंअरे वाह यहाँ आने का मौका तो आज ही मिला....देर हो गई है फिर भी जवाब देने का मन करता है लिंक कल पढ़ेगे....
जवाब देंहटाएं१. क्या आप बड़े हो गए हैं ?--- उम्र और तन से हाँ मन से नहीं
२. समझदारी आ गई ? -- लोग समझते हैं और हम समझते है मन तो बच्चा है
३. क्या अब गुब्बारे देख आपका मन नहीं ललचता ? - ललचाता है और बेझिझक हाथ में लेकर खुश होते है...
४. क्या मनपसंद चीज बांटने में आज भी बेईमानी नहीं होती ? - कदापि नहीं...
५. क्या आप हर दिन अपना लिंक्स यहाँ नहीं चाहते ? - हर दिन तो नहीं हाँ कभी कभी ज़रूर.. :)